मैं हिन्दू हूँ. मेरा नाम यादव है....... मनीष यादव। मेरी भगवान में आस्था भी है और मंत्र दीक्षा भी ले राखी है. मतलब मैं मांसाहार भी नहीं करता यहाँ तक कच्चा लहसुन और प्याज भी नहीं खता. बावजूद इसके मेरे मित्र दिनभर की हर भेंट में मुझे यही कहते हैं कि आसलम वालेय कूम, और पाकिस्तानी कैसे हो, मुसलमान कब बन रहे हो. एक ख़ास बात तो बताना ही भूल गया ६ दिसम्बर को उनहोंने मुझे मेरा एक और नया नाम दिया "मोनीश खान". इसका कारण मैं जरूर बताऊंगा लेकिन इससे पहले मैं अपने दोस्तों का परिचय दे दूँ.
एक उत्तराखंड से है जिसने अपना स्नातक फिजिकल एजुकेशन से किया है। शायद बंगलुरु से। दूसरा मध्य प्रदेश से है। फोरेंसिक साइंस का छात्र रह चुका है। बाकी चार उत्तर प्रदेश से हैं। दोनों ने फैजाबाद यूनिवर्सिटी से अपना स्नातक कॉमर्स से किया है और बाकी दो ने पत्रकारिता से स्नातक पूर्ण किया है और वर्तमान में सभी मेरे साथ माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल से स्नाकोतर की पढाई कर रहे हैं।
अपनी बात को काटकर अचानक अपने मित्रों के बारे में बताने का मेरा मकसद सिर्फ इतना था कि ये सभी एक अच्छे पाठ्यक्रम से पढ़े हुए हैं और स्नातकोतर के छात्र होने के नाते इतनी तो उम्मीद की जा सकती है कि जो भविष्य में देश के चौथे स्तम्भ के रूप में जाने जायेंगे उनकी सोच कम से कम आम जनमानस की सोच से थोड़ी से तो अलग होनी ही चाहिय।
ख़ैर मेरी इन बातों का अर्थ आप बाद में समझ ही जायेंगे। बात थी कि कारण क्या था....... मेरे दोस्त द्वारा मुझसे इस तरह का व्यवहार करने का कारण सिर्फ इतना था कि मैं पिछले कुछ महीनो से ऐसी पुस्तकें पढ़ रहा हूँ जो या तो भारत-पकिस्तान पर आधारित हैं या वो पुस्तकें जो हिन्दू-मुसलमान वर्ग से जुड़ीं हैं।
मेरा जन्म स्थान लखनऊ है। बचपन से बाबरी मस्जिद विध्वंश और गोध्रार कांड का उल्लेख खूब सुनता आ रहा हूँ। जब से थोडा परिपक्व हुआ तो इन विषयों को जानने कि ललक हुई। शायद इसलिए मैं इस तरह की पुस्तकों को आज कल ज्यादा पढ़ रहा हूँ।
वैसे भारत में मुसलमानों के साथ हुए अन्याय और अत्याचार का मैं पक्षधर हूँ। मैं यह जानता हूँ कि गाँधी जी द्वारा नोवाखली और रामानुजम में एक सभा को संबोधित करने के बाद मुसलमानों के साथ जो हुआ वो गलत था, बाबरी मस्जिद विध्वंश कर जिस तरह से मानवमूल्यों का गला घोंटा गया ये सरासर गलत था, बाबरी मस्जिद विध्वंश मेंबाद मुंबई में मुसलमानों द्वारा निकाली गयी शांति रैली पर गोलियां बरसाना वो गलत था, गोधरा कांड- हिन्दुओंद्वारा मुसलमानों का दमन, एक विस्मार्नीय घटना, मुसलमानों के साथ जो भी हुआ, वो गलत था। और भी बहुतसी घटनाएँ जो इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज हैं मुसलमानों पर हुए अत्याचारों कि गाथा गातें है।
