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सोमवार, 5 सितंबर 2011

बरसात का मौसम और छाता न हो तो ऐसे ही रोना पड़ता है....

लेकिन मेरी भी एक जिद है.... नहीं खरीदूंगा...तो नहीं खरीदूंगा..... बोले तो छाता लड़कियों का आईटम लगता है ...और....लड़कियों के सिर पर ही अच्छा लगता है....दिक्कत ये है कि मेरे साथ वाले साले दोस्त-दुश्मन सब बरसात होते ही छाता तानकर घुमने लगते हैं....मेरे पास कांफिडेस तो बहुत है...लेकिन...बरसात के आगे कम पड़ जाता है....फिर भी.... नहीं खरीदूंगा तो नहीं खरीदूंगा...एक बार कमिटमेंट करदी...तो कर दी....बहुत दिन से मेरा तबियत भी नहीं खराब हुआ है...डर लगता है कि कहीं सीधे मर न जाऊं....सुनता हूं कि फलाने को बुखार हो गया है....दुसरे वाले फलाने का सिर दर्द कर रहा है....अपने बारे में सोंचता हूं तो दिमाग खराब हो जाता है...पता नहीं कितना साल हो गया बुखार ही नहीं हुआ.....एक ही डर लगता है कि कहीं सीधे ऊपर न चला जाऊं....कम से कम बरसात में भींग जाऊंगा तो शायद बुखार हो जाए........दोस्तों (boys) तुम भी मत खरीदना....लड़कियों को खरीदने दो.....ये उन्हीं को शोभा देता है....

2 टिप्‍पणियां:

  1. apni bhasa ke jaadoo se aap sabhi paathak ka man moh rahe hain.
    har baar hausla afzaai nahi kar pata. maaf keejiyega aditya bhai.
    badheea likh rahe hai. bhai, keep it up

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  2. vivek brother....thanks nahi bolunga.....dosti me thanks ki kya jarurat...ha ha ha...

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