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बुधवार, 27 नवंबर 2019

परिनिर्वाण दिवस पर महात्मा फुले को नमन

परिनिर्वाण दिवस पर महात्मा फुले को नमन
एक भारतीय समाज सुधारक, चिंतक, लेखक, दार्शनिक, महिलाओं और दलितों के उद्धारक ज्योतिराव गोविंदराव फुले के परिनिर्वाण दिवस पर उनके कार्यों को नमन, वंदन।
वे 'महात्मा फुले' एवं 'ज्‍योतिबा फुले' के नाम से भी मशहूर हैं। उन्होंने महाराष्ट्र में सत्यशोधक समाज की स्थापना की। महिलाओं की दशा सुधारने के लिये 1848 में एक महिला स्कूल खोला। यह देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने स्वयं व अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को इस कार्य मे लगाया।
जन्म- 11 अप्रैल 1827
परिनिर्वाण-28 नवंबर 1890 पुणे महाराष्ट्र
*जिस समय महात्मा फुले शिक्षा की ज्योति जला रहे थे। उस समय स्कूल के लिये जाते इस परिवार पर जातिवादी लोग, संगठन कीचड़/गोबर फेंक रहे थे।
ऐसे महात्मा को मेरा नमन।

बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

अखण्ड भारत के निर्माता को नमन

अखण्ड भारत के निर्माता को नमन
आज भारत देश जिस नींव पर खड़ा है और अखंड रूप में विश्व में अपनी पताका फहरा रहा है। उसका अधिकांश श्रेय एक किसान के बेटे को जाता है। वे भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे। ऐसे महापुरुष, दूरदर्शी, अधिवक्ता, राजनीतिज्ञ, भारत रत्न, लौहपुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल की 144 वीं जयंती है। हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी में उनको सरदार अर्थात प्रमुख कहा जाता है। 
गरीब किसान झवेरभाई पटेल के परिवार में जन्मे सरदार बल्लभ भाई पटेल का जीवन संघर्षों से भरा रहा। वह अपनी पढ़ाई के साथ खेतों में पिता का साथ देते थे। यही कारण था कि वे 22 साल में हाईस्कूल की पढ़ाई कर पाये। बाद में कानून की पढ़ाई के लिए वे इंग्लैंड चले गये। 
खेड़ा और बारदोली किसान सत्यागृह से वे जुड़े और अंग्रेज सरकार को कर घटाने पर मजबूर कर दिया। 
562 छोटी-बड़ी देशी रियासतों को मिलाकर एक अखण्ड भारत देश का निर्माण किया। हालाँकि हैदराबाद, जूनागढ़, त्रावणकोर, जम्मू कश्मीर की रियासतों ने थोड़ी परेशानी खड़ी की, लेकिन उनकी सैनिक कार्यवाही और कूटनीति के चलते उनको भी मिला लिया गया।
1930 में जब गुजरात में प्लेग फैला तो एक दोस्त को बचाने और सेवा करने खुद पहुंच गये। उनको भी बीमारी लग गयी। महीनों बाद ठीक हुई।
राष्ट्रहित में उन्होंने आरएसएस पर 1948 में प्रतिबंध लगा दिया। क्योंकि उनको पता चला कि गांधी की मौत के बाद आरएसएस के लोगों ने जश्न मनाया था।
उनका दिल नरम था तो कठोर भी। कहते हैं कि 1909 में जब वे वकालत कर रहे थे तो पत्नी के निधन की चिट्ठी मिली। फिर भी वे विचलित नहीं हुये। वकालत पूरी करने के बाद ही उन्होंने जानकारी दी और चले गये।
राष्ट्रीय एकता दिवस की आप सबको बधाईयां। 
जन्म 31 अक्टूबर 1875 नडियाद गुजरात
अवसान-15 दिसंबर 1950 मुंबई।
ऐसे महान सपूत को ये देश नमन करता रहेगा।

