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सोमवार, 26 सितंबर 2011

१० जनपथ का पावर हॉउस यानी अहमद पटेल...........



संसदीय राजनीती के मायने भले ही इस दौर में बदल गए हो और उसमे सत्ता का केन्द्रीयकरण देखकर अब उसे विकेंद्रीकृत किये जाने की बात की जा रही हो लेकिन देश की पुरानी पार्टी कांग्रेस में परिवारवाद साथ ही सत्ता के केन्द्रीकरण का दौर नही थम रहा है .....

दरअसल आज़ादी के बाद से ही कांग्रेस में सत्ता का मतलब एक परिवार के बीच सत्ता का केन्द्रीकरण रहा है....फिर चाहे वो दौर पंडित जवाहरलाल नेहरु का हो या इंदिरा गाँधी या फिर राजीव गाँधी का ... राजीव गाँधी के दौर के खत्म होने के बाद एक दौर ऐसा भी आया जब कांग्रेस पार्टी की सत्ता लडखडाती नजर आई..... उस समय पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान सीता राम केसरी के हाथो में थी..... यही वह दौर था जिस समय कांग्रेस पार्टी सबसे बुरे दौर से गुजरी..... यही वह दौर था जब भाजपा ने पहली बार गठबंधन सरकार का युग शुरू किया और अपने बूते केन्द्र की सत्ता पायी थी....


उस दौर में किसी ने शायद कल्पना नही की थी कि एक दिन फिर यही कांग्रेस पार्टी भाजपा को सत्ता से बेदखल कर केन्द्र में सरकार बना पाने में सफल हो जाएगी.... यही नही वामपंथियों की बैसाखियों के आसरे अपने पहले कार्यकाल में टिकी रहने वाली कांग्रेस अन्य पार्टियों से जोड़ तोड़ कर सत्ता पर काबिज हो जाएगी और "मनमोहन" शतरंज की बिसात पर सभी को पछाड़कर दुबारा "किंग" बन जायेंगे ऐसी कल्पना भी शायद किसी ने नही की होगी ......

दरअसल इस समूचे दौर में कांग्रेस पार्टी की परिभाषा के मायने बदल चुके है ....उसमे अब परिवारवाद की थोड़ी महक है और कही ना कहीं भरोसेमंद "ट्रबल शूटरो" का भी समन्वय.....इसी के आसरे उसने यू पी ऐ १ से यू पी ऐ २ की छलांग लगाई है ....सोनिया गाँधी ने जब से हिचकोले खाती कांग्रेस की नैय्या पार लगाने की कमान खुद संभाली है तब से सही मायनों में कांग्रेस की सत्ता का संचालन १० जनपथ से हो रहा है ..... यहाँ पर सोनिया के भरोसेमंद कांग्रेस की कमान को ना केवल संभाले हुए है बल्कि पी ऍम ओ तक को इनके आगे नतमस्तक होना पड़ता है .....


इस दौर में कांग्रेस की सियासत १० जनपथ से तय हो रही है जहा पर कांग्रेस के सिपहसलार समूची व्यवस्था को इस तरह संभाल रहे है कि उनके हर निर्णय पर सोनिया की सहमती जरुरी बन जाती है.... दस जनपथ की कमान पूरी तरह से इस समय अहमद पटेल के जिम्मे है....जिनके निर्देशों पर इस समय पूरी पार्टी चल रही है....."अहमद भाई" के नाम से मशहूर इस शख्स के हर निर्णय के पीछे सोनिया गाँधी की सहमती रहती है.... सोनिया के "फ्री हैण्ड " मिलने के चलते कम से कम कांग्रेस में तो आज कोई भी अहमद पटेल को नजरअंदाज नही कर सकता है...


अहमद पटेल की हैसियत देखिये बिना उनकी हरी झंडी के बिना कांग्रेस में पत्ता तक नही हिला करता ....कांग्रेस में "अहमद भाई" की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी के किसी भी छोटे या बड़े नेता या कार्यकर्ता को सोनिया से मिलने के लिए सीधे अहमद पटेल से अनुमति लेनी पड़ती है.....अहमद की इसी रसूख के आगे पार्टी के कई कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित महसूस करते है लेकिन सोनिया मैडम के आगे कोई भी अपनी जुबान खोलने को तैयार नही होता है ....मेरे राज्य से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस नेता के एक बेहद करीबी व्यक्ति ने मुझे बीते दिनों बताया कि कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्य मंत्री अहमद पटेल से अनुमति लेकर सोनिया से मिलते है ....


अहमद भाई को समझने के लिए हमें ७० के दशक की ओर रुख करना होगा.....यही वह दौर था जब अहमद गुजरात की गलियों में अपनी पहचान बना रहे थे.....उस दौर में अहमद पटेल "बाबू भाई" के नाम से जाने जाते थे और १९७७ से १९८२ तक उन्होंने गुजरात यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान संभाली .....७७ के ही दौर में वो भरूच कोपरेटिव बैंक के निदेशक भी रहे.....


