जिंदगी संघर्षो का नाम है। इसी जिंदगी में कई बार ऐसे पडाव आते है , जहां सबकुछ रुका रुका सा लगता है । लेकिन यदि खुद में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, कुछ कर दिखाने का जुनून हो तो सारी परेषानी अपने आप ही दूर हो जाती है । सारी परेषानी उस साहस के आगे बौनी नजर आती है । ऐसी ही षख्सियत है भोपाल की क्षमा कुलश्रेष्ठ । जिसने 18 वर्ष की उम्र में एक्सीडेंट की त्रासदी झेली। रीढ की हड्डी टूटी , पैरो में एहसास का भाव नही रहा। लेकिन लगन थी काम की , विष्वास था खुद पर , आस्था थी ईष्वर पर । इसी का नतीजा है कि आज क्षमा न केवल बैठ सकती है बल्की चल भी सकती है। पेटिंग में नेषनल अवार्ड से सम्मानित हो चुकी क्षमा दुर्घटना से ग्रसित और अपाहिज बच्चो के लिए एक प्रेरणा श्रोत है। भोपाल के गोविंदपुरा में रहने वाले के.के कुलश्रेष्ठ आज एक रिटायर टीचर है। उनके पांच बच्चो में सबसे छोटी बेटी क्षमा बचपन से ही होनहार थी । उसने बचपन में पेंटिंग की कई प्रतियोगिताये जीतलेेकिन 1998 क्षमा के लिए अभिषाप बन कर आया ,और अचानक एक दिन छत से गिरने के कारण उसकी रीड की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई। पैरो की सम्वेदना भी खत्म हो गयी और डॉक्टरो ने भी जवाब दे दिया। लेकिन ये क्षमा का साहस और जज्बा ही था कि 55 से भी ज्यादा ऑपरेषन होने के बाद उसने हिम्मत नही हारी । अब वह न केवल बैठ सकती है , बल्कि सहारे के बल पर चल भी सकती है। अपनी इच्छा षक्ति के बल पर उसने न केवल येे कारनामा कर दिखाया बल्कि सारे दर्द भुलाकर उसने बु्रष ,रंगो और कलम का दामन थामा । बेनूर हो चुकी उसकी जिंदगी में रंगो के कारण फिर से रंगत आ गई। अभी तक क्षमा चित्रकारी के लिए करीब 100 पुरुष्कार जीत चुकी है ।दिल्ली में भारत सरकार द्वारा आयोजित सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने उसे निषक्त जनसषक्तीकरण के लिए पुरुष्कृत भी किया। स्वामी विवेकानंद की एक किताब ‘‘लेक्चर फ्रोम कोलंबो टू अलमोडा ‘‘ ने उसको जीवन जीने का सम्बल प्रदान किया। और उसने अपनी काबिलियत के दम पर खुद को साबित करके दिखया। अपनी गणेष पेंटिंग के कारण क्षमा ने लिम्का बुक रिकार्ड में भी अपना नाम दर्ज कराया। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अबदुल कलाम को अपना रोल मोडल मानने वाली क्षमा ने डॉक्टर कलाम के लिए ‘‘एक इंसान अग्नि के समान ‘‘ कविता भी लिखी। दिन भर अपने रंगो में खोई रहने वाली क्षमा कविता और कहानी भी लिखती है। हमारी एक गुजारिष पर उसने अपनी एक कविता भी सुनाई ।रंगो को अपना जीवन समर्पित कर चुकी क्षमा उन निसक्त लोगो के लिए प्रेरणा श्रोत्र है जो दुर्घटना के बाद षांत बैठ जाते है। अदभुत प्रतीभा की धनी क्षमा के लिए एक पंक्ति बिलकुल सटीक बैठती है ।
‘‘ अभी न पूछो कि मंजिल कहां है
अभी तो सफर का ईरादा किया
हैं न हारुगी मै होसला जिंदगी भर
किसी से नही खुद से वादा किया है।"
‘‘क्षमा नित नई नई उचाईयो को छुये और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब हो । उसके इस जज्बे को हम सब सलाम करते हैं।
- कृष्ण कुमार द्विवेदी
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