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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

....जब से यह करम हुआ.

शकील "जमशेदपुरी"
तस्वीर गूगल के सौजन्य से!
छत पे तुम जो आ गई तो लोगों पे सितम हुआ
अमावस की रात में भी चांद का भ्रम हुआ

जिंदगी लगी थिरकने दूर रंजो-गम हुआ
मुझपे तेरे प्यार का जब से यह करम हुआ

याद तेरी आ गई और मुझसे यूं लिपट गई
गीत लिखने के लिए हाथ में कलम हुआ

लोग पूछते है मुझसे राज मेरे गीत का
क्या कहूं मैं उनसे कि बेवफा सनम हुआ

मिट सकेगी क्या कभी हीर-रांझे की दास्तां
"शकील" तेरे प्यार का किस्सा क्यों खत्म हुआ?

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