any content and photo without permission do not copy. moderator

Protected by Copyscape Original Content Checker

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

यूपी २०१२ के ताज का हक़दार कौन.... ?



उ. प्र. विधानसभा चुनाव जैसे - जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे - वैसे सभी राजीनीतिक दलों के दिल की धड़कने तेज़ होती दिख रही है हाल ही में स्टार न्यूज़ का नील्सन ओपिनियन पोल बताता है कि इस बार यूपी में बसपा कों भारी सीटों का नुकसान होने वाला है आंकड़े तो चौकाने वाले है ही इसमें कोई गुरेज नहीं है माया सरकार वैसे भी पहले से चर्चा में बनी हुई है आए दिन कोई न कोई उसका राज्यमंत्री लोकायुक्त की जाँच के घेरे में बना रहता है इसमें कोई दोराय नहीं है लेकिन एक बार फिर से मायावती के सबसे करीबी और कैबिनेट में नंबर दो कि हैसियत रखने वाले "नसीमुद्दीन सिद्दीकी" इस समय लोकायुक्त के शिकंजे में है नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर अपने "रिश्तेदारों कों गलत ढंग से ठेके दिलाने और सरकारी ज़मीन कों अवैध तरीके से कब्जाने का आरोप' है लोकायुक्त की जाँच के घेरे में है "राज्य के लघु उद्योग एवं निर्यात प्रोत्साहन मंत्री चन्द्रदेव राम यादव" जिन पर आज़मगढ़ जिले के बम्हौर गाँव के एक सरकारी स्कूल में वेतन लेने की बात कही जा रही है देश में अगर किसी राज्य सरकार के मंत्री लोकायुक्त की जाँच के घेरे में है तो वो है सबसे ज्यादा यूपी सरकार के, मानो ऐसा लगता है कि यह सिलसिला अभी रुकने वाला है नहीं विधानसभा चुनाव नजदीक आते- आते और भी कई मंत्री घोटालो की चपेट में आ सकते है घोटाला करने वाले मंत्रियो की फेहरिस्त ही इतनी लंबी है कि अंदाज़ा लगाना बड़ा ही मुश्किल है आखिर इन सबके मद्देनज़र अब सवाल मायावती की साख का भी है जो चौथी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री है माया वैसे तो हमेशा से अपनी पार्टी के पाक साफ बताने लगी रहती है लेकिन एकदम से मायावती सरकार के ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियो का लोकायुक्त की जाँच के घेरे में आना यह दर्शाता है कि कही न कही बसपा से कोई भूल हुई है जिसका खमियाजा अब उसे खुद भुगतना पड़ रहा है स्टार न्यूज़ नील्सन ओपिनियन पोल के ताज़ा आंकड़ो ने पार्टी के भीतर खलबली तो मचा ही दी है जिसके कारण पार्टी के हर मंत्रियो के चेहरे पर चिंता की रेखाये साफ देखी जा सकती है यूपी विधानसभा चुनाव में इस बार विपक्षी समाजवादी पार्टी फिर से बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आ रही है पिछले साल की अपेक्षा सपा 135 (+38 ) सीटों पर काबिज होती दिख रही है पूर्ण बहुमत के बलबूते सरकार चला रही बसपा 120 (-86) सीटों पर ही सिमट सकती है लगता है कही न कही बसपा फेक्टर बिखरता नज़र आ रहा है कहा तो यहाँ तक जाता है कि बसपा का दलित वोट बैंक हमेशा खामोश रहता है लेकिन वह कब पलट जाए कहना मुश्किल है


राजनीति के मैदान पर जन्म लेने वाले राहुल गाँधी और दलितों के घर खाना खाकर उनका ही गुणगान करने वाले, राहुल के साथ दलित फेक्टर पंजे से पंजा मिला सकता है ज़रा याद कीजियेगा 1985 के विधानसभा चुनाव कों जब कांग्रेस ने 425 सीटों में से 269 सीटे जीतकर एक नया इतिहास रचा था तब से लेकर अब तक कांग्रेस यूपी में हासिये पर चल रही है लगता है चुनावी मंदी की मार ने कांग्रेस कों कभी इस राज्य में उभरने ही नहीं दिया कारण जो भी रहा हो, जनता तो सिर्फ बदलाव चाहती है वैसे भी भूमंडलीकरण युग की इस जनता कों बार- बार एक ही व्यक्ति का चेहरे देखना शायद अच्छा नहीं लगता इसीलिए वह बदलाव चाहती है जिसकी भुक्तभोगी खुद कांग्रेस है इसीलिए यूपी के मैदान पर कांग्रेस कों एक नई ज़मीन तलाश करनी पड़ रही है लेकिन यूपी 2012 के चुनाव में कांग्रेस उभार ले सकती है कांग्रेस लगभग 68 (+48 ) सीटों पर काबिज होकर यूपी की राजनीति में खलबली मचा सकती है


राम नाम का जाप करने वाली बीजेपी भले ही बड़े -बड़े दावे करती हो लेकिन वह खुद ही यह तय नहीं कर पा रही है कि यूपी के मुख्यमंत्री पद के लिए किसे प्रमोट करे? बीजेपी की चिंता यही से शुरू होती है कि यूपी का दावेदार किसे बने जाए ? हालाकि इन सबके बीच बीजेपी 65 (+14 ) पर काबिज होकर एक नया खेल, खेल सकती है राजनीति का चिकना घड़ा कहे जाने वाले आरएलडी प्रमुख अजित सिंह या फिर यूँ कहे की घाट-घाट का पानी पीने वाले अजित सिंह न तो कोई लाभ उठाते दिख रहे है और न ही कोई नुकसान इनका तो हिसाब बराबर है पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी मात्र 10 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकते है वैसे भी उनके वोट बैंक का दायर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित रहा है इससे आगे वे कही जा भी नहीं सकते आरएलडी का सपना है कि कब हरित प्रदेश बने और कब आरएलडी का सिक्का चले लेकिन उनके नल से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाहर पानी निकलने वाला है नहीं यूपी 2012 का सपना संजोए अजित सिंह ने एक बार फिर से यूपीए के साथ गठबंधन कर लिया है, बताया तो यहाँ तक जा रहा है कि अजित सिंह यूपी की मात्र 50 -60 विधानसभा सीटों पर ही अपने प्रत्याशी उतारने वाले है लेकिन यूपीए के साथ गठबंधन करके एक बार से फिर अजित ने एक ओर नई चल चली है


जिस जाट वोट बैंक के आसरे अजित पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ गिनी चुनी सीटों पर काबिज होते है उन्ही सीटों के सहारे केंद्र और राज्य सरकार में अपनी घुसपैठ बना लेने में माहिर कहे जाते है लेकिन सवाल अब यही से एक और खड़ा होता है कि अजित सिंह आखिर कब तक जाटों पर राजनीति करके उनका बेवकूफ बनाते रहेंगे बागपत जिले की ज़मीन से ताल्लुक रखने वाले अजित सिंह, हर बार इसी जिले की लोकसभा सीट से चुनाव कर आते है बागपत जिले का नाम आज भी खून खराबे और लूट, हत्याओ जैसे मामलों में सबसे ज्यादा चर्चित रहता है मेरठ जिले से अलग जिला बने हुए बागपत जिले कों करीब एक दशक हो चुका है लेकिन इस जिले का सही से विकास नहीं हुआ है अजित सिंह ने अब तक कौनसा ऐसा बड़ा कार्य इस जिले के लिए किया है जिससे यहाँ के युवकों का बोद्धिक स्तर सुधरे, बागपत की स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है


इस बार यूपी के महाभारत पर पूरे देश की नज़र बनी हुई है 403 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में चार पार्टिया के बीच चुनावी घमासान होने वाला है देखना यह है कि यूपी के इस कुरुक्षेत्र मैदान पर कौन बाज़ी मरता है ? ताकि यूपी 2012 का ताज उसके सिर पर हो









गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

आम आदमी से दूर होती सरकार......



विदर्भ की रामकली बाई इन दिनों मायूस है.... .....यह रामकली वह है जिसका एक बच्चा अभी एक साल पहले कुपोषण के चलते मर गया..... इस बच्चे की बात करने पर आज भी वह सिहर उठती है.... पिछले कुछ वर्षो में जैसी त्रासदी विदर्भ ने देखी होगी शायद भारत के किसी कोने ने देखी होगी......सरकार आये दिन गरीबो को अनाज के नाम पर कई घोषणा कर रही है लेकिन सच्चाई यह है कि गरीबो की झोपड़ी तक कोई अनाज नहीं पहुच पा रहा है जिसके चलते आज रामकली के बच्चे कुपोषण के चलते मारे जा रहे है......

महंगाई को कम करने के सरकार दावे तो जोर शोर से करती रही है लेकिन सच्चाई यह है कि देश में आम आदमी की थाली दिनों दिन महंगी होती जा रही है.....प्रधानमंत्री जहाँ ऊँची विकास दर और कॉरपोरेट नीतियों का हवाला देते नहीं थकते वही देश के वित्त मंत्री यह कहते है हमारे पास महंगाई रोकने के लिये कोई जादू की छड़ी नहीं है तो इस सरकार का असली चेहरा जनता के सामने बेनकाब हो जाता है......हद तो तब हो जाती है जब रिज़र्व बैंक 13 वी बार अपनी ब्याज दर बढाता है ताकि मार्केट में लिक्विडिटी बनी रहे .

इसके बाद भी आलम ये है महंगाई देश को निगलते जाती है और रामकली जैसे गरीब परिवारों के सामने रोजी रोटी का एक बड़ा संकट पैदा हो जाता है ..... आज यह जानकर हैरत होती है कि हमारे देश में भुखमरी की समस्या लगातार बढती जा रही है ...... यूं ऍन ओ की हालिया रिपोर्ट को अगर आधार बनाये तो कुपोषण ने हमारे देश में सारे रिकार्डो को ध्वस्त कर दिया है.....आपको यह जानकर हैरत होगी कि हर रोज तकरीबन ७००० मौते अकेले कुपोषण से हमारे देश में हो रही है.....सरकार खाद्य सुरक्षा कानून लाने की बात लम्बे समय से कर रही है लेकिन इसको पेश करने की राह भी आसान नहीं है......

मनमोहन और सोनिया की अगुवाई वाली सलाहकार परिषद् में इसे लेकर अलग अलग सुर है..... राजनेताओ को आम आदमी से कुछ लेना देना नही है ... अगर ऐसा होता तो आज हमारे ऊपर कुपोषण का कलंक नहीं लगता..... बढती जनसँख्या ने देश में खाद्य संकट को हमारे सामने बड़ा दिया है.....ऐसा नहीं है देश में पर्याप्त मात्रा में खाद्यान उत्पादन नहीं हो रहा ॥ उत्पादन तो हो रहा है लेकिन फसल के रख रखाव के लिये हमारे पास पर्याप्त मात्रा में गोदाम नहीं है ...... इसी के चलते करोडो का अनाज हर साल गोदामों में सड़ता जा रहा है.... अभी इस बार मध्य प्रदेश में चावल का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ .... वहां के मुख्यमंत्री शिवराज परेशान हो गए है .... सी ऍम होने के नाते उन्होंने केंद्र को चिट्टी लिख दी ... उन्होंने कहा मध्य प्रदेश में रख रखाव के लिये पर्याप्त गोदाम नहीं है लिहाजा केंद्र सरकार इस अनाज के रख रखाव की व्यवस्था सुनिश्चित करे लेकिन देखिये केंद्र ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की .....


