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गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

आम आदमी से दूर होती सरकार......



विदर्भ की रामकली बाई इन दिनों मायूस है.... .....यह रामकली वह है जिसका एक बच्चा अभी एक साल पहले कुपोषण के चलते मर गया..... इस बच्चे की बात करने पर आज भी वह सिहर उठती है.... पिछले कुछ वर्षो में जैसी त्रासदी विदर्भ ने देखी होगी शायद भारत के किसी कोने ने देखी होगी......सरकार आये दिन गरीबो को अनाज के नाम पर कई घोषणा कर रही है लेकिन सच्चाई यह है कि गरीबो की झोपड़ी तक कोई अनाज नहीं पहुच पा रहा है जिसके चलते आज रामकली के बच्चे कुपोषण के चलते मारे जा रहे है......

महंगाई को कम करने के सरकार दावे तो जोर शोर से करती रही है लेकिन सच्चाई यह है कि देश में आम आदमी की थाली दिनों दिन महंगी होती जा रही है.....प्रधानमंत्री जहाँ ऊँची विकास दर और कॉरपोरेट नीतियों का हवाला देते नहीं थकते वही देश के वित्त मंत्री यह कहते है हमारे पास महंगाई रोकने के लिये कोई जादू की छड़ी नहीं है तो इस सरकार का असली चेहरा जनता के सामने बेनकाब हो जाता है......हद तो तब हो जाती है जब रिज़र्व बैंक 13 वी बार अपनी ब्याज दर बढाता है ताकि मार्केट में लिक्विडिटी बनी रहे .

इसके बाद भी आलम ये है महंगाई देश को निगलते जाती है और रामकली जैसे गरीब परिवारों के सामने रोजी रोटी का एक बड़ा संकट पैदा हो जाता है ..... आज यह जानकर हैरत होती है कि हमारे देश में भुखमरी की समस्या लगातार बढती जा रही है ...... यूं ऍन ओ की हालिया रिपोर्ट को अगर आधार बनाये तो कुपोषण ने हमारे देश में सारे रिकार्डो को ध्वस्त कर दिया है.....आपको यह जानकर हैरत होगी कि हर रोज तकरीबन ७००० मौते अकेले कुपोषण से हमारे देश में हो रही है.....सरकार खाद्य सुरक्षा कानून लाने की बात लम्बे समय से कर रही है लेकिन इसको पेश करने की राह भी आसान नहीं है......

मनमोहन और सोनिया की अगुवाई वाली सलाहकार परिषद् में इसे लेकर अलग अलग सुर है..... राजनेताओ को आम आदमी से कुछ लेना देना नही है ... अगर ऐसा होता तो आज हमारे ऊपर कुपोषण का कलंक नहीं लगता..... बढती जनसँख्या ने देश में खाद्य संकट को हमारे सामने बड़ा दिया है.....ऐसा नहीं है देश में पर्याप्त मात्रा में खाद्यान उत्पादन नहीं हो रहा ॥ उत्पादन तो हो रहा है लेकिन फसल के रख रखाव के लिये हमारे पास पर्याप्त मात्रा में गोदाम नहीं है ...... इसी के चलते करोडो का अनाज हर साल गोदामों में सड़ता जा रहा है.... अभी इस बार मध्य प्रदेश में चावल का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ .... वहां के मुख्यमंत्री शिवराज परेशान हो गए है .... सी ऍम होने के नाते उन्होंने केंद्र को चिट्टी लिख दी ... उन्होंने कहा मध्य प्रदेश में रख रखाव के लिये पर्याप्त गोदाम नहीं है लिहाजा केंद्र सरकार इस अनाज के रख रखाव की व्यवस्था सुनिश्चित करे लेकिन देखिये केंद्र ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की .....


हमारे देश में केंद्र ओर राज्यों में अलग अलग सरकारे होने के कारन कई बार सही तालमेल नहीं बन सकता .... यही अभी मध्य प्रदेश में देखने को मिला ....कमोवेश यही हालात आज देश के अन्य राज्यों में है ......

