चुनाव आते ही सभी लोग अलग अलग दलों में अपना ठिकाना खोजने में लग जाते हैं !चेहरे वही पुराने बस पार्टी बदल जाती है,सिद्धांत बदल जाते हैं,बदल जाता है नजरिया ,कल तक जो अपने थे वही बेगाने हो जाते हैं!खैर छोडिये राजनीती है सब जायज है,
गठबंधन करके दल अपनी सरकार तो बना लेते हैं...लेकिन इस गठबंधन के बदले छोटे दलों के आगे सरकार नाक रगड़ती नजर आती है...वर्तमान सन्दर्भ में भी यही बात सच होती दिखाई दे रही है....प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सब कुछ देखते हुए भी अनजान बने रहे और अभी भी हालत में उनकी सुधार नहीं है...मतलब ए.राजा के मामले में वे चुप्पी साधे हुए है...शायद कारण यही है कि ए.राजा की पार्टी उनकी सरकार को साधे है.
वर्तमान में लोकतंत्र की दशा को व्यक्त करती एक कहानी याद आ गई सो उसे आप लोगों के सामने परोस रहा हूँ.
एक हंस-हंसिनी का बड़ा सुंदर जोड़ा था,दोनों में बड़ा प्रेम था!मजे से दिन कट रहे थे !एक दिन दोनों ने नीलगगन में सैर करने की सोची,दोनों सैर करते करते काफी दूर निकल गए!रात हो गई थी सोचा रात यही गुजार कर सुबह चलते है!एक बरगद का पेड़ दिखाई दिया,दोनों वहां पहुचे!उस बरगद के पेड़ पर एक उल्लू रहता था !हंस ने उल्लू से रात गुजारने की बात कही,उल्लू ने अनुमति दे दी!कहा कोई बात नही!सुबह जब हंस-हंसिनी उठ कर जाने लगे तब उल्लू ने हंसिनी को पकड़ लिया, कहा अब हंसीं मेरी है!हंस ने बड़ी विनती की लेकिन उल्लू नही माना,अब हंस ने राजा के दरबार में गुहार लगायी!राजा ने उल्लू को बुलाया,कहा उल्लू,हंसिनी हमेशा हंस की होती है,उल्लू की कभी नही हो सकती !ये जोड़ा बेमेल है!उल्लू ने कहा -हंसिनी मेरी है,यदि आपने ऐसा निर्णय नही दिया तो मै किले की प्राचीर पर बैठ कर आपके काले कारनामों का चिटठा खोल दूंगा !अब राजा डर गया!उसका निर्णय बदल गया,उसने कहा-हंस,अब हंसिनी उल्लू की है!तुम घर जाओ!हंस रोते हुए उदास मन से जाने लगा !अब उल्लू भी रो रहा था!हंस ने पूंछा-तुम क्यों रो रहे हो?मेरी हंसिनी मुझसे छीन गई है,मेरे रोने का कारण तो समझ में आता है,लेकिन तुम क्यों रो रहे हो?उल्लू बोला- में लोक तंत्र की दशा पर रो रहा हूँ,एक सिरफिरे के कारण राजा ने अपना निर्णय बदल दिया!एक धमकी से राजा ने अन्याय को जीता दिया!भ्रष्टाचार को बढ़ावा इन धमकियों के कारण ही शायद मिल रहा है...क्या होगा इस देश का?इसलिए मै रो रहा हूँ!यही हाल है पूरे देश में,अब जनता को सोचना है अगली सरकार उन्हें कैसी बनानी है!
..........................जवाबों की आस में
कृष्ण कुमार द्विवेदी
गठबंधन करके दल अपनी सरकार तो बना लेते हैं...लेकिन इस गठबंधन के बदले छोटे दलों के आगे सरकार नाक रगड़ती नजर आती है...वर्तमान सन्दर्भ में भी यही बात सच होती दिखाई दे रही है....प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सब कुछ देखते हुए भी अनजान बने रहे और अभी भी हालत में उनकी सुधार नहीं है...मतलब ए.राजा के मामले में वे चुप्पी साधे हुए है...शायद कारण यही है कि ए.राजा की पार्टी उनकी सरकार को साधे है.
वर्तमान में लोकतंत्र की दशा को व्यक्त करती एक कहानी याद आ गई सो उसे आप लोगों के सामने परोस रहा हूँ.
एक हंस-हंसिनी का बड़ा सुंदर जोड़ा था,दोनों में बड़ा प्रेम था!मजे से दिन कट रहे थे !एक दिन दोनों ने नीलगगन में सैर करने की सोची,दोनों सैर करते करते काफी दूर निकल गए!रात हो गई थी सोचा रात यही गुजार कर सुबह चलते है!एक बरगद का पेड़ दिखाई दिया,दोनों वहां पहुचे!उस बरगद के पेड़ पर एक उल्लू रहता था !हंस ने उल्लू से रात गुजारने की बात कही,उल्लू ने अनुमति दे दी!कहा कोई बात नही!सुबह जब हंस-हंसिनी उठ कर जाने लगे तब उल्लू ने हंसिनी को पकड़ लिया, कहा अब हंसीं मेरी है!हंस ने बड़ी विनती की लेकिन उल्लू नही माना,अब हंस ने राजा के दरबार में गुहार लगायी!राजा ने उल्लू को बुलाया,कहा उल्लू,हंसिनी हमेशा हंस की होती है,उल्लू की कभी नही हो सकती !ये जोड़ा बेमेल है!उल्लू ने कहा -हंसिनी मेरी है,यदि आपने ऐसा निर्णय नही दिया तो मै किले की प्राचीर पर बैठ कर आपके काले कारनामों का चिटठा खोल दूंगा !अब राजा डर गया!उसका निर्णय बदल गया,उसने कहा-हंस,अब हंसिनी उल्लू की है!तुम घर जाओ!हंस रोते हुए उदास मन से जाने लगा !अब उल्लू भी रो रहा था!हंस ने पूंछा-तुम क्यों रो रहे हो?मेरी हंसिनी मुझसे छीन गई है,मेरे रोने का कारण तो समझ में आता है,लेकिन तुम क्यों रो रहे हो?उल्लू बोला- में लोक तंत्र की दशा पर रो रहा हूँ,एक सिरफिरे के कारण राजा ने अपना निर्णय बदल दिया!एक धमकी से राजा ने अन्याय को जीता दिया!भ्रष्टाचार को बढ़ावा इन धमकियों के कारण ही शायद मिल रहा है...क्या होगा इस देश का?इसलिए मै रो रहा हूँ!यही हाल है पूरे देश में,अब जनता को सोचना है अगली सरकार उन्हें कैसी बनानी है!
..........................जवाबों की आस में
कृष्ण कुमार द्विवेदी
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