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बुधवार, 1 दिसंबर 2010

करीब से देखा मैंने ...................

चीख पुकार का वो मोत का मंज़र ,
उस मनहूस रात कों करीब से देखा मैंने ...

न जाने कितने गुनहगारो कों लील गयी वो
अपने ही हाथो से मोत कों फिसलते हुए, करीब से देखा मैंने...

धरती कों प्यासा छोड़ गयी वो
भूख से तडपते हुओ कों करीब से देखा मैंने ...

शहर का हर वो कोना जिसमे बस लाशे ही लाशे
कयोंकि लाशे से पटती धरती कों करीब से देखा मैंने .....

चिमनी से निकलता हुआ वो ज़हरीला धुँआ
शहर कों मोत की आगोश में सोते हुए, करीब से देखा मैंने ..

२६ साल स बाकि है अभी वो दर्द
लोगो को आंधे,बहरे और अपंग होते हुए, करीब से देखा मैंने ....

याद आता है माँ का वो आचल
माँ के आसुओ कों बहते हुए, करीब से देखा मैंने ....

(मेरे यह कविता भोपाल गैस त्रासदी के ऊपर लिखी गयी है, जिसको २ & ३ दिसंबर कों पूरे २६ वर्ष होने जा रहे है ....)
.वर्ष १९८४ की वह मनहूस रात कों यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक सयंत्र से मिथाईल आइसोनाइड गैस का रिसाव होने से हज़ारो लोगो की मोत हो गयी थी

ललित कुमार कुचालिया
09752395352

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