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शनिवार, 2 जुलाई 2011

तो हम दीपक चौरसिया कभी नही बन सकते...........

क्योंकि वो दौर बीत चूका है.......सन २००० के आस-पास  जब आज तक जैसा  चैनल आया....और दीपक चौरसिया, पुण्य प्रसून वाजपयी, राहुल देव, आशुतोष, सरदेसाई सरीखे पत्रकार आये और छा गये... तब से दर्शक सिर्फ उन्हें ही देखना सुनना पसंद करते हैं.. यूँ तो मीडिया हर मीडियाकर्मी के लिए कमाने खाने का एक माध्यम है.. लेकिन इस माध्यम से हम एक  बदलाव भी ला सकते हैं और खुद भी नाम कमा सकते हैं. लेकिन  जिस तरह से हमारे लाल कृष्ण आडवानी, प्रणव मुकर्जी, ए के एंटोनी और करुनानिधि जैसे नेताओ के होते हुवे कोई YOUTH  शीर्ष पद तक नहीं पहुँच पा रहा है, ठीक उसी तरह मीडिया में भी इन बड़े नाम वाले पत्रकारों के आगे तमाम नाम सिर्फ गूम नाम ही रह जाते हैं... ४ जून  की रात को राम लीला मैदान में बाबा राम देव जब मीडिया से अपनी बात रख रहे थे तो उनकी जुबां पर सिर्फ दीपक चौरसिया का ही नाम था..

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