हर बार हिन्दू कोई न कोई नया कारण ढूढ़ कर मुसलमान वर्ग पर उंगलियाँ उठाने की किशिश करता रहा है। मैं हिन्दू हूँ इसलिए ये मेरा हक है कि अगर हिन्दू कोई ऐसा कार्य कर रहा है जिससे अपने धर्म का पतन होता है, मैंरोक-टोक सकता हूँ। लेकिन किसी अन्य धर्म को रोकने-टोकने का अधिकार मुझे क्या किसी भी व्यक्ति को नहींप्राप्त है। चंद संगठनो का भड़काऊ भाषणों से प्रभावित होकर अगर हम उन बातों के पीछे लादेन तो इस क्यासमझा जायेगा? मुर्खता या कुछ और ....? वैसे जहाँ तक मुझे पता है कि हिन्दू धर्म ऐसा कहीं नहीं लिखा है किगलती करने वाले को क्षमा नहीं नहीं किया जायेगा।
दौर बदल गया, कई पीढियां गुजर गयीं लेकिन आज भी हिन्दू-मुसलमानों के बीच बना भेदभाव वैसे ही बरकरारहै। सुनने में आता है कि शिक्षा के आने व विकास होने से लोगों कि मानसिकता में परिवर्तन आ रहा है। ऐसा मुझेनहीं लगता क्योंकि इस बात का साक्ष्य उदाहरण मैं अपने दोस्तों का दे चुका हूँ। मुझे नहीं समझ में आता कि क्योंलोग आज भी इस तरह कि मलिन सोच को ज़िंदा रखे हुएं हैं। लोगों को अपने धर्म में आस्था रखनी चाहिए लेकिनदुसरे के धर्म को बुरा कहना ये कहाँ तक उचित है? और ऐसा तो अपने धर्म में कहीं भी नहीं लिखा है कि किसी दूसराधर्म की निंदा करो, हाँ ये जरूर सुना है कि अपना धर्म दुसरे धर्म का सम्मान करने का सन्देश हमें देता है।
ये सच है कि भारत में मुसलमान शासकों के आने से बाद सबसे ज्यादा मंदिर तोड़े गए। लेकिन क्या ये जरूरी हैकि जिन घटनाओं को बीते कई शताब्दियाँ बीत गयी हों उन्हें पुनर्जीवित कर उनके पीच आज मुस्लिम वर्ग केलोगों का खून बहाया जाए या उनसे उन मान्यताओं का हिसाब-किताब अब लिया जाए जिसको उस समयमुस्लिम शासकों को ने नष्ट कर दी थी। और वैसे भी आज हम धर्म-मान्यताओं के नाम परलड़ भी रहे है तो उनलोगों से जिन्होंने कभी ये किया भी नहीं अपितु उन्हें ये भी नहीं पता होगा कि वे किस मुग़ल शासक के घराने से हैं।
मुगलों का दौर जब अपने पतन पर था तो उस समय या तो अधिकतर मुग़ल शासक वापस अपने वतन लौट गए थेऔर जो बचे रह गए थे उन्हें युद्धों में मौत नसीब हुई थी। तो इस लिहाज से आज भी देश में कितने मुग़ल परिवारबचे रह गए होंगे इसका अनुमान लगाना हम आप आसानी से लगा सकते है।
इतिहास को उठाया जाए तो साफ़ पता चलता है कि भारत में मंदिरों को नस्ष्टकर तहखानो में रखे खजानों कोलुटने के साथ-साथ मुगलों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए युद्धों में परास्त राजाओं का धर्म परिवर्तन करवाया और जिन्होंने मुस्लिम धर्म नहीं अपनाया उन्हें जमादार का काम दिया गया। यही कार मुग़ल शासकों ने पूरे देश मेंकिया। मतलब साफ़ है कि मुगलों के दमन के बाद देश में तो मुसलमान देश में रह गए थे उनमें से तो अधिकतरपहले से ही हिन्दू थे और जो जमादार बनाये गए थे वो भी हिन्दू थे। और ये सभी राजपूत या क्षत्रिय थे अर्थात सभीऊँची जात के थे क्यों कि उस समय मुगलों से अधिकतर युद्ध राजपूतों से हुए थे वैसे भी हमारे हिन्दू धर्म में समाजको चार वर्ग में बांटा गया था जिसमें युद्ध का काम क्षत्रियों के था।
