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रविवार, 3 जुलाई 2011

मां.........माही.......सेफिया........नंदनी!!!

सेफिया मुझे माही कह कर पुकारती थी। दरअसल यह नाम मेरी मां का दिया हुआ था। कभी-कभी मुझे भी बड़ा अजीब लगता था। कैसा लड़कियों वाला नाम है यह? और एक बार वैभव ने तो कह भी दिया था कि पंजाबी लड़कियों में माही नाम बेहद प्रचलित है। पर सेफिया को माही नाम बेहद पसंद था। वह हमेशा मुझे इसी नाम से संबोधित करती थी। बाकी दोस्त मेरे माही नाम पर चुटकियां लेने लगते थे, पर सेफिया के संबोधन में आत्मीयता का भाव होता था। वह सम्मानपूर्वक, अधिकारपूर्वक और बेहद गर्व के साथ मुझे इस नाम से संबोधित करती थी। अकेले में तो ठीक था पर जब सेफिया सार्वजनिक स्थलों पर मुझे इस नाम से पुकारती थी तो अटपटा सा लगता था। कभी-कभी मुझे इस बात का एहसास होत था कि मैंने उसे यह बताकर गलती कर दी कि मेरी मां मुझे माही नाम से पुकारती है।
सैफिया के माही संबोधन ने ही उन्हें मेरे समस्त दोस्तों में खास बना दिया था। माही शब्द एक बार कान के पर्दे से टकराकर गूंजने लग जाती थी। खैर एक न एक दिन तो इस गूंज को शांत होना ही था। और शांत  हुआ भी। दो चार दस दिन के लिए नहीं पूरे चार साल के लिए।  मां से बात हो जाती तो यह शब्द सुनने को मिल जाता। वर्ना तो कहीं नहीं। इन चार सालों में माही शब्द कान के पर्दे से टकरायी भले ही हो, पर गूंजी नहीं। समय और परिस्थितियों की पुनरावृत्ति अवश्य होती है। और यह हुआ भी। अब नंदनी मुझे माही कह कर पुकारने लगी। पर नंदनी को माही शब्द के बारे में पता कैसे चला? वैसे ही जैसे सेफिया को पता चला था। नंदनी के संबोधन से मुझे परेशानी तो नहीं थी, पर यह शब्द सुनकर मैं चार साल पीछे चला जाता था। सेफिया का माही और भी गूंजने लगा था। बिल्कुल ध्वनि तरंगों की तरह। पर हुआ वही़...........................ज़ैसा कि मैंने पहले भी कहा था कि समय और परिस्थितियां स्वंय को दोहराती है। नंदनी का माही भी ज्यादा दिनों तक नहीं चला और एक साल के अंदर ही दम तोड़ गया।
अगर समय और परिस्थिति ने किसी को नहीं बदला तो वो है मेरी मां। सेफिया और नंदनी का संबोधन भले ही बदल गया हो, पर मां का संबोधन आज तक नहीं बदला। नंदनी और सेफिया की तरह और भी आएंगी। पर शायद ही किसी का माही संबोधन मेरी मां की तरह दीर्घकालिक हो।

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