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

अशफ़ाक़ उल्ला खां को नमन, वंदन।

"जाऊँगा खाली हाथ मगर, यह दर्द साथ ही जायेगा;जाने किस दिन हिन्दोस्तान, आजाद वतन कहलायेगा"।
अशफ़ाक़ उल्ला खां को नमन, वंदन।
स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी, जिन्होंने काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रामप्रसाद बिस्मिल के साथ अशफ़ाक़ उर्दू के बेहतरीन शायर थे। दोनों की दोस्ती मज़हब से ऊपर थी। दोनों एक दूसरे का सम्मान करते थे। पीठ पीछे भी कोई बुराई वे सुन नहीं सकते थे। उनमें देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी। वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। ब्रितानी हुक़ूमत ने 19 दिसम्बर 1927 को फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका दिया।
जन्म 22 अक्टूबर 1900 शाहजहांपुर
देश के सपूत को जन्मदिन पर उनको नमन, वंदन।
उनकी शायरी-
"जाऊँगा खाली हाथ मगर, यह दर्द साथ ही जायेगा;जाने किस दिन हिन्दोस्तान, आजाद वतन कहलायेगा।
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं, फिर आऊँगा-फिर आऊँगा; ले नया जन्म ऐ भारत माँ! तुझको आजाद कराऊँगा।।
जी करता है मैं भी कह दूँ, पर मजहब से बँध जाता हूँ; मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कह पाता हूँ।
हाँ, खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूँगा; औ' जन्नत के बदले उससे, यक नया जन्म ही माँगूँगा।।"

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

डॉ सोनेलाल पटेल को परिनिर्वाण दिवस पर नमन,वंदन

बोधिसत्व डॉ. सोनेलाल पटेल के महापरिनिर्वाण दिवस पर उनके कार्यों को नमन, वंदन
किसानों, कमरों के सामाजिक नेता जिन्होंने आजीवन संघर्ष किया। वो अंधविश्वास के विरोधी और सामाजिक न्याय के पक्षधर थे। उन्होंने कर्म को प्रधानता देने वाली जाति कुर्मियों में राजनैतिक चेतना पैदा की। 1994 में बेगम हजरत महल पार्क लखनऊ में हुई उनकी रैली को बीबीसी लन्दन ने सबसे बड़ी जातीय रैली बताया था। 4 नवम्बर 1995 को उन्होंने अपना दल बनाने की घोषणा की। 15 फरबरी 1999 को लाखों समर्थकों के साथ उन्होंने हिंदू धर्म छोड़कर भंते प्रज्ञानन्द से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और बोधिसत्व कहलाये।
उनकी बढ़ती ताकत को देखते हुये विरोधी घबरा गये। किसी कीमत पर उनकी बढ़ती लोकप्रियता को रोकना चाहते थे। 1999 में जब वे इलाहाबाद में रैली कर रहे थे तो साजिश के तहत मारने के इरादे से लाठीचार्ज करवाया गया। इस घटना को एक फ़ोटो पत्रकार ने कैमरे में कैद कर लिया और भाग गया। लिहाज़ा उनको जिंदा छोड़ दिया गया। हालांकि वे बच जरूर गये, लेकिन उनकी तबियत अक्सर खराब रहने लगी। 17 अक्टूबर 2009 में कानपुर में कार दुर्घटना में निर्वाण की प्राप्ति हुई। उनकी मौत की सीबीआई जांच की मांग की गयी, लेमिन ऐसा नहीं हो पाया।
ऐसी महान आत्मा को मेरा नमन, वंदन। 

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

रावण कौन है?

रावण कौन है?
रावण को न पहचानते हो, न जानते हो
और न ही पहचानना चाहते हो।
तुम मारोगे कैसे?
तुम जाति, धर्म, सम्प्रदाय में बंटे लोग हो।
तुम संघटन, पार्टी, जमात में बंटे लोग हो।
तुम मारोगे कैसे?
वह कतिथ प्रकांड विद्वान था, बिना इजाजत
स्त्री को छूना पसन्द नहीं करता था।
अब भय, ताकत, रुतबा, पहुंच दिखाकर नोंच
रहे बालिकाओं के जिस्म को,तुमने पहचाना?
बेटी, बेटियों में फर्क करने वालो,बांटने वालो,
तुम मारोगे कैसे?
रेपिस्टों, अत्याचारियों, लिंचिंग के आरोपियों
का महिमा मंडन किसने किया और क्यों?
अनाचारियों को बचाने तिरंगा रैली और जयकारे
किसने लगाये और क्यों? तुम पहचानते ही नहीं,
तुम मारोगे कैसे?
रावण अजर, अमर है। मूर्खों की जमात और
व्यवस्था, अव्यवस्था के बीच।
बुराई, अत्याचार, अनाचार, रेपिस्टों के बीच आज
उसने फिर होने का पुख्ता सबूत दिया।

सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

ऋषभ व उनकी टीम को पुनः बधाईयां

लॉ स्टूडेंट ऋषभ रंजन उनके सभी साथी जिन्होंने आरे के पेड़ों को बचाने के लिये sc में जनहित याचिका दाखिल की और सफलता मिली। जंगल को बचाने के लिये आगे आने वाले, संघर्ष करने वाले हर शख्स को बधाईयां। सासों लिये यह बहुत ही जरूरी था।
पेड़ कटना नहीं, नये पौधे रोपे जाने चाहिए। ताकि जीवन के लिये साफ वायु मिल सके। 
देश को उन्मादी युवाओं की जरूरत नहीं। ऐसे ही युवा की जरूरत है।
ऋषभ व उनकी टीम को पुनः बधाईयां। 

शनिवार, 5 अक्तूबर 2019

,,,मेरी एक दिन की कहानी नहीं है साहेब

मेरी एक दिन की कहानी नहीं है साहेब
सालों, साल का स्वयं साक्षात इतिहास हूँ मैं
बारिश, पतझड़, शीत जाने कितने मौषम आये
झुके, हिले, लहलहाये और सदा यूं ही मुस्कुराये
चिड़ियों का चहचहाना, फड़फड़ाना और उड़ना।
छांव में बैठे मूक जानवर, सब बखूबी याद है हमें
क्या लेता हूँ आपसे? कभी सोचा तो होगा आपने
बस खड़ा हूँ जड़ों को समेटे हुये कुछ गज जमीं पर
फूल, फल और इमारती लकड़ी देता हूँ मैं आपको
सांसों के लिये साफ, ताजी वायु देता हूँ मैं आपको
अपने को मिटा सब कुछ न्यौछावर करता हूँ आपको
मैं विशालकाय पेड़ हूँ, मैं विशालकाय पेड़ हूँ,
,,,मेरी एक दिन की कहानी नहीं है साहेब
#SaveAarey
#saveForest
#Savebreath
#Savelives

बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

,,,शास्त्री जी ने रखी देश की नींव

,,,शास्त्री जी ने रखी देश की नींव
गांधी भले ही विश्व भर में प्रसिद्ध हों, लेकिन देश के गृहमंत्री और दूसरे प्रधानमंत्री मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को देश कभी नहीं भुला पायेगा। उनका जीवन कठिन संघर्षों से भरा रहा। डेढ़ वर्ष में पिता का साया उठ गया। वो स्कूली दिनों में गर्म दोपहरी में भी नंगे पैर ही स्कूल जाया करते थे।
11 जनवरी 1966 को तास्कन्द रूस में सदमे से उनकी मौत हो गयी। उनके पास कर्ज से खरीदी फ़िएट कार, जिसका कर्ज वो pm बनने के बाद भी नहीं चुका पाये। बाद में उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने चुकाया। कुछ किताबें, एक लालटेन, एक बिछाने की चटाई, बैंक में मात्र 7,000 रुपये और नेहरू का दिया हुआ एक कोट ही था।
सादगी के प्रतीक रहे छोटे कद के महान व्यक्तित्व ने जय जवान, जय किसान का नारा देकर देश की नींव रखी। जिस पर ये देश खड़ा है।
वो आजीवन गरीबी में जिये और गरीबी में ही उनका अवसान हो गया।
जन्म 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय
शास्त्री जयंती की आप सबको बधाईयां। 

,,,"गांधी अब तक मरे क्यों नहीं"