यूनेस्को का कहना है भारत की गिनती दुनिया के सबसे कुपोषित देशो में हो रही है....लेकिन इन सबके बाद मनमोहनी इकोनोमिक्स ऊँची विकास दर और "भारत निर्माण " की अगर दुहाई दे तो यह कुछ हास्यास्पद मालूम पड़ता है .......हद तो तब हो जाती है जब इस देश में घोटालो के बाद एक घोटाले होते रहते है और हमारे प्रधानमंत्री अपनी नेकनीयती का सबूत देते नहीं थकते......देश की जनसँख्या तेजी से बढ़ रही है ... हाल ही में हमने १२१ करोड़ के आकडे को छुआ है अगर यही सिलसिला जारी रहा तो यकीन जानिए हम चीन को पीछे छोड़ देंगे... ऐसे में बड़ी आबादी के लिये भोजन जुटाने की एक बड़ी चुनौती हमारे सामने आ सकती है....

पिछले दो दशको में हमारा खाद्यान उत्पादन १.५ फीसदी तक जा गिरा है.... मनमोहन के दौर में हमारे देश में दो भारत बस रहे है... एक तबका ऐसा है जो संपन्न है ...वही एक तबका ऐसा है जो अपनी रोजी रोटी जुटाने के लिये हाड मांस एक कर रहा है.... याद कीजिये १९९० का दौर उस समय हमारा देश आर्थिक सुधारो की दहलीज पर खड़ा था.... नरसिम्हा राव की सरकार उस समय थी...उस दौर में हमारे देश में प्रति व्यक्ति खाद्यान की खपत ४६८ ग्राम हुआ करती थी...

उदारीकरण के आज २० सालो बाद भी भारत में प्रति व्यक्ति खाद्यान उपलब्धता ४०० ग्राम हो गई है ....यही नहीं आप यह जानकार चौंक जायेंगे १९९० में प्रति व्यक्ति ४२ ग्राम दाल उपलब्ध थी वही २०११ में यह आकडा भी लुढ़क गया और यह २५ ग्राम तक पहुच गया .... यह आंकड़ा औसत है जिसमे मनमोहनी इकोनोमिक्स का संपन्न तबका भी शामिल है साथ ही वह क्लास भी जो रात को दो रोटी भी सही से नहीं खाता होगा... अर्जुन सेन गुप्ता की रिपोर्ट कहती है देश की ७० फीसदी आबादी आज भी २० रूपया प्रति दिन पर गुजर बसर करती है.....ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है इस दौर में कैसे यह गरीब तबका दो समय का भोजन अपने लिये बनाता होगा ? ऊपर से यह सरकार २६ और ३२ की बहस चलाकर गरीबो क मुह पर तमाचा मारने पे तुली रहती है .........

देश में आज थाली दिन प्रति दिन महंगी होती जा रही है.....घरेलू गैस के दामो में भी सरकार अपनी मनमर्जी चलाती रहती है... यही नहीं तेल के दाम भी सरकार आये दिन बढाने का फैसला लेती रहती है जिसकी सबसे ज्यादा मार गरीब परिवारों पर पड़ती है ... इसके चलते लोगो करता जीना दुश्वार होता जा रहा है.....सरकार को तेल कंपनियों का घाटा पूरा करना है ... आम आदमी से कुछ भी लेना देना नहीं है .....


अगर आम आदमी से कुछ लेना देना होता तो उसकी तरफ सरकार ध्यान तो जरुर देती...... शायद तभी आम आदमी का अब यू पी ए २ से मोहभंग होता जा रहा है.....तेल और घरेलू गैस के दामो को बढाने का फैसला सरकार वैश्विक माहौल का हवाला देकर अक्सर लेती रहती है ....


ज्यादा समय नहीं बीता जब मुद्रा स्फीति रिकॉर्ड १२.२५ % पार कर गई जो अब तक की सबसे बड़ी दर है.... ऊपर से रिजर्व बैंक लोन की दर बढाने का फैसला कर मध्यम वर्गीय परिवारों को निराश करते रहता है .......अभी इस वर्ष देश का सकल घरेलू उत्पाद सात फीसदी के आस पास है ....जबकि यही पिछले साल ९ फीसदी के आस पास रहा था... आज आलम यह है कि रुपये के मूल्य में लगातार गिरावट आते जा रही है... यह संकेत भारतीय आर्थव्यवस्था के डगमग रहने के संकेत के रूप में देखा जा सकता है ... सरकार मंदी की आहट के मुकाबले के लिए ऍफ़ डी आई लाने की हिमायती थी ताकि विदेशी निवेशक यहाँ के बाजार में आकर अपना पैसा लगा सके लेकिन २जी की आंच ने कारपोरेट को सहमा दिया है ....लिहाजा कई परियोजनायो के लिए एनओसी मिलनी मुश्किल हो चली है..........यानी पहली बार वह अर्थव्यवस्था औंधे मुह गिर रही है जिसकी बिसात पर मनमोहन ने उदारीकरण का सपना देखा था ..... ऐसे में कह पाना मुश्किल होगा कि मौजूदा दौर में जब सारे दरवाजे बंद हो चुके है तो रास्ता जायेगा किधर ?