गाजियाबाद के दोहरे गाँव के लोग जो मुसलमान हैं लेकिन स्वयं को मुस्लिम राजपूत कहते हैं। ये वहीँ लोग हैंजिनका धर्मपरिवर्तन कर उन्हें मुगलों ने मुसलमान बनाया गया था। एक और उदाहरण है जो हन्दू तो नहीं लेकिनउन्हें इस्लाम अपनाने के विवश किया गया था-सिन्धी व पंजाबी। ये लोग भी स्वयं को क्रमशा:सिन्धी मुसलमानव पंजाबी मुसलमान कहते हैं। ये लोग पंजाब भारत-पकिस्तान सीमा पर रहते हैं। इसलिए कहीं ना कहीं भारत मेंरहने वाले मुसलमान अपने भाई ही हैं।
लेकिन अपने स्वार्थ के लिए कुछ राजनीतिज्ञ हिन्दुव के पतन का रोना रोकर ना समझ और भावुक जनता कोधरम के नाम पर अपने भाषणों के जरिये पहले तो भड्कतें हैं फिर उन्हें ही राजनीति में अपनी स्थिति को महबूतकरने के लिए दुसरे धर्म के लोगों का गला काटने के लिए भेज देते हैं।
मैं पुनः एक बात विस्मरण करना चाहता हूँ कि भारत में सिर्फ मुसलमान ने ही अत्याचार नहीं सहा है और भीमजहब के लोगों ने भी वही सब झेला है लेकिन आज सिर्फ दो धर्म मुख्य हैं जो देश में परस्पर एक दूसरा के विरोधीमाने जाते हैं,हिन्दू-मुस्लिम। और ये विरोधी भावनाएं कड़ी करने में अपने कूटनीतिक राजनीतिज्ञों का सराहनीययोगदान है। आज भी, जबकि परिस्थतियाँ पूरी तरह से बदल चुकी हैं और सब कुछ संतुलित है, अगर हम गड़े मुर्देउखाड़कर लड़ते रहे तो ना हम और ना ही हमारी पीढियां कभी शांति और अमन का चेहरा देख पाएंगी सिवाएनफरत और प्रतिशोध का चेहरा देखना के।
"हम हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई से पहले एक इंसान हैं....."
मुझे पाठकों से आशा है कि कम से कम वे इस तरह कि भावनाओं को दबाने या मूल से नष्ट करने का जेम्माउठाएंगे जो हन्दू-मुस्लिम विरोधी भावनाओं को उजागर या प्रसार करने के लियेया हों......
अपनी बात को काटकर अचानक अपने मित्रों के बारे में बताने का मेरा मकसद सिर्फ इतना था कि ये सभी एक अच्छे पाठ्यक्रम से पढ़े हुए हैं और स्नातकोतर के छात्र होने के नाते इतनी तो उम्मीद की जा सकती है कि जो भविष्य में देश के चौथे स्तम्भ के रूप में जाने जायेंगे उनकी सोच कम से कम आम जनमानस की सोच से थोड़ी से तो अलग होनी ही चाहिय।
ख़ैर मेरी इन बातों का अर्थ आप बाद में समझ ही जायेंगे। बात थी कि कारण क्या था....... मेरे दोस्त द्वारा मुझसे इस तरह का व्यवहार करने का कारण सिर्फ इतना था कि मैं पिछले कुछ महीनो से ऐसी पुस्तकें पढ़ रहा हूँ जो या तो भारत-पकिस्तान पर आधारित हैं या वो पुस्तकें जो हिन्दू-मुसलमान वर्ग से जुड़ीं हैं।
मेरा जन्म स्थान लखनऊ है। बचपन से बाबरी मस्जिद विध्वंश और गोध्रार कांड का उल्लेख खूब सुनता आ रहा हूँ। जब से थोडा परिपक्व हुआ तो इन विषयों को जानने कि ललक हुई। शायद इसलिए मैं इस तरह की पुस्तकों को आज कल ज्यादा पढ़ रहा हूँ।
वैसे भारत में मुसलमानों के साथ हुए अन्याय और अत्याचार का मैं पक्षधर हूँ। मैं यह जानता हूँ कि गाँधी जी द्वारा नोवाखली और रामानुजम में एक सभा को संबोधित करने के बाद मुसलमानों के साथ जो हुआ वो गलत था, बाबरी मस्जिद विध्वंश कर जिस तरह से मानवमूल्यों का गला घोंटा गया ये सरासर गलत था, बाबरी मस्जिद विध्वंश मेंबाद मुंबई में मुसलमानों द्वारा निकाली गयी शांति रैली पर गोलियां बरसाना वो गलत था, गोधरा कांड- हिन्दुओंद्वारा मुसलमानों का दमन, एक विस्मार्नीय घटना, मुसलमानों के साथ जो भी हुआ, वो गलत था। और भी बहुतसी घटनाएँ जो इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज हैं मुसलमानों पर हुए अत्याचारों कि गाथा गातें है।