,,,"गांधी अब तक मरे क्यों नहीं"
बात 1942 की है जब गांधी आजादी के लिये अनशन शुरू कर दिये। देश मे भारत छोड़ो आंदोलन जोर पकड़ चुका था। बिरतानी हुक़ूमत इससे घबराई हुई थी। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल गांधी से बहुत नाराज थे। वह तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लीनलिथगो से गांधी के अनशन पर नजर बनाये हुये थे। उनको गांधी द्वारा पानी के साथ ग्लूकोज लेने का पता चला तो उनकी जांच करवायी गयी। हालाँकि झूठ निकला। वह कहते थे ये अर्धनग्न फ़कीर मरता है तो मरने दो। एक बार तो वायसराय से पूछा कि "गांधी अब तक मरे क्यों नहीं"।
बाद में 1944 में गांधी भी चर्चिल को पत्र लिखते हैं जिसमें कहते हैं कि "मैंने सुना कि आप एक साधारण ‘नंगे फ़कीर’ को कुचल देना चाहते हो. मैं बहुत लंबे समय से फ़क़ीर होने की कोशिश कर रहा हूँ"। हालांकि चर्चिल तक यह पत्र नहीं पहुंचा।
वह दक्षिण अफ्रीका से लेकर विश्व भर में प्रसिद्ध हो चुके थे। वो अमेरिका कभी नहीं गये, लेकिन बता दूं कि दो दर्जन से अधिक स्थानों पर लगी मूर्तियां उनके कद को दिखा रही हैं। पाकिस्तान, चीन सहित 84 देशों में प्रतिमाएं स्थापित हैं। उनको मारने की 5 बार कोशिश हुई और छठवीं बार गोडसे ने गोली मार दी।
गांधी हमारी आत्मा में बसे हैं। उनको मारा नहीं जा सकता। जब-जब उनको पढ़ा जायेगा तो गोडसे और उसकी विचारधारा पर थूका जाता रहेगा।
गांधी में कुछ कमियां भी थी। सबसे बड़ी कमी थी कि वो वर्णाश्रम व्यवस्था के पक्षधर थे। मनु की इस जातिवादी व्यवस्था जिसने देश का सर्वनाश किया हो, उसका गांधी सर्मथन करते थे। वह शूद्रों को अधिकार देना ही नहीं चाहते थे। भगतसिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों को बचाने का ठोस प्रयास नहीं किया। पट्टाभिसीतारमैया की हार पर वे अपनी हार बता देते।
 कमियां के बाद भी ,,,गांधी होना आसान नहीं है।
उनके अच्छे कार्यों को नमन।
गाँधी जयंती की बधाईयां। 

रविवार, 29 सितंबर 2019

भगत सिंह को क्यों पढ़ा जाना चाहिए?

भगत सिंह को क्यों पढ़ा जाना चाहिए?
इस सवाल से पहले हम बात करते हैं कि 23 वर्षीय इस युवा एवं उनके साथी राजगुरु, सुखदेव को बचाने के लिए किसने, कितनी कोशिश की। अभिलेखागार एवं संसाधन केंद्र दिल्ली के मानद सलाहकार व भगत सिंह के दस्तावेजों के संपादक प्रोफेसर चमनलाल के अनुसार धार्मिक संगठनों, धार्मिक संगठनों से खड़े हुए राजनीतिक संगठनों ने भगत सिंह और उनके साथियों को बचाने की कोई कोशिश नहीं की।
