any content and photo without permission do not copy. moderator

Protected by Copyscape Original Content Checker

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

इंडिया में कोई ( ज्यादातर नेता ) तब तक ईमानदार हैं....जब तक कि उन्हें बेईमानी का मौका नहीं मिलता....













उपरोक्त
बात मैनें
बहुत साल पहले
अपने एक दोस्त के मुंह से सुना था -
मुझे नहीं मालूम कि उसकी बात किस हद तक सही है.......लेकिन भारत में ज्यादातर नेताओं खासकर मुख्यमंत्रीयों के रिकार्ड को देखें तो बात में कुछ सच्चाई जरूर झलकती है------
तो शुरू करते हैं भारत की प्रथम
हिला प्रधानमंत्रि से---इसके बाद अन्य मुख्यमंत्रियों के भी रिकार्ड खंगाला जायेगा...












1- इंदिरा गांधी- अपनी कुर्सी बचाने के लिये आपात काल लगाया....

2- मायावती- इनके खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का मामला चल रहा है....केंद्र से सौदेबाजी की खबरें आती रहती हैं.....जीतेजी अपनी मुर्ति लगवा कर जनता का करोड़ों रूपया बर्बाद कर रही हैं......
3-
मुलायम सिंह यादव---ये जनता के इतने बड़े सेवक हैं कि इन्हे अपने पूरे परिवार में ही जनता दिखाई देती है...इन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को सांसद और भाईयों को विधायक बनवाया...शिवपाल सिंह तो उप्र विधानसभा के विपक्ष के नेता है...मुलायम सिंह जी ने अपनी बहु को भी लोकसभा का चुनाव लड़वाया था...जिनका सपना दलबदलू राजबबर पूरा नहीं होने दिया.....
4- ममता बनर्जी---जो सोनिया गांधी को विदेशी कहकर कांग्रेस से अलग हुई थीं... कुर्सी की खातिर कांग्रेस से ही हाथ मिला बैठीं...रेल मंत्री बनी... और अब उ
सी तथाकथित विदेशी सोनिया से विधानसभा चुनाव जीतने बधाई लेने पहुंच जाती हैं....ये वही ममता बनर्जी हैं जो 22 जुलाई 2008 से 2-3 दिन पहले कहती हैं कि मैने अभी अमेरिका परमाणु करार मसले का अध्ययन नही किया है... अध्ययन करने के बाद तय करुंगी कि वोट किधर दूंगी..... NDA और UPA में से सही कौन है... देश का भला करार पर समर्थन रने में है या विरोध करने में.... ये मुद्दा ममता के लिए नही था....मुद्दा ये रहता तो काफी पहले परमाणु करार का अध्ययन कर ली रहती.... लेकिन वो तो इस बात का इंतजार कर रही थीं कि NDA और UPA में से मजबूत कौन होगा... फायदा सरकार गिराने वालों का साथ देने में है या सत्ताधारी का साथ देने मे....ममता जनता की नेता नही है...कुर्सी की नेता हैं...........
5-लालू प्रसाद याद----इनके पहचान के लिए चारा घोटाले का नाम ले लेना ही काफी है.....
6-जयललिता--- अपने पिछले कार्य काल में इन्होंने भी बहती गंगा में डूबकी लगायी थी....आय से अधिक सम्पत्ति का मामला इन पर भी है.....
7-येदियुरप्पा---जमीन घोटाले का सम्मान कम था....खनन घोटाला सामने है...
8-मधु कोड़ा--- मधु केवल नाम के ही हैं...करोड़ों रूपये का घोटाला करके जनता पर कोड़ा - ही कोड़ा बरसाया है....
कलमाड़ी.... राजा....कनिमोझी ... ये लोग तो बधाई को पात्र हैं जो भ्रष्टाचार को इतनी ऊंचाई प्रदान की कि यह बड़ा मुद्दा बन पाया....
अंत में यही कहूंगा कि अन्ना हजारे इस देश में डूबते को तिनके के सहारे जैसे हैं....अगर इस बार जनता ने उनका साथ नही दिया तो फिर भारत इन अमीर लालची नेताओं के चगुल से नहीं लिकल पायेगा.....अन्ना जैसा गैर राजनितिक व्यक्ति बार-बार जन्म नहीं लेता.....
जय हिंद....

उत्तराखंड में फिर से खूंटा गाड़ने की तैयारी में है खंडूरी ....



http://www.boltiklalam.blogspot.com/



उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमत्री भुवन चन्द्र खंडूरी की राज्य में सक्रियता एक बार फिर बढ गई है.....उत्तराखण्ड में आगामी विधान सभा चुनावो से ठीक पहले खंडूरी की इस सक्रियता से एक बार फिर इस बात के कयास लगने शुरू हो गए है कि पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व के साथ उनके सम्बन्ध ठीकठाक नही चल रहे है ..... राज्य में विधान सभा चुनावो से ठीक पहले अगर जनरल ने अपने राजनीतिक जीवन का कोई बड़ा फैसला ले लिया तो भाजपा को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.....



दरअसल इस समय राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री निशंक के साथ उनकी पटरी नही बैठ रही है ..... निशंक अपने को पार्टी में बड़ा सर्वेसर्वा मानते है.... पार्टी के कई दिग्गज नेता उनकी इसी कार्य शैली की वजह से खासे नाराज है .... यह नाराजगी केवल हाल के दिनों में ही नही बड़ी है... निशंक के साथ पार्टी के आम कार्यकर्ताओ के संबंधो में कटुता उनकी ताजपोशी के बाद से ही बढ़नी शुरू हो गई थी.... अब विधान सभा चुनाव पास आने से ठीक पहले निशंक के खिलाफ ये नाराजगी भाजपा के लिए राज्य में नुकसान देहक साबित हो सकती है.....





भाजपा में इस समय निशंक को हटाने की मुहिम परवान पर है... और इस समय दो पूर्व मुख्यमत्री खुले तौर पर निशंक को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने की कोशिसो में लगे है....यह कोई और नही राज्य के पूर्व मुख्य मंत्री खंडूरी और भगत सिंह कोशियारी है.... दोनों खुले तौर पर पार्टी के आला नेतृत्व से निशंक को हटाने के लिए लॉबिंग करने में जुटे है.....



बीते दिनों हरिद्वार में राजनाथ सिंह के महिला मोर्चे के कार्यक्रम में इनदिनों महारथियों की अनुपस्थिति से यह सन्देश गया है कि उत्तराखण्ड भाजपा की साढ़े साती अभी दूर नही हुई है.... अगर ये दूर नही हुई तो पार्टी के आगामी चुनावो में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.........निशंक को मुख्यंमंत्री बनाने में खंडूरी की अहम् भूमिका रही थी..... लेकिन मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद निशंक ने खंडूरी को भाव देने बंद कर दिए... यही नही कल तक जो भगत सिंह कोशियारी खंडूरी को राज्य के मुख्यमत्री पद से हटाने की मुहिम छेड़े थे आज वे भी खुलकर खंडूरी का साथ दे रहे है.....