हमारे देश में केंद्र ओर राज्यों में अलग अलग सरकारे होने के कारन कई बार सही तालमेल नहीं बन सकता .... यही अभी मध्य प्रदेश में देखने को मिला ....कमोवेश यही हालात आज देश के अन्य राज्यों में है ......

यूनेस्को का कहना है भारत की गिनती दुनिया के सबसे कुपोषित देशो में हो रही है....लेकिन इन सबके बाद मनमोहनी इकोनोमिक्स ऊँची विकास दर और "भारत निर्माण " की अगर दुहाई दे तो यह कुछ हास्यास्पद मालूम पड़ता है .......हद तो तब हो जाती है जब इस देश में घोटालो के बाद एक घोटाले होते रहते है और हमारे प्रधानमंत्री अपनी नेकनीयती का सबूत देते नहीं थकते......देश की जनसँख्या तेजी से बढ़ रही है ... हाल ही में हमने १२१ करोड़ के आकडे को छुआ है अगर यही सिलसिला जारी रहा तो यकीन जानिए हम चीन को पीछे छोड़ देंगे... ऐसे में बड़ी आबादी के लिये भोजन जुटाने की एक बड़ी चुनौती हमारे सामने आ सकती है....

पिछले दो दशको में हमारा खाद्यान उत्पादन १.५ फीसदी तक जा गिरा है.... मनमोहन के दौर में हमारे देश में दो भारत बस रहे है... एक तबका ऐसा है जो संपन्न है ...वही एक तबका ऐसा है जो अपनी रोजी रोटी जुटाने के लिये हाड मांस एक कर रहा है.... याद कीजिये १९९० का दौर उस समय हमारा देश आर्थिक सुधारो की दहलीज पर खड़ा था.... नरसिम्हा राव की सरकार उस समय थी...उस दौर में हमारे देश में प्रति व्यक्ति खाद्यान की खपत ४६८ ग्राम हुआ करती थी...

उदारीकरण के आज २० सालो बाद भी भारत में प्रति व्यक्ति खाद्यान उपलब्धता ४०० ग्राम हो गई है ....यही नहीं आप यह जानकार चौंक जायेंगे १९९० में प्रति व्यक्ति ४२ ग्राम दाल उपलब्ध थी वही २०११ में यह आकडा भी लुढ़क गया और यह २५ ग्राम तक पहुच गया .... यह आंकड़ा औसत है जिसमे मनमोहनी इकोनोमिक्स का संपन्न तबका भी शामिल है साथ ही वह क्लास भी जो रात को दो रोटी भी सही से नहीं खाता होगा... अर्जुन सेन गुप्ता की रिपोर्ट कहती है देश की ७० फीसदी आबादी आज भी २० रूपया प्रति दिन पर गुजर बसर करती है.....ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है इस दौर में कैसे यह गरीब तबका दो समय का भोजन अपने लिये बनाता होगा ? ऊपर से यह सरकार २६ और ३२ की बहस चलाकर गरीबो क मुह पर तमाचा मारने पे तुली रहती है .........

देश में आज थाली दिन प्रति दिन महंगी होती जा रही है.....घरेलू गैस के दामो में भी सरकार अपनी मनमर्जी चलाती रहती है... यही नहीं तेल के दाम भी सरकार आये दिन बढाने का फैसला लेती रहती है जिसकी सबसे ज्यादा मार गरीब परिवारों पर पड़ती है ... इसके चलते लोगो करता जीना दुश्वार होता जा रहा है.....सरकार को तेल कंपनियों का घाटा पूरा करना है ... आम आदमी से कुछ भी लेना देना नहीं है .....


अगर आम आदमी से कुछ लेना देना होता तो उसकी तरफ सरकार ध्यान तो जरुर देती...... शायद तभी आम आदमी का अब यू पी ए २ से मोहभंग होता जा रहा है.....तेल और घरेलू गैस के दामो को बढाने का फैसला सरकार वैश्विक माहौल का हवाला देकर अक्सर लेती रहती है ....


ज्यादा समय नहीं बीता जब मुद्रा स्फीति रिकॉर्ड १२.२५ % पार कर गई जो अब तक की सबसे बड़ी दर है.... ऊपर से रिजर्व बैंक लोन की दर बढाने का फैसला कर मध्यम वर्गीय परिवारों को निराश करते रहता है .......अभी इस वर्ष देश का सकल घरेलू उत्पाद सात फीसदी के आस पास है ....जबकि यही पिछले साल ९ फीसदी के आस पास रहा था... आज आलम यह है कि रुपये के मूल्य में लगातार गिरावट आते जा रही है... यह संकेत भारतीय आर्थव्यवस्था के डगमग रहने के संकेत के रूप में देखा जा सकता है ... सरकार मंदी की आहट के मुकाबले के लिए ऍफ़ डी आई लाने की हिमायती थी ताकि विदेशी निवेशक यहाँ के बाजार में आकर अपना पैसा लगा सके लेकिन २जी की आंच ने कारपोरेट को सहमा दिया है ....लिहाजा कई परियोजनायो के लिए एनओसी मिलनी मुश्किल हो चली है..........यानी पहली बार वह अर्थव्यवस्था औंधे मुह गिर रही है जिसकी बिसात पर मनमोहन ने उदारीकरण का सपना देखा था ..... ऐसे में कह पाना मुश्किल होगा कि मौजूदा दौर में जब सारे दरवाजे बंद हो चुके है तो रास्ता जायेगा किधर ?


मनमोहन के दौर में समाज में अमीर और गरीबी की जो खाई चौड़ी हुई है उसके पीछे बहुत हद तक हमारी खाद्यान प्रणाली जिम्मेदार है .....जबसे मनमोहन ने देश में उदारीकरण की शुरुवात की तबसे हर सरकार का ध्यान ऊँची विकास दर बरकरार रखने और सेंसेक्स बढाने पर जा टिका है .....आकड़ो की बाजीगरी आज के दौर में कैसे की जाती है ये हर किसी को मालूम है ....


वैसे भी यह बात समझ से परे लगती है आम आदमी करता सेंसेक्स से क्या लेना देना ? बीते २० सालो में एक खास बात यह देखने में आई है सरकार की विकास दर और गरीबी के आकडे दोनों तेजी के साथ बढे है .... सरकारी आंकड़ो में विकास ने "हाईवे " की तरह छलांग लगाई है लेकिन इस रफ़्तार ने कुपोषण , गरीबी, भुखमरी जैसी समस्याओ को बढाया है ....इस दौर में कृषि जैसे सेक्टर की हालत सबसे खस्ता हो गई......

शहरों में चकाचौंध तो तेजी से बढ़ी लेकिन गावो से लोगो का पलायन बदस्तूर जारी रहा .....आज आलम यह है कृषि में हमारी विकास दर दो फीसदी से भी कम है जो हमारे फिसड्डी होने को बखूबी बया कर रही है..... ..... किसानो को सरकार ने इस दौर में पैकेज भी प्रदान किया है .... यही नहीं बैंक भी किसानो की मदद के लिये आगे आये है लेकिन इन सब चीजो के बाद भी किसान परंपरागत खेती को छोड़ने पर आमादा है......साहूकार के दौर में किसानो पर जो कर्ज के कष्ट थे अब वह लोन के बाद भी ज्यादा बढ़ गए है.....

आकडे इस बात की गवाही देने के लिये काफी है किसान आत्महत्या का एक बड़ा कारण कर्ज रहा है... किसान पर कर्ज को चुकाने का बोझ इतना ज्यादा है वह समय से इसे नहीं चुका सकता .... वैसे भी भारत की कृषि को "मानसून का जुआ " कहा जाता है जो "इन्द्र देव " की कृपा पर ज्यादा टिकी हुई है......उस पर तुर्रा यह है हमारे प्रधान मंत्री इसे लाभ का सौदा बनाने के बजाय विदेशी निवेश बढाने पर आमादा है जिसकी वकालत शुरू से मनमोहनी अर्थशास्त्र करता रहा है......ऐसे में अपने किसान की खुशहाली दूर की कौड़ी लगती है ......


अपने घर खुशहाली नहीं रहेगी तो दूसरे से मदद मांगने से क्या फायदा.....? लेकिन मनमोहन अमेरिकी कंपनियों के ज्यादा निकट चले गए है ..... शायद तभी उन्हें अपने देश के पूर्व प्रधानमंत्री शास्त्री के नारे "जय जवान जय किसान " का एहसास इस दौर में नहीं होता......अगर ऐसा होता तो बीते सात सालो में ढाई लाख किसान आत्महत्याए अपने देश में नहीं होती......और ना ही कुपोषण का यूनेस्को का कलंक हमारे माथे पर लगता...................

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

Bellary Mining Scam - Lawmakers become lawbreakers_Network_PKG The politically powerful people have plundered the nation’s wealth. In other words we can easily narrate it as way this country is looted by these politicos all over, make Ghaznavis and Nadir Shahs look like small-time pick-pockets. ETV's special report on “Khablam Karlo or Khablam Bangara, Khablam is iron, Bangara is gold” which turned our lawmakers to into lawbreakers. Not only lawmakers & legislators but the people who meant to implement the law had also allegedly involved in violating the rules seemingly conveying the message that 'All that Glitter is not Gold' . Large number of MLAs or MPs in Karnataka are leading businessmen. The traders have seemingly entered to the portals of legislatures because they know that the policies are made by those who are sitting there. They themselves decided to become the legislators, instead of relying on an intermediary politician. They had a chit fund business. Reddy's came to the limelight during the Lok Sabha elections in 1999. They worked for Sushma Swaraj after she stood as a long-shot candidate in Bellary, against Sonia Gandhi. Though Sushma lost, she remained a patron of the Reddys. And by 2005 they had entered politics. Despite being influenced by Saffron party they developed close terms with the then Andhra Pradesh chief minister YSR. Through this, they found a ready-made uncle in Rajasekhara Reddy and a ready-made mother in Sushma Swaraj. Earlier, during the British there was mining going on in the state but the demand in the international market was very, very poor. Therefore they were practically on the verge of closure. Once they found out that Korea, Japan, China, had the technology of converting the ‘fines’ into higher steel & the countdown to the August 2008 Beijing Olympics gave the steel industry a boom. The Games witnessed the commissioning of huge infrastructure projects led to a hunger for steel in China. Mentionably, the iron ore found in Bellary is one of the finest in the world with an iron (Fe) content of 60-65 per cent, and is known as 64Fe. This ore is exported in its raw form to not only to China but also to countries like Japan, South Korea and Australia. After turning into strong leaders they care very little about law. The more money, power and political prominence they got they felt that they could do anything & everything. TDP chief N Chandrababu Naidu stated that YSR the then Andhra Pradesh CM had saved them for five years. He also revealed son of YSR, Jagan Mohan Reddy's connection with illegal mining. ' N Chandra Babau Naidu, TDP chief [BLOOD_AND_IRON-2] TCR (1:10- 2:00) VTS_01_1 VO4: They started working independently. They started expanding their activities like a mafia. Experts believes that 30 million tonnes of iron ore was looted from state. They would have excavated only as much as they could consume but because of the International market demand was huge, they without following the guidelines of Indian Bureau of Mines, they went on grabbing every possible place, even agricultural land. Indian Bureau of Mines (IBM) for inspected that about 103 mines there, out of these 95 are iron ore mines. In which out of 95 iron ore mines, two are sub-judice.Union Minister for Mines BK Handique has informed that whatever iron ore were exported, 70% are fines and 30% are lumps. 30 % lumps in the country itself out of the 70% fines, exported almost all. These fines, have no use for them. As the country don’t have the right technology & the energy is very costly here in India. Apart from political patronage, Reddy's have also got the support of former chief justice of Karnataka, Justice Dinakaran, who resigned recently,dealt with the number of cases of this mining mafia. He allegedly passed a series of orders in their favor. Justice Dinakaran allowed him to lift more then one lakh ton of iron ore from reserved forest. Senior Advocate Prashant Bhushan sharply reacted over that they have mined the border of Andhra-Karnataka. On paper, the Gali Reddy brothers do not own even a square inch of a mining lease in the state of Karnataka. However, they have promoted Obulapuram Mining Company, which has a mining lease in the neighbouring state of Andhra Pradesh. In Karnataka, the Reddy brothers and their associates have been accused of using strong-arm methods to control mining operations in the name of other lease-holders through illegal sub-leases and third-party ‘raising’ contracts .On the contrary, Janardhan Reddy claiming to be innocent from very beginning and stated that will resign if single evidence found against him. As much as 70 per cent of the total production had no market and then before the Beijing Olympics China went after infrastructure in a big way .The requirement of steel went up, accordingly the requirement of iron ore went up and when this boom came which led such a biggest mining scam. Money is a thing where political differences sink, the parties joined hands. Not only the politicos but the Justice also allegedly indulged in the scam claimed to be the biggest scam of Independent India, in terms of money.