मनमोहन के दौर में समाज में अमीर और गरीबी की जो खाई चौड़ी हुई है उसके पीछे बहुत हद तक हमारी खाद्यान प्रणाली जिम्मेदार है .....जबसे मनमोहन ने देश में उदारीकरण की शुरुवात की तबसे हर सरकार का ध्यान ऊँची विकास दर बरकरार रखने और सेंसेक्स बढाने पर जा टिका है .....आकड़ो की बाजीगरी आज के दौर में कैसे की जाती है ये हर किसी को मालूम है ....


वैसे भी यह बात समझ से परे लगती है आम आदमी करता सेंसेक्स से क्या लेना देना ? बीते २० सालो में एक खास बात यह देखने में आई है सरकार की विकास दर और गरीबी के आकडे दोनों तेजी के साथ बढे है .... सरकारी आंकड़ो में विकास ने "हाईवे " की तरह छलांग लगाई है लेकिन इस रफ़्तार ने कुपोषण , गरीबी, भुखमरी जैसी समस्याओ को बढाया है ....इस दौर में कृषि जैसे सेक्टर की हालत सबसे खस्ता हो गई......

शहरों में चकाचौंध तो तेजी से बढ़ी लेकिन गावो से लोगो का पलायन बदस्तूर जारी रहा .....आज आलम यह है कृषि में हमारी विकास दर दो फीसदी से भी कम है जो हमारे फिसड्डी होने को बखूबी बया कर रही है..... ..... किसानो को सरकार ने इस दौर में पैकेज भी प्रदान किया है .... यही नहीं बैंक भी किसानो की मदद के लिये आगे आये है लेकिन इन सब चीजो के बाद भी किसान परंपरागत खेती को छोड़ने पर आमादा है......साहूकार के दौर में किसानो पर जो कर्ज के कष्ट थे अब वह लोन के बाद भी ज्यादा बढ़ गए है.....

आकडे इस बात की गवाही देने के लिये काफी है किसान आत्महत्या का एक बड़ा कारण कर्ज रहा है... किसान पर कर्ज को चुकाने का बोझ इतना ज्यादा है वह समय से इसे नहीं चुका सकता .... वैसे भी भारत की कृषि को "मानसून का जुआ " कहा जाता है जो "इन्द्र देव " की कृपा पर ज्यादा टिकी हुई है......उस पर तुर्रा यह है हमारे प्रधान मंत्री इसे लाभ का सौदा बनाने के बजाय विदेशी निवेश बढाने पर आमादा है जिसकी वकालत शुरू से मनमोहनी अर्थशास्त्र करता रहा है......ऐसे में अपने किसान की खुशहाली दूर की कौड़ी लगती है ......


अपने घर खुशहाली नहीं रहेगी तो दूसरे से मदद मांगने से क्या फायदा.....? लेकिन मनमोहन अमेरिकी कंपनियों के ज्यादा निकट चले गए है ..... शायद तभी उन्हें अपने देश के पूर्व प्रधानमंत्री शास्त्री के नारे "जय जवान जय किसान " का एहसास इस दौर में नहीं होता......अगर ऐसा होता तो बीते सात सालो में ढाई लाख किसान आत्महत्याए अपने देश में नहीं होती......और ना ही कुपोषण का यूनेस्को का कलंक हमारे माथे पर लगता...................

1 टिप्पणी:

  1. हमारी नीति तो ऐसी रही ही नहीं कि भला हो सके। आजादी के बाद गेहूँ का उत्पादन जनसंख्या के मुकाबले बहुत अधिक बढा है, फिर भी यह हाल है। भाजपा के समय भी कुपोषण था ही।

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