दरअसल इसके गहरे निहितार्थ है ... मुख्यमत्री बनाये जाने के बाद निशंक ने अपने कार्यकाल में कोई विशेष छाप नही छोड़ी है .... उनके कुर्सी सँभालने के बाद राज्य में भ्रष्टाचार का ग्राफ तेजी से बड़ा है....जहाँ कर्नाटक में भाजपा येदियुरप्पा पर करोडो के वारे न्यारे करने के आरोप झेल रही है इसी तरह के हालत उत्तराखण्ड में भी है परन्तु वहां का मीडिया इस बात पर खामोश है... यह सब निशंक की बाजीगरी का नतीजा है कि कोई भी निशंक के खिलाफ राज्य में लिखने का साहस नही कर पा रहा है.....



सूचना विभाग की कमान निशंक ने मुख्यमंत्री पद सँभालने के बाद से खुद अपने पास रखी है ... मीडिया को खुश करने के लिए निशंक ने इन दिनों सभी को थोक के भाव से विज्ञापन देने शुरू कर दिए है ... मजेदार बात तो ये है कि कई ऐसे समाचार पत्रों , पत्रिकाओ को इस अवधि में विज्ञापन दे दिए गए है जिनका राज्य में कोई वजूद नही है......चुनावी वर्ष में निशंक कोई रिस्क मोल नही लेना चाहते ..... इसलिए विज्ञापनों पर वह पानी की तरह पैसा बहा रहे है ......जाहिर है वह भी नीतीश, शिवराज और मोदी, रमन वाली राह पर चलना चाहते है........ परन्तु निशंक को शायद यह मालूम नही इन लोगो के सपनो की राह देखना आसान है जमीनी हकीकत को समझना अलग बात है... फिर उत्तराखण्ड में आम आदमी उनके कार्यकाल से इतना खुश भी नही है कि शिवराज और मोदी की तरह दुबारा उनको राजगद्दी पर बैठा ही देगा .....




निशंक पर भ्रष्टाचार के कोई मामूली आरोप नही है......कैग की रिपोर्टो में उनके खिलाफ लगाये गए आरोपों में वाकई दम नजर आता है ...बीते साल महाकुम्भ के नाम पर निशंक ने केंद्र के द्वारा दी गई मदद का जमकर दुरुपयोग किया ... इस मामले में नौकरशाहों के साथ मिलकर निशंक के कुछ मंत्रियो ने भी जमकर मलाई खायी ......यही नही कुम्भ मेले के दौरान हुए निर्माण कार्यो में भी भारी अनियमितता पायी गई.........देहरादून के एक न्यूज़ चैनल में काम करने वाले मेरे एक मित्र की बातें माने तो हरिद्वार में जिस जिस जगहों पर महाकुम्भ के दौरान निर्माण कार्य किये गए वह आज पूरी तरह जवाब दे चुके है ...बरसात के मौसम में निशंक के निर्माण कार्यो की पोल अच्छे ढंग से खुल गई है .....



ऋषिकेश में भूमि आवंटन से लेकर कई जल विद्युत परियोजनाओ को निरस्त करने के मामले निशंक सरकार की साख के लिए संकट बनते जा रहे है..... यही नही निशंक के राज में भ्रष्टाचार की गंगा जमकर बह रही है .... रामदेव केंद्र सरकार के खिलाफ सत्याग्रह की बातें कर रहे है ॥बेहतर होता वह अगर देवभूमि से निशंक के खिलाफ सत्याग्रह की बातें करे तो यह माना जाए वह भी भ्रष्टाचार कि लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट है..... पार्टी चाहे कोई भी हो भ्रष्टाचार का दोषी अगर कोई तो उसके खिलाफ कड़े फैसले लेने में भय कैसा ....?



कांग्रेस आदर्श सोसाइटी पर अशोक चौहान इस्तीफ़ा ले लेती है .... राजा , कनिमोझी और कलमाड़ी को तिहाड़ भेज देती है लेकिन येदियुरप्पा और निशंक पर कोई कार्यवाही करने से डरती है? क्यों? क्या ऐसा करने से भाजपा अपने को कमजोर नही कर रही है....? भाजपा मनमोहन और चिदंबरम से एक ओर इस्तीफे की मांग करती है परन्तु वह येदियुरप्पा और निशंक को अभयदान दे देती है ?क्या इससे उसकी भ्रष्टाचार की लड़ाई कमजोर नही हो जाती?


उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री इन सब बातो के मद्देनजर खासे आहत है... वह अपनी पार्टी में बेगाने हो गए है.... खंडूरी निशंक सरकार के साथ ही पार्टी आलाकमान से भी नाराज हो गए है .... बार बार निशंक को हटाने के लिए दबाव देने के बाद भी पार्टी के आला नेता उनको घास डालने के मूड में नही है..... खंडूरी राज्य भर में भ्रमण करके जनता की नब्ज टटोल चुके है.... जनता में निशंक सरकार के खिलाफ गहरी नाराजगी है....इस नाराजगी की बड़ी वजह निशंक की ख़राब कार्यशेली है जिसको खंडूरी ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सामने रखा .... बीते दिनों हुई मुलाकात में सुषमा स्वराज के वीटो के चलते निशंक को हटाने की मुहिम ठंडी हो गई ...



इस बार उनके धुर विरोधी कोशियारी भी निशंक को हटाने की खंडूरी की मुहिम में साथ थे.... पिछले महीने लखनऊ में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में खंडूरी की अनुपस्थिति ने कई सवालों को जन्म दे दिया .... निशंक को न हटाने के पीछे पार्टी का तर्क है कि चुनावी वर्ष में मुख्यमंत्री बदलने का फैसला सही नही होगा लिहाजा उसने एकजुटता के मद्देनजर यह बयान दे दिया कि पार्टी उत्तराखंड का आगामी चुनाव निशंक, कोशियारी और खंडूरी तीनो के नेतृत्व में लड़ेगी.....भाजपा में खंडूरी और कोशियारी इस फैसले को नही पचा पा रहे है ....


कहा तो यहाँ तक जा रहा है पार्टी आलाकमान राज्य में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के काम काज से भी संतुष्ट नही है....वह राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओ में नया जोश नही फूंक पा रहे है .... आलाकमान ने कोशियारी से चुफाल की जगह प्रदेश अध्यक्ष का पद स्वीकार करने को कहा ... लेकीन कोशियारी ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह निशंक के सी ऍम रहते तो इस जिम्मेदारी को नही स्वीकार सकते... साथ ही इस बार उन्होंने खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाने की बातें कही परन्तु आलाकमान ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया .....