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

जूता-चप्पल और चांटा मारने के इस दौर में.....












माफी के साथ, कह रहा
हूं कि बहुत खुशी होती है जब कोई गलत आदमी इसका शिकार होता है,,,,,,,लेकिन चुंकि यह गांधी का देश है---इसलिए यहां हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है,,,,,,,,,,और किसी भी कीमत पर इसे सही नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि अगर कोई गलत आदमी इसका शिकार होता है...तो वह और उसके राजनीतिक समर्थक अपने प्रतिद्वन्दियों पर भी उसी अंदाज में हमला कर सकते हैं....कुछ दिन पहले तरह जिस हरविंदर सिंह नाम के एक भाई ने शरद पवार को थप्पड़ मारा था,,,,उसे खुद की राजनीतिक पार्टी खड़ी करनी चाहिए,,,,या फिर अपने विचारों से मेल खाने वाली पार्टी ( अंधे में कानी ही सही ) के साथ मिलकर काम करना चाहिए.....और जिस महंगाई और भ्रस्टाचार से आजिज आकर उसने क्रिकेट में व्यस्त रहने वाले एक केन्द्रीय मंत्री को चांटा मारा था ,,,उस महंगाई और भ्रस्टाचार को उसे ख़त्म करना चाहिए........खैर उसने जो काम किया था...वो उसे भगत सिंह की राह पर चलना समझ रहा होगा...लेकिन आज के युग में भगत सिंह बनना मुश्किल है,,,,आज एक नेता या राजनितिक पार्टी या अधिकारी गलत होता तो भगत सिंह की राह सही मानी जा सकता थी ...लेकिन यहां तो हर शाख पर उल्लू बैठा है....और आज के युग में जब सेना और पुलिस सरकार के हाथ में है वह उसका सही और गलत इस्तेमाल कर सकती है....जैसा कि हम बाबा रामदेव के मामले में दिल्ली के रामलीला मैदान में तमाशा देख चुके हैं,,,,ऐसे में इन उल्लुओं पर अहिंसा का हथियार ही कारगर होगा....वरना हरविंदर सिंह जैसे नासमझ और अतिउत्साही लोगों को नक्सली टाईप का या सस्ती लोकप्रियता के लिए काम करने वाला घोषित कर दिया जायेगा...कुल मिलाकर जूता, चप्पल और चांटा मारने के इस दौर में ख़ुशी की बात ये है कि हमारे पास अन्ना हजारे जैसे मार्गदर्शक मौजूद हैं....अन्ना हजारे २७ दिसम्बर २०१ से फिरसे अनशन पर बैठने वाले हैं......ऐसे में अन्ना जी का साथ हरविंदर जैसे लोगो को जरुर देना चाहिए......यूँ तो देश के ज्यादातर लोग अन्ना जी के साथ हैं और रहेंगे.....क्योंकि अन्ना जी जिस अहिंसा के मार्ग पर चलते हैं..... उससे पुलिस उनको क्या उनके समर्थकों तक को छूने में हजार बार सोचती है..... रही बात अन्ना हजारे के कांग्रेस के विरोध में ५ राज्यों के प्रचार करने की तो .....वो करें, लेकिन एक बार वो इतना जरुर बताते चलें कि ईमानदार कौन है ...जनता वोट किसको दे....अगर बसपा को--- तो बलात्कारी विधायक किस पार्टी में हैं.....सपा को ---तो अमर सिंह जैसे दलाल कहाँ से पैदा हुए,,,,, बीजेपी को तो ---येदियुरप्पा किसके खेत की मूली है,,,,,लोकदल को तो---अवसरवादी और परिवारवादी कौन है........अन्ना जवाब दें न दें हम उनके साथ हैं........और देश के युवाओं और मीडिया वर्ग से गुजारिश और उम्मीद करते हैं कि वे अन्ना का साथ पहले की रह देंगे..डेल्ही से बाहर वालों रिजर्वेशन करालो ...डेट -२७ दिसम्बर , जगह-फिर वही -- दिल्ली का रामलीला मैदान......

बुधवार, 30 नवंबर 2011

देश कों अपनी प्रतिभा की कदर नहीं

भारतीय कबड्डी टीम ने इस बार कबड्डी का वर्ल्डकप जीता तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई। सच मानो तो मै फुला नहीं समा पाया। बचपन में खेला करता था लेकिन वो मेरा देहाती खेल था इसीलिए में उसको ज्यादा तवज्जो देता था. लेकिन यह कभी नहीं सोचा था कि भारतीय टीम कभी कबड्डी में भी वर्ल्डकप जीतकर लाएगी वो भी महिला टीम। एक बार पुरुषो से तो उम्मीद की जा सकती थी लेकिन महिलाओ से नहीं, हमारे भारतीय ग्रामीण खेल गुल्ली डंडा, कबड्डी, खो - खो और हाकी ये तमाम ऐसे खेल है जो विदेशी खेलो के एकदम बराबर होते है जैसे टेबिल टेनिस, शतरंज, बेडमिन्टन इत्यादि । भारत न जाने क्यों इस तरह के खेलो कों नदारद रखता है क्या उसे बताने में यह शर्म आती है कि भारत मै इस तरह के खेल खेले जाते है?



आखिर जिस ग्रामीण खेल के आसरे भारत ने कबड्डी वर्ल्डकप जीता उसी भारत में आज भी बहुत सी ऐसी प्रतिभाए छिपी है जो राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा सकती है लेकिन भारत का खेल मंत्रालय ऐसे खेलो को कभी बढ़ावा नहीं देता। भारतीय हाकी खेल हमेशा से किसी न किसी विवादों में फंसी रहती है चाहे वो हाकी टीम के खिलाडियों के पैसो का मामला हो या फिर हाकी कोच पर लगे यौन शोषण का आरोप हो, कही न कही ये तमाम ऐसे मुद्दे है जो भारतीय खेलो कों पीछे धकेल रहे है. जिनका परिणाम ज्यादा दूरगामी नहीं निकल पाता. हमारे खेलो की दुर्दशा भी यही बताती है कि इन खेलो का भविष्य कुछ जायदा खास नहीं है.भारतीय पुरुष और महिला कबड्डी खिलाडियों ने अपनी ताकत का लोहा मनवाकर यह साबित कर दिया की भारतीय कबड्डी टीम किसी से कम नहीं है. लुधियाना (पंजाब) के गुरुनानक स्टेडियम में पुरुष वर्ग और महिला वर्ग ने कबड्डी का वर्ल्डकप जीतकर एक नया इतिहास रच दिया. एक ओर पुरुष वर्ग ने कनाडा को 59 -25 से मात देकर वर्ल्डकप पर अपना कब्ज़ा किया तो वही दूसरी ओर महिला वर्ग के खिलाडियों ने अपनी ताकत दिखाते हुए इंग्लेंड को 44 -17 से पटखनी देकर कबड्डी वर्ल्डकप का ताज़ा अपने नाम कर लिया .


भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी भारतीय महिला टीम ने कबड्डी का वर्ल्डकप जीता हो। दर्शको से भरे खचाखच स्टेडियम में भारतीय टीम के नारों की गूंज चारो ओर से सुनाई पड़ रही थी. जिससे भारतीय खिलाडियों के हौसले बुलंद थे. भारतीय पुरुष टीम ने कनाडा कों हराकर एक स्वर्ण पदक और दो करोड़ रुपए जीते लेकिन उधर महिला खिलाडियों ने एक स्वर्ण पदक के साथ-साथ 25 लाख रुपए की नकद धनराशि जीती. कबड्डी वर्ल्डकप जीतने की ख़ुशी में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने दोनों वर्गो के खिलाडियों कों सरकारी नौकरी देने का वादा किया. लेकिन अब सवाल यही से पैदा होता है कि जिस भारतीय महिला टीम के खिलाडियों ने पहली बार कबड्डी वर्ल्डकप जीता, आखिर खिलाडियों को एयरपोर्ट तक पहुचाने के लिए एक भी गाड़ी उपलब्ध नहीं कराई जा सकी. सीएम भी अपना वादा निभा कर चलता बने, आख़िरकार इन खिलाडियों का क्या कसूर था ? जो कई घंटो तक अपना पच्चीस लाख रुपए का चेक और वर्ल्डकप ट्राफी लिए हुए सड़क पर एयरपोर्ट तक जाने के लिए ऑटो का इंतज़ार करते रहे, उनके साथ न तो कोई आला अधिकारी थे ओर न ही कोई सुरक्षाकर्मी. अब आप यही से अंदाज़ा लगा सकते है कि भारतीय खिलाडियों की इज्ज़त किस तरह से की जाती है यही कारण है कि भारतीय खिलाडी भारतीय खेलो कों छोड़कर विदेशी खेलो की ओर क्यों रुख कर रहे है? उपविजेता टीम को हमारी सुरक्षा और ट्रेवल्स एजेंसियों ने उनको एयरपोर्ट तक वातानुकूलित बस से पहुचाया. लेकिन कबड्डी विश्वविजेता टीम सड़क पर ही टहलती रही.