कोशिश करने वालों में मोतीलाल नेहरु जो प्रसिद्ध वकील थे गम्भीर बीमार होने के बाद भी 31 जनवरी 1931 को लाहौर जेल में क्रांतिकारियों से मिलने गए। कानूनी सहायता उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। हालांकि भगतसिंह ने विरोध किया। फिर भी मोतीलाल नेहरू ने फांसी की सजा के खिलाफ अपील करने की तैयारी की। कागजात मंगाकर अध्ययन भी किया। 8 अगस्त 1929 को जवाहरलाल नेहरु ने भी क्रांतिकारियों से मुलाकात की थी। कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ सुभाष चंद्र बोस, वाम दलों के नेताओं ने भी बहुत प्रयास किये, लेकिन सफल नहीं हुये। भगतसिंह की लोकप्रियता से दक्षिण भारत भी अछूता नहीं था। एशिया के पैगम्बर माने जाने वाले ईवी रामास्वामी पेरियार ने भी भगत सिंह व साथियों को बचाने के लिए तमिल जनरल "कुदई अरासु" में संपादकीय लिखा। साथ ही भगत सिंह की पुस्तक "मैं नास्तिक क्यों हूं" का तमिल में अनुवाद करवाया। महात्मा गांधी ने भी 31 जनवरी 1931 को इलाहाबाद में अपने संबोधन में कहा कि मत्यु दंड वाले व्यक्ति को फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए। फांसी रोकने के लिये एक बार वायसराय से बन्द कमरे में मुलाकात भी की। बतौर प्रोफ़ेसर "गांधी की छवि और कद उस समय बहुत बड़ा था। अंग्रेज भी उनकी ताकत को भलीभाँति समझते थे। गांधी ने जितने प्रयास होना चाहिए थे, उतने नहीं किये"।
अब हम भगत सिंह को क्यों पढ़ा जाना चाहिए। इस पर बात करते हैं। "भगत सिंह के संपूर्ण लेख" पुस्तक, जिसको प्रोफेसर चमनलाल ने लिखा है। जो उनके पत्रों पर आधारित है।
इसके पृष्ठ नंबर 167 की बात करना चाहता हूं। जिसमें भगत सिंह सुभाष चंद्र बोस और नेहरू में से नेहरू को चुनने की बात करते हैं। साथ ही क्यों चुनना चाहिए, इस पर भी वे विस्तार से लिखते भी हैं और समझाते भी हैं। साथ ही पंजाब सहित अन्य युवाओं को चेताते हैं कि नेहरू के भी अंधे पैरोकार नहीं बने। जो सही लगे उसका समर्थन करें।
इसके अगले पृष्ठ पर वह धर्म पर भी जबरदस्त कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि यह बात फलां वेद, पुराण या कुरान में लिखी गई है या उसमें अच्छा बताया गया है। इस बात पर नहीं मानी जानी चाहिए। बल्कि समझदारी की परख पर साबित न हो तब तक नहीं मानी जानी चाहिए। उनके विचार आधुनिकतावादी थे। उन्होंने वर्तमान और भविष्य के भारत, राजनीति सहित कई मुद्दों पर खुलकर लिखा।
मेरे विचार:-भरत सिंह का कद उस समय गांधी से थोड़ा ही कम था। वैसे तो सम्पूर्ण देश मे वे लोकप्रिय थे, लेकिन पंजाब, हरियाणा और उससे सटे इलाकों में वे ज्यादा प्रसिद्ध थे। युवाओं के वह आइकॉन थे। शायद गांधी को इसी बात का डर रहा होगा। हालांकि भगतसिंह ने न तो अपने स्तर पर गिरफ्तारी से बचने का प्रयास किया और न ही फांसी से बचने का। वो 23 साल की उम्र में ही अपने साथी राजगुरु और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर झूल गये।
यह भी सच है कि देश आज भी उनकी उम्मीदों तक नहीं पहुंचा है जो उन्होंने सोचा था।
हालांकि देशवासियों के दिलों में वे हमेशा जीवित रहेंगे।
112 वीं जयंती पर उनको नमन। 

