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रविवार, 30 जनवरी 2011

समाजसेवा पर डॉ. विनायक सेन को सबसे बड़ा सम्मान ‘‘उम्र कैद’’

सुना है कि हम स्वतंत्र हैं। गत कुछ दिन पूर्व 62वां गणतंत्र दिवस मनाया गया और 25 जनवरी को पद्म भूषण व पद्मश्री पुरस्कार की हकदार विभूतियों की एक तालिका तैयार की गयी। जिसमें पद्म भूषण से सुषोभित किये जाने वालों में राजश्री बिड़ला, षोभना रोड़ा का नाम चयनित किया गया है, समाजसेवा के लिए। पद्म श्री के लिए समाजिक कार्यकताओं जकिन अरपुत्थम, नमिता चांडी, षीला पटेल, अनीता रेड्डी, कानूभाई हंसमुखभाई टेलर के नाम चुने गये हैं लेकिन एक सामाजिक कार्यकर्ता ऐसा है जिसे सबसे अलग और सबसे बड़ा सम्मान प्राप्त हुआ। पिछले वर्ष 24 दिसम्बर 2010 को इन्हें आईपीसी की धारा 124ए से नवाजा गया। हां, धारा 124ए जिसका अर्थ है ‘राष्ट्रद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास’। उन्हें यह सम्मान रायपुर की अदालत ने दिया। क्रिष्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लौर से एमबीबीएस में गोल्ड मेडिलिस्ट और जोनाथन मैन पुरस्कार से सम्मानित पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ।विनायक सेन ही वह सम्मानित व्यक्ति हैं जिन्हें देशद्रोह की आंड़ में निचली अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनायी है। कराण सिर्फ इतना ही है कि इन्होंने अपने अन्य कार्यकर्ताओं के साथ जनता की षांति के लिए सरकार के अन्याय और दमन के खिलाफ गांधीवादी तरीके से विरोध किया था। डॉ। विनायक सेन लगभग 30 सालों से छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के स्वास्थ्य को लेकर कार्य कर रहे थे। इसमें कोई शक नहीं है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने इनके कार्य को देखते हुए स्वास्थ्य और मानवाधिकार की प्रदेश में बनी ग्रामीण स्वास्थ्य समितियों का प्रमुख बना दिया था लेकिन 2005, रमन सिंह की सरकार में छत्तीसगढ़ में बढ़ती नक्सली गतिविधियों को रोकने के लिए आदिवासियों की एक सेना ‘सलवा जुडूम’ बनायी गयी, नक्सलवादियों के दमन के लिए, मतलब आदिवासियों के दमन के लिए, गलत इरादों की करनी भी गलत ही होती है राज्य में हिंसा ने जन्म ले लिया और उन्होंने इसी बात का विरोध शुरू कर दिया था। ये सरकार के गले ही हड्डी तब बने जब इनके समर्थकों की संख्या और आदिवासियों की पीड़ा के विरोध में सरकार के खिलाफ इनके संघर्ष का कद और बढ़ता गया। सत्तासीन झुल्लायी उसी छत्तीसगढ़ सरकार ने तुरन्त एक फरमान जारी कर दिया कि जो कोई सरकार काम में हस्तक्षेप करेगा उसे किसी सूरत में नहीं छोड़ा जाएगा।