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बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

उस दिन ऐसा भी हुवा...

मेरी निगाहें दूर बैठे एक जोड़े पर अचानक जा टिकी। वहां पहाड़ों के सर बादलों के ऊपर से झांक रहे थे. दूर तक फैली पहाड़ियों को देखकर वे दोनों कुछ देर शांत रहते फिर अपनी चुप्पी जोरदार हंसी के ठहाकों के साथ तोड़ते। ये सिलसिला काफी देर तक चलता रहा. मैं दोनों को देखना चाह रहा था। अलबत्ता मैं उनके सामने जा खड़ा हुवा। दोनों मुझे देखकर हैरान थे और मैं उन्हें। क्यूंकि वो लड़का मैं ही था और वो लड़की दीपिका (हाँ वही ओम शांति ओम और राम-लीला वाली). मैं खुद को dekh कर हैरान था और दीपिका एक ही जैसे दो लोगों को देखकर। अब उस सीन में किसी एक को तो गायब होना ही था सो गया हो गया. मुलाकात का सिलसिला कुछ आगे बढ़ता तब तक लड़कियों का झुण्ड हाँथ में बैनर पोस्टर लेकर मेरे खिलाफ नारे बजी करने लगा. उनमें से एक लड़की मेरे पास आई. वो लड़की ए.बी.पी. न्यूज़ की एंकर थी. जितना दम था उतनी ताकत से उसने मेरा कान खींचा और उस भीड़ के सामने ले जा पटका। भीड़ में शामिल सभी का चेहरा एक जैसा था. पीछे मुड़कर देखा तो दीपिका नदारद थीं. ख़राब तो लगे गा न यार. फैन तो मैं उस एंकर का भी हूँ.

नारेबाजी के बीच में दिवंगत लेखक कालबुर्गी आ गये। और हम दोनों पर ऐठ गये. बोले खुद को बड़ा पत्रकार समझते हो. क्या मैं आज का गांधी था जो किसी गुमनाम गोडसे ने मुझे मार दिया। माथे पर गोली का निशान दिखाते हुवे बोले- मेरे सवालों का तुम जवाब दो... अचानक से हो रहा शोर शराबा शांत हो गया. अब बस दो ही लोग बचे थे मैं और कालबुर्गी साहब। कुछ कहता कि इससे पहले मुनव्वर राणा जी अपने कुछ साथी साहित्यकरों के साथ वहां आ धमके। कुछ समझ में नहीं आ रहा था. सोचा भाग लेता हूँ कि इखलाक ने लंगड़ी मार के मुझे गिरा दिया। सुधींद्र कुलकर्णी और वो कश्मीर वाले विधायक मियां … शेख अब्दुल रशीद, बगल में खड़े होकर खीसें निपोर रहे थे. राणा साहब आये और बोले देश में कुछ शक्तियां फांसीवाद को पैदा करने में जुटी हुवी हैं और तुम मीडिया वाले समस्या पर नहीं टी.आर.पी के चक्कर में ही लगे हुवे हैं. फिर सब एक साथ बोलने लगे खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलवाने में गर्व महसूस करते हो लेकिन लोकतंत्र फांसीवाद में तब्दील में हो रहा है तो कुछ नहीं कर रहे हो. बस बहस पर बहस कराये जा रहे हो...


तभी ईश्वर ने मुझ पर कृपा बरसाई। सभी बुद्धजीवियों का घेरा थोड़ी देर के लिए ढीला हुवा और मैं भाग निकला। और जाकर जहाँ रुका वहां परीक्षा चल रही थी. देखा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश की वर्तमान स्थिति पर एक निबंध लिख रहे हैं. प्रणब दा ने निबंध पहले लिख लिया इसलिए उनका निबंध देश के नाम सम्बोधन के तौर पर सुनाया गया. कुछ दिन बाद मोदी जी की बारी आई. दोनों की टॉनिक देश को मिलने के बाद मैंने ये उम्मीद की कि अब कुछ दिन तक देश में कुछ नहीं होगा लेकिन तब पंजाब में हाय तौबा मच गयी. अभी एक दिन पहले जाति के नाम पर. देश का पहला व्यक्ति फिर टेंशन में आ गया. कल एकबार फिर उसने देशवासियों को समझाया। जब राष्ट्रपति साहब देश को समझा रहे थे उसी समय हिन्दू समाज के कथित ठेकेदार और सत्ता के लोभी स्वार्थी लोग जम्हाई ले रहे थे. काफी देर तक यह सब चलता रहा तभी एक ४ साल का बच्चा गिलास में पानी लेकर आया और जम्हाई ले रहे उन लोगों पर फेंक दिया। और रौद्र रूप में बोला- अब तो जागो, देश को हिन्दू, मुस्लिम या किसी जाति के लोगों के रहने लायक नहीं बल्कि इंसानों के रहने लायक बनाओ। फिर वह उगते हुवे सूरज की तरफ चल पड़ा... और यह कहता हुवा कहीं ग़ुम हो गया कि देश का ध्यान रखना। हमने इसे आदर्श देश बनाना है...

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