आखिर देश जा किधर रहा है जो उसे अपनी प्रतिभा की ज़रा भी कदर नहीं। ज़रा याद कीजिएगा इसी साल के अप्रैल महीने में जब भारतीय क्रिकेट टीम ने वर्ल्डकप जीता तो उनके मैदान से कमरे तक सुरक्षाकर्मी हर तरह से मुस्तेद थे कही हमारे खिलाडियों की सुरक्षा में कोई सेंध न लग जाए। क्रिकेट टीम लिए रात की डिनर पार्टी हो या फिर डांस पार्टी हर तरह की सुविधाए उनको मुहय्या कराई जाती है लेकिन कबड्डी विश्वकप विजेता टीम के खिलाडियों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं, सवाल तो यहाँ मीडिया पर भी खड़ा होता है। जब भी कोई भारतीय खिलाडी किसी विदेशी खेलो में अपना अच्छा प्रदर्शन करता है तो हमारा प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया उसको पूरा कवरेज देता है।


मुझे तो कभी - कभी यह देखकर बड़ा ताजुब होता है कि जब खिलाडियों के घर तक के पहुचने की खबर हम तक पहुचती है। लेकिन अगर कोई खिलाडी भारतीय खेलो में अच्छा प्रदर्शन करे तो वह हमारे मीडिया के लिए चर्चा का विषय ही नहीं होता। शायद इसीलिए हमारी कबड्डी वर्ल्डकप विजेता टीम मीडिया पर कुछ खासा असर नहीं छोड़ सकी. वर्ल्डकप विजेता भारतीय टीम देश के कुछ गिने चुने अखबारों की ही लीड खबर बनी या फिर वह खेल पेज तक ही सीमित रही. वर्ल्डकप जीतने के एक दिन बाद खिलाडियों कों मीडिया ने पूरी तरह से नदारद कर दिया. आखिर कबड्डी वर्ल्डकप विजेता खिलाडियों के साथ ही ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों? क्रिकेट वर्ल्डकप जीती भारतीय टीम का कवरेज मीडिया ने खिलाडियों के एयरपोर्ट से लेकर उनके घर तक पहुचने की खबर हमको लगातार पहुचाई इस कवरेज में दोनों मीडिया की भूमिका लगभग 50 - 50 फीसदी रही. समझ नहीं आता भारत की ये आदत कब सुधरेगी जो विदेशी खेलो कों बढ़ावा देकर उनको प्रोत्साहित करता है. जबकि हमारे ही देश में उपज रहे भारतीय खेलो को न जाने क्यों प्रोत्साहित नहीं करता ?

















सोमवार, 28 नवंबर 2011

हम माटी के मानुष मरते रहे...



दौरे दौर बदलते रहे हम माटी के मानुष मरते रहे...


जागीरों से, जमीनों से


कभी सूद पर सेठों की चोरी से


हम माटी के मानुष मरते रहे...


दौरे दौर बदलते रहे


हम माटी के मानुष मरते रहे...


देख हरियाली इन खेतों की


ना नदियों के, ना तालाबों के


ना बादलों के नीर से


पली है, बढ़ी है


ना कोठियों में रहने वाले


मालिकों के खून से


ये हरियाली छाई है


सदियों इन जंगलों को,


खेतों की इन स्यालों को


खून पसीना सिर्फ हम अपने


देते रहे हैं


देते रहे हैं


दौरे दौर बदलते रहे


हम माटी के मानुष मरते रहे...

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

भ्रसटाचार ही लोकतंत्र की सही प्रथा ......


देश जब से आजाद हुआ है तब से देश में बहस छिड़ी हुई है की आखिर लोकतंत्र की प्रथा क्या है और आज तक यह साबित नहीं हो पाया की आखिर सही प्रथा है क्या समय समय पर हर राजनेतिक दल ने या किसी संगठन ने अपने तरीके से लोकतंत्र को परिभाषित किया पिछले कई दिनों में कई उद्धरण सामने आये है जिससे यह समझने में आसानी हो की लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलने के लिए क्या किया जाए तो अन्ना ने शांति प्रद तरीके से आन्दोलन किया इस आन्दोलन को अपार जन समर्थन मिला तो कुछ राजनेतिक पार्टियों ने इसे ब्लेक्मेलिग़ कहा यह कहा की ये देश में गलत प्रथा चालू हो रही है उसके बाद नंबर आता है जूता फेक का जिसमे लोगो ने आपना बिरोध नेताओ पर जूता फेक कर किया फिर जिस पार्टी के नेता पर जूता फेका उस पार्टी का कहना था की यह देश में गलत प्रथा चालू होर ही है अब कल एक आदमी ने शरद पवार को तमाचा मार दिया तो शरद बाबु की पार्टी के लोगो ने इसका बिरोध किया बिरोध सही भी था पर फिर भी बहस की यह लोकतंत्र के लिए गलत प्रथा है लेकिन पिछले ६५ सालो से भ्रसटाचार हो रहा है और इस प्रथा के बारे में किसी राजनेतिक पार्टी या नेता ने यह नहीं कहा की यह गलत प्रथा देश में चल रही अब जब हम देश की संसद पर बिसबास करे और इन नेताओ के हिसाब लोकतंत्र की सही प्रथा की बात करे तो एक ही प्रथा बचती हे बो है भ्रसटाचार
क्या यह प्रथा सही है इस पर अपने सुझाब जरुर दे

बुधवार, 16 नवंबर 2011

खास होकर भी आम हूँ


खास होकर भी आम हूँ
हाँ जो भी हूँ सरेआम हूँ
जिंदगी के छोटे छोटे सपनो को लेकर डुबती उभरती रहती हूँ
फौलाद सा ह्रदय लिए गिरती सवरती रहती हूँ
हर मोड़ पर मुझे लड़ना झगड़ना पड़ता है
हर बार गिरकर संभलना पड़ता है
कभी सागर के पर कभी अपनों के संसार में कहती चलती हूँ
हाँ हूँ मैं एक लड़की  जो सबसे  कहती चलती हूँ .
घर की चार दिवारी से निकल कर
मन में ख्वाबों का आशियाँ ले कर उडती चलती हूँ
हाँ हूँ मैं एक लड़की जो सबसे कहती हूँ
जब जब मेरी चेतना जागी
तो मैं उन लोगों से दूर भागी
जिन्होंने हर बार कराया अहसास
की तुम लड़का होती काश
तो तुम पे कोई न बांध पता अपना मोह पाश
चाहें जो भी हो मुझे इस तिलिस्म को तोडना होगा
मुझे हर उस बंधन को छोड़ना होगा
जो मुझे मेरे होने के अहसास से दूर करता
मुझे मेरे अस्तित्व को समझने परखने से रोकता है.  

गुरुवार, 10 नवंबर 2011




Resuming the way of success with maintaining your dignity, and do not depend upon the destiny because it always pull out your feet from that ways where to become get something by hope, although it not come everyday like as such situation but when it come, eye can never stop.....

बुधवार, 9 नवंबर 2011

खबर नई दिल्ली से.....अमर सिंह ने जिंदगी में पहली बार कोई सत्य बात कही !


बसपा के विधायकों को तोड़कर सपा में शामिल करवाने का दावा करने वाले, बिपासा बसु के साथ फोन टेपिंग मामले में चर्चा में आने वाले और 22 जुलाई 2008 को लोकसभा में विश्वास मत के लिए सांसदों को खरीदने के तथाकथित सुत्रधार कोई और नहीं माननीय अमर सिंह साहब ही हैं। कैश फॉर वोट मामले में जेल से बाहर निकलने के बाद अमर सिंह ने मंगलवार यानि की 8 नवम्बर 2011 को नई दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेस आयोजित किया। यूं तो इस प्रेस कांफ्रेस में अमर सिंह ने पत्रकारों के तमाम सवालों का जवाब दिया, लेकिन टीम अन्ना के बारे में अमर सिंह ने जो बात कही... शायद उनके मुंह से अब तक निकला वह पहला और एक मात्र सत्य है और जो देश हित में भी है। दरअसल टीम अन्ना के बारे में अमर सिंह ने कहा कि- जब टीम अन्ना ने भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस सभी को भ्रष्ट कह दिया है यानि कि टीम अन्ना इन सबसे त्रस्त है। ऐसे में टीम अन्ना को चाहिए कि वह राजनिती का एक विकल्प देश को दे। अमर सिंह ने आगे कहा कि जय प्रकाश नारायण ने जब सबको भ्रष्ट कहा था तो उन्होंने एक विकल्प बना दिया था, वह विकल्प था 'जनता पार्टी' के रूप में। जयप्रकाश जी ने सारी बिखरी ताकतों को, विपक्ष में बिखरी ताकतों को एक किया था। सारी बिखरी ताकतों का समन्वय करके उन्होंने जो विकल्प दिया था वह इतना मजबूत था कि जार्ज फर्नाडीस, मधु लिम्हे और चन्द्रशेषर जैसे नेताओं के जेल में बंद होने के बावजूद जनता ने उनके नाम पर चुनाव लड़कर, नेताओं ने नहीं बल्कि जनता ने चुनाव लड़कर इंदिरा गांधी जैसी मजबूत नेता को अपदस्थ कर दिया था। अब अन्ना हजारे बताएं कि क्या वह देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, किरण वेदी रक्षा मंत्री- गृह मंत्री बनेंगी, अरविंद केजरीवाल सूचना मंत्री बनेंगे, देश के सामने विकल्प क्या है, बिना विकल्प बताए ये कह देना कि सब चोर हैं, सब भ्रष्ट है ये आरोप लगा देना ठीक नहीं है। अमर सिंह अब चाहें जितनी बड़ी-बड़ी बात करलें लेकिन ये बात 100 प्रतिशत सच है कि आज अमर सिंह को लोग समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता होने के कारण ही पहचानते हैं। अमर सिंह जब समाजवादी पार्टी में थे तो उन्होंने बसपा के विधायकों को तोड़कर सपा में शामिल करवाया था और ये बात शायद उन्होंने खुद स्वीकार किया था...ऐसे में भारतीय लोकतंत्र के हित में उनकी उपयोगिता क्या रही है ये बताने की आवश्यकता नहीं है। किसी जमाने में अमिताभ बच्चन, सुब्रतो रॉय और मुलायम सिंह को दाएं-बाएं लेकर चलने वाले अमर सिंह की विश्वसनीयता न कभी रही है न कभी रहेगी। मुलायम सिंह के जातिवादी राजनिती को पैसे के जरिये बढ़ाने मे मदद करने के सिवाय उनका कोई योगदान नहीं रहा है। पैसा ही अमर सिंह की ताकत रही है। जाति से ठाकुर होने के नाते दिग्विजय सिंह भी न जाने कब से अमर सिंह का साथ देते आये हैं और न जाने कब तक साथ देते रहेगे। कुल मिलाकर कैश फॉर वोट कांड में फंसे अमर सिंह का भविष्य सुरक्षित नहीं दिख रहा है। आज वह राज्यसभा के सांसद हैं तो सपा के कोटे से है। आगामी यूपी के विधानसभा चुनाव के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि अमर सिंह कितने जमीनी नेता हैं...लोक मंच को कितनी सीटें दिला पाएंगे...भोजपुरी संगीत के बड़े सेवक और गोरखपुर के लोकसभा सीट से योगी आदित्यनाथ से पराजित छुटभैया नेता मनोज तिवारी और बेचारी जया प्रदा के सिवाय कोई जाना पहचाना चेहरा उनके साथ नहीं है। कुल मिलाकर मंगलवार को जो बात उन्होंने दिल्ली प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कही, अन्ना हजारे और उनकी टीम को उस पर जरूर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि अन्ना जिनपर देश की ज्यादातर जनता विश्वास करती है उन्होंने मौनव्रत तोड़ने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि भ्रष्टाचार के मामले में भाजपा और कांग्रेस में कोई अंतर नहीं है, एक पार्टी ग्रेजुएट है तो दुसरी पार्टी ने भ्रष्टाचार में पीएचडी किया है। टीम अन्ना के सदस्य मनीष सिसौदिया भी सपा-बसपा को चोर कह चुके हैं । ऐसे में अन्ना हजारे देश को असहाय नहीं छोड़ सकते हैं। अन्ना को अमर सिंह द्वारा कहे गये जिंदगी की एक मात्र सत्य बात पर गौर करना ही चाहिए क्योंकि लेदेकर भाजपा या कांग्रेस में से ही कोई एक पार्टी केन्द्र में सरकार बनाएगी । भारत के अधिकाश राज्यों में या तो भाजपा या कांग्रेस और उसके सहयोगी दल की सरकार है। और टीम अन्ना ने जनता का इन पार्टीयों से मोह भंग करने का कार्य किया है। फिर जनता किसको वोट दे टीम अन्ना को यह बताना ही चाहिए।


New term of betray with sever ties to congress

Mamata is not averse of congress, she is showing only sever that she may be sever ties if government would not accept her demand of falling price of kerosene, diesel,petrol and cooking gas, which hiked a few days ago,trinamul has made it clear before the government that they do not betray the people's therefore,T.MC. has been calling out against the hiked price, but after all a scene creating here as like as Hypocrite day to day in bangala soil, only we are waiting to watch that condition when DIDI really sever ties with centre,but hereafter what have to do so ? now idea.....

