बेशक जिंदगी में हार हर इंसान देखता है
विजयी न हो ये पत्थर की लकीर तो नहीं
वादे करके पलट जाना फितरत है उनकी
हम भी ये राह ले लें ये जरूरी तो नहीं
लडखडाये कई बार राहे जिंदगी में
चोट लगने के दार से न चलूँ ये जिंदगी तो नहीं
बादलों की गरज से मेंढकों की आवाज से
ये आसमा हर बार बरस पड़े ये हकीकत तो नहीं
विश्वास रिश्तों लो संजोये रखता है , पर
रिश्ते विश्वास न तोड़ें ऐसा होता तो नहीं......
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कविता अच्छी है। थोड़ा रदीफ-काफिया का ख्याल रखें। एक कविता को तीन बार प्रकाशित करना समझ से परे है।
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