वक़्त बदल गया है लेकिन फिर भी कुछ चीजे कभी नही बदलती. जो बीत चूका है और अब इतिहास में दर्ज हो चूका उसे कभी भी नही बदला जा सकता है. वो कालजई रचनाये जिसे पढ़ कर और गुण कर कितनी ही पीढ़िया तैयार हुई और अपनी नई सोच के साथ दुनिया को नई रह दी. ऐसे में इन ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़-छाड़ कहां तक सार्थक है.हाल ही में मध्य -प्रदेश की छठी क्लास में सुभद्रा कुमारी चौहान की मशहूर कविता ' झाँसी की रानी' के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. ये कविता आज़ादी की लड़ाई में शरीक लक्ष्मीबाई की वीरता की दास्ताँ है जो उस वक़्त देशभक्तो को प्रेरित करने के मकसद से लिखी गई थी. जो आज भी प्रेरणा की श्रोत बनी हुई हैं . इसे पढने वालों ने ''अंग्रेजो के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी " पंक्ति को शायद ही ध्यान दिया होगा क्योंकी इस पूरी कविता में तो झाँसी की रानी के प्रचंड रूप का ही वर्णन है . राज्य की किताबो में किसी भी पद या कविता को शामिल करना है या नहीं इसका फैसला राज्य की शिक्षा आयोग ही करती है, जो अक्सर वर्तमान सरकार से प्रेरित होती है. .एम.पी में भी यही हुआ, भाजपा की सरकार को इस कविता की उपयुक्त पंक्ति से सिंधिया परिवार से रिश्ते खराब होने का डर था. इसलिय उन्होंने ये कदम उठाया और उस पंक्ति को ही मूल कवित से हटा दिया गया था . लोगो के इस मुद्दे पर उठा -पटक करने पर सरकार को कविता को मूल रूप में ही रखने के लिए मजबूर होन पड़ा. ऐसी घटनाये नई नही है. कुछ दिनों पहले ही देश के वीरो जिन में (भगत सिंह भी शामिल थे) को उनकी जात के अनुसार दिखाया गया था जो शर्मनाक घटना थी.
याद आते है वो दिन जब हम बचपन में बिहार के गाँव में छठी क्लास में इस कविता को पढ़ा करते थे. उस वक़्त एक सौ छब्बीस पंक्तिया की ये कविता हमारी योग्यता के परिक्षण का पैमान बन जाया करती थीं. मात्र ६ दिन का समय मिलता था और हम इसे कंठस्त करने की पुरजोर कोशिश करते. एक-एक शब्द के साथ अपने जज्बात को उडेअल कर कविता सुनाते क्योंकि रानी का सम्मान जो पाना होता था. हमारे स्कूल में ये नियम था जो भी इस कविता को सबसे ज्यादा जीवंत करके सुनाता उसे पहलें ६ माह में रानी का सम्मान मिलता था. हर साल कोई-न-कोई जीतता था सो हमारी क्लास में सविता की कविता वचन ने सब को मोहित किया और वो जीत गई, और जो नही जीतीन शायद उन्होंने ताउम्र झाँसी को याद रखा और रानी को भी. जिनमे से कईयो ने आगे चल कर अपने को साबित भी किया और कुछ प्रयासरत है. आज भी जब झाँसी स्टेशन आता है तो वो बीते हुए बचपन के दिन आन्यास ही याद आ जाते है. प्रेरणा का श्रोत अक्सर वही लोग या पाठ होते है जो सच्चाई से अपने कर्म को करते है और वो कभी नही बदलते है चाहें कोई भी हालत हो . ये बात इस कविता पर भी लागु होती है. इस घटना ने एक बात तो साबित कर दिया है की राजनैतिक पार्टिया अपने रिश्तो को बनाये रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. राज्य की शिक्षा और लोगो की भावनाओ से उन्हें क्या लेना देना. ऐसे में ज़रूरत है की सोच के दायरे को बड़ा kiya jay. .
मुझे यकीन नही आ रहा है कि कैव्स टुडे पर कोई इतने गंभीर और जरूरी मुद्दे पर भी लिख सकता है.....लेखिका महोदय आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.....बहुत-बहुत बधाईयां.......आपने लिखा है कि झांसी की रानी कविता के साथ छेड़छाड़ हुई है,,,और विभिन्न राज्य सरकारें अपने -अपने हित के अनुसार पाठ्यक्रम में फेरबदल करती रहती हैं...........इसके साथ मै ये भी जोडंना चाहूंगा कि....विभिन्न राज्य सरकारें और केंद्र सरकार भी समय- समय पर अपने हित के नेताओं की मुर्ती लगवाकर जनता का पैसा बर्बाद करती हैं......जैस कि कांग्रेस केवल राजीव-और इंदिरा गांधी की मुर्ति लगवाती है...मायावती ने तो हद ही कर दिया है....भीमराव अंबेडकर और कांसीराम के साथ-साथ हाथी और खुद की मुर्ती लगवाकर करोड़ो अरबो रूपया बर्बाद कर रही है....अगर मौका लगा तो आपके इस ट़ॉपिक पर मै कुछ और बातें फुरसत से लिखुंगा....फिलहाल आपकी कलम को मेरी दुआ--सलाम कबूल हो......
जवाब देंहटाएंआपकी कलम को मेरा दुआ--सलाम..... कबूल हो......
जवाब देंहटाएंbhut-bhut dhanyabaad..
जवाब देंहटाएं