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रविवार, 13 मई 2012

झूठी कहानी, झूठा फसाना और झूठी दिलशा.........लगता है कलयुग ही है


झूठी कहानी, झूठा फसाना और झूठी दिलशा.........लगता है कलयुग ही है 
क्या अब पूरी तरह से कलयुग आ गया, शायद इस लेख को पड़ने के बाद आप भी कहेगे की हाँ. रोज की तरह हम अपने रूम से ऑफिस के लिए निकले अबसे पहले तो हमारा सामना भीड़- भाड से हुआ. ये तो रोज मर्रा की कहानी थी इसमे नया कुछ नहीं था. रस्ते मै चलते हुए हमारी नजर उस पर पड़ी जिसने मुझे यह सब करने को मजबूर कर दिया. मेरे बगल से एक तिपहिया वाहन गुजरा जिसे आप टेक्सी कह सकते है. उस पर एक नेता को जन्म दिन की बढ़िया सी बधाई दी गयी थी. और बड़े- बड़े अच्छरों मै लिखा था जीवेत शरद: शतम...
यह कोई नया नहीं था इस शब्द से तो हम यदा कदा जूझते रहते है. भला आप ही सोचें क्या आज के समय कोई शरद: शतं अर्थात १०० साल जी सकता है. जब हमारे देश की औसत जीवन ६५-७० हो . ये तो कभी हो ही नहीं सकता है. भला हम जापान या विकसित देशों मैं तो रहते नहीं है, जहाँ एक बार तो सोचा भी जा सकता है. भारत जैसे देश मैं तो कह ही नहीं सकता! .मै १०० साल तक जीने को चुनौती नहीं दे रहा. भला मै कौन हो सकता हूँ . मै उन सज्जन को भी कुछ गलत नहीं मन रहा हूँ जिन्होंने इतने बड़े- बड़े शब्दों में बधाइयाँ दी हों. ये तो सभी लोगों का इक तरीका है, बधाइयाँ देने का. सो सज्जन साब भी कैसे पीछे रह सकते थे. लेकिन सोचो न भैया कोई ७० से ८० जी सकता है. हो सकता है ९० तक पहुच जाये लेकिन मेरे हिसाब से वह १०० नहीं जी सकता. क्योकि भारत देश की जलवायु आज के मानव को वंहा तक नहीं पंहुचा सकती. हाँ वो जमाना या समय चला गया जब लोग १०० या ११० तक आसानी से जी लिया करते थे. अब भारत के खान पान मैं काफी बदलाव आया है. अब बाजार मैं शुद्ध बस्तुएं ढूढें से शायद ही मिल पायें. साथ ही भाग्दोड़ बरी जिन्दी और जीने का तरीका . देर रात  तक सोना और १०-११ बजे तक विस्तर को छोड़ना ये सब भी तो जीवन को प्रभित करते  है. फिर आप ही बताएं की जीवेत शरद: शतम कभी हो सकता है.?

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