निशंक के पोल का बज गया ढोल
निगमानंद की मौत ने गहरे राज दिए हैं खोल
६८ दिन के अनशन पर रहें बैठे
कोई नही आया उनसे हाल पूछने कैसे ?
मात्री सदन को अनशन पर झोंक शिवानन्द बने रहें गुरु
वहीँ राम देव का स्वागत किया पलक पवारे बिछाकर
उनका अनशन तुडवाने पहुंचे सब बारी-बारी
सोचा क्यों न इसी बहाने कर ले आने वाले चुनाव की तैयारी
राजनेताओ का धर्मं हैं राजनीति
लेकिन बाबाओ को इस रंग में रंगा पहली बार पाया
मीडिया के चकाचौंध में सब भूल गए की
साँस की अंतिम लड़ाई करता इसी अस्पताल में एक गंगा पुत्र भी आया
माना कला धन वापस लाना है ज़रूरी
तो क्या गंगा जल के बिना हम सब की ज़रूरते हो जाएँगी पूरी
एक सवाल जो मन में कौंधता है
क्या अंतर हैं संत और ढोंगी योगी में
६८ दिन का अनशन किसी को नहीं दिखा
और कोई चंद दिनों में ही पड़ने लगा फीका-फीका
जीने के लिए चाहिए गंगा जल
और अंत मुक्ति के लिए भी चहिये गंगा जल
कोई मरता रहे इसे बचाने के लिए तो मरे
किसी को चिंता नही हैं इस पल
ये हाल रहां तो आने वाली पीढियों के लिए
क्या शुद्ध जल बच पायगा कल ??
kya bat hae aapke dukh ko me smja skta hu par yahi to hame badlna hae .........
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