‘‘हम लोकतंत्र में रह रहे हैं संविधान ने हमें मौलिक अधिकार इसीलिए दिए है ताकि इसका प्रयोग कर हम समाज में घटित हो रहे किसी भी असामान्य कृत का विरोध कर सके, शान्तिप्रद तरीके से’’, ये सोच लेकर डॉ। विनायक सेन नहीं रूके और विरोध जारी रहा। राज्य की सारी शंक्तियाँ जिसके पास निहित हों उस सरकार ने इनका कोपभाजन करने के लिए इनके खिलाफ सबूत तैयार किये और अदालत का रास्ता दिखा दिया। अदालत में कहा जाता है कि डॉ। विनायक सेन का सम्बन्ध माओवादी नारायण सांयाल से है। नाराण सांयाल रायपुर जेल में बंद हैं और विनायक सेन 17 महीनों में 33 बार उनसे मिलने गये लेकिन इस बात को नज़रअन्दाज कर दिया गया कि मिलने की अनुमति उन्हें जेल प्रशासन ने ही दी थी और भी कई इसी तरह के सबूत अदालत में पेश किये गये जो अधूरे थे परन्तु अदालत ने उन्हें इन्हीं सबूतों के बिनाह पर देशद्रोही बताकर उम्र कैद की सजा सुना दी। आदलत का यह निर्णय स्वयं पर ही एक प्रशनचिह्न लगाता है क्योंकि माओवादी संगठन से सम्बन्ध रखने वाले को गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून 1967 यूएसपीस की धारा 139 के तहत 10 साल की कैद का ही प्रावधान है। तो विनायक सेन ने ऐसा क्या गुनाह कर दिया कि उन्हें उम्र कैद दी गयी?लगता है कि डॉ. विनायक सेन से जुड़े लोगों से सरकार ने अब तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी छीन ली है। षायद इसीलिए विनायक सेन की पत्नी और मानवाधिकार कार्यकर्ता इलीना सेन के खिलाफ यह आरोप मढ़ते हुए वृद्धा पुलिस थाने में मामला दर्ज कर लिया गया कि उन्होंने अपनी अगुआई वाले एक संगठन की ओर से आयोजित समारोह का दुरूपयोग किया और अपने पति समेत नक्सलियों के प्रति कथित सहानुभूति रखने वाले कुछ लोगों के लिए समर्थन मांगा है।मतलब सरकार द्वारा दबाये कुचले जा रहे आदिवासियों जिन्हें सरकार नक्सली कहती है, के प्रति कोई सहानुभूति पैदा नहीं कर सकता। जिससे एक बात तो साफ सिद्ध होती है कि राज्य और केन्द्र सरकार पिछले दो सालों से नक्सलियों को, शान्ति तरीके से सम्बन्ध स्थापित कर, मुख्यधारा से जोड़ने का जो प्रयास कर रही है वह सिर्फ एक दिखावा है और पी. चिदम्बरम की नक्सलियों के प्रति चिन्ता भी मिथ्या है।इन बातों से इतर अगर हम ध्यान दें तो सरकार के कोपभाजन में विनायक सेन के साथ सीमा आजाद़ और दंतेवाड़ा में 17 सालों से मानवाधिकार और आदिवासियों के हितों के लिए गांधीवादी तरीके से संघर्ष कर रहे हेमंत कुमार जैसे कार्यकर्ताओं के नाम भी जुड़े हैं। हमें विनायक सेन के साथ सीमा आजाद़ और हेमंत कुमार जैसे कार्यकर्ताओं को भी न्याय दिलाने के लिए मुहिम छेड़नी होगी जिन्हें ये सरकार गुमनामी के अन्धेरे में ढ़केलने के लिए प्रयास रत है।कौन कहता है कि हम स्वतंत्र हैं। हम सिर्फ स्वतंत्र शब्द कहने भर के लिए ही स्वतंत्र हैं।
लगता है कि अब एक खास इश्तेहार छपावाया जाएगा जिसमें लिखा होगा कि जिसे साफ-सुथरी और सच्ची समाजसेवा करनी है सिर्फ वही व्यक्ति समाज सेवा कर सकता है और इसके बदले में उन्हें सम्मान के तौर पर सरकार के अत्याचार-विरोध, देशद्रोही की संज्ञा और उम्र कैद के पुरस्कार से नवाजा जाएगा।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाई कोर्ट में दार याचिक के आधार पर सुनवाई शुरू हो चुकी है। अब देखना ये है कि हाई कोर्ट डॉ। विनायक सेन के लिए किस सम्मान को चुनती है।
‘‘1947 में बात हुई थी स्वतंत्रता की शक्ति के हस्तान्तरण की नहीं’’

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