जिस वक़्त पूरे देश में अन्ना हजारे के भषटाचार विरोधी आन्दोलन की आंधी चल रही थी ठीक उसी वक़्त कुछ राज्यों के सियासी गलियारे में भी बदलाव की कवायात चल रही थी. राज्य सरकारें जन आकांक्षाओ को देखते हुए राज्यों में लोकसेवा अधिकार अधिनियम को लागू करने में जुटी हुई थी. हालाँकि बिहार में यह कानून १५ अगस्त को ही लागू हो गया था. जिसपर अब बड़ी संख्या में आवेदन आने लगा हैं. हिमांचल प्रदेश और झारखण्ड में भी कुछ यही हाल है. हाल हीं में दिल्ली की मुख्मंत्री शीला दीक्षित और उतराखंड के मुख्मंत्री निशंक ने भी अपने राज्य में इस कानून को ले कर पहल की है. जिस पर सभी पार्टियो से समर्थन की उम्मीद की जा रही है.
लोकसेवा अधिकार को लेकर मध्य प्रदेश सर्कार ने पिछले साल जो पहल की, आज उसे ही लागू करने की मुहिम सी चल पड़ी है. पंजाब, जम्मू-कश्मीर,गोवा, पहले ही इस कानून को अपना चुके हैं. यह कानून पहले से ही अस्तित्व में है लेकिन आज राज्यों में होड़ क्यों मची हैं ? इसका एक कारण तो अन्ना के आन्दोलन को जनता की अपार समर्थन मिलना है(मतलब जनता को लुभाने का तरीका ) , और दूसरा राज्यों में विपक्क्ष को चुप करने का साधन भी साबित हो रहा हैं.
गौर से देखा जाये तो यह कानून अन्ना के सिटीजन चार्टर की तरह ही है. इस कानून में सरकारी विभागों के दफ्तरों में यह लिखित होगा की फला काम फला दिनों में पूरा हो जायगा. अगर सम्बंधित अधिकारी इसे तय समय सीमा में नहीं करता हैं तो उसे जुर्माने के साथ- साथ अनुशासनात्मक करवाई के लिए भी तैयार रहना होगा. जुर्माने की राशि ५०० से ५००० के बीच निर्धारित की गई है जो अधिकारी के वेतन से ही काट ली जायगी.
फिलहाल मुख्य रूप से लोकसेवा विधेयक के अंतर्गत विभिन्न राज्यों में यातायात , पुलिस, जल संसाधनों , उर्जा जैसे महत्वपूर्ण सरकारी विभागों को शामिल किया गया है. गौरतलब है की बिहार में यह कानून अभी ५० विभागों पर लागू किया गया हैं. बिहार में यह कानून तीन चरणों में विभक्त है. पहले चरण में व्यवस्था आवेदन की है जिसमें जिले और प्रखंड स्तर पर एक-एक अटेंडेंट की व्यस्था है. दुसरी चरण में घर बैठे हीं आन लाइन आवेदन किया जा सकेगा जो जल्द ही शुरू किया जायगा. vhi तीसरे चरण में dilivery भी आन लाइन ही होगी. जो पूरी तरह से २६ जनवरी से लागू होगा. यहाँ बिहार के कानून का विशेष रूप से उल्लेख इसलिए करना जरुरी है क्यूंकि अब तक का सबसे अच्छा प्रावधान मन जा रहा हैं.
मई २००५ में जब सूचना का अधिकार आया था तो ये कयास लगाया जा रहा था की ये कानून देश हित में हैं. जो साबित भी हुआ. लेकिन सर्कार ने इसे जनव्यापी बनाने के लिए कोई ठोस कदम नही उठाया. जिसे जानकारी हैं वे कार्यकर्ता एक-एक करके निशाना बनाये जा रहें हैं.ऐसे में लोकसेवा कानून की जो अलख जगी है वो कितनी देर तक और कितनी दूर तक जायगी या आने वाले विधान सभा चुनावो का हथियार मात्र साबित होगा ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमध्य प्रदेश में हर मंगलवार को जनसुनवाई का कार्यक्रम होता है....मैंने खुद देखा है---- वहां जन सुनवाई में डीएम- एसपी--और कमिश्नर बैठतें हैं....लेकिन वहां केवल अमीरों की सुनवाई होती है....गरीबों को 10 दिन बाद आना---15 दिन बाद आना कहा जाता है.....लेकिन 10-15 दिन कभी खत्म नहीं होता.....राशनकार्ड के लिए नगर निगम का चक्कर लगवाया जाता है...गरीब आदमी थक-हारकर राशनकार्ड का नाम ही भूल जाता है... कोई भी कानून गरीबों को उनका हक---या मुआवजा नहीं दिला सकती----जब तक कि कानून बनाने वाले नेताओं का दल या सरकार खुद उसकी निगरानी न करें....गरीब शिकायत किसके खिलाफ करेगा.....उसे अपने जान-माल का डर सतायेगा....bhopAL ME शहला मसूद की हत्या एक जीता जागता उदाहरण है....अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले को या तो गोली मार दी जायेगी या उसका गला घोंट दिया जायेगा.....कानून बनाना तो अब वोट बैंक पक्का करने का तरीका मात्र है......फिलहाल इस ज्वलंत मुद्दे पर लिखने के लिए धन्यवाद.....
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