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बुधवार, 13 जुलाई 2011

जलन के इस चलन को मेरा नमन!

शकील जमशेदपुरी
www.gunjj.blogspot.com


नंदनी को जब अरमान ने किसी दूसरे लड़के  के साथ बाईक पर घूमते देखा तो उसका मन निराशा से भर गया। उन्हें वह दौर याद आ गया जब नंदनी उनके साथ हाथों में हाथ डालकर घूमा करती थी। कभी जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाने की कशमें खाई थी। पर दोनो अलग हुए क्यों? क्या इसके लिए अरमान का व्यवहार जिम्मेदार था? हो सकता है। नंदनी आधुनिक ख्यालों में रची बसी थी। पर अरमान परम्परागत विचारों को आदर्श मानता था। उन्हें  न तो नंदनी का पहनावा पसंद था और न  ही वह नंदनी के उन विचारों को प्रशय देता था जो नंदनी अक्सर अरमान पर थोपना चाहती थी। शायद इन्ही विरोधाभासी विचारों ने दोनों के रिश्तों में कटुता पैदा कर दी थी। नंदनी ने उन बाहों में शरण ले ली जो उन्हें वो सारी सारी चीजे करने की  छूट देता हो। और अरमान? उन्हेंने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। वो नंदनी को दूर होते हुए देख सकता था पर अपने मूल्यों को नहीं। एक दिन उन्होंने नंदनी को मिलने के लिए बुलाया। और क्या कहा?
"आप जो कर रहे हैं वो सरासर गलत है। पर मैं भी घोर आशावादी प्रवृति का  हूं। आपके  इस व्यवहार में भी मुझे संभावनाओं की जमीन दिखाई दे रही है। यह बात आप भी जानते है कि आपका  व्यवहार मुझे कतई अच्छा नहीं लगेगा। पता नहीं इसके पीछे आपका  मंतव्य क्या है। पर आप ऐसा कर के जाने-अनजाने मेरी जिंदगी पर बड़ा उपकार कर रहे हैं। क्योंकि जब भी मैं आपको किसी दूसरे लड़के के  साथ देखता हूं तो मेरे अन्दर एक अदृश्य शक्ति का  संचार हो जाता है। जीवन में कुछ बनने का जज्बा पैदा हो जाता है। जिंदगी से लडऩे का हौसला मिलता है। मुझे नजरअंदाज करने वाला आपका हर एक कदम मुझे गंभीर जीवन के और समीप ले आता है। मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप मेरे साथ एसा व्यवहार जारी रखे। क्योंकि यही मुझे हौसला देती है। हालात से लडऩे के लिए प्रेरित करती है। तो नंदनी जी और जलाईए मुझे। जितना जला सकते है उतना जलाईए। मेरे दिशाहीन जिंदगी को इस जलन की जरूरत है। आपके जलन के इस चलन को मेरा नमन।"

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