लिहाजा अब खंडूरी निशंक के खिलाफ मोर्चा खोलने में लगे है.... कोशियारी अपने को पार्टी कर समर्पित सिपाही बताते है ॥ जब तक खंडूरी मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने उन्हें हटाने के लिए राज्य सभा सदस्यता से इस्तीफे की धमकी तक दे डाली थी..... इस बार चुनावी वर्ष में वह निशंक को हटाने के लिए भाजपा छोड़ने का साहस शायद ही कर पाये.....उनसे पहले खंडूरी भाजपा को गच्चा देने के मूड में नजर आ रहे है .....



अगर सब कुछ ठीक रहा तो चुनावो से ठीक पहले खंडूरी उत्तराखंड में एक अलग पार्टी खड़ी कर सकते है..... बीते दिनों उत्तराखंड क्रांति दल के शीर्ष नेता ऐरी से उनकी मुलाकातों को इसी रूप में देखा जा रहा है .... ऐरी ने खंडूरी की साफगोई के मद्देनजर उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़कर पहाड़ की अस्मिता बचाने की अपील की है .... जिस मुद्दों को लेकर राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी वह सपने आज पूरे नही हुई है॥ उत्तराखंड में कोई तीसरा मोर्चा भी नही है जो भाजपा और कांग्रेस का विकल्प जनता के सामने बन सके..... लिहाजा ऐरी ने खंडूरी को राज्य के हित में भाजपा छोड़ने की बात कही....




भाजपा से नाराज चल रहे खंडूरी अगर अलग राह चुनते है तो भाजपा के भी कई नेता उनका साथ दे सकते है..... यही नही खंडूरी के करीबियों की माने तो वह इन दिनों अपने समर्थको के साथ गुपचुप ढंग से रणनीति बना रहे है ... बताया जाता है कि राज्य में कई पूर्व सैनिक जनरल के साथ राज्य बचाने की इस मुहिम में साथ है॥ इसमें उन्हें कुछ नौकरशाहों का भी साथ मिल रहा है.....भाजपा के नेता इस मसले पर कुछ बोलने की स्थिति में नही है.....
हाँ, यह अलग बात है निशंक के काम काज से नाराज चल रहे कई विधायक और मंत्री समय आने पर जनरल का खुलकर साथ दे सकते है.....खंडूरी का गढ़वाल में खासा जनाधार है.... कुमाऊ में भी उनकी साफगोई के सभी लोग कायल है....भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में जब माहौल बन रहा हो ऐसे में निशंक और येदियुरप्पा जैसे लोगो को फ्री हैण्ड दिए जाने का भाजपा आलाकमान का फैसला आम जन मानस के गले नही उतर रहा है.....




ऐसे में जब उत्तराखंड में विधान सभा चुनाव ज्यादा दूर नही हो , भाजपा को खंडूरी सरीखे इमानदार नेता की जरुरत बन रही है ,पार्टी उनके बजाय निशंक को आगे कर चुनाव लड़ने कर मूड बना रही है....पार्टी के आला नेताओ की माने तो गडकरी द्वारा उत्तराखंड में हाल में करवाए गए एक सर्वे में निशंक के नेतृत्व में पार्टी की हालत पतली होने का अंदेशा बना है....अगर यही सब रहा तो आगामी चुनावो में निशंक पार्टी की राज्य में लुटिया पूरी तरह डुबो देंगे.....




सब बातो के मद्देनजर अब भाजपा में तीरथ सिंह रावत , टी पी एस रावत , मोहन सिंह गाववासी , मनोहरकांत ध्यानी, बच्ची सिंह रावत जैसे कई दिग्गज नेता खंडूरी के साथ खड़े हो रहे है....खंडूरी की राजनाथ से शुरू से पटरी नही बैठ रही थी....क्युकि राजनाथ के अध्यक्ष रहते खंडूरी को सी ऍम की कुर्सी ५ लोक सभा हारने के बाद गवानी पड़ी थी ... अब उन्ही राजनाथ सिंह को राज्य में पार्टी का चुनाव प्रभारी बनाया गया है जिसे खंडूरी नही पचा पा रहे है ....



अपनी बेदाग़ छवि के मद्देनजर अब खंडूरी के सामने एक ही विकल्प बच रहा है या तो वह भाजपा को "गुड बाय" कहे और अपनी खुद की पार्टी बनाये या उत्तराखंड क्रांति दल जैसे दल के साथ जुड़कर राज्य में भाजपा और कांग्रेस का विकल्प जनता के बीच बने... देखना होगा जनरल को इसमें कितनी सफलता आने वाले दिनों में मिलती है ?




बहरहाल जो भी हो खंडूरी आने वाले दिनों में भाजपा की बढ़ी मुसीबत बने रहेंगे.....भाजपा हाई कमान से अब इस बात की उम्मीद बिलकुल भी नही है वह निशंक को चुनावों से पहले हटाने का "रिस्क" मोल लेगी...... ऐसे में अब सबकी निगाहे खंडूरी की तरफ है ॥ कोई बड़ा फैसला उन्ही लेना है.....


( लेखक भोपाल से प्रकाशित "विहान "मासिक पत्रिका के स्थानीय संपादक और राजनीतिक विश्लेषक है)

बुधवार, 27 जुलाई 2011

निगमानंद की मौत ....


निशंक के पोल का बज गया ढोल
निगमानंद की मौत ने गहरे राज दिए हैं खोल
६८ दिन के अनशन पर रहें बैठे
कोई नही आया उनसे हाल पूछने कैसे ?
मात्री सदन को अनशन पर झोंक शिवानन्द बने रहें गुरु
वहीँ राम देव का स्वागत किया पलक पवारे बिछाकर
उनका अनशन तुडवाने पहुंचे सब बारी-बारी
सोचा क्यों न इसी बहाने कर ले आने वाले चुनाव की तैयारी
राजनेताओ का धर्मं हैं राजनीति
लेकिन बाबाओ को इस रंग में रंगा पहली बार पाया
मीडिया के चकाचौंध में सब भूल गए की
साँस की अंतिम लड़ाई करता इसी अस्पताल में एक गंगा पुत्र भी आया
माना कला धन वापस लाना है ज़रूरी
तो क्या गंगा जल के बिना हम सब की ज़रूरते हो जाएँगी पूरी
एक सवाल जो मन में कौंधता है
क्या अंतर हैं संत और ढोंगी योगी में
६८ दिन का अनशन किसी को नहीं दिखा
और कोई चंद दिनों में ही पड़ने लगा फीका-फीका
जीने के लिए चाहिए गंगा जल
और अंत मुक्ति के लिए भी चहिये गंगा जल
कोई मरता रहे इसे बचाने के लिए तो मरे
किसी को चिंता नही हैं इस पल
ये हाल रहां तो आने वाली पीढियों के लिए
क्या शुद्ध जल बच पायगा कल ??

