देश जब से आजाद हुआ है तब से देश में बहस छिड़ी हुई है की आखिर लोकतंत्र की प्रथा क्या है और आज तक यह साबित नहीं हो पाया की आखिर सही प्रथा है क्या समय समय पर हर राजनेतिक दल ने या किसी संगठन ने अपने तरीके से लोकतंत्र को परिभाषित किया पिछले कई दिनों में कई उद्धरण सामने आये है जिससे यह समझने में आसानी हो की लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलने के लिए क्या किया जाए तो अन्ना ने शांति प्रद तरीके से आन्दोलन किया इस आन्दोलन को अपार जन समर्थन मिला तो कुछ राजनेतिक पार्टियों ने इसे ब्लेक्मेलिग़ कहा यह कहा की ये देश में गलत प्रथा चालू हो रही है उसके बाद नंबर आता है जूता फेक का जिसमे लोगो ने आपना बिरोध नेताओ पर जूता फेक कर किया फिर जिस पार्टी के नेता पर जूता फेका उस पार्टी का कहना था की यह देश में गलत प्रथा चालू होर ही है अब कल एक आदमी ने शरद पवार को तमाचा मार दिया तो शरद बाबु की पार्टी के लोगो ने इसका बिरोध किया बिरोध सही भी था पर फिर भी बहस की यह लोकतंत्र के लिए गलत प्रथा है लेकिन पिछले ६५ सालो से भ्रसटाचार हो रहा है और इस प्रथा के बारे में किसी राजनेतिक पार्टी या नेता ने यह नहीं कहा की यह गलत प्रथा देश में चल रही अब जब हम देश की संसद पर बिसबास करे और इन नेताओ के हिसाब लोकतंत्र की सही प्रथा की बात करे तो एक ही प्रथा बचती हे बो है भ्रसटाचार
क्या यह प्रथा सही है इस पर अपने सुझाब जरुर दे
यह शोकतंत्र है…भाषायी या व्याकरणिक गलतियाँ काफी हैं…
जवाब देंहटाएंप्रवीण परमार साहब... लोकतंत्र की वास्तविकता पर चिंता व्यक्त करने के लिए धन्यवाद...अगर आपके और हमारे जैसे लोग चिंतित हैं, चिंता व्यक्त कर रहे हैं, और अपने स्तर पर कुछ प्रयास कर रहे हैं तो यह खुशी और संतोष की बात है...likhte rahiye....
जवाब देंहटाएंचन्दन जी माफ़ी चाहता हूँ गलतियों के लिए, परन्तु कुछ गलतियाँ फोनोटिक टाइपिंग की वजह से भी हैं. बाकी मैं आगे से ध्यान रखूँगा.
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