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

क्यों न " महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना " का नाम बदलकर " गंगू तेली रोजगार गारंटी योजना " कर दिया जाए...















केन्द्र की यूपीए सरकार की महत्वाकांक्षी योजना राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना का नाम कुछ वर्ष पहले ही बदलकर महात्मा गाँधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना कर दिया गया। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन की दिशा में किया गया महत्वपुर्ण कार्य है। इसका श्रेय कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को जाता है। लेकिन जब हम देखते हैं कि इस योजना के अंतर्गत काम करने वाले मजदूरों के एक दिन की मजदूरी लगभग 120 रूपया मात्र है तो हमें इस योजना की सच्चाई का पता चल जाता है। और यह बात भी आसानी से समझा जा सकता है कि सरकार की नजर में गांव के मजदूरों की क्या कद्र है। जहां एक ओर सांसदों का वेतन 16 हजार से बढ़ाकर एक ही झटके में 80 हजार कर दिया गया...वहीं मजदूरों को १२० रुपया एक दिन की मजदूरी दी जा रही है... महंगाई के इस युग में कोई भी आदमी अपने परिवार को महज १२० रुपया में क्या खिलायेगा....और शिक्षा...स्वास्थ्य का क्या प्रबंध करेगा...कुल मिलाकर अगर १२० रुपया प्रतिदिन ही देना था... तो महात्मा गाँधी का नाम इस योजना के साथ क्यों जोड़ा गया....या तो केंद्र सरकार गाँव के मजदूरों के एक दिन की मजदूरी १२० से बढ़ाकर कम से कम ३०० रुपया कर दे......नहीं तो इस योजना का नाम '' गंगू तेली रोजगार गारंटी योजना '' कर दे....मात्र १२० रुपया प्रतिदिन मजदूरी देने वाले इस योजना में महात्मा गांधी का नाम जोड़कर न सिर्फ मजदूरों का अपितु गांधी जी का भी अपमान किया जा रहा है।

सोमवार, 7 नवंबर 2011

मुझे भारतीय होने पर गर्व है

www.mediaaagblogspot.com (मेरे विचार)

महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि. वर्धा में विदेशी शिक्षको के लिए हिंदी प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन 31 अक्टूबर कों किया गया. जिसका उद्घाटन विवि के कुलपति विभूति नारायण ने किया . दस दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला में देश के हिंदी विशेषज्ञ, विदेशी शिक्षको कों हिंदी की बारीकियो के बारे में और हिंदी पढ़ाने के लिए किस तरह की दिक्कते सामने आती है. इन सब बातो पर चर्चा जारी है. न्यूजीलेंड से आई भारतीय मूल की सुनीता नारायण जो न्यूजीलेंड के वेलिंग्टन हिंदी स्कूल में पढ़ाती है. सुनीता इस कार्यशाला के ज़रिए हिंदी की बारीकियो कों सीख रही है. विवि में एम. फिल. जनसंचार के शोधार्थी ललित कुमार कुचालिया की " सुनीता नारायण" से एक खास बातचीत -

प्रश्न - न्यूजीलेंड में हिंदी भाषा कों लेकर किस तरह की मान्यता है ?

उत्तर - न्यूजीलेंड में सभी लोग हिंदी से परिचित है अभी वहा पर हिंदी की ऐसी कोई औचारिक पढाई तो नहीं है लेकिन इतना ज़रूर है जो लोग यह जानते है की भारत में हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाती है. वही लोग हिंदी कों मान्यता देते है .

प्रश्न - न्यूजीलेंड में पढाई जाने वाली हिंदी अन्य देशो के मुकाबले किस तरह से भिन्न है ?

उत्तर - जैसा की मैंने पहले कहा की हिंदी की अभी कोई ओपचारिक पढाई तो नहीं है लेकिन 9 से 10 कुछ छोटी - २ सामुदायिक , पाठशालाए है जहा अलग से हिंदी पढ़ाने के लिए हर शनिवार और रविवार की शाम कों क्लास लगती है . इसके आलावा कही - कही पर युवा और बड़े लोगो कों हिंदी पढ़ाने के लिए अलग से क्लासे चलती है. और रही बात अन्य देशो के मुकाबले हिंदी पढ़ाने की तो हिंदी भाषा कों पढ़ाने के लिए हर देश तरह-२ की तकनीके अपनाता है . ये तो छात्रो पर निर्भर करता है कि वो किस तरह से पढ़ते है.

प्रश्न - कितने ऐसे संस्थान है जो हिंदी कों प्राथमिकता देते है ?

उत्तर - कुछ पाठशालाओ के अलावा धार्मिक, सामाजिक संस्थाए है जो धर्म, सभ्यता और संकृति के साथ भाषा कों भी जोड़ देते है. धार्मिक संस्थाए रोमन लिपि में लिखकर बच्चो कों हिंदी सीखाती है. कभी- कभी जब मै उनका प्रोत्साहन करने की लिए वहा जाती हूँ और उनको देवनागरी में लिख कर बताती हूँ तो वो बड़े ही खुश होते है.

प्रश्न - न्यूजीलेंड का मीडिया हिंदी से किस तरह जुडा है, चाहे वह प्रिंट मीडिया या फिर इलेक्ट्रोनिक मीडिया हो या कोई अन्य जनमाध्यम ?

उत्तर - न्यूजीलेंड में ऐसा कोई न्यूज़ पेपर नहीं है जो हिंदी से जुडा हो लेकिन हाँ इतना ज़रूर है. मोर्य चैनल पर कभी कभी हिंदी की फिल्मे दिखाए जाती है और कुछ ऐसे क्षेत्रीय टीवी चैनल है जिन पर भारत से प्रसारित होने वाले ज़ी टीवी के लगभग सभी कार्यक्रम दिखाए जाते है. ज़ी टीवी की लोकप्रियता वहा भारतीयों के बीच सबसे अधिक है, बहुत से लोग ज़ी टीवी पर आने वाले सीरियल से ही जुड़े रहते है.

प्रश्न - न्यूजीलेंड के लोगो में हिंदी की दिलचस्पी किस तरह की है ?

उत्तर - मुझे कभी - कभी यह सुनकर बड़ा ही अजीब लगता है कि हमारे भारतीय लोग हिंदी कों उतनी सहजता से नहीं लेते जितना उन्हें लेना चाहिए. उन्हें लगता है कि अगर हम हिंदी नहीं सीखेंगे तो हमारा सिर ऊँचा नहीं होगा लेकिन ऐसा नहीं है. आप ज़रा सोचिए में जिस देश में रहती हूँ वहा हिंदी रोज़ तो इस्तेमाल नहीं होती लेकिन जो लोग हिंदी में विश्वास करते है वो अपने बच्चो कों और अपने आपको इसमें लीन रखते है .

प्रश्न - न्यूजीलेंड में रहने वाले भारतीय अपने त्योहारों कों किस तरह से मनाते है ?

उत्तर - मै खुद एक भारतीय होने के नाते अपने सभी त्योहारों कों भारतीय परंपरा के अनुसार मनाती हूँ. न्यूजीलेंड में सभी लोग अपने-२ त्योहारों कों बड़ी ही धूम धाम से मनाते है. न्यूजीलेंड के आकलेंड, वेलिंग्टन,किंग्स्टन जैसे शहरों में दीवाली के मौके पर मेले लगते है. ये सभी योजनाए वही के लोगो दुवारा तय की जाती है. न्यूजीलेंड की "Aozia Newzealand Foundation" संस्था जिसको वहा की सरकार दुवारा फंडिंग किया जाता है. वही इस तरह के कार्यक्रमों की योजना बनाती है, जो चीनी और भारतीय त्योहारों कों बड़ा ही महत्व देती है. दुर्गा नवरात्रों में वहा के बाज़ार भारतीय बाजारों की तरह सजाए जाते है. तभी तो सभी त्यौहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाये जाते है. किसी भी तरह का ऐसा कोई कोई बंधन नहीं है चाहे होली का त्यौहार हो, या फिर ईद , बैशाखी का त्यौहार ही क्यों न हो ? मै तो यह मानती हूँ कि भारत से दूर रहकर अपने त्योहारों कों मनाने का अलग ही मजा होता है.
प्रश्न - हिंदी पढानें में न्यूजीलेंड के सामने किस तरह की दिक्कते है ?

उत्तर- दिक्कते तो बहुत है सही ढंग से जो पढाना है. हम मोरिशस, फिजी और भारत से जो पाठ्यक्रम मंगाते है हमें उस पर कई बार विचार विमर्श करके सोचना पडता है कि बच्चे हिंदी सीख भी पाएंगे की नहीं, सब कुछ अंग्रेजी माध्यम होने के कारण उनको हिंदी पढ़ा पाना बहुत ही मुश्किल है. इस बार से खोली गई तीन शाखाओ में से एक शाखा जिसमें हिंदी पढने छात्रो की संख्या बढती जा रही है. हमारे पास सामग्री है पर हिंदी पढ़ाने के लिए उतने टीचर नहीं है. कभी- कभी तो मै सोचती हूँ कि ये सब कैसे हो पाएंगा? लेकिन जैसे - तैसे करके में इसका समाधान निकाल लेती हूँ .
प्रश्न - कितने ऐसे संस्थान है जहा हिंदी कि पढाई होती है ?

उत्तर- देखिए जैसाकि मैंने पहले कहा था कि 9 से 10 छोटी - छोटी ऐसी पाठशालाए चलती है जहा पर हिंदी की पढाई होती है. न्यूजीलेंड का सबसे बड़ा नगर आकलेंड जहा सबसे अधिक भारतीय ही रहते है. हिंदी पढने वालो कि तादात यहाँ लगभग 500 से 600 है. मै जिस वेलिंगटन हिंदी स्कूल में पढ़ाती हूँ वहा पर भी काफी तादात में लोग हिंदी पढ़ाने के लिए आते है . इस बार हमने अलग - २ शहरों में तीन शाखाए खोली है जिसमे हिंदी की पढाई होती है.