सोमवार, 25 जुलाई 2011

महोदया गुस्ताखी के लिए क्षमा चाहूंगा...










चलो
देश से गरीबी और बेरोजगारी हटायें....
चलो भ्रष्टाचारी नेताओं से छुटकारा पाएं....
चलो फेसबुक और कैव्स के माध्यम से एक क्रांति लाएं....
ऐसा कुछ भी तो लिखा जा सकता है....
आपको पूरी आजादी है....जो चाहें लिखें....
लेकिन गुजारिश है कि.....
धूप को भी छाता ओढाएँ
हवा को ऊचा उड़ना सीखायें
बादल को निचोड़ कर बारिश बनाये......
की बजाय प्रैक्टिकल बातों को लिखें....
ताकि कोई प्रेरणा ले सके....
हम लोग युवा हैं....मजबूर युवा.....
हम सिर्फ तमाशा देख रहे हैं....
हमें किसी प्रेरणा की जरूरत है....
हमसे भी कोई कहे कि का चुप साधि रहे बलवाना.....
और ये कहने वाला कोई आकाश से नही आयेगा...
हमें खुद एक-दुसरे के लिए प्रेरणा बनना होगा....

क्योंकि भगत सिंह की कुर्बानी जाया नही जाएगी .....













कल
24 जुलाई को स्टार प्लस पर आईफा अवार्ड देखा.......
रितेश देशमुख प्रोग्राम का संचालन कर रहे थे....बहुत अच्छा लगा....एक राजनेता का बेटा होते हुए उन्होंने राजनिति का मोह छोड़कर फिल्मी दुनिया की राह चुनी ....वह काबिले तारिफ है....और परिवारवादी नेताओं के मुंह पर थप्पड़ भी....ये नाकाबिल लोग अपने बाप के दम पर राजनिति में आकर मौज कर रहे हैं...औऱ महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद के मुद्दे पर मुह सील करके बैठे हैं.....ये नेता पुत्र लोग देश से गरीबी...बेरोजगारी...महंगाई कैस दूर करेंगे....जब इसका दुख क्या होता है...इन्होंने कुछ देखा ही नही......खैर गांधी जी के इस देश में ही भगत सिंह और चन्द्रशेषर आजाद भी रहते थे..कहने का मतलब ये है कि गैर जिम्मेदार और स्वार्थी नेताओं का ... इलाज भी होगा....वो भी फुल ऐन्ड फाइनल लोकतांत्रिक ढंग से.....क्योंकि भगत सिंह की कुर्बानी जाया नही जाएगी .....

सोमवार, 18 जुलाई 2011

चलो यार कुछ नया कर जाये


चलो बारिश को रेन कोट पहनाये
धूप को भी छाता ओढाएँ
हवा को ऊचा उड़ना सीखायें
बादल को निचोड़ कर बारिश बनाये
चलो यार कुछ नया कर जाएँ
झूमकर बहारों से एक मंज़र भी छाने लगा
छाई बहारों में अब तो सावन भी गाने लगा
पेड़ो को भी बोलना सीखाएं
चलो यार कुछ .......
सपनों की इस गाड़ी पर चलो बिन पैसे करे खूब सवारी
क्योंकि ये सारी दुनिया ही हैं हमारी
मत कर अब मन भारी
संग ख़ुशी को लेकर पूरी कर ले जीतने की तैयारी
आखिर आ ही गई तेरी बरी :)

रविवार, 17 जुलाई 2011

देश दहला ...


दिल्ली दलही, जयपुर दहला, दहला उत्तर-प्रदेश
नेता शासन कर रहें है बदल-बदल कर भेष
कभी बंगलौर दहला तो कभी दहला पूना
मुंबई तो दहल दहल कर करती रही काम दूना
हर बार गिरकर उठना लोगों की आदत बन गई
इतने पर भी नेताओ की फितरत नहीं सवरी
जनता तो सहती रही हैं
मगर उसे अब लड़ना होगा
मुंह खोलकर कर मुखर होकर अब उसें ये कहना होगा
नहीं कर सकते सुशासन तो छोड़ दो ये आसन
बनता नही हैं हमारा काम देने से केवल भाषण
देश दहला इसकी किसे है चिंता खेल रहें हैं आपस में केवल ब्लेंगेम
इंतज़ार करो नेताओ एक दिन ऐसा आयगा जब दुनिया कहेगी शेम-शेम ..

बुधवार, 13 जुलाई 2011








माम्मू का अधूरा सपना ..........................





http://www.boltikalm.blogspot.com/
वह कसाब को फासी पर चढाने की राह लम्बे समय से देखता रहा लेकिन हमारे देश के नेताओ की वोट बैंक की राजनीती के कारण मुंबई पर हमला करने वाले आतंकी अजमल आमिर कसाब को फासी पर नही चढ़ाया जा सका ......कसाब को फासी पर चदाये जाने की कसक माम्मू के दिल में व्याप्त थी लेकिन माम्मू की तमन्ना अधूरी रह गई.....





आज जिस माम्मू नाम के शख्स की बात आपसे कर रहा हू ,वह कोई मामूली आदमी नही है...वह देश का एकमात्र जल्लाद था जो उन लोगो को फासी पर लटकाया करता था जिनकी मृत्युदंड की याचिका राष्ट्रपति के द्वारा ख़ारिज कर दी जाती थी...



मीरत के टी पी नगर में रहने वाला माम्मू जल्लाद उत्तर प्रदेश जेल का कर्मचारी था जिसने कई दर्जन लोगो को फासी पर लटकाया था......माम्मू को करीब से जानने वालो का कहना है कि माम्मू हर दिन कसाब को फासी पर चढाने की राह देखता रहा लेकिन उसका सपना पूरा नही हो सका ....माम्मू का पूरा खानदान अरसे से जल्लाद का काम करता आ रहा था ...



माम्मू देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर की दया याचिका खारिज होने के बाद सुर्खियों में आया .......अगर भुल्लर की सजा पर कोई फैसला नही आता तो शायद माम्मू भी सुर्खिया नही बटोरता ..... बहुत कम लोग ये जानते होंगे माम्मू देश का आखरी जल्लाद था और अब उसकी मौत के बाद देश में जल्लादों का संकट पैदा हो गया है .... अपनी मौत से पहले उसने जेल के अधिकारियो से कई बार यह विनती की कसाब को जल्दी फासी पर लटकाया जाए जिससे उसकी तमन्ना पूरी हो सके लेकिन हमारे देश की घिनोनी राजनीती के चलते उसकी मुराद पूरी नही हो सकी और वह खुदा को प्यारा हो गया.....



६६ साल का माम्मू पिछले कुछ समय से बीमार चल रहा था जिसका पता जेल प्रशासन को भी था पर कसाब को फासी पर लटकाने का फैसला जेल वालो को नही बल्कि राष्ट्रपति को करना था ...माम्मू का पूरा खानदान जल्लादी के काम से था....उसके पिता और दादा भी इस काम को कर चुके थे.... उसके पिता कालू ने तो इंदिरा गाँधी के हथियारे कहर सिंह और बलवंत सिंह को फासी पर लटकाया था ....



