विवेक
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नोज़ फॉर न्यूज़ इस मुहावरे के मतलब से अपनी बात शुरू करता हूँ. मुहावरे का मतलब एक पत्रकार के भीतर कुत्ते की भांति ख़बरों को सूंघने की क्षमता से है. और खबर शब्द का आशय सूचना से है. इन दिनों कई नवयुवक पत्रकार के रिज्यूमे को मै (एक कुत्ता ) कायदे से देख और समझ रहा हूँ , जिसमे नवयुवक इस बात का प्रमुखता से ज़िक्र कर रहा है. की उसके भीतर यह क्वालिटी मौजूद है. कई रिज्यूमे में तो नव युवा पत्रकार कई किस्म के कुत्तों से अपनी तुलना भी करते है. क्यूंकि पाठशाला में मालिक ने बताया है. इन कुत्तों के नाम बहुत कठिन है. इसलिए इनके नामों को लिख नहीं रहा हूँ . हाँ इतना ज़रूर बता सकता हूँ की उनके नामों से वे विदेशी लगते हैं. क्या रिज्यूमे में कुत्तो के ज़िक्र से सामने वाले को मतलब हम जिन मालिको को अपना रिज्यूमे देते हैं उस पर इसका कुछ असर होता होगा. निश्चित होता होगा. शायद वह इस सोच में रहता होगा की कुत्ता किस वेराइटी का है. क्यूंकि वह यानी मालिक जब किसी संस्थान में नवयुवा पत्रकार को शिक्षा देने जाता है तो नवयुवा के स्किल को निखारने के लिए नोज़ फॉर न्यूज़ का ज़िक्र ज़रूर करता है ताकि नए व् शानदार कुत्ते तैयार हो सके. और एक समय के बाद ये मालिक नए व् शानदार कुत्ते तैयार कर देते है. लेकिन दुर्भाग्य की कुछ नए कुत्तों की क्षमता धीरे-धीरे कर्मभूमि पर क्षीण होने लगती है. और फिर इन्ही के बीच से निकले कुछ कुत्ते आवारा और बेकार हो जाते हैं, और कुछ पालतू हो जाते हैं. पालतू प्राकृतिक रूप से वफादार होते है. मालिकों का ऐसा मानना है. लेकिन जो आवारा और बेकार हैं उनके लिए फैज़ अहमद फैज़ की यह रचना...कुत्ते
कुत्ते
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ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
कि बख्शा गया जिनको *जौके-गदाई
ज़माने की फिटकार *सरमाय इनका
जहां- भर की धुत्कार इनकी कमाई
न आराम शब् को, न राहत सवेरे
गलाज़त में घर, नालियों में बसेरे
जो बिगड़े तो इक -दूसरे से लड़ा दो
ज़रा एक रोटी का टुकड़ा दिखा दो
ये हर एक की ठोकरे खाने वाले
ये फाकों से उकता के मर जाने वाले
ये *मजलूम - *मखलूम गर सर उठाये
तो इंसान सब सरकशीं भूल जाए
ये दुनिया को चाहे तो अपना बना ले
ये *आकाओं की हड्डियाँ तक चबा ले
कोई इनको *एहसासे- ज़िल्लत दिला दे
कोई इनकी सोई हुई दम हिला दे
ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते..
कठिन शब्दों के मायने ---
*जौके-गदाई- भीख मांगने की रूचि
*सरमाय- पूँजी
*मजलूम - दलित-पीड़ित
*मखलूम- प्राणी
*सरकशी-घमंड
*आकाओं- मालिकों
*एहसासे -ज़िल्लत -- अपमान का एहसास
और जिसको चाहें उसको शब्दों में बाँध दे मेरे विवेक भाई यह बेवाकी कायम रखें विवेक भाई वरना, नए कमरे में चीज़ें पुरानी कौन रखता है, परिन्दों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है, हम ही तो हैं जो संजोए रहे वरना, सलीके से बुजुर्गों की निसानी कौन रखता है
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