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बुधवार, 14 सितंबर 2011

हिंदी पर हाहाकार

लोगों को आज हिंदी याद आ गई....मजे की बात तो ये है हमेशा इंग्लिश में गिटर पिटर करने वाले लोगों ने भी हिंदी की बिंदी की बारीकियों को समझाया...खैर हिंदी दिवस है...तो हिंदी भाषा पर ही बात होगी....समय का सब खेल है....आज एक समाचार पत्र के संपादक का भाषण सुन रहा था....तो उस समय लगा कितना सही कहा जा रहा है उस महफ़िल में...शाम को विश्लेषण करने बैठा तो अद्भुत संयोग था....दिमाग में हिंदी के शब्द ही याद नहीं आ रहे थे...सोच रहा था कहाँ से शुरू करू....खैर...उन संपादक महोदय ने कहा की लाल किला और राम लीला मैदान से भाषण हिंदी में ही दिया जाता है...पता है क्यों...क्यों कि देश कि जनता इसको समझती है....मै कहता हूँ आज के ज़माने में हिंदी को केवल भाषण बाजी कि भाषा ही बना दिया गया है....और उस भाषण को मजबूरी और स्वार्थ वश दिया जाता है....क्यों संसद में पीएम हिंदी में नहीं बोलते,क्यों राहुल गाँधी हिंदी में नहीं बोलते...क्यों हिंदी को अछूत माना जाता है...संपादक जी का कहना था कि हिंदी में कोई छात्र अपना परिचय पत्र नहीं लाता....अरे हिंदी में परिचय पत्र लाया जायेगा तो हो सकता है...कि उसको कहीं भी नौकरी न मिले....वास्तविकता ये है...कि वाकई...हिंदी एक दिन का ही विषय बन कर रह गई है....मैंने जैसे ही पत्रकारिता में कदम रखा तो मेरे गुरूजी ने कहा बेटा अगर मीडिया में काम करना है...तो तुमको अपनी क्लिष्ट हिंदी छोड़ना पड़ेगी...नहीं तो दूसरा क्षेत्र चुनना पड़ेगा....और हकीकत में मैंने ये बात स्वीकार की...तो दूसरी ओर महोदय ने इंग्लिश से दूरियां न बनाने कि भी बात कह दी...मेरा मानना है कि इंग्लिश कि वजह से ही हमारी हिंदी का स्वरुप हिंगलिश हुआ है....तो दूरियां क्यों न बने जाए...हमें हिंदी को इंग्लिश या व्यावसायिकता से उतना ही दूर रखना होगा...जितना कि जवान बेटियों का बाप अपनी बेटियों को अपने युवा किरायेदार से रखता है...ये दौर अब भूमंडलीकरण का नहीं रहा....ये दौर है भूमंडीकरण का....यहाँ हर चीज बिकाऊ है...और हम ऐसे में हिंदी को बचाए रखना बड़ी चुनौती है...मीडिया ने हिंदी के कई शब्दों का ऐसे पोस्ट मार्टम किया है कि उन शब्दों और पंक्तियों की जान निकल गई....
जरा गौर फरमाए...
पीएमटी का परचा लीक
जरा इस शब्द को पढ़े लीक का मतलब तो रिसाव होता है...फिर परचा कैसे लीक हुआ....
अब ऐसे में हिंदी की दशा और दिशा सुधरने की बात हो रही है....जब हम आगे बढ़ चुके है...वो भी केवल महीने भर...हमें मिलकर प्रयास करना होगा हिंदी के लिए और इसे मात्रभाषा के रूप में स्वीकार करना होगा...तभी कुछ सुधार होगा....

1 टिप्पणी:

  1. 'हमें हिंदी को इंग्लिश या व्यावसायिकता से उतना ही दूर रखना होगा...जितना कि जवान बेटियों का बाप अपनी बेटियों को अपने युवा किरायेदार से रखता है' ----यह और 'भूमंडीकरण' शब्द मजेदार लगे।

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