पिता की मौत के बाद माम्मू ने कई लोगो को अपने हाथो से फासी पर लटकाया ...माम्मू के दादा राम अंग्रेजो के दौर में जल्लाद का काम किया करते थे ... आज़ादी के दौर में कई क्रांतिकारी भी हस्ते हस्ते फासी के तख़्त पर चढ़ गए जिन्हें माम्मू के दादा ने ठिकाने लगाया ... इनमे भगत सिंह , सुखदेव, राजगुरु जैसे क्रांति कारी भी शामिल थे ......आज़ादी के महानायकों को फासी पर चढाने का जो काम माम्मू के दादा ने किया था उससे वह बहुत शर्मिंदा था क्युकि माम्मू के दादा ने यह सब काम फिरंगियों के दबाव में किया था और अंग्रेजी हुकूमत काली चमड़ी वालो से किस तरह बर्ताव करती थी इसकी मिसाल इतिहास में आज भी पढने को मिल जाती है....



माम्मू बार बार कसाब को फासी पर जल्द चदाये जाने की बातें इसलिए करता था क्युकि उसे लगता था अगर उसने इस आतंकी को फासी पर चढ़ा दिया तो उसके पुरखो के सारे पाप मिट जायेंगे और उसको प्रायश्चित करने का एक सुनहरा मौका मिल जाता .....लेकिन माम्मू की ख्वाइश अधूरी ही रह गई......

जलन के इस चलन को मेरा नमन!

शकील जमशेदपुरी
www.gunjj.blogspot.com


नंदनी को जब अरमान ने किसी दूसरे लड़के  के साथ बाईक पर घूमते देखा तो उसका मन निराशा से भर गया। उन्हें वह दौर याद आ गया जब नंदनी उनके साथ हाथों में हाथ डालकर घूमा करती थी। कभी जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाने की कशमें खाई थी। पर दोनो अलग हुए क्यों? क्या इसके लिए अरमान का व्यवहार जिम्मेदार था? हो सकता है। नंदनी आधुनिक ख्यालों में रची बसी थी। पर अरमान परम्परागत विचारों को आदर्श मानता था। उन्हें  न तो नंदनी का पहनावा पसंद था और न  ही वह नंदनी के उन विचारों को प्रशय देता था जो नंदनी अक्सर अरमान पर थोपना चाहती थी। शायद इन्ही विरोधाभासी विचारों ने दोनों के रिश्तों में कटुता पैदा कर दी थी। नंदनी ने उन बाहों में शरण ले ली जो उन्हें वो सारी सारी चीजे करने की  छूट देता हो। और अरमान? उन्हेंने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। वो नंदनी को दूर होते हुए देख सकता था पर अपने मूल्यों को नहीं। एक दिन उन्होंने नंदनी को मिलने के लिए बुलाया। और क्या कहा?
"आप जो कर रहे हैं वो सरासर गलत है। पर मैं भी घोर आशावादी प्रवृति का  हूं। आपके  इस व्यवहार में भी मुझे संभावनाओं की जमीन दिखाई दे रही है। यह बात आप भी जानते है कि आपका  व्यवहार मुझे कतई अच्छा नहीं लगेगा। पता नहीं इसके पीछे आपका  मंतव्य क्या है। पर आप ऐसा कर के जाने-अनजाने मेरी जिंदगी पर बड़ा उपकार कर रहे हैं। क्योंकि जब भी मैं आपको किसी दूसरे लड़के के  साथ देखता हूं तो मेरे अन्दर एक अदृश्य शक्ति का  संचार हो जाता है। जीवन में कुछ बनने का जज्बा पैदा हो जाता है। जिंदगी से लडऩे का हौसला मिलता है। मुझे नजरअंदाज करने वाला आपका हर एक कदम मुझे गंभीर जीवन के और समीप ले आता है। मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप मेरे साथ एसा व्यवहार जारी रखे। क्योंकि यही मुझे हौसला देती है। हालात से लडऩे के लिए प्रेरित करती है। तो नंदनी जी और जलाईए मुझे। जितना जला सकते है उतना जलाईए। मेरे दिशाहीन जिंदगी को इस जलन की जरूरत है। आपके जलन के इस चलन को मेरा नमन।"

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

cavs today grow every day...

data source ...google 

report per second based
aap log kee mehnat ka asar.....

देशों के अनुसार पृष्‍ठ देखे जाने की संख्‍या


भारत ५,६७०

संयुक्त राज्य अमेरिका ३३०

मलेशिया ७१

संयुक्त अरब अमीरात ५९

रूस ५३

दक्षिण कोरिया ५०

कनाडा ४०

जर्मनी ३७

यूक्रेन २६

ब्रितन २३



ब्राउज़र के अनुसार पृष्‍ठ देखे जाने की संख्‍या

Internet Explorer ३,०९७ (47%)

Firefox १,६२५ (24%)

Chrome १,२९७ (19%)

Opera २५६ (3%)

chromeframe ११६ (1%)

Safari ८९ (1%)

Java ३७ (<1%)

Jakarta Commons-HttpClient २६ (<1%)

SimplePie १५ (<1%)

(via translate.google.com) ४ (<1%)


ऑपरेटिंग सिस्‍टम के अनुसार पृष्‍ठ देखे जाने की संख्‍या

Windows ६,०७३ (96%)

Linux ७३ (1%)

Nokia ६४ (1%)

Other Unix ४० (<1%)

Macintosh ३५ (<1%)

Android ७ (<1%)

Samsung ३ (<1%)

Windows NT 6.1 ३ (<1%)

iPhone ३ (<1%)

सोमवार, 11 जुलाई 2011

मैं तिहार हुं


मैं तिहार हुं
अब तक मैं सोचता था की मैं बेकार हुं
लेकिन अब पता चला की मैं माहाघोटालेबाजो का नया संसार हुं
पहले संतरी रहते थे
और अब मंत्री पे महामन्त्री रहते हैं
मुझमें ही रह कर मेरी हवा खाते है
उनके आने से हो गया सब बेकार है
मै तिहार हुं
अब तक सोचता था की मै .............

पहले लुज्जे - लफंगे बदमाश मेरा चक्कर लगते थे
और अब तो पत्रकरों की भरमार है
पहले क्रेन बेदी इसकी पहचान थी
और अब तो कनिमोड़ी ही केंद्र हैं
अब तो धन्ना सेठो की भी भरमार हैं
मैं तिहार हुं
अब तक मैं सोचता था की............

