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बुधवार, 19 जनवरी 2011

असीमानंद और अब्दुल कलीम से कुछ तो सीखिए!



फोटो गूगल के सौजन्य से.
 शकील "जमशेदपुरी"
http://www.gunjj.blogspot.com/
 शीर्षक थोड़ा चौकाने वाला हो सकता है। आप सोच रहे होंगे कि एक ऐसे शख्स से हम क्या सीख सकते हैं, जिन्होंने देश में धमाके की बात स्वीकार की हो। जो बम का जवाब बम से देने जैसी सोच की नुमाईंदगी करता हो। और जिन्होंने निर्दोषों की जान लेना ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया था। पर मैं असीमानंद के गुनाहों का तजकिरा नहीं करने जा रहा हूँ। आज मैं असीमानंद के एक अन्य पहलू की बात कर रहा हूँ, जिससे हम काफी कुछ सीख सकते हैं। पर इससे पहले बात अब्दुल कलीम नामक युवक की। अब्दुल कलीम मक्का मस्जिद धमाके के आरोप में पिछले डेढ़ साल से जेल में बंद था। इत्तेफाक से असीमानंद को गिरफ्तार करने के बाद उसी जेल में उसी सेल में रखा गया, जिसमें अब्दुल कलीम था। कितना विचित्र दृश्य होगा वह! एक तरफ धमाके का हकीकी गुनाहगार असीमानंद और दूसरी तरफ बेगुनाह अब्दुल कलीम। जेल में मुलाक़ात के दौरान अब्दुल कलीम ने अपने और दिगर बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों के सिलसिले में असीमानंद से बात की और उसे बताया की किस तरह बिना किसी ठोस प्रमाण के उन नौजवानों को गिरफ्तार किया गया और उस पर ज़ुल्म ढाए गए। साथ ही अब्दुल कलीम के अच्छे  बर्ताव ने असीमानंद को काफी प्रभावित किया। असीमानंद ने अपने इकबालिया बयान में खुद कहा था कि जेल में अब्दुल कलीम ने उनकी काफी मदद की। उनके लिए खाना व गर्म पानी वगैरह भी लाया करता था। साथ ही नहाने के लिए गर्म पानी भी मुहय्या करता था। इन्हीं चीजों ने असीमानंद के जमीर को झकझोर दिया। असीमानंद ने अपने इकबालिया बयान में कहा कि अब्दुल कलाम के नेक व्यवहार ने उसे गुनाहों का ऐतराफ  करने पर मजबूर कर दिया, ताकि उसली गुनहगारों को सजा मिल सके।
आखिरकार असीमानंद का अंत:करण जाग उठा। अपने गुनाहों का प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने अपने गुनाहों को स्वीकार कर लिया। असीमानंद ने अपने जीवन मूल्यों को नए सिरे से देखा और एक सही रास्ता चुना। उन्होंने इस बात की जरा भी परवाह नहीं की कि उनके इस कदम से उनके आका नाखुश हो सकते हैं। उन्हें बाकी बची जिंदगी जेल के सलाखों के पीछे गुजारनी पड़ सकती है और उनका हश्र सुनील जोशी की तरह भी हो सकता है। अगर उन्हें परवाह थी तो बस अपने जमीर की। उन्होंने अपने अंतरात्मा की सुनी।
असीमानंद के जीवन का यह पहलू हम सबको आत्म-मूल्यांकन करने की प्रेरणा देता है। हमें चाहिए कि हम आत्ममंथन करें और अपनी गलतियों को सुधार लें। वहीं हम अब्दुल कलीम के चरित्र से भी काफी कुछ सीख सकते हैं। उन्होंने नेक व्यवहार का जो रास्ता अपनाया वो इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं में से एक है। उन्होंने नफरत के बजाय मोहब्बत से काम लिया और असीमानंद का हृदय परिवर्तन किया।

मैं खुद भी इस बात को मानता हूं कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता। फिर भी यह सच है कि कुछ हिंदू और कुछ मुस्लिम अपने मार्ग से भटक कर हिंसा का रास्ता अपना लेते हैं। ऎसे लोगों को चाहिए कि वो असीमानंद और अब्दुल कलाम से कुछ सबक लें। यदि वो ऎसा करते हैं तो दुनिया में अमन-चैन निश्चित है। वैसे भी इस दुनिया को प्यार की बहुत जरूरत है। पंक्तियां कितनी सटीक हैं ना!
अब तो एक ऎसा वरक तेरा मेरा ईमान हो
एक तरफ गीता हो जिसमें एक तरफ कुरआन हो
काश ऎसी भी मोहब्बत हो कभी इस देश में
तेरे घर उपवास हो जब मेरे घर रमजान हो
मजहबी झगड़े ये अपने आप सब मिट जाएंगें
और कुछ होकर न गर इंसान बस इंसान हो

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