हर बार हिन्दू कोई न कोई नया कारण ढूढ़ कर मुसलमान वर्ग पर उंगलियाँ उठाने की किशिश करता रहा है। मैं हिन्दू हूँ इसलिए ये मेरा हक है कि अगर हिन्दू कोई ऐसा कार्य कर रहा है जिससे अपने धर्म का पतन होता है, मैंरोक-टोक सकता हूँ। लेकिन किसी अन्य धर्म को रोकने-टोकने का अधिकार मुझे क्या किसी भी व्यक्ति को नहींप्राप्त है। चंद संगठनो का भड़काऊ भाषणों से प्रभावित होकर अगर हम उन बातों के पीछे लादेन तो इस क्यासमझा जायेगा? मुर्खता या कुछ और ....? वैसे जहाँ तक मुझे पता है कि हिन्दू धर्म ऐसा कहीं नहीं लिखा है किगलती करने वाले को क्षमा नहीं नहीं किया जायेगा।
दौर बदल गया, कई पीढियां गुजर गयीं लेकिन आज भी हिन्दू-मुसलमानों के बीच बना भेदभाव वैसे ही बरकरारहै। सुनने में आता है कि शिक्षा के आने व विकास होने से लोगों कि मानसिकता में परिवर्तन आ रहा है। ऐसा मुझेनहीं लगता क्योंकि इस बात का साक्ष्य उदाहरण मैं अपने दोस्तों का दे चुका हूँ। मुझे नहीं समझ में आता कि क्योंलोग आज भी इस तरह कि मलिन सोच को ज़िंदा रखे हुएं हैं। लोगों को अपने धर्म में आस्था रखनी चाहिए लेकिनदुसरे के धर्म को बुरा कहना ये कहाँ तक उचित है? और ऐसा तो अपने धर्म में कहीं भी नहीं लिखा है कि किसी दूसराधर्म की निंदा करो, हाँ ये जरूर सुना है कि अपना धर्म दुसरे धर्म का सम्मान करने का सन्देश हमें देता है।
ये सच है कि भारत में मुसलमान शासकों के आने से बाद सबसे ज्यादा मंदिर तोड़े गए। लेकिन क्या ये जरूरी हैकि जिन घटनाओं को बीते कई शताब्दियाँ बीत गयी हों उन्हें पुनर्जीवित कर उनके पीच आज मुस्लिम वर्ग केलोगों का खून बहाया जाए या उनसे उन मान्यताओं का हिसाब-किताब अब लिया जाए जिसको उस समयमुस्लिम शासकों को ने नष्ट कर दी थी। और वैसे भी आज हम धर्म-मान्यताओं के नाम परलड़ भी रहे है तो उनलोगों से जिन्होंने कभी ये किया भी नहीं अपितु उन्हें ये भी नहीं पता होगा कि वे किस मुग़ल शासक के घराने से हैं।
मुगलों का दौर जब अपने पतन पर था तो उस समय या तो अधिकतर मुग़ल शासक वापस अपने वतन लौट गए थेऔर जो बचे रह गए थे उन्हें युद्धों में मौत नसीब हुई थी। तो इस लिहाज से आज भी देश में कितने मुग़ल परिवारबचे रह गए होंगे इसका अनुमान लगाना हम आप आसानी से लगा सकते है।
इतिहास को उठाया जाए तो साफ़ पता चलता है कि भारत में मंदिरों को नस्ष्टकर तहखानो में रखे खजानों कोलुटने के साथ-साथ मुगलों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए युद्धों में परास्त राजाओं का धर्म परिवर्तन करवाया और जिन्होंने मुस्लिम धर्म नहीं अपनाया उन्हें जमादार का काम दिया गया। यही कार मुग़ल शासकों ने पूरे देश मेंकिया। मतलब साफ़ है कि मुगलों के दमन के बाद देश में तो मुसलमान देश में रह गए थे उनमें से तो अधिकतरपहले से ही हिन्दू थे और जो जमादार बनाये गए थे वो भी हिन्दू थे। और ये सभी राजपूत या क्षत्रिय थे अर्थात सभीऊँची जात के थे क्यों कि उस समय मुगलों से अधिकतर युद्ध राजपूतों से हुए थे वैसे भी हमारे हिन्दू धर्म में समाजको चार वर्ग में बांटा गया था जिसमें युद्ध का काम क्षत्रियों के था।