इसी समय उनकी निकटता राजीव के पिता फिरोज गाँधी से भी बढ़ गई क्युकि राजीव के पिता फिरोज का सम्बन्ध अहमद पटेल के गृह नगर से पुराना था..... इसी भरूच से अहमद पटेल तीन बार लोक सभा भी पहुचे ... १९८४ में अहमद पटेल ने कांग्रेस में बड़ी पारी खेली और वह "जोइंट सेकेटरी" तक पहुच गए लेकिन पार्टी ने उस दौर में उन्हें सीधे राजीव गाँधी का संसदीय सचिव नियुक्त कर दिया था ......


इसके बाद कांग्रेस का गुजरात में जनाधार बढाने के लिए पटेल को १९८६ में गुजरात भी भेजा गया .... गुजरात में पटेल को करीब से जाने वाले बताते है पूत के पाँव पालने में ही दिखाई देते है... शायद तभी अहमद पटेल ने राजनीती में बचपन से ही पैर जमा लिए थे......पटेल के टीचर ऍम एच सैयद ने उन्हें ८ वी क्लास का मोनिटर बना दिया था.....यही नही जोड़ तोड़ की कला में पटेल कितने माहिर थे इसकी मिसाल उनके टीचर यह कहते हुए देते है कि अहमद पटेल ने उस दौर में उनको उस विद्यालय का प्रिंसिपल बना दिया था.....


शायद बहुत कम लोगो को ये मालूम है कि गुजरात के पीरमण में अहमद पटेल का जीवन क्रिकेट खेलने में भी बीता था उस दौर में पीरमण की क्रिकेट टीम की कमान खुद वो सँभालते थे .....टीम में उनकी गिनती एक अच्छे आल राउनडर के तौर पर होती थी.....अहमद पटेल की इन्ही विशेषताओ के कारण शायद उन्हें उस पार्टी में एक बड़ी जिम्मेदारी दी गई जो देश की सबसे बड़ी पार्टी है .....यहाँ अहमद पटेल सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार है .....


अहमद की इसी ताकत का लोहा आज उनके विपक्षी भी मानते है.....यकीन जान लीजिये पार्टी को हाल के समय में बुरे दौर से उबारकर सत्ता में लाने में अहमद पटेल की भूमिका को किसी तरह से नजर अंदाज नही किया जा सकता....हाँ ये अलग बात है भरूच में कांग्रेस लगातार ४ लोक सभा चुनाव हारती जा रही है फिर भी हर गुजरात में होने वाले हर छोटे बड़े चुनाव में टिकटों कर बटवारा अहमद पटेल की सहमती से होता आया है जो यह बतलाने के लिए काफी है कि आज पार्टी में उनका सिक्का कितनी मजबूती के साथ जमा हुआ है ....


अहमद पटेल की ताकत की एक मिसाल २००४ में देखने को मिली जब पहली बार कांग्रेस यू पी ऐ १ में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी .... इस कार्यकाल में सोनिया के "यसबॉस " मनमोहन बने ओर वह अपनी पसंद के मंत्री को विदेश मंत्रालय सौपना चाहते थे लेकिन दस जनपद गाँधी पीड़ी के तीसरे सेवक कुवर नटवर सिंह को यह जिम्मा देना चाहता था लेकिन मनमोहन नटवर को भाव देने के कतई मूड में नही थे.....

जहाँ इस नियुक्ति में मनमोहन सिंह की एक ना चली वही नटवर के हाथ विदेश मंत्रालय आ गया ....मनमोहन का झुकाव शुरू से उस समय अमेरिका की ओर कुछ ज्यादा ही था.... लेकिन अपने कुंवर साहब ईरान और ईराक के पक्षधर दिखाई दिए....


कुंवर साहब अमेरिका की चरण वंदना पसंद नही करते थे और परमाणु करार करने के बजाए ईरान के साथ अफगानिस्तान , पकिस्तान के रास्ते भारत गैस पाइप लाइन लाना चाहते थे ... इस योजना में कुंवर साहब को गाँधी परिवार के पुराने सिपाही मणिशंकर अय्यर का समर्थन था ......वही मणिशंकर जो आज कांग्रेस पार्टी को सर्कस कहने और उसके कार्यकर्ताओ को जोकर कहने से परहेज नही करते ......


कुंवर , मणिशंकर मनमोहन को १० जनपथ का दास मानते थे.....लेकिन समय ने करवट ली और "वोल्कर" के चलते नटवर ना केवल विदेश मंत्री का पद गवा बैठे बल्कि पार्टी से भी बड़े बेआबरू होकर निकल गए..... लेकिन इसके बाद भी मनमोहन अपनी पसंद के आदमी को विदेश मंत्री बनाना चाहते थे लेकिन १० जनपथ के आगे उनकी एक ना चली ....और प्रणव मुखर्जी को विदेश मंत्री की जिम्मेदारी मिली......प्रणव की नियुक्ति से परमाणु करार तो संपन्न हो गया लेकिन देश की विदेश नीति वैसे नही चल पाई जैसा मनमोहन चाहते थे.....लेकिन २००९ में जब अपने दम पर मनमोहन ने अपने को "मजबूत प्रधानमंत्री के तौर पर स्थापित किया तो दस जनपद के आगे उनकी चलने लगी.....