प्रश्न - भारत - न्यूजीलेंड के संबंध आप किस तरह से देखती है ?

उत्तर - न्यूजीलेंड के लोग भारत कों बहुत ही पसंद करते है. इसीलिए जब में अपने छात्रो से पूछती हूँ कि आप हिंदी क्यों सीखना चाहते हो तो वे कहते है कि हम हिंदी सीखकर भारत में आगे की पढाई करना चाहते है और हम भारत कों प्रेम भी करते है. अगर व्यापार की द्रष्टि से देखे, तो दोनों देशो के बीच आपसी संबंध कुछ वर्षो में ओर भी बेहतर हुए है. न्यूजीलेंड के प्रधानमंत्री जॉन के जब भारत यात्रा पर आए तो वहा के लोगो कों भारत से ओर भी ज्यादा उम्मीद बांध गई . कितने ही ऐसे एनजीओ है जो भारत आकर अपनी सेवा देते है. जब गैर भारतीयों लोगो कों में भारत से जुड़ा हुआ पाती हूँ, तो मुझे बहुत ही ख़ुशी होती है.


प्रश्न - जैसाकि आप ने पहले बताया की मै खुद एक भारतीय हूँ फिर आपका न्यूजीलेंड कैसे जाना हुआ ?

उत्तर - मेरे पूर्वज यूपी के प्रतापगढ़ जिले के पथरा गाँव से थे जो बहुत पहले ही फिजी में आकर बस गए थे। मै उनकी तीसरी पीढी से हूँ. पिछली बार जब में अपने गाँव गई तो अपने परिवार वालो के बीच पाकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा. अब मै बार - बार अपने गाँव आना चाहती हूँ, क्योंकि मुझे भारतीय होने पर बड़ा ही गर्व महसूस होता है कि भारत से दूर रहकर मै विदेश में हिंदी पढ़ाती हूँ.


www.cavstodayblogspot.com से बातचीत करने के लिए आपने समय निकला इसके लिए आपका बहुत - शुक्रिया

- जी धन्यवाद


" BENGAL SWEET ATTRACT THE VISITOR WHO COME KOLKATA TO SEE BANGALA SOIL BEAUTY "

Every time busy kolkata avenue, has something that's attract those who come here first to spent their holiday with his pal, as a out of dweller ,because the culture of city is very lovingly along with here two variation make people for thinks on a lot. one is beauties of meyer chok " eye of bangala girl" and another is sweet of the city which found every corner of the street, that's why kolkata called sweetest city of city pent. so without more narration by word, i want to see you some kolkata misitee " sweet"...... I was ate,those sweet before joining media profession because ever since i did not get time to stay a long and where i am right now there do not get as like as kolkata quality, so i miss too my city sweet everyday.....














शनिवार, 5 नवंबर 2011




¢òxÉ VÉÉä ºÉÊnùªÉÉäÆ iÉEò ªÉÉnù ®úJÉÉ VÉɪÉäMÉÉ.....iÉä®úÉ ºÉɪÉÉ....Ênù±É ½Úþ¨É-½Úþ¨É Eò®äú...

ʽþxnÖùºiÉÉxÉÒ ºÉÆMÉÒiÉ Eäò ºÉÖ|ÉʺÉrù MÉɪÉEò +Éè®ú +ºÉʨɪÉÉ ±ÉÉäEò MÉÒiÉÉäÆ Eäò ºÉ®úiÉÉVÉ ¦ÉÖ{ÉäxÉ ½þWÉÉÊ®úEòÉ EòÉ +ÉVÉ ¨ÉÖ¨¤É<Ç ÎºlÉiÉ EòÉäÊEò±ÉɤÉäxÉ vÉÒ°ü¦ÉÉ<Ç +¨¤ÉÉxÉÒ +º{ÉiÉÉ±É ¨ÉäÆ ÊxÉvÉxÉ ½þÉä MɪÉÉ. ´ÉÉä 86 ºÉÉ±É Eäò lÉä, VÉÉä Ê{ÉUô±Éä EÖòUô ÊnùxÉÉäÆ ºÉä ¤ÉÒ¨ÉÉ®ú SÉ±É ®ú½äþ lÉä. º´ÉMÉﻃ ½þWÉÉÊ®úEòÉ EòÉ VÉx¨É 8 ʺÉiÉƤɮú 1926 EòÉä +ºÉ¨É Eäò ºÉÉÊnùªÉÉ ¨ÉäÆ ½Öþ+É lÉÉ. +{ÉxÉÒ |ÉÉ®úΨ¦ÉEò ʶÉIÉÉ +ºÉ¨É ¨ÉäÆ {ÉÚ®úÉ Eò®úxÉä Eäò ¤ÉÉnù ´É½þ +¨ÉäÊ®úEòÉ SɱÉä MɪÉä, ´É½þÒÆ =x½þÉäÆxÉä EòÉä±ÉΨ¤ÉªÉÉ Ê´É·ÉÊ´ÉtÉ±É ºÉä ¨ÉÉìºÉ Eò¨ªÉÖÊxÉEäò¶ÉxÉ ¨ÉäÆ {ÉÒ.BSÉ.b÷Ò EòÒ, <ºÉEäò iÉÖ®ÆúiÉ ¤ÉÉnù =x½äþÆ Ê¶ÉEòÉMÉÉäÆ Ê´É·ÉÊ´ÉtÉ±ÉªÉ EòÒ +Éä®ú ºÉä ¡äò±ÉÉäÆʶÉ{É ¦ÉÒ Ê¨É±É MÉ<Ç. ªÉ½þÉÆ ´É½þ ʺÉxÉä¨ÉÉ Eäò Ê´ÉEòÉºÉ Ê´ÉÊvÉ EòÉ MɽþxÉiÉÉ ºÉä +vªÉªÉxÉ ÊEòªÉä. {ÉgøÉ<Ç JÉi¨É Eò®úxÉä Eäò ¤ÉÉnù ´ÉÉä ¨ÉÖ¨¤É<Ç +ɪÉä +Éè®ú ʽþxÉnÖùºiÉÉxÉ Eäò ®ÆúMɨÉÆSÉ Eäò Ê´ÉʦÉzÉ ®äúMÉÉäÆ EòÉä ºÉ¨ÉZÉxÉä Eäò ¤ÉÉnù <Îxb÷ªÉxÉ Ê{É{ɱºÉ lÉä]õ®ú ¨ÉڴɨÉäÆ]õ, +É<Ç.{ÉÒ.]õÒ.B , ºÉä VÉÖcä÷, <ºÉ nùÉè®úÉxÉ

BEò ¤ÉÉ®ú EòÒ ¤ÉÉiÉ ½èþ, ½äþ¨ÉÆiÉ nùÉ +Éè®ú ½þWÉÉÊ®úEòÉ ¤ÉɤÉÚ BEò ºÉÉlÉ Eò±ÉEòkÉÉ ÊEòºÉÒ ¤ÉÆMɱÉÉ Ê¡ò±¨É Eäò |ÉÉä¨ÉÉä¶ÉxÉ {ÉÉ]õÔ ¨ÉäÆ {ɽÖþÆSÉä ½ÖþB lÉä, =ºÉ {ÉÉ]õÔ ¨ÉäÆ ¤ÉÆMÉɱÉÉ Ê¡ò±¨É Eäò ¨É½þÉxÉɪÉEò =kÉ¨É EÖò¨ÉÉ®ú ¦ÉÒ {ɽþ±Éä ºÉä ¨ÉÉèVÉÚnù lÉä, <ºÉÒ ¤ÉÒSÉ ½äþ¨ÉÆiÉ nùÉ EòÉä =kÉ¨É EÖò¨ÉÉ®ú näùJÉiÉä ½þÒ =xÉEòÒ +Éä®ú {ɽÖþÆSÉä iÉÉä ½äþ¨ÉÆiÉ nùÉ xÉä ½þWÉÉÊ®úEòÉ ºÉä =xÉEòÒ ¨ÉÖ±ÉÉEòÉiÉ Eò®úÉ<Ç +Éè®ú =xÉEòÉ {ÉÊ®úSÉªÉ ÊnùªÉÉ Ê¡ò®ú iÉÉä CªÉÉ lÉÉ, =kÉ¨É EÖò¨ÉÉ®ú +Éè®ú ½þWÉÉÊ®úEòÉ Eò¤É BEò nÚùºÉ®äú ºÉä

Era passed away, we cuold not forgot the Hazarika sure taan

Legendary Indian singer Bhupen Hazarika, who composed music for hundreds of films, has died. He was 86 and had been in poor health for months.

Hazarika composed music, wrote lyrics and sang for hundreds of films in the Hindi and Bengali languages. He popularized folk tunes from the remote northeastern state of Assam where he was born. He also wrote several books, essays and poems and directed several films.

He was admitted to Kokilaben Dhirubhai Ambani hospital in June. Hospital spokesman Jayanta Saha said Hazarika died there of multiple organ failure.

Bhupenda, as he is lovingly called by millions, is recognised by many as one of the greatest cultural figures that Assam has produced, next only to Sri Sri Sankaradeva, the Vaishnavite preacher of the 15th century, and Rupkonwar Jyoti Prasad Agarwalla, the early 20th-century singer-composer.

Bhupenda is without doubt one of the greatest living cultural communicators of South Asia. He has swayed millions with the power and passion of his voice, and the message of universal brotherhood and humanism, which comes through in his songs. He has a genius for weaving a magical tapestry out of traditional Assamese music and lyrics, breathing new life into the language, synthesising old and new strands of music, and instilling a sense of pride among the inhabitants of the Brahmaputra valley. The waterways of Assam have been a the source of inspiration for Hazarika’s songs and lyrics all these years.

Bhupen Hazarika was born in 1926, in Sadiya, Assam. An extremely academically prolific person, he did his Inter (Arts) in Guwahati in 1942, and went on to Banaras Hindu University to complete his B.A. in 1944 and his M.A. in Political Science in 1946.Hazarika showed signs of early musical genius even before he started singing on All India Radio in 1937, at the age of eleven. As a young adult, he swiftly made his mark as singer and composer. Soon after, he left for New York, USA where he lived for five years and received his doctorate (PhD) in Mass Communication from Columbia University. He also received the Lisle Fellowship from Chicago University, USA to study the use of educational project development through cinema.

Few know that, during his time at Columbia University, Hazarika was a friend of Paul Robeson, the great black American singer, actor and civil rights activist. Robeson’s passionate crusade for social justice and black pride has permeated Bhupenda’s own worldview. Inspired greatly by Robeson’s powerful rendition of the song “Ole Man River”, Hazarika created his own moving ode to the Brahmaputra.

