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गुरुवार, 11 अगस्त 2011

सियासी कठपुतली का भारतीय चैनलों पे फैशन परेड


पिछले महीनें पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार तीन दिनों के भारतीय दौरे पे आईं तो खबरिया चैनेलो ने उनकी कूटनीति और दोनों देश के संबंधो को सुधारने के के बजाय उनके फैशन और लाइफ स्टाइल को महत्व दिया. चैनलों ने उनके कपडे, चश्मे, ऊँची हील की सेंडल का मूल्याकन कर खबरों को दिखा दिया.जो पाकिस्तान की विदेश मंत्री को नागवार गुजर रहा हैं.खार ने पाकिस्तान से ही भारतीय मीडिया की जम कर आलोचना की और कहा कि अब तक मैं भारतीय मीडिया को ज़िम्मेदार और संवेदनशील समझती थी.लेकिन ये मेरा भ्रम ही साबित हुआ.
हिना रब्बानी खार का भारतीय दौरा विदेश मंत्री बनने के बाद उनकी पहली यात्रा थी.खार भारतीय सरज़मी पर पहुंचते ही अपने प्रतिनिधि मंडल के साथ भारत में पाकिस्तान के उच्चायोग में हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों धडो के नेताओं से मिली.हुर्रियत को लेकर ये जग जाहिर है कि ये एक अलगाववादी संगठन हैं जिसकी भाषा और विचाराधारा दोनों ही पाकिस्तान द्वारा संचालित होती हैं.हुर्रियत के कट्टरपंथी धड़े का नेतृत्य सैयद अली शाह गिलानी के हाथ में है जो कश्मीर घाटी में अमन और शांति के कट्टर दुश्मन रहें हैं. हाल ही में मुंबई ब्लास्ट हुए हैं जिसमे भारतीय खुफिया एजंसिय पाकिस्तान की तरफ ही इशारा कर रही हैं.भारत और पाकिस्तान का संबधं भी अपने नाजुक दौर से गुजर रहा हैं ऐसे में आते ही हुर्रियत नेताओ से मिलना पाकिस्तान के अलगाववादी मंसूबो को हवा देने जैसे कदम लगता हैं.बाद में विदेश मंत्रिओं की बैठक में एस.ऍम. कृष्णा ने नाराजगी जताई हैं.बातचीत में २६/११ के मुकद्दमें पर धीमी गति पर आम सहमती नहीं बन पाई. कश्मीर मुद्दे पर सकारात्मक नजरिया अपनाते हुए भविष्य में बातचीत जारी करने की बात पर आम सहमति बनी.साल के शुरू से अब तक सचिव, गृहसचिव और विदेश मंत्री स्तर तक की बात हुई लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नही आया हैं.सकारात्मक पहल के तौर पर पिछले दो साल से जो समग्र वार्ता रुकी थी उसको ज़रूर प्रगति मिली है. अन्यथा परिणाम ढाकके तीन पात ही रहा है.
ऐसे नाज़ुक दौर पर नौसिखिया रब्बानी को विदश मंत्री बनाना पाकिस्तान की सोची समझी साजिश नज़र आती हैं.हुआ यूँ हैं कि यूसुफ़ राजा गलानी ने फरवरी में अपने मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल किया जिसमे पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को हटा कर हिना रब्बानी खार को विदेश राज्य मंत्री का पद सौप दिया. हालांकि कुरैशी को मजबूरन हटाना पड़ा क्युकिशाह महमूद कुरैशी ने अमेरिका खुफिया एजेंसी रेमन डेविस पर दो पाकिस्तानी युवाओं की हत्या के मामले में कड़ा रूख आख्तियार कर लिया जो अमेरिका की एजंसियो को को नही भाया.और शाह महमूद कुरैशी को मंत्रिमंडल के विस्तार के नाम पर बड़े आराम से हटा दिया गया. और अब इस पद पर खार को नियुक्त किया गया हैं .हालाँकि खार इससे पहले मुशर्रफ की पार्टी मुस्लिम लीग (क्यू) और बाद में युसूफ रजा गिलानी की पार्टी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी में आर्थिक मामलो की राज्यमंत्री रह चुकी हैं. इसके अलावा देश और प्रधानमंत्री को वित्तीय मामलो पर भी सलाह देती रही हैं.विदेशी मामलों पर भी पिछले पांच महीने से राज्येमंत्री की भूमिका में हैं. लेकिन विदेशमंत्री के लिए विदेश मामलो की जानकारी का होना ज़रूरी हैं जो हिना रब्ब्नी खार को नही हैं. हालाँकि गिलानी को खार की नियुक्ति से पहले काफी आलोचनाओं का सामने करना पड़ा था .लेकिन इस नियुक्ति से गिलानी ने एक तीर से दो निशान साधा है.पहले तो ये की कुरैशी को हटा कर अमेरिका को खुश किया जो की पाकिस्तान की राजनीति के लिए बेहद ज़रूरी है. खार की नियुक्ति से अमेरिका को ये सन्देश दिया हैं गिलानी ने की अब से कोई भी शाह महमूद कुरैशी जैसे करवाई करने की हिम्मत नही करेगा. दूसरा ये कि हिना रब्ब्नी खार विदेशी मामलो की जानकारनही है तो वो हर अहम् फैंसले ले लिए नौकरशाहों की तरफ ही देखेगी. इस तरह सेना का वर्चस्व हमेशा की तरह रहेगा जिससे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई. एस.आई. भी खुश रहेगा.इस चाल से गिलानी ने अपने लिए लम्बे समय तक प्रधानमंत्री बने रहने के लिए रास्ता साफ़ कर दिया है.कूटनीति चाहे जो भी रही हो लेकिन अभी सियासी कठपुतली तो हिना रब्ब्नी खार ही हैं. एक तरफ भारतीय मीडिया खार की बातों के बजाये उनके कपड़ो को तरजीह दे रहा है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान मीडिया उन्हें पसंद नही करता और गिलानी ने तो सियासी कठपुतली बना कर पेश किया हैं खार को . ऐसे में खार अगर पाकिस्तान की राजनीती में बेनजीर भुट्टो की तरह मील का पत्थर बनाना चाहती है तो देश के साथ-साथ विदेशी मुद्दों पर मौलिक विचार बनाने के साथ सियासी चालो को भी अपनी चातुर्य (जिसके लिए वो जानी जाती हैं) से समझना होगा .

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