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सोमवार, 3 जनवरी 2011

प्रधानमंत्री महोदय! जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए.

शकील "जमशेद्पुरी"
माननीय प्रधानमन्त्री महोदय! नव वर्ष और नए दशक की हार्दिक शुभकामनाएं. पत्र थोड़ा विलंब से लिख रहा हूँ. दरअसल ज़रा व्यस्तता का दौर चल रहा था जो अब टल चुका है. यह पत्र मात्र बधाई संदेश नहीं है, बल्कि शीर्षक पढ़ कर आपको कुछ-कुछ अंदाजा हो गया होगा.   
यह आपके प्रधानमंत्रित्व काल की दूसरी पारी है. कुल मिला कर सातवाँ साल. मैं यहाँ आपके पहले कार्यकाल की बात नहीं कर रहा  और न ही दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष की बात करने वाला हूँ. वस्तुतः मैं वर्ष 2010 के संदर्भ में आपसे संवाद करना चाहता हूँ. 
वर्ष 2010 को घपलों और घोटालों का पर्दाफाश करने वाले साल के रूप में याद किया जाएगा. Commonwealth Games के आयोजन में घोटालों की जो तस्वीर उभरी, उसने आपकी सरकार के शाख पर सीधे बट्टा लगा दिया. घोटालों का होना ज्यादा आश्चर्य की बात नहीं है. आश्चर्य तो इस बात का है कि ये सारा खेल आपकी नाक के नीचे होता रहा और आपको इसकी गंध तक न मिली. यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि एक ऐसा देश जो विश्व कि महाशक्ति बनने का सपना संजोता है, लेकिन एक खेल के आयोजन में उनकी साँसे फूलने लगती है. 
2G स्पेक्ट्रम ने तो घोटाले कि परिभाषा ही बदल दी. घोटाले कि राशि इतनी बड़ी थी कि इसे अंकों में लिखने में माथे कि नसें दुख जाएँ. यह घोटाला आपके लिए भी राजनीतिक मुश्किलों वाला रहा. संयुक्त संसदीय समिती (JPC) की मांग पर विपक्ष ऐसा अडिग हुआ कि संसद का शीतकालीन सत्र चला ही नहीं. आपको तो खुद इस मांग का स्वागत करना चाहिए. पर आपकी जिद ने विपक्ष में संशय ही पैदा किया. हालांकि आपने संसद की लोक लेखा समीति (PAC) के समक्ष खुद पेश होने की पेशकश की, बावजूद इसके विपक्ष ने अपना रुख नहीं बदला. पर यदि आपको PAC पर आपत्ति नहीं तो, JPC पर ऐतराज़ क्यूं? विपक्ष के तेवर से यह संकेत भी मिल रहा है कि फरवरी में होने वाले संसद के बज़ट सत्र पर भी JPC के छीटें पड़ेंगे. मेरे कहने का आशय यह है कि 2010 में हुए इन घोटालों पर 2011 में राजनीतिक टकराव अवश्य होगा.
सबसे मुश्किल घड़ी में ही अच्छे नेता की सबसे अच्छी खूबी सामने आती है. 2011 आपके लिए राजनितिक मुश्किलों वाला साल रहने वाला है. ऐसे में देश को इंतज़ार रहेगा आपकी सबसे अच्छी खूबी का. अक्सर आपके कम बोलने या चुप रहने पर लोग चुटकियाँ लेते हैं. लेकिन में इस फलसफे में यकीन करता हूँ कि-
परिंदों की परवाज़ होती है ऊँची
ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं,
वो लोग खामोश रहते हैं अक्सर
ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं.
वर्ष 2011 में आपके "हुनर" का बोलना बेहद ज़रूरी हो गया है. क्यूंकि अब लोग सवाल करने लगे हैं कि कहाँ हैं डॉ. मनमोहन सिंह? लोग यह भी पूछने लगे हैं कि यह कैसी सरकार है जो ये तय नहीं कर पाती कि बी.टी बैगन अच्छा है या बुरा? देश में सड़कें ज्यादा होने चाहिए या पेड़?
आपकी पहचान एक ऐसे शख्स के रूप में है, जिसकी गिनती विश्व मंच पर पूरब के एक समझदार व्यक्ति के रूप में होती है. एक ऐसी  दुनिया में जहाँ सबसे प्रभावशाली नेता अपने उम्र के चौथे दशक में हैं, वहाँ आपकी स्तिथि एक बुजुर्ग और अनुभवी व्यक्ति की है. लेकिन अब देश में एक युवा और तेजतर्रार नेता कि ज़रुरत महसूस कि जाने लगी है, क्यूंकि जब भी आपका सामना राष्ट्रीय आपात स्तिथियों से होता है, तो आप उससे निपटने में अक्षम प्रतीत होते हैं. महंगाई, माववादी चुनौति, विदेश नीति में भटकाव, कश्मीर संकट, अटका सामाजिक एजेंडा, आंतरिक कलह, अनिर्णय और भ्रष्ट्राचार ने UPA को पंगु बना दिया है. जन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए आपको ज़ोरदार पहल करनी होगी.
जानता ने आपको जिस विश्वास के साथ जनादेश दिया, उससे यही लगता है कि आप अपना दूसरा कार्यकाल भी पूरा कर लेंगे. यदि संभव हुआ तो तीसरी बार भी सत्ता में आ जाएँ. लेकिन इस लंबे कार्यकाल का क्या फायदा. संसार में ऐसे कितने ही व्यक्ति हैं, जिसने सबसे लंबे समय तक जीवित रहने का रिकॉर्ड बनाया. इनके नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में तो दर्ज है, पर लोगों कि जुबां पर नहीं है. वहीं स्वामी विवेकानंद अपने जीवन का 40वां बसंत भी नहीं देख पाए. भगत सिंह मात्र 23 वर्ष की उम्र में और खुदीराम बोस 19 वर्ष की उम्र में संसार से कूच कर गए. इनका नाम भले ही रिकॉर्ड बुक में दर्ज न हो, पर लोगों की जुबां पर है. कहने का आशय मात्र इतना है की जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए.
पुनः नए साल की हार्दिक शुभकामनाओं सहित.
आपकी सल्तनत का बाशिंदा.
शकील "जमशेद्पुरी"
                            

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