Bhupen came to Mumbai to work in the Indian People’s Theatre Movement (IPTA) with Salil Chowdhury, Balraj Sahni and other Marxist intellectuals. At IPTA he met Hemant Kumar took him around to meet all the big music directors and singers in Mumbai. He wanted Lataji to sing a song for his first film as a director, Tunes From The Deserted Path about a moonlit night in Assam. And she did it. The song became so famous she selected it as one of her personal favourites in her first golden disc. Incidentally with Hemant da Bhupen met Uttam Kumar. Uttam Kumar insisted him to sing a song in his film.Fortunately the song Sagor sangame became very famous. Later Gulzar translated it into Hindi in album Main Aur Mera Saaya. Bhupen Hazarika began his career in films as a child actor in the second talkie film to be made in the pioneering years of 1939 in the film 'Indramalati'.

He has rendered music, written lyrics and sung for numerous Assamese 'Era Batar Sur' in 1956, 'Shakuntala' in 1960, 'Pratidhwani' in 1964, 'Lotighoti' in 1967, 'Chick Mick Bijuli' in 1971, 'Mon Projapati' in 1978, 'Swikarokti' in 1986, 'Siraj' in 1988., Bengali and Hindi films from 1930s to the 1990s. Bhupen Hazarika has scored music and sung for the highest number of Assamese films made in the past 40 years.He also directed, and composed music for Arunachal Pradesh’s first Hindi feature film in colour 'mera Dharam Meri Maa' in 1977. He directed a colour documentary for the Arunachal Pradesh Government on Tribal folk songs and dances entitled 'For Whom The Sun Shines' in 1974.

His remarkable popularity brought him to the legislative Assembly as an Independent member between 1967 to 1972, where he was solely responsible for installing the first state owned film studio of its kind ever, in India in Guwahati, Assam. He has also headed the Assam Sahitya Sabha, the literary bastion of the Brahmaputra valley’s dominant civilisation.

He has directed music in outstanding Bengali films, such as 'Jiban Trishna', 'Jonakir Alo', 'Mahut Bandhure', 'Kari o Komal', 'Asamapta', 'Ekhane Pinjar', 'Dampati', 'Chameli Memsaab', 'Dui', 'Bechara', and Hindi films like 'Arop', 'Ek Pal', and 'Rudaali'starring Dimple Kapadia, Raj Babbar, Amjad Khan and Rakhi. He has in 1995 given music for Sai Paranjype’s Hindi feature film 'Papiha' and Bimal Dutt’s Hindi feature film 'Pratimurti'.In 1996 he has composed music for Plus Channel’s Hindi feature film 'mil Gayee Manzil Mujhe' directed by Lekh Tandon starring Meenakshi Sheshadri.In 1996 he has also composed for Plus Channel’s Hindi feature film 'Saaz' directed by Sai Paranjype starring Shabana Azmi.In 1996 he has composed music for Pan Pictures Hindi feature film 'Darmiyaan' starring Kiron Kher and Tabu directed and written by Kalpana Lajmi.In 1998 he has composed music for Hindi feature film 'Gajagamini' Written and Directed by eminent painter Mr. M. F. Hussain.

He has also produced another 18-part documentary entitled 'Glimpses of the Misty East' on the socio economic and cultural progress in North Eastern India from 1947 to 1997, assigned to him by the Ministry of Information and Broadcasting Govt. of India for celebration of Fifty years of India’s Independence.

Hazarika is cherished in Dhaka as much as he is in Guwahati. His song on the war of Bangladesh’s freedom, “Joi Joi Naba Jata Bangladesh” (hail the newborn Bangladesh), is a stirring marching tune which was on every Bengali’s lips during those harrowing days. His songs are not limited to Assamese and Bengali, and Bhupenda’s rich baritone is equally at ease with Hindi, Urdu and English.Whereas he had been a legend in Eastern India for decades, it was his compositions for the film Rudali which won Hazarika recognition across the Subcontinent. At the age of 70, he retains the energy of a much younger man, and he is presently working on a television serial on the freedom movement in Assam.

In 1994, he was awarded the Dada Saheb Phalke Award, the highest award in India for contribution to films. He has won the President’s National Award for the best filmmaker thrice: for 'Shakuntala', 'Pratidhwani', and 'Loti Ghoti' in 1960, 1964 and 1967 respectively. He won the Arunachal Pradesh Government’s Gold Medal in 1977 for his outstanding contribution towards Tribal Welfare, and Upliftment of Tribal Culture through cinema and music. He also won the National Award as best music composer in India in 1977 for the Assamese film 'Chameli Memsaab'.

Dr. Bhupen Hazarika has been the Chairman, Eastern Region on the Appellate Body of the Central Board of Film Censors, Government of India for 9 years consecutively tell 1990. He is on the Script Committee of the National Film Development Corporation, Eastern India.He is the director on the national level on the Board of Directors of National Film Development Corporation, Government of India. He was the Executive Council Member of the Children Film Society (N’CYP) headed by Mrs. Jaya Bachchan. He is the member of the Board of Trustees for the Poor Artists Welfare Fund, Government of India. He was the Chairman of the Jury of the National Film Awards in 1985 and was a jury member several times from 1958 to 1990. He was also a member of P.C. Joshi Committee appointed by the Information Ministry for revitalizing software programming through television for the coming 21st century.He is at present on the Governing Council for policy making decisions for the Film and Television Institute, Government of India, Pune.

Awards And Honors:

Padamshree Award - 1977 Was awarded a Gold Medallion in New York as the best interpreter of India’s folk songs by Eleanor Roosevelt. one Company of India bestowed on him the Gold Disc for his outstanding contribution towards Indian Music - 1978, Ritwick Ghatak Award as best music directors for two theatre plays 'Mohua Sundari' and 'Nagini Kanyar Kahini' - 1979 and 1980, All India Critic Association Award - 1979, National Citizen’s Award - 1987, Sangeet Natak Academy, New Delhi awarded him for outstanding contribution towards Indian music - 1987, 'Indira Gandhi Smriti Purashkar' by Bengal Journalist’s Association - 1987, First Indian Music Director for best music Internationally for the film 'Rudaali' at the Asia Pacific International Film Festival at Japan - 1993, Dada Saheb Phalke Award - 1994.

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

culprit cricket, make sentencing for all youngstar why ?????

Today need for exhumation of culprit cricket and who found guilty under the investigation, very soon they would be punished without any asking question, because many and more pleaded are exploring in our society whom we do not know that they really involve between the fixing under.
infact today trio of pakistani cricketer has been sentenced by landon central court for making their conspiracy crime and fixing the game, but question arise here that only who caught under the investigation those are last, it will be not again continued.

इंदिरा गाजिएवा से बातचीत / सोवियत संघ के विघटन के बाद भारतीय भाषाओं की स्थिति अच्‍छी हुई



www.mediaagblogspot.कॉम मेरे विचार


म.गा.अं. हि. विवि. वर्धा में विदेशी शिक्षको के लिए हिंदी प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन ३१ अक्टूबर कों किया गया.. दस दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला में देश के हिंदी विशेषज्ञ ईन विदेशी शिक्षको कों हिंदी की बारीकियो के बारे में बतायंगे. कार्यशाला में हिस्सा लेने आई रूस की इंदिरा गाजिएवा जो रूस के रुसी मानवीय सरकारी विवि में हिंदी पढ़ाती है. इस खास मौके पर एम. फिल. जनसंचार के शोधार्थी ललित कुमार कुचालिया ने " इंदिरा गाजिएवा " से बातचीत की. उसी के कुछ अंश --


प्रश्न - रूस में हिंदी के प्रति युवाओ में किस तरह की लोकप्रियता है ?


उत्तर - जहा तक लोकप्रियता का सवाल है सबसे पहले तो मै यह कहना चाहती हूँ रुसी लोगो कों भारतीय संस्कृति अच्छा लगना. दूसरा दोनों देशो के आपसी मैत्री संबंध अच्छे होना, ये दोनों ही बाते उनको भाँति है. लेकिन रुसी लोग जब भारत आते है चाहे टूरिस्ट के उद्देश्य से आए, चाहे व्यापार के उद्देश्य से आए या फिर पढाई के उद्देश्य से भारत आए तो कही न कही ये सब चीजे उनको अपनी और आकर्षित करती है. इसीलिए वहा के युवाओ मै हिंदी के प्रति काफी लोकप्रियता बनी हुई है .


प्रश्न - सोवियत संघ के दौरान रूस मै हिंदी और उर्दू के काफी स्कूल थे लेकिन अब क्या स्थिति है?


उत्तर - देखिए जब से सोवियत संघ अलग हुआ है तब से स्थिति में काफी सुधार आया है. इससे पहले रूस के कई स्कूलों में हिंदी, उर्दू पढाई जाती थी लेकिन अब इनके अलावा भारत में बोली जाने वाली तमिल, बंगला, और मराठी भाषाए रूस के छ: विवि में पढाई जाती है. आप देखिए की सोवियत संघ के खत्म होने बाद कितनी भाषाए रूस में पढाई जाने लगी जबकि पहले ऐसा संभव नहीं था. और मै तो मानती हूँ की रूस के लिए यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है .


प्रश्न - रूस में हिंदी कों पढ़ाने के लिए हिंदी व्याकरण - अनुवाद के किस ढ़ाचे का उपयोग किया जाता है ?


उत्तर - रूस में हिंदी पढ़ाने के लिए इतने टीचर ही कहा थे कम ही लोग थे जो हिंदी साहित्य के बारे जानकारी रखते थे लेकिन आज भी हिंदी पढ़ाने के हिंदी साहित्य का सहारा लिया जाता है. कुछ वर्षो में हिंदी व्याकरण और अनुवाद का ढ़ाचा एक मौखिक रूप धारण का चुका है. लोग मौखिक ही बोलना चाहते है लिखना नहीं इसीलिए रुसी के युवा 6 महीने या एक साल में ही हिंदी सीखने की लालसा रखते है. एक तरह से देखा जाए तो हिंदी सीखने कों लेकर उनमे होड़ मची है. हिंदी पढ़ाने के लिए पाठ्य पुस्तक अमेरिका , ब्रिटेन से मंगाई जाती है लेकिन जो किताबे रुसी विद्वानों दुवारा लिखी गई उनकी हिंदी कुछ अलग ही तरह की है जिसको पढ़ाने में दिक्कत आती है लेकिन अब ऐसा नहीं है


प्रश्न - रुसी मीडिया का हिंदी भाषा के प्रति क्या नजरिया है ?


उत्तर - कोई ऐसी खबर , सूचना, जानकारी है की हिंदी विश्व भाषा होनी चाहिए . मै एक हिंदी टीचर होने के नाते इस बात से सहमत हूँ की या फिर मेरी दूसरी राय है कि भविष्य में शुद्ध इंग्लिश और हिंदी नहीं चलने वाली. बल्कि हिंग्लिश भाषा प्रचलन में आएगी जिसको इंग्लिश और हिंदी से मिलाकर बनाया जायेगा. शुद्ध हिंदी तो साहित्य में ही सिमट कर रह जाएगी. हिंग्लिश का ही भविष्य उज्जवल है. बीस सालो के दौरान रुसी भाषा एकदम परिवर्तन आया है. क्योंकि ये सब सूचना तकनीकी क्रांति की देन है. आप देखेंगे रुसी मीडिया में हर महीने हिंग्लिश भाषा के शब्द देखने और सुनने कों मिल जायेंगे. वहा की न्यूज़ पेपर, इंटरनेट न्यूज़ पोर्टल और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में भी हिंग्लिश के शब्द काफी प्रचलित है.