इसी के चलते मनमोहन ने अपनी दूसरी पारी में एस ऍम कृष्णा, शशि थरूर , कपिल सिब्बल को अपने हिसाब से केबिनेट पद की कमान सौपी......आई पी एल में थरूर के फसने के बाद जब १० जनपथ ने उनसे इस्तीफ़ा माँगा तब अकेले मनमोहन उनका बीच बचाव करते नजर आये......इस समय १० जनपथ की और से प्रधानमंत्री मनमोहन को जबरदस्त घुड़की पिलाई गई थी .....तब १० जनपथ की ओर से मनमोहन को साफ़ संदेश देते हुए कहा गया था आपको ओर आपके मंत्रियो को १० जनपथ के दायरे में रखकर काम करना होगा .....

यही नही अहमद पटेल ने तो उस समय शशि थरूर को लताड़ते हुए यहाँ तक कह डाला था वे यह ना भूले वह किसकी कृपा से यू पी ऐ में मंत्री बने है......दरअसल यह पूरा वाकया दस जनपथ में अहमद पटेल की ताकत का अहसास कराने के लिए काफी है....


दस जनपथ शुरुवात से नही चाहता कि मनमोहन को हर निर्णय लेने के लिए "फ्री हेंड" दिया जाए....अगर ऐसा हो गया तो मनमोहन अपनी कोर्पोरेट की बिसात पर सरकार चलाएंगे....ऐसी सूरत में आने वाले दिनों में कांग्रेस पार्टी क भावी "युवराज " के सर सेहरा बाधने में दिक्कतें पेश आ सकती है .....इसलिए कांग्रेस के सामने यह दौर ऐसा है जब उसके हर मंत्री की स्वामीभक्ति मनमोहन के बजाए १० जनपथ में सोनिया के सबसे विश्वासपात्र अहमद पटेल पर आ टिकी है...

एक दौर ऐसा भी था जब अहमद पटेल की पार्टी में उतनी पूछ परख नही थी......लेकिन जोड़ तोड़ की कला में बचपन से माहिर रहे अहमद पटेल ने समय बीतने के साथ गाँधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा बढ़ा ली और सोनिया के करीबियों में शामिल हो गए.....राजनीतिक प्रेक्षक बताते है कि पार्टी में अहमद पटेल के इस दखल को पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता पसंद तक नही करते लेकिन सोनिया के आगे इस पर कोई अपनी चुप्पी नही तोड़ता....

बताया जाता है अहमद पटेल की आंध्र के पूर्व दिवंगत सी ऍम राजशेखर रेड्डी से कम बनती थी..... दोनों के बीच ३६ का आकडा जगजाहिर था ...कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्य मंत्रियो में वह अकेले ऐसे थे जो अहमद पटेल के ज्यादा दखल का खुलकर विरोध करते थे......अब राजशेखर इस दुनिया में नही रहे इसका असर यह हुआ है अहमद पटेल ने पूरी पार्टी "हाईजेक" कर ली है....

यही वजह है उन्होंने दिवंगत राजशेखर के बेटे जगन मोहन के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला बनाकर उन्होंने इसमें सोनिया की सहमती ली है और अब मामले की सी बी आई जांच कराने में जुटे है .... आखिर बड़ा सवाल यह है इतने सालो से आन्ध्र की राजनीती में राजशेखर का जब वर्चस्व था तब कांग्रेस पार्टी को यह ध्यान क्यों नही आया कि रेड्डी के पास इतनी ज्यादा अकूत धन सम्पदा कैसे आई.....? कही कर नही यह कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रहा है......

कुलमिलाकर आज कांग्रेस में अहमद पटेल होने के मायने गंभीर हो चले है ....किसको मंत्री बनाना है ... किस नेता को अपने पाले में लाना है ... जोड़ तोड़ कैसे होगा ? यह सब अहमद पटेल की आज सबसे बड़ी ताकत बन गई है .....


अहमद की इसी काबिलियत के आगे जहाँ कांग्रेस हाईकमान नतमस्तक होता है वही बेचारे मनमोहन अपने मन की बेबसी के गीत गाते नजर आते है..... फिर अगर आज के दौर में कांग्रेस के कार्यकर्ता अगर यह सवाल पूछते है कि २४ अकबर रोड नाम मात्र का दफ्तर बनकर रह गया है तो जेहन में उमड़ घुमड़ कर कई सवाल पैदा होते है ..... कही न कही इसी के चलते पार्टी को आने वाले दिनों में मुश्किलों का सामना ना करना पड़ जाए....वैसे भी इस समय कांग्रेस के सितारे इस समय गर्दिश में है......
हर्ष.................


(लेखक "विहान " मासिक पत्रिका के संपादक और राजनीतिक विश्लेषक है .... आप बोलती कलम ब्लॉग पर जाकर इनके विचारो को पढ़ सकते है)

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