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expressionism
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मंगलवार, 21 दिसंबर 2010
'एक पत्र' ( नवशक्ति पत्रिका के नाम 1934 )
(यह कविता सन 1934 में लिखी गई थी, जब दिनकर जी सरकारी नौकरी में थे। राष्ट्रीय-क्रान्तिकारी कविता लिखने के कारण अंग्रेज़ी सरकार बार-बार उनका तबादला कर देती थी। हालाँकि सरकारी नौकरी उन्हें पसन्द नहीं थी। सन 1935 में बनारसी दास चतुर्वेदी को लिखे पत्र में उन्होंने इसकी चर्चा की है- "इस एक वर्ष की अवधि में सरकारी नौकरी या गुलामी की वेदना इस तीव्रता से कभी नहीं चुभी थी।" लेकिन नौकरी कवि की मज़बूरी थी। अपने बड़े और संयुक्त परिवार में सर्वधिक शिक्षित होने के कारण सबकी आजीविका की ज़िम्मेदारी इन्हीं के कन्धों पर थी। बहरहाल सन 1934 में 'एक पत्र' शीर्षक से प्रकाशित यह कविता उनके अब तक छपे-अनछपे संकलनों में संग्रहीत नहीं है। महत्त्वपूर्ण बात यह है- यह कविता पटना से निकलने वाली एक साप्ताहिक पत्रिका 'नवशक्ति' में प्रकाशित हुई थी। पश्चिमी सिंहभूम, झारखण्ड, के रवि रंजन ने पत्रिका की वह दुर्लभ प्रति खोज कर इसे हिन्दी संसार को उपलब्ध कराया है। इस पत्रिका के यशस्वी सम्पादक श्री देवव्रत थे जो कभी गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ 'प्रताप' के सम्पादक मंडल में थे।)
मैं चरणॊं से लिपट रहा था, सिर से मुझे लगाया क्यों? पूजा का साहित्य पुजारी पर इस भाँति चढ़ाया क्यों?
गंधहीन बन-कुसुम-स्तुति में अलि का आज गान कैसा? मन्दिर-पथ पर बिछी धूलि की पूजा का विधान कैसा?
कहूँ, या कि रो दूँ कहते, मैं कैसे समय बिताता हूँ; बाँध रही मस्ती को अपना बंधन दुदृढ़ बनाता हूँ।
ऎसी आग मिली उमंग की ख़ुद ही चिता जलाता हूँ किसी तरह छींटों से उभरा ज्वाला मुखी दबाता हूँ।
द्वार कंठ का बन्द, गूँजता हृदय प्रलय-हुँकारों से, पड़ा भाग्य का भार काटता हूँ कदली तलवारों से।
विस्मय है, निर्बन्ध कीर को यह बन्धन कैसे भाया? चारा था चुगना तोते को, भाग्य यहाँ तक ले आया।
औ' बंधन भी मिला लौह का, सोने की कड़ियाँ न मिलीं; बन्दी-गृह में अन बहलाता, ऎसी भी घड़ियाँ न मिलीं।
आँखों को है शौक़ प्रलय का, कैसे उसे बुलाऊँ मैं? घेर रहे सन्तरी, बताओ अब कैसे चिल्लाऊँ मैं?
फिर-फिर कसता हूँ कड़ियाँ, फिर-फिर होती कसमस जारी; फिर-फिर राख डालता हूँ, फिर-फिर हँसती है चिनगारी।
टूट नहीं सकता ज्वाला से, जलतों का अनुराग सखे! पिला-पिला कर ख़ून हृदय का पाल रहा हूँ आग सखे! रामधारी सिंह दिनकर
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की आधारशिला रखने वाले एक सशक्त पत्रकार जिनके विचार आज भी हमे पल- पल प्रेरित करते रहते है उन्हें शत शत नमन |
तिकड़मी चित्र
साभार : इरफ़ान
जुबा संभाल के ....
-अब लोकसभा और विधानसभा के बाहर लड़के भी बजायेंगे सीटिया...मुलायम सिंह यादव (समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश)
-तीन राजनीतिक पारी के बाद एक भी मर्द नहीं बचेगा संसद में...(मुलायम सिंह यादव)
-रिकॉर्ड तो बनते ही है टूटने के लिए लेकिन मै चाहता हूँ की मेरा रिकॉर्ड कोई भारतीय ही तोड़े :सचिन तेंदुलकर (24-02-2010)
-डर नहीं जीत अवश्यसंभावी है और द्वार अपने आप खुल जायेंगे :ममता बनर्जी रेल मंत्री (24-02-2010)
-भ्रष्टाचार एक जनरल चीज है :बाबू लाल गौर नगरीय प्रशासन मंत्री मध्य प्रदेश (23-02-2010)
-न ब्रिफकेस लेती हूँ न रखती हूँ : ममता बनर्जी रेल मंत्री
(23-02-2010)
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