मंगलवार, 18 जनवरी 2011
अबला नहीं भीष्मा कहिये..
नशाखोरी समाज में इतनी भीषण तरीके से अपनी जड़ें फैला चुका है...कि बरगद कि हर एक टहनी से निकलने वाली जड़ों कि संज्ञा इसको दें तो शायद काम होगी...सवाल समाज के लोगों का है...आपका है...हम सबका है....आखिर इस मौज भरी जिन्दगी में हमें किस बात का तनाव...जब रिश्ते नाते टूट रहे है...उनमे बिखराव हो रहा है..भाई भाई को कट रहा है...बेटा मां-बाप की हत्या कर रहा है....खबरिया चैनल मानव मूल्यों की हत्या करने में लगे है....किसी को किसी के बारे में सोचने का वक़्त नहीं है...तो तनाव क्यों...हम भी बेफिक्री में क्यों नहीं जीते...पर नहीं जी सकते है दोस्त....इन रगों में आवो हवा आज भी उस गाँव की मौजूद है...उस गाँव की नदी कुओं का पानी रक्त बनकर इस जिस्म में दौड़ रहा है....जो बिसलरी की बोतल से कहीं ज्यादा पवित्र और शुद्ध है....यदि ऐसा नहीं तो गंदगी बजबजायी गंगा को हम आज भी मैया क्यों कहते है...किसी भी सोच की शुरुवात गाँव से ही होती है...ऐसी ही शुरुवात नशाखोरी मुक्त समाज की हुई है सिवनी जिले के एक गाँव से.....जहाँ की औरतों ने निश्चय किया है की यदि उनके पतियों ने शराब पी तो वे उससे तलाक मांग लेगी...यही नहीं यदि गाँव में कोई शराब बेंचता या पीता पकड़ा जाता है तो उसे डेढ़ हजार रूपए का जुरमाना ग्राम पंचायत को देना होगा...इसके अलावा शराब पीने वाले की सूचना देने वाले को ग्राम पंचायत एक हजार रूपए का इनाम देगी...जिला मुख्यालय से करीब ३५ किमी.दूर आदिवासी बाहुल्य ढुतेरा गाँव की महिलाओं ने गाँव को नशामुक्त बनाने का संकल्प किया है...एक हजार चार सौ दस लोगो की आबादी वाले इस गाँव में आज से आठ साल पहले गाँव के युवकों की शराब पीने से मौत हो गई थी...मौत के बाद गाँव के लोगों ने बैठकर शराब न पीने और बेंचने का संकल्प लिया...तब पुरुषों ने कमान संभाली..अब महिलाये इसकी केंदीय भूमिका में है....इस नेक काम में कलाबाई ने सबसे पहले अपने शराबी पति से रिश्ता तोड़ दिया है......बड़ा ही दिलेरी का काम किया है कलावती ने....हर किसी में शायद कलावती जैसी हिम्मत नहीं होती...पर शायद जब संकल्प लिया है...तो रिश्ते नाते भी दूर होगे...शायद महाभारत के पात्र अम्बा को भी तो भीष्मा कह सकते है....मुझे महाभारत की एक पात्र अम्बा का नाम याद आ रहा है....जब देवव्रत भीष्म ने.उनका हरण किया....तो वे शादी के लिए तैयार नहीं थी...हस्तिनापुर से उनकी ससम्मान विदाई कर दी गई...लेकिन शाल्वराज ने उनको अपनी अर्धांगिनी बनाने से मन कर दिया....तब वो भीष्म से शादी के लिए तैयार तो हुई..पर भीष्म ने शादी न करने की प्रतिज्ञा की थी...अब सवाल था कैसे अम्बा का जीवन कटेगा...तब अम्बा ने जो प्राण किया था की भीष्म का संहार मै करुगी...और तपस्या करने लगी...और तभी कठिन साधना के कारण उनका नाम भीष्मा पड़ा.... इस गाँव की सभी भीष्माओं को मेरा सलाम
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सभी गांव शहरों की स्त्रियाँ भीष्मा हो जाएँ तो क्या कहने!
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