पहले चोरी, डाका, हत्या करके थक कर आये मेहमान आराम फरमाते थे
लेकिन अब तो देश को ही लूट कर आये महाडकैत मुझे में समाते हैं
मैं तो खुद में शर्मशार हुं
क्या करू दोस्तों क्योकि मैं तिहार हुं
अब तक मैं सोचता था............

पहले भोजन सादा था
कभी- कभी कैदिओं का पेट भरता भी आधा था
लेकिन अब तो लोग यहाँ पकौड़े खाते हैं
साथ में सुप्रिटेडेट को भी खिलाते हैं
एक सडी मछली तो कोई गम नहीं
लेकिन यहाँ तो पूरी मछलियाँ ही सड़ी हैं
मेरे चारो तरफ अन्धकार ही अन्धकार है
क्या करूँ दोस्तों मैं, क्योंकि मैं तिहार हुं
अब तक मैं सोचता था की मैं बेकार .................................

भाग D.K Boss भाग........रूक जा D.K Boss रूक जा........

भाग D.K Boss.. भाग
Qki-
यहां महंगाई ही नहीं- भ्रष्टाचार भी है....
यहां आतंकवाद ही नहीं-नक्सलवाद भी है....

यहां धनबल और बाहुबल ही नहीं- वंशवाद भी है....

यहां ललित मोदी और माल्या ही नहीं- IPL भी है....

यहां दिग्गी ही नहीं- राहुल भी है....

यहां बिकाऊ सांसद ही नहीं- बिकाऊ पत्रकार भी हैं....

रूक जा D.K बोस रूक जा
Qki-यहां रामदेव ही नहीं- अन्ना भी हैं.............

अन्ना तुम संघर्ष करो-हम तुम्हारे साथ हैं........
15 अगस्त 2011- चलो दिल्ली
आजादी की दुसरी लड़ाई लड़ने- चलो दिल्ली               

तुम भी लूटो-हम भी लूटें


चलो संसद में शोर मचाएं
तुम भी लूटो-हम भी लूटें

चलो पक्ष-विपक्ष का स्वांग रचाएं

तुम भी लूटो-हम भी लूटें

चलो जनता को बेवकुफ बनाएं

तुम भी लूटो-हम भी लूटें

चलो मिलकर अपनी सेलरी बढ़ाएं

तुम भी लूटो-हम भी लूटें

तुम सत्ता में आना-तुम लूटना

अभी हम सत्ता में हैं हम भी लूटें
तुम भी लूटो-हम भी लूटें

चलो माया-मुलायम को CBI से डराएं
तुम भी लूटो-हम भी लूटें

चलो रामदेव और अन्ना को औकात बताएं
तुम भी लूटो-हम भी लूटें

चलो लोकपाल बिल अपनी सुविधा से बनाएं
तुम भी लूटो-हम भी लूटें

जनता तो वैसे ही भोली है-चलो भोलेपन का लाभ उठाएं

तुम भी लूटो-हम भी लूटें

चलो अपने बेटा-बेटी को टिकट दिलाएं

तुम भी लूटो-हम भी लूटें

पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें

शकील जमशेदपुरी

पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं  इतना स्वीकर करें  
छोड़ के अपना घर आंगन गैरों के घर से प्यार करें


आठ इंच की  हील कहीं, कहीं कमर से नीचे पैंट है
खान-पान में पिट्जा बर्गर फिल्मों में जेम्स बांड है
हिंदी भी अब रोने लगी है देख के आज युवाओं को
बात-चीत की शैली में जो अमरिकन एक्सेंट है
 
जरूरी है क्या इन चीजों को खुद से अंगीकार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें

हेड फोन कानों में लगा है जुबां पे इसके गाली है
बाल हैं लंबे, हेयर बेल्ट और कान में इसके बाली है
देख के कैसे पता चले यह लड़का है या लड़की है
चाल चलन भी अजब गजब है चाल भी इसकी निराली है

कहता है कानून हमारा लड़कों से भी प्यार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें 

सरवार दुपट्टा बीत गया अब जींस टॉप की बारी है 
वस्त्र पहनकर पुरुषों का यह दिखती कलयुगी नारी है
सोचो आज की लड़की क्या घर आंगन के काबिल है
रोज-रोज ब्यॉ फ्रेंड बदलना फैशन में अब शामिल है

आधुनिकता को ढाल बनाकर इश्क का क्यूं व्यपार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें


जींस कहीं आगे से फटी पीछे से फटी यह डिस्कोथेक जेनरेशन है
भूल के अपनी भारत मां को  पश्चिम में करते पलायन है
होंठ लाल नाखुन भी बड़े यह दिखती बिल्कुल डायन है
गांधी जयंती याद नहीं पर याद इन्हें वेलेनटायन है
 
भारत की गौरव का कब तक यूं ही हम तिरस्कार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें


मेक-अप से सजा है चेहरा इनका बिन मेकअप सब खाली है
बच के  रहना तुम इनसे यह माल मिलावट वाली है
दर्पण पर एहसान करे श्रृंगार करे यह घंटों में
रंग बदलती गिरगिट की तरह है दिल बदले यह मिनटों में
 
इनसे हासिल होगा नहीं कुछ चाहे हम सौ बार करें
पाश्चात्य संस्कृति को हम क्यूं इतना स्वीकार करें

रविवार, 10 जुलाई 2011

लो फिर हो गया एक रेल हादसा..............


10 जुलाई को दोपहर फतेहपुर जिले के मालवा में कालका मेल की 14 बोगियां पटरी से उतर गईं । दोपहर 12.20 बजे यह हादसा इमरजेंसी ब्रेक लगने की वजह से हुआ। रात को 12 बजे तक हादसे में करीब 200 लोगों के घायल होने व 35 के मरने की खबर सीएमओ फतेहपुर से प्राप्त हुई है...

रेल मंत्रालय की कमान इन दिनों भारत के परम मनहुस प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथ में है,,,,,,ध्यान देने की बात ये है कि रेल मंत्रालय पहले ममता बनर्जी के हाथ में थी....लेकिन ममता के बंगाल की सीएम बन जाने के बाद अब वह रेल मंत्री की कुर्सी अपनी पार्टी के किसी नेता को दिला सकती थीं.......लेकिन वह अपने बराबर का कद अपनी पार्टी में किसी का नहीं देखना चाहती.....इसलिए रेलमंत्रालय की कमान मौनी बाबा अर्थात मनमोहन सिंह के हाथ में आते ही देश को परिणाम भुगतना पड़ गया...इसमें प्रधानमंत्री का कोई दोष भले ही नही दिख रहा है.....लेकिन जैसा कि तमाम न्यूज चैनल्स पर इस समय खबरें आ रही हैं....कि लोग ट्रेन में तड़प रहे हैं.....रेल प्रशासन तेजी से कार्यवाही नही कर पा रहा है.....एयर एंबुलेंस की व्यवस्था नही है,,,,,,तो किसको दोष दिया जाए...........कल तक जो राहुल गांधी किसानों के बीच जाकर चिल्ला रहे थे.,,,,,आज घायल यात्रियों के लिए उनके मुंह से दो शब्द तक नही निकल रहा है,,,,,,,,कहां है राहुल......इस घटना के बाद की पुरी जिम्मेदारी मनमोहन और स्वार्थी ममता बनर्जी की है.....जिस ममता ने अपनी पार्टी में अपना कद मेनटेन रखनें के लिए अपने पार्टी के किसी सदस्य को रेल मंत्री नही बनने दिया,,,,,,,,,,,मनमोहन एक मनहुस सख्स हैं...वो तो राहुल गांधी के हाथों अपनी कुर्सी खोने के टेंशन में मर रहे है.....घायल रेल य़ात्रीयों की क्या परवाह करेंगे.....भ्रष्टाचार के मामले में मजबूर हैं......तो आज कौन सी मजबुरी है कि रेल मंत्रालय का अतिरिक्त भार ढो रहे हैं...और यात्रीयों को मरने के लिए छोड़ दिया है,,,,,,,

