any content and photo without permission do not copy. moderator

Protected by Copyscape Original Content Checker

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

याद तेरी बेसबब नहीं आती.........

शकील "जमशेद्पुरी"
www.gunjj.blogspot.com
मैं खुद ही मुलाक़ात को चल देता हूँ
मायूसी जब चलके दो कदम नहीं आती
तेरी हर अदा मेरी एहसास में बसी है
याद तेरी बेसबब नहीं आती.........

समंदर आज फिर से खौफज़दा  है
चेतावनी दी है किसी ने सुनामी की
वही होगा जो पहले हो चुका है
अंजाम जैसे तेरी-मेरी कहानी की

इन बातों से कोई दहशत नहीं आती
याद तेरी बेसबब नहीं आती....... 

बहुत करीब थे अपनी मंजिल के हम
ज़रा सा आगे बढ़ कर हाथ बढ़ाना था
में तेरा हूँ, सिर्फ तेरा हूँ
ये बात तुम्हें ज़माने को बताना था

काश के तुझमें कोई झिझक नहीं आती
याद तेरी बेसबब नहीं आती.......

शहर से दूर पहाड़ों के दामन में
मोहब्बत का अपना भी एक घर था
हर एक कोणा, दरो-दीवार और फिजा
सब तेरी खुशबू से तर था.

बड़ी दिनों से तेरी महक नहीं आती
याद तेरी बेसबब नहीं आती.....

कभी जो तू निकल आती थी सावन में
घटा तुझको देख कर बरसती थी.
गुज़र होता जो तेरा बाग़ से तो
तुझे छूने को हरेक डाली लचकती थी.

इन डालियों में अब वो लचक नहीं आती.
तेरी याद बेसबब नहीं आती.....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें