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सोमवार, 31 अगस्त 2020

उत्तर भारत के पेरियार थे ललई सिंह यादव

 उत्तर भारत के पेरियार थे ललई सिंह यादव

सामान्य किसान परिवार में जन्मे उत्तर भारत के पेरियार, समाज सुधारक, लेखक ललई सिंह यादव जी की आज 110वीं जयंती है। समाज की बेहतरी के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले ललई सिंह ने पैरियार रामास्वामी नायकर की अंग्रेजी में लिखी पुस्तक ‘‘रामायण : ए ट्रू रीडि़ंग’’ का हिंदी में अनुवाद "सच्ची रामायण" से किया। एक जुलाई 1969 को प्रकाशित इस पुस्तक ने पाखण्डवाद, कपोलवाद को समाज के सामने रख दिया। सच्चाई पर लिखी यह पुस्तक हिन्दी पट्टी खासकर उत्तर और उत्तर पूर्व भारत में आते ही तहलका मचा दिया। धर्म की दुकानों पर असर होने लगा। इसके चलते 8 दिसंबर 1969 को सरकार ने जप्ती के आदेश दे दिये। मामला कोर्ट में गया। 19 जुलाई 1971 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के माननीय जस्टिस श्री एके कीर्ति, जस्टिस केएन श्रीवास्तव तथा जस्टिस हरी स्वरूप की खण्डपीठ ने बहुमत के साथ निर्णय दिया कि -

1. ‘सच्ची रामायण’ की जप्ती का आदेश निरस्त कर दिया।2. जप्तशुदा पुस्तकें ‘सच्ची रामायण’ ललईसिंह जी को देने के आदेश दिये।
3. जप्ती के खिलाफ अपील करने वाले श्री ललई सिंह जी को 300 रू खर्चा देने के आदेश दिये।
देश की नींव आडम्बरवाद, पखण्डवाद को दफ़न करके  सच्चाई पर ही रखी जा सकती है, जो 70-80 के दशक में ललई सिंह जी कर रहे थे।

उत्तर भारत के पेरियार, महानायक, ललई सिंह यादव जी के जन्मदिन पर उनके कार्यों को नमन, वन्दन। 

शनिवार, 29 अगस्त 2020

हॉकी के जादूगर को नमन

हॉकी के जादूगर को नमन
देश आज हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्म राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मना रहा है। देश का यह कोहिनूर जब खेल के मैदान में उतरता था तो गेंद मानों हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। ऐसा देखने वाले और खिलाड़ी कहा करते थे। इस पर कई बार शक भी किया गया।
हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका के चलते तोड़ कर देखी गई। जापान में उनकी हॉकी स्टिक से गेंद चिपके रहने के कारण जांच की गयी। मगर यह खेल के प्रति उनकी अथक मेहनत का नतीजा ही था।
लास एंजिल्स (1932) में हुये ओलंपिक के एक निर्णायक मैच में भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया था। तब एक अमेरिका समाचार पत्र ने लिखा था कि 
  "भारतीय हॉकी टीम तो पूर्व से आया तूफान थी। उसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के ग्यारह खिलाड़ियों को कुचल दिया।" उस दिन हर अमेरिकी अखबार में भारतीय टीम छायी थी। 
1928 एम्स्टर्डम, 1932 लास एंजिल्स, 1936 बर्लिन ओलंपिक में देश को स्वर्ण पदक दिलवाये और देश का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखवा दिया। क्रिकेट का बादशाह सर डॉन ब्रेडमैन, जर्मन तानाशाह हिटलर भी उनकी हॉकी का मुरीद हो गया। 
सेना में सैनिक के पद से भर्ती हुआ यह कोहिनूर खेल के बल पर ही लांस नायक, नायक, सूबेदार, लेफ्टिनेंट, कैप्टन और मेजर बनाये गये। 
देश का मान, सम्मान ऊँचाई के शिखर पर लाने वाले 
इस लाल को पदम् भूषण, पदम् विभूषण पुस्कार तो मिले मगर वो भारत रत्न से भी बड़े सम्मान के हक़दार हैं। जो अब तक नहीं दिया गया। 
3 दिसंबर 1979 उनका अवसान हो गया। 
राष्ट्रीय खेल दिवस की बधाई।