गाजियाबाद के दोहरे गाँव के लोग जो मुसलमान हैं लेकिन स्वयं को मुस्लिम राजपूत कहते हैं। ये वहीँ लोग हैंजिनका धर्मपरिवर्तन कर उन्हें मुगलों ने मुसलमान बनाया गया था। एक और उदाहरण है जो हन्दू तो नहीं लेकिनउन्हें इस्लाम अपनाने के विवश किया गया था-सिन्धी व पंजाबी। ये लोग भी स्वयं को क्रमशा:सिन्धी मुसलमानव पंजाबी मुसलमान कहते हैं। ये लोग पंजाब भारत-पकिस्तान सीमा पर रहते हैं। इसलिए कहीं ना कहीं भारत मेंरहने वाले मुसलमान अपने भाई ही हैं।
लेकिन अपने स्वार्थ के लिए कुछ राजनीतिज्ञ हिन्दुव के पतन का रोना रोकर ना समझ और भावुक जनता कोधरम के नाम पर अपने भाषणों के जरिये पहले तो भड्कतें हैं फिर उन्हें ही राजनीति में अपनी स्थिति को महबूतकरने के लिए दुसरे धर्म के लोगों का गला काटने के लिए भेज देते हैं।
मैं पुनः एक बात विस्मरण करना चाहता हूँ कि भारत में सिर्फ मुसलमान ने ही अत्याचार नहीं सहा है और भीमजहब के लोगों ने भी वही सब झेला है लेकिन आज सिर्फ दो धर्म मुख्य हैं जो देश में परस्पर एक दूसरा के विरोधीमाने जाते हैं,हिन्दू-मुस्लिम। और ये विरोधी भावनाएं कड़ी करने में अपने कूटनीतिक राजनीतिज्ञों का सराहनीययोगदान है। आज भी, जबकि परिस्थतियाँ पूरी तरह से बदल चुकी हैं और सब कुछ संतुलित है, अगर हम गड़े मुर्देउखाड़कर लड़ते रहे तो ना हम और ना ही हमारी पीढियां कभी शांति और अमन का चेहरा देख पाएंगी सिवाएनफरत और प्रतिशोध का चेहरा देखना के।
"हम हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई से पहले एक इंसान हैं....."
मुझे पाठकों से आशा है कि कम से कम वे इस तरह कि भावनाओं को दबाने या मूल से नष्ट करने का जेम्माउठाएंगे जो हन्दू-मुस्लिम विरोधी भावनाओं को उजागर या प्रसार करने के लियेया हों......
"हम हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई से पहले एक इंसान हैं....."
जवाब देंहटाएंsundar rachna.
धर्मं,जाती,संप्रदाय से बढ़कर होती है इंसानियत..यार..बस इंसानियत जिन्दा रहे..यही दुआ करो.
जवाब देंहटाएंसही है ,पर इन्सान होने के खातिर हम जहा भी गलत हो रहा है उसके खिलाफ बोल सकते है वहा धर्म आड़े नहीं आना चाहिए की मै इस धर्म का नहीं हू इसलिये इस पर टिप्पणी नहीं कर सकता , दुसरी बात जो गलत हुआ है और सब जानते है की गलत हुआ है चाही हिन्दू हो या मुसलमान तो क्यों न आगे बढकर अब सही करवा देते है . तीसरी बात अगर वो मरे है तो हम भी मरे है और स्वाभाविक है की ऐसे सने में नुकसान बराबर होता है तो जब आप कुछ शानदार पुस्तके पढ़ ही रहे है तो कृपया गहराई से पढ़े उसके बाद ही यह कहे की हिन्दू बदला ले रहा है . यह सरासर गलत की हिन्दू बदला ले रहा है . हा कुछ घटनाये ऐसी होती है जिनसे खून खौल उठता है . आप ने अभी शयद ऐसा देखा नहीं है .. वैसे प्रयास उत्तम है लगातार लिखते रहे .. शुभकामना ....
जवाब देंहटाएं