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गुरुवार, 7 जुलाई 2011

तो इत्तेफाक से मै भी खानदानी पत्रकार हो गया........










दरअसल इस
वर्ष 2011 की होली में मैंने माखनलाल युनिवर्सिटी ( कैव्स ) के अपने दोस्तों के बारे में..... बुरा न मानो होली है... शीर्षक से कुछ खट्टी मीठी बातों को लिखा था....कोई गंभीर मुद्दा नही था....जिसने भी पढ़ा खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया.....अपने एक दोस्त अभिषेक पाण्डेय के बारे में भी मैने बस यही लिखा था कि-
अभिषेक (गजनी ).....युवा रचनाकार पुरष्कार विजेता फ़िलहाल "खानदानी पत्रकार"

....... अब संयोग देखिये कि मेरा भाई भी इस बार महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में पत्रकारिता में एड्मिशन ले लिया.....( हालांकि मैने उससे कहा था कि यार- बैंक की तैयारी करलो....रेलवे की तैयारी करलो एक बार हो गया तो लाइफ टाइम मौज करोगे....लेकिन नही माना )
चलिए यहां तक तो ठीक था.....बोले
तो मैने अपने कुछ दोस्तों को मैसेज के जरिये ये सूचना दे दी....क्योंकि 5 जुलाइ को मै खुद वर्धा गया था उसका एडमिशन कराने....वहां का माहौल....कैम्पस की खुबसुरती.....देखकर मै खुश हो गया...और यह समाचार मैने अपने चहेते लोगों तक पहुंचा दी......उन्ही चहेते लोगों की लिस्ट में एक प्रमुख नाम अभिषेक पाण्डेय का भी है.......मैसेज भेजने के बाद मै भूल गया.....वर्धा से वापस हैदराबाद लौटा......तेलंगाना बंद कि वजह से बड़ी मुसीबत से अपने ऱुम तक पहुंचा.....मुसीबत बोले तो तेलगू भाषी भाई लोग आंध्रप्रदेश के बंटवारे के लिए तड़प रहे हैं.....बस बंद था....किसी तरह डरते-डराते एक न्यूज पेपर वाले से काफी रिक्वे्स्ट करके अपना आई कार्ड दिखाकर बोले तो मालवाहक गाड़ी से अपने रुम तक सही सलामत पहुंच गये....साथ में मेरा भाई भी था......मुझे एक दिन पहले ही मैसेज मिल गया था कि 5-6 जुलाई को तेलंगाना बंद रहेगा....सभीको चैनल के ही होटल में दो दिन रुकना है..बस सेवा बंद रहेगा....... खैर 6 जुलाई को तेलंगाना बंद के बावजूद दोपहर में मै अपने ड्यूटी के लिए निकला.....चुंकि सुबह मै एक बार रिस्क ले चुका था....दुसरी बार भी रिस्क लिया.....और कामयाब रहा...........अब मेन बात जो मै बताना चाह रहा हूं वो ये है कि रास्ते में अभिषेक पाण्डेय द्वारा बधाई संदेश मिला....आदित्य भाई - भाई के एड्मिशन की बधाई.... मैने भी रिवाज के अनुसार धन्यवाद भेज दिया.....फिर उस भाई ने एक मैसेज भेज दिया----,,,,अब तुम भी हो गये खानदानी पत्रकार,,,, तुरंत मुझे होली में उनके बारे में लिखा गया कमेंट याद आ गया.....मुझे बहुत हंसी आ रही थी....शर्म भी लग रहा था.....कि मैने उसक मजा क्यों लिया था...अब वो मजा ले रहा है....अंत में मैने कह दिया हां यार अपने ही शब्दों में फंस गया.....अब तो अपने ही बारे में ब्लाग लिखना पड़ेगा.......खैर अभिषेक पाण्डेय के बहाने मै सभी को बतादूं कि आज के जमाने में भाई- भाई रह ही नही गया है--कसाई हो गया है....कोई बात ही नही मानता.....कम से कम अपने भाई के बारे में तो मै ये बात कह ही सकता हूं....क्योंकि अगर मेरा भाई मेरी बात मान गया होता और रेलवे या बैंक की तैयारी करता.....तो शायद मुझे यहां ब्लाग लिखकर सफाई नही देनी पड़ती......खैर अभिषेक पाण्डेय जो आमतौर पर मेरी बातों का सही अर्थ समझ जाते हैं....उनको बताना चाहूंगा कि भले ही मै भी उनकी तरह खानदानी पत्रकार हो गया हूं......लेकिन मेरा पत्रकारिता बाला परिवार उनके परिवार से छोटा है.....लेकिन एक डर और है मेरा एक छोटा भाई और है.....जो गोरखपुर के सेंट्रड्यूज डिग्री कालेज से बीएससी कर रहा है......कहीं उसके दिमाग में भी पत्रकारिता की खुजली ना होने लगे......खैर आप लोग दुआ किजिएगा ऐसा न हो....और मै भी अपनी जान लगा दूंगा कि ऐसा न हो.....लेकिन एक बात मैं फिर से कहना चाहूंगा....भाई तो आज को जमाने में भाई रह ही नही गये हैं......कसाई हो गये हैं..... कोई बात नही मानते....जहां जाओ पीछे-पीछे चल देते हैं......हां माखनलाल के विवेक भाई, अंशुमान भाई, फरहान भाई, ललित भाई, हर्ष भाई, सौरभ भाई और आज के डेट में सबसे बड़े भाई अभिषेक भाई की बात कुछ और है...

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