शकील जमशेदपुरी
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकर करें
छोड़ के अपना घर आंगन गैरों के घर से प्यार करें
आठ इंच की हील कहीं, कहीं कमर से नीचे पैंट है
खान-पान में पिट्जा बर्गर फिल्मों में जेम्स बांड है
हिंदी भी अब रोने लगी है देख के आज युवाओं को
बात-चीत की शैली में जो अमरिकन एक्सेंट है
छोड़ के अपना घर आंगन गैरों के घर से प्यार करें
आठ इंच की हील कहीं, कहीं कमर से नीचे पैंट है
खान-पान में पिट्जा बर्गर फिल्मों में जेम्स बांड है
हिंदी भी अब रोने लगी है देख के आज युवाओं को
बात-चीत की शैली में जो अमरिकन एक्सेंट है
जरूरी है क्या इन चीजों को खुद से अंगीकार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें
हेड फोन कानों में लगा है जुबां पे इसके गाली है
बाल हैं लंबे, हेयर बेल्ट और कान में इसके बाली है
देख के कैसे पता चले यह लड़का है या लड़की है
चाल चलन भी अजब गजब है चाल भी इसकी निराली है
बाल हैं लंबे, हेयर बेल्ट और कान में इसके बाली है
देख के कैसे पता चले यह लड़का है या लड़की है
चाल चलन भी अजब गजब है चाल भी इसकी निराली है
कहता है कानून हमारा लड़कों से भी प्यार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें
सरवार दुपट्टा बीत गया अब जींस टॉप की बारी है
वस्त्र पहनकर पुरुषों का यह दिखती कलयुगी नारी है
सोचो आज की लड़की क्या घर आंगन के काबिल है
रोज-रोज ब्यॉ फ्रेंड बदलना फैशन में अब शामिल है
वस्त्र पहनकर पुरुषों का यह दिखती कलयुगी नारी है
सोचो आज की लड़की क्या घर आंगन के काबिल है
रोज-रोज ब्यॉ फ्रेंड बदलना फैशन में अब शामिल है
आधुनिकता को ढाल बनाकर इश्क का क्यूं व्यपार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें
जींस कहीं आगे से फटी पीछे से फटी यह डिस्कोथेक जेनरेशन है
भूल के अपनी भारत मां को पश्चिम में करते पलायन है
होंठ लाल नाखुन भी बड़े यह दिखती बिल्कुल डायन है
गांधी जयंती याद नहीं पर याद इन्हें वेलेनटायन है
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें
जींस कहीं आगे से फटी पीछे से फटी यह डिस्कोथेक जेनरेशन है
भूल के अपनी भारत मां को पश्चिम में करते पलायन है
होंठ लाल नाखुन भी बड़े यह दिखती बिल्कुल डायन है
गांधी जयंती याद नहीं पर याद इन्हें वेलेनटायन है
भारत की गौरव का कब तक यूं ही हम तिरस्कार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें
मेक-अप से सजा है चेहरा इनका बिन मेकअप सब खाली है
बच के रहना तुम इनसे यह माल मिलावट वाली है
दर्पण पर एहसान करे श्रृंगार करे यह घंटों में
रंग बदलती गिरगिट की तरह है दिल बदले यह मिनटों में
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें
मेक-अप से सजा है चेहरा इनका बिन मेकअप सब खाली है
बच के रहना तुम इनसे यह माल मिलावट वाली है
दर्पण पर एहसान करे श्रृंगार करे यह घंटों में
रंग बदलती गिरगिट की तरह है दिल बदले यह मिनटों में
इनसे हासिल होगा नहीं कुछ चाहे हम सौ बार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें
किस चक्कर में पड़े हो मित्र......जाओ मर्डर-2 देखो,,,,,,डेल्ही बेली देखो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंशकिल ब्रदर मजाक कर रहा हूं.........अच्छा लिखा है,,,,बहुत अच्छा...
आपकी टिप्पणी सर आँखों पर.........आपने दो फिल्म देखने की सलाह दी है........ज़रूर देखूंगा...साथ पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आपके लगाव का भी में सम्मान करता हूँ/
जवाब देंहटाएंआभार
this is very nice and i agree for what is written in the poem. though i am also a youth i am thankful for who ever wrote it...................
जवाब देंहटाएंshakilwa sale madherchod...........sale pagal
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