प्रश्न - भारतीय खबरों कों रूस में किस तरह से पेश किया जाता है ?


उत्तर - जब तक सोवियत संघ था तब वहा पर कम्युनिस्ट न्यूज़ पेपर चलता था जिसका नाम "जनयुग" था जो ज्यादातर भारतीय खबरों कों प्राथमिकता देता था. लेकिन उस न्यूज़ पेपर कों केवल वही लोग पढ़ते थे जो हिंदी पढना और बोलना जानते थे. हाल ही में रूस में इस तरह का कोई न्यूज़ पेपर नहीं है जो भारतीय खबरों कों प्राथमिकता दे. भारत में जब से टीवी की शुरुआत हुई उसी दौरान से भारतीय खबरों कों इंटरनेट के ज़रिए उठाकर दिखाया जाता है.



प्रश्न - भारत की कला संस्कृति से आप कितनी प्रभावित है?



उत्तर- भारतीय कला संस्कृति के बारे मै बंया कर पाना थोडा ही मुश्किल है विषय ही इतना बड़ा है. वैसे हर हफ्ते मास्को के रूसी-भारतीय सांस्कृतिक संगठन "दिशा", भारतीय दूतावास, सेंट्स पिटरबर्ग में भारतीय कला संस्कृति के कार्यक्रमों कों हम लोग देखने के लिए जाते है. जो लोग नृत्य, कलाकार वहा आते है. उनको देखते है, उनके बारे में पढ़ते है. उनसे काफी कुछ सीखने कों मिलता है. अभी एक दो महीनो से मास्को में कला संस्कृति के कार्यक्रम हो रहे है भारत के अलग -२ प्रदेशो के कलाकार वहा पर कार्यक्रम कि प्रस्तुति दे रहे है.


प्रश्न - भारत- रूस के संबंध के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी ?


उत्तर- देखिए हम दोनों देश हमेशा से एक भाई - बहन की तरह है. रुसी लोग, जो अब सोवियत संघ में चले गए है वो भी भारत कों काफी मानते है. जब हम लोग जनवरी में गोवा घूमने, हिंदी दर्शन सीखने या नृत्य सीखने की लिए यहाँ आते है तो हम आपने आपको कंही न कही भारत से जुड़ा हुआ पाते है. इसीलिए में कहूँगी कि भारत और रूस के संबंध हमेशा से अच्छे है.


प्रश्न - रूस के कितने विवि में हिंदी पढाई जाती है ?


उत्तर - रूस के छ: विवि में हिंदी पढाई जाती है जो राज्य सरकार के अधीन है .



www.cavstoday से बातचीत करने के लिए आपने समय निकला इसके लिए आपका बहुत -२ शुक्रिया .

- इंदिरा गाजिएवा - जी धन्यवाद

बुधवार, 2 नवंबर 2011

ठाकरे की सेना में बेगाने मनोहर .......

http://www.boltikalam.blogspot.com/



महाराष्ट्र की राजनीती को अगर करीब से समझने का कभी मौका आपको मिला होगा तो कांग्रेस के बाद शिवसेना का गढ़ यहाँ की राजनीती एक दौर में हुआ करती थी....इसे राम लहर में सवार होने की धुन कहे या सियासी बिसात के आसरे "आमची मुम्बई" के नारे देकर वोट लेने का नायाबफ़ॉर्मूला ....शिवसेना ने उस दौर में लोगो के बीच जाकर अपनी पैठ को जिस तरीके से मजबूत किया इसने कांग्रेस के सामने पहली बार चुनौती पेश की और महाराष्ट्र की राजनीती में सीधे दखल देकर भाजपा के साथ पहली बार गठबंधन सरकार बनाकर कांग्रेसियों के होश फाख्ता कर दिए थे.......




मराठी मानुष के जिस मुद्दे के आसरे शिव सेना ने उस दौर में बिसात बिछाई थी बहुत कम लोग शायद ये बातें जानते है उस दौर में बाला साहब ठाकरे के साथ मिलकर मनोहर जोशी ने शिवसेना का राज्य में मजबूत आधार तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ..... परन्तु आज वही मनोहर जोशी पार्टी में हाशिये में है...... मनोहर जोशी ने अपने समय में ना केवल महाराष्ट्र की राजनीती में अपना एक ऊँचा मुकाम बनाया बल्कि शिवसेना का वोट बैंक बढाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.......पार्टी की भलाई के लिये उन्होंने कभी किसी पद की चाह नहीं रखी ... हाँ, ये अलग बात है पार्टी ने उन्हें जो भी काम सौपा उसे उन्होंने वफादारी के साथ पूरा किया......


२ दिसम्बर १९३७ को महाराष्ट्र के एक मध्यम वर्गीय ब्रह्मण परिवार में जन्मे जोशी के राजनीतिक कैरियर की शुरुवात आपातकाल के दौर में हुई॥ उस दौर में मुंबई के मेयर की कमान उनके हाथो में रही......१९९० में शिवसेना के टिकट पर उन्होंने पहली बार विधान सभा का चुनाव जीता ...९० के दशक में ही भाजपा के साथ मिलकर जब शिव सेना ने राज्य में पहली बार गठबंधन सरकार बनाई तो मनोहर गजानन जोशी को राज्य के १५ वे मुख्यमंत्री की कमान मिली......इसी दौर में छगन भुजबल ने शिव सेना को अलविदा कहा था और यही से जोशी का नया सफ़र शुरू हो गया ......


1999 में बाला साहब ठाकरे ने उन्हें मध्य मुंबई से चुनाव लड़ाया जहाँ से वह भारी मतों से विजयी हुए ....... इसके बाद उन्होंने शिव सेना के कद को राष्ट्रीय राजनीती में बढाया......यही वह दौर था जब जोशी को लोक सभा अध्यक्ष के पद पर बैठाया गया ..... उस दौर की यादें आज भी जेहन में बनी है ...... मनोहर के इस कार्यकाल ने लोकसभा के इतिहास में एक नयी इबादत लिख दी...... अपनी समझ बूझ से उन्होंने जिस अंदाज में लोक सभा चलायी उसकी आज भी सभी पार्टियों के नेता तारीफ किया करते थे ......


2001 में मनोहर को पार्टी ने केंद्र में भारी ओद्योगिक मंत्री की जिम्मेदारी से नवाजा जिसे उन्होंने बड़ी शालीनता के साथ निभाया ....... लेकिन इसके बाद मनोहर के सितारे गर्दिश में चले गए... २००४ में मनोहर को कांग्रेस के एकनाथ गायकवाड के हाथो मुह की खानी पड़ी ..... इसके बाद पार्टी ने २००६ में उनको राज्य सभा में बेक डोर से संसद में इंट्री दिलवा दी.....


बाला साहब ठाकरे के राजनीती से रिटायरमेंट के बाद मनोहर जोशी का राजनीतिक सिंहासन डोलने लगा...... आज हालत ये है मनोहर अपनी पार्टी में बेगाने हो चले है... पार्टी में उनकी कोई पूछ परख नहीं हो रही है...... दरअसल जब तक शिव सेना की कमान बाला साहब ठाकरे के हाथो में थी तब तक शिवसेना में मनोहर जोशी के चर्चे जोर शोर के साथ हुआ करते थे.....


शिवसेना के कई कार्यकर्ता जो इस समय मनोहर के समर्थक है वो बताते है उस दौर में अगर कोई काम निकालना होता था तो कार्यकर्ता सीधे मनोहर को रिपोर्ट करते थे ... मनोहर को रिपोर्ट करने का सीधा मतलब उस दौर में ये होता था आपका काम किसी भी तरह हो जायेगा ... राज्य की राजनीती से केंद्र की राजनीती में पटके जाने के बाद भी उन्होंने जिस शालीनता के साथ केन्द्रीय मंत्री का दायित्व निभाया उसने सभी को उनका कायल कर दिया ...


शिवसेना की राजनीती पहले "मातोश्री" से तय हुआ करती थी..... बाला साहब ठाकरे के वीटो के कारन कोई उनके द्वारा लिये गए फैसले को चुनोती नहीं दे सकता था... आज आलम ये है शिव सेना दो गुटों में बट चुकी है॥ एक मनसे है जिसकी कमान राज ठाकरे के हाथो में है जो कभी शिवसेना के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के प्रमुख हुआ करते थे.....बाला साहब की शिव सेना की कमान उद्धव ठाकरे के हाथो में है जो पार्टी को अपने इशारो पर चला रहे है॥ ऐसे विषम हालातो में कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है...


बाला साहब के समय में पार्टी के महत्वपूर्ण फैसलों पर मनोहर की राय को कभी अनदेखा नहीं किया जाता था लेकिन आज मनोहर को उद्धव भाव तक देना पसंद नहीं करते॥ पार्टी में उन्होंने अपना नियंत्रण इस कदर स्थापित कर लिया है वह महत्वपूर्ण फैसलों पर अपनी मित्र मंडली से सलाह लेना ज्यादा पसंद करते है.....ऐसे में मनोहर जोशी के भावी भविष्य को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाये अभी से शुरू होने लगी है..... विषम हालातो के मद्देनजर अभी मनोहर कोई बड़ा फैसला लेने से परहेज कर रहे है...... लेकिन समय आने पर मनोहर अपने पत्ते जरुर खोल सकते है ....


वैसे बताते चले शिव सेना से इतर उनकी अन्य दलों के नेताओ से भी काफी मधुर संबध रहे है ... राकपा में शरद पवार, विलास राव देशमुख ओर प्रफुल्ल पटेल जैसे नेता भी उनके बेहद करीबियों में शामिल है.... इसके मद्देनजर अगर वह शिव सेना से इतर किसी अन्य पार्टी में जाने की सोचे तो उनके पास सभी जगहों से बेहतर विकल्प मौजूद है......


२४ साल मराठी अस्मिता के आसरे वोटर को लुभाने की कला में माहिर इस "ब्राह्मण कार्ड " को कोई भी पार्टी आगे करने से नहीं डरेगी........ वैसे भी राजनीती संभावनाओ का खेल है ..... जो भी हो फिलहाल शिव सेना में मनोहर के सितारे बुलंदियों पर नहीं है .....लेकिन भावी राजनीती का रास्ता जोशी को अब खुद तय करना है..... अगर अपनी पार्टी में उनकी पूछ परख कम हो रही हैतो इसका असर उनकी भावी राजनीती में पड़ना तय है.....


महाराष्ट्र के पिछले विधान सभा में भी देखने में आया था उद्धव ने उनको वो सम्मान नहीं दिया जो सम्मान बाला साहब ठाकरे दिया करते थे.....ऐसे में वो उद्धव से दूरी बनाये रखे थे लेकिन ये दूरिया कब तक बनी रहेगी यह अब बड़ा सवाल बन गया है.... दूरियों को पाटना भी जरुरी है ... आमतौर पर बेहद शांत, शालीन , ईमानदार रहने वाले मनोहर जोशी को अब आगे का रास्ता खुद तय करना है..... वैसे यकीन जानिये फिलहाल महाराष्ट्र में शिवसेना में उनकी राह में कई कटीले शूल है जिनसे पार पाने की एक बड़ी चुनोती इस समय जोशी के पास है.........देखना होगा २४ साल पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरे जोशी इस बार की परीक्षा में कैसा प्रदर्शन करते है?