झाँसी की रानी के बहाने.....



वक़्त बदल गया है लेकिन फिर भी कुछ चीजे कभी नही बदलती. जो बीत चूका है और अब इतिहास में दर्ज हो चूका उसे कभी भी नही बदला जा सकता है. वो कालजई रचनाये जिसे पढ़ कर और गुण कर कितनी ही पीढ़िया तैयार हुई और अपनी नई सोच के साथ दुनिया को नई रह दी. ऐसे में इन ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़-छाड़ कहां तक सार्थक है.हाल ही में मध्य -प्रदेश की छठी क्लास में सुभद्रा कुमारी चौहान की मशहूर कविता ' झाँसी की रानी' के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. ये कविता आज़ादी की लड़ाई में शरीक लक्ष्मीबाई की वीरता की दास्ताँ है जो उस वक़्त देशभक्तो को प्रेरित करने के मकसद से लिखी गई थी. जो आज भी प्रेरणा की श्रोत बनी हुई हैं . इसे पढने वालों ने ''अंग्रेजो के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी " पंक्ति को शायद ही ध्यान दिया होगा क्योंकी इस पूरी कविता में तो झाँसी की रानी के प्रचंड रूप का ही वर्णन है . राज्य की किताबो में किसी भी पद या कविता को शामिल करना है या नहीं इसका फैसला राज्य की शिक्षा आयोग ही करती है, जो अक्सर वर्तमान सरकार से प्रेरित होती है. .एम.पी में भी यही हुआ, भाजपा की सरकार को इस कविता की उपयुक्त पंक्ति से सिंधिया परिवार से रिश्ते खराब होने का डर था. इसलिय उन्होंने ये कदम उठाया और उस पंक्ति को ही मूल कवित से हटा दिया गया था . लोगो के इस मुद्दे पर उठा -पटक करने पर सरकार को कविता को मूल रूप में ही रखने के लिए मजबूर होन पड़ा. ऐसी घटनाये नई नही है. कुछ दिनों पहले ही देश के वीरो जिन में (भगत सिंह भी शामिल थे) को उनकी जात के अनुसार दिखाया गया था जो शर्मनाक घटना थी.



याद आते है वो दिन जब हम बचपन में बिहार के गाँव में छठी क्लास में इस कविता को पढ़ा करते थे. उस वक़्त एक सौ छब्बीस पंक्तिया की ये कविता हमारी योग्यता के परिक्षण का पैमान बन जाया करती थीं. मात्र ६ दिन का समय मिलता था और हम इसे कंठस्त करने की पुरजोर कोशिश करते. एक-एक शब्द के साथ अपने जज्बात को उडेअल कर कविता सुनाते क्योंकि रानी का सम्मान जो पाना होता था. हमारे स्कूल में ये नियम था जो भी इस कविता को सबसे ज्यादा जीवंत करके सुनाता उसे पहलें ६ माह में रानी का सम्मान मिलता था. हर साल कोई-न-कोई जीतता था सो हमारी क्लास में सविता की कविता वचन ने सब को मोहित किया और वो जीत गई, और जो नही जीतीन शायद उन्होंने ताउम्र झाँसी को याद रखा और रानी को भी. जिनमे से कईयो ने आगे चल कर अपने को साबित भी किया और कुछ प्रयासरत है. आज भी जब झाँसी स्टेशन आता है तो वो बीते हुए बचपन के दिन आन्यास ही याद आ जाते है. प्रेरणा का श्रोत अक्सर वही लोग या पाठ होते है जो सच्चाई से अपने कर्म को करते है और वो कभी नही बदलते है चाहें कोई भी हालत हो . ये बात इस कविता पर भी लागु होती है. इस घटना ने एक बात तो साबित कर दिया है की राजनैतिक पार्टिया अपने रिश्तो को बनाये रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. राज्य की शिक्षा और लोगो की भावनाओ से उन्हें क्या लेना देना. ऐसे में ज़रूरत है की सोच के दायरे को बड़ा kiya jay. .

शनिवार, 9 जुलाई 2011

"विद्वानों में बहुत मतभेद है। कोई इसे हाथी कहता है और कोई इसे जामुन।"

शकील जमशेदपुरी

अज्ञात नामक  एक गांव था। इस गांव के विषय में असामान्य यह था कि यहां सभी अनपढ़ लोग रहते थे। सिर्फ चतुर्वेदी जी को छोड़ कर। ऐसा नहीं था कि चतुर्वेदी जी बहुत बड़े विद्वान थे। चूंकि वह गांव के बाकी लोगों से ज्यादा पढ़े लिखे थे, यहां वहां भ्रमण करते रहते थे, इसलिए लोगों की नजर में किसी विद्वान से कम नहीं थे। चतुर्वेदी जी की एक अच्छी आदत थी। जब भी वह कहीं कोई नई चीज देखते, उसे अपनी डायरी में नोट में कर लेते। पर उनकी एक बुरी आदत भी थी। वह नई चीजों का नाम तो लिखते थे पर उसका विवरण नहीं लिखते थे। एक बार वह एक मेला घूमने गए। वहां उसे एक भीमकाय जानवर दिखा। लोगों  से उसने पूछा कि यह क्या है? जवाब आया कि यह हाथी है। अपनी आदत के अनुसार चतुर्वेदी जी ने अपने डायरी में लिख लिया-हाथी। थोड़ी देर घूमने के बाद उसे एक गोलाकार वस्तु दिखाई दी। लोगों से पूछने पर उन्हें पता चला  कि यह जामुन है। चतुर्वेदी जी ने अपनी डायरी मे लिख लिया- जामुन। चतुर्वेदी जी ने ना ही हाथी का विवरण लिखा और न ही जामुन का। हां उन्होंने दोनों के आगे काला शब्द जरूर लिखा था।
इत्तेफाक से कुछ दिनों बाद गांव में एक हाथी आया। गांव वालों के लिए यह एक कौतुहल का विषय बन गया क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि यह जानवर है क्या। लोगों ने सोच कि क्यों न चतुर्वेदी जी के पास चलते है। वह पढ़े लिखे हैं। जगह-जगह घूमते रहते हैं। उन्हें जरूर पता होगा इस जानवर के बारे में। लोगों के बुलावे पर चतुर्वेदी जी हाथी के पास पहुंचे। हाथी को देखने के बाद फौरन उसे याद आया कि इसे पहले कहीं देखा है। तत्काल उन्होंने अपनी डायरी निकाली। डायरी में दो चीजें लिखी थी- हाथी और जामुन। अब चतुर्वेदी जी दुविधा में पड़ गए कि यह हाथी है या जामुन? क्योंकि किसी का विवरण तो उन्होंने लिखा था नहीं। पूरे गांव की भीड़ एकत्र थी और चतुर्वेदी जी को उस जानवर के बारे में बताना था। काफी विचार-विमर्श करन के बाद भी चतुर्वेदी जी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए कि यह हाथी है या जामुन। अंतत: उन्होंने गांव वालों को संबोधित करते हुए कहा- "देखिए विद्वानों में बहुत मतभेद है। कोई  इसे हाथी कहता है और कोई इसे जामुन।"
(यह कहानी मैंने कहीं सुनी थी)