सोमवार, 16 सितंबर 2019

भला नाना और नानी का भी...कोई नाम होता है? वह खुद ही अपने आप में नाम और पहचान होते हैं।

भला नाना और नानी का भी...कोई नाम होता है?
वह खुद ही अपने आप में नाम और पहचान होते हैं।
खुशियों का खजाना और हर तमन्ना साकार करना उन्हें आता है।
...भला नाना का भी कोई नाम होता है। 
...भला नानी का भी कोई नाम होता है।
अधिकांश लोग और मैं भी आज तक अपने नाना, नानी का नाम नहीं जान पाया और जरूरत भी नहीं पड़ी।
...क्योंकि नाना और नानी का नाम ही काफी था। 
उनका लाड़, प्यार, उनका हम सब पर सब कुछ लुटा देना।
....यही काफी था हमारे लिये।
बाजार जाने पर उनका घर आना मतलब साफ था। 
...कि बहुत कुछ आने वाला है, बहुत कुछ मिलने वाला है। 
घर आते ही हम सबकी नजरें झोले पर होती थीं।
...कि अब सिम सिम दरवाजा खुलने वाला है, बहुत कुछ मिलने वाला है। 
वह भी थोड़ा तड़फ़ाते थे और कहते थे सोचो क्या लाया हूं,  तुम्हारे लिये।,,,,,,,कोई बता सकता है।
हमारा अनुमान फल-फ्रूट, मिठाई तक ही सीमित रहता था।
,,,लेकिन वह तो खजाना थे। 
पैसे भले ही उनकी जेब में कम हों, लेकिन दिल बहुत बड़ा था। उधारी ही सही हमारी तमन्ना कभी मर नहीं पाती थी।
,,,क्योंकि नाना और नानी का भी कोई नाम होता है।
उनका नाम ही काफी होता है। 
उनके कच्चे मकान और थोड़ी गरीबी भले ही हो, लेकिन उनका घर हमारे सपनों का संसार रहता है।
हम सबके जीवन में नाना और नानी का बड़ा प्यार रहता है। 
बड़ा लाड़ रहता है। बड़ा दुलार रहता है। 
हर पल वह हमारी फ़िक्र करते थे।
कहीं ऊंचाई पर चढ़ गए या कहीं पेड़ पर चढ़ गए या कहीं खतरनाक जगह पहुंच गए तो उनकी जान निकल जाती थी।  तुरंत चिल्ला पड़ते थे। 
,,,,,,अरे वहां कैसे पहुंच गए। (तेज आवाज में)।
,,,तुरंत पीछे आओ, तुरंत वापस आओ, गिर जाओगे, 
लग जाएगी,,,चलो वापस आओ। 
तुरन्त आओ, तुम्हें कुछ दिलाता हूं।
कितनी फिक्र और कितनी चिंता रहती थी उनको।
सामने थोड़ा न दिखूं तो तुरंत पूछते थे नाम लेकर 
,,,,,फलां नहीं दिख रहा है। कहां गया है? 
कहाँ गायब है?,,,सो गया क्या?
जब तक जवाब नहीं मिल जाता। 
वह पूछते ही रहते थे।
कहीं बुखार आ गया तो नीम-हकीम, टोना-टोटका से,,,
लेकर अस्पताल तक भागते थे।
जब तक सही नहीं हुआ, तब तक चैन की सांस नहीं लेते थे।
अंगुली पकड़कर हर जगह ले जाना और जानकारी देना।
लोगों के पूछने पर बताना,कि यह फलां बेटी का फलां बेटा है।
कहानी सुनाना और फिर जोर से गुदगुदाना।
जी भर हंसाना और मिलकर खिलखिलाना।
रूठने पर हर जानवर की आवाज निकालना।
यहां तक कि जानवर बनकर भी दिखाना।
और जब तक हंस न जाएं,,,हर करतब दिखाना।
हमें सब याद है,,, नाना और नानी जी। 
,,,अब न नाना हैं और न नानी हैं,,,लेकिन जब भी
वो चेहरे याद आते हैं तो आंखों में आँसू आ जाते हैं।
उनका चेहरा झूलने लगता है। 
हम यादों के उसी पल में चले जाते हैं।
हमारे जीवन में नाना-नानी का ये रिश्ता कितना अनमोल होता है।
,,,,क्योंकि नाना और नानी का भी कोई नाम होता है क्या?।
(फ़ोटो में नाना नानी,,,ग्राम बरोदिया बीना म.प्र.)
उनके चरणों की धूल को नमन, वंदन।,,,,फूलशंकर।

मंगलवार, 28 मई 2019

अफीम की खेती, अमन चैन बेमानी

आपने अफीम की खेती की है।अब भला सोचिए कि जो आपने बीज रोपित किए थे। उनमें मौसम के अनुसार आपने पानी दिया धूप दी, छांव दी और सब कुछ दिया। अब आप सोच रहे हैं कि इससे अमन चैन आएगा। यह बेईमानी नहीं तो क्या है। आप जब अफीम की खेती करेंगे, बीज रोपेंगे, पानी देंगे तो इससे जो हवा चलेगी। वह नशीली होगी। लोग जहरीले होंगे। वातावरण दूषित होगा। लोग पगला भी सकते हैं। उन्मादी भी हो सकते हैं। इसके परिणाम सामने आने लगे हैं। आपने क्या सोचा कि इसका असर दूसरों पर होगा। इसका असर हमारे लोगों पर नहीं होगा। इसका असर इतना अध्यापक होगा कि पूरे देश में आग लग जाएगी। अब आप देश में अमन-चैन, तरक्की, विकास कैसे सोच सकते हैं। यह सोचना आपकी भूल होगी। आप देश में तरक्की की बातें करके अपने आप को गुमराह कर सकते हैं या जनता को बेवकूफ बना सकते हैं। आप समझ रहे होंगे कि मैंने क्या किया है। मैंने अपने घर में ही आग लगाने का काम किया है और अब बुझाने के लिए पूरा तंत्र लगा रहे हो। पहले खेती करने से पहले, बीज रोपने से पहले आपने कुछ नहीं सोचा। परिणाम भले ही आम जनमानस को भुगतना पड़े, लेकिन इसका असर आप पर भी होगा। आप कतई न सोचा कि मैं चैन से सो जाऊंगा। इसमें न आप सो पाएंगे, न रह पाएंगे और न ही जी पाएंगे ऐसा मेरा मानना है।