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

तो इत्तेफाक से मै भी खानदानी पत्रकार हो गया........










दरअसल इस
वर्ष 2011 की होली में मैंने माखनलाल युनिवर्सिटी ( कैव्स ) के अपने दोस्तों के बारे में..... बुरा न मानो होली है... शीर्षक से कुछ खट्टी मीठी बातों को लिखा था....कोई गंभीर मुद्दा नही था....जिसने भी पढ़ा खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया.....अपने एक दोस्त अभिषेक पाण्डेय के बारे में भी मैने बस यही लिखा था कि-
अभिषेक (गजनी ).....युवा रचनाकार पुरष्कार विजेता फ़िलहाल "खानदानी पत्रकार"

....... अब संयोग देखिये कि मेरा भाई भी इस बार महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में पत्रकारिता में एड्मिशन ले लिया.....( हालांकि मैने उससे कहा था कि यार- बैंक की तैयारी करलो....रेलवे की तैयारी करलो एक बार हो गया तो लाइफ टाइम मौज करोगे....लेकिन नही माना )
चलिए यहां तक तो ठीक था.....बोले
तो मैने अपने कुछ दोस्तों को मैसेज के जरिये ये सूचना दे दी....क्योंकि 5 जुलाइ को मै खुद वर्धा गया था उसका एडमिशन कराने....वहां का माहौल....कैम्पस की खुबसुरती.....देखकर मै खुश हो गया...और यह समाचार मैने अपने चहेते लोगों तक पहुंचा दी......उन्ही चहेते लोगों की लिस्ट में एक प्रमुख नाम अभिषेक पाण्डेय का भी है.......मैसेज भेजने के बाद मै भूल गया.....वर्धा से वापस हैदराबाद लौटा......तेलंगाना बंद कि वजह से बड़ी मुसीबत से अपने ऱुम तक पहुंचा.....मुसीबत बोले तो तेलगू भाषी भाई लोग आंध्रप्रदेश के बंटवारे के लिए तड़प रहे हैं.....बस बंद था....किसी तरह डरते-डराते एक न्यूज पेपर वाले से काफी रिक्वे्स्ट करके अपना आई कार्ड दिखाकर बोले तो मालवाहक गाड़ी से अपने रुम तक सही सलामत पहुंच गये....साथ में मेरा भाई भी था......मुझे एक दिन पहले ही मैसेज मिल गया था कि 5-6 जुलाई को तेलंगाना बंद रहेगा....सभीको चैनल के ही होटल में दो दिन रुकना है..बस सेवा बंद रहेगा....... खैर 6 जुलाई को तेलंगाना बंद के बावजूद दोपहर में मै अपने ड्यूटी के लिए निकला.....चुंकि सुबह मै एक बार रिस्क ले चुका था....दुसरी बार भी रिस्क लिया.....और कामयाब रहा...........अब मेन बात जो मै बताना चाह रहा हूं वो ये है कि रास्ते में अभिषेक पाण्डेय द्वारा बधाई संदेश मिला....आदित्य भाई - भाई के एड्मिशन की बधाई.... मैने भी रिवाज के अनुसार धन्यवाद भेज दिया.....फिर उस भाई ने एक मैसेज भेज दिया----,,,,अब तुम भी हो गये खानदानी पत्रकार,,,, तुरंत मुझे होली में उनके बारे में लिखा गया कमेंट याद आ गया.....मुझे बहुत हंसी आ रही थी....शर्म भी लग रहा था.....कि मैने उसक मजा क्यों लिया था...अब वो मजा ले रहा है....अंत में मैने कह दिया हां यार अपने ही शब्दों में फंस गया.....अब तो अपने ही बारे में ब्लाग लिखना पड़ेगा.......खैर अभिषेक पाण्डेय के बहाने मै सभी को बतादूं कि आज के जमाने में भाई- भाई रह ही नही गया है--कसाई हो गया है....कोई बात ही नही मानता.....कम से कम अपने भाई के बारे में तो मै ये बात कह ही सकता हूं....क्योंकि अगर मेरा भाई मेरी बात मान गया होता और रेलवे या बैंक की तैयारी करता.....तो शायद मुझे यहां ब्लाग लिखकर सफाई नही देनी पड़ती......खैर अभिषेक पाण्डेय जो आमतौर पर मेरी बातों का सही अर्थ समझ जाते हैं....उनको बताना चाहूंगा कि भले ही मै भी उनकी तरह खानदानी पत्रकार हो गया हूं......लेकिन मेरा पत्रकारिता बाला परिवार उनके परिवार से छोटा है.....लेकिन एक डर और है मेरा एक छोटा भाई और है.....जो गोरखपुर के सेंट्रड्यूज डिग्री कालेज से बीएससी कर रहा है......कहीं उसके दिमाग में भी पत्रकारिता की खुजली ना होने लगे......खैर आप लोग दुआ किजिएगा ऐसा न हो....और मै भी अपनी जान लगा दूंगा कि ऐसा न हो.....लेकिन एक बात मैं फिर से कहना चाहूंगा....भाई तो आज को जमाने में भाई रह ही नही गये हैं......कसाई हो गये हैं..... कोई बात नही मानते....जहां जाओ पीछे-पीछे चल देते हैं......हां माखनलाल के विवेक भाई, अंशुमान भाई, फरहान भाई, ललित भाई, हर्ष भाई, सौरभ भाई और आज के डेट में सबसे बड़े भाई अभिषेक भाई की बात कुछ और है...