आखिर जिस ग्रामीण खेल के आसरे भारत ने कबड्डी वर्ल्डकप जीता उसी भारत में आज भी बहुत सी ऐसी प्रतिभाए छिपी है जो राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा सकती है लेकिन भारत का खेल मंत्रालय ऐसे खेलो को कभी बढ़ावा नहीं देता। भारतीय हाकी खेल हमेशा से किसी न किसी विवादों में फंसी रहती है चाहे वो हाकी टीम के खिलाडियों के पैसो का मामला हो या फिर हाकी कोच पर लगे यौन शोषण का आरोप हो, कही न कही ये तमाम ऐसे मुद्दे है जो भारतीय खेलो कों पीछे धकेल रहे है. जिनका परिणाम ज्यादा दूरगामी नहीं निकल पाता. हमारे खेलो की दुर्दशा भी यही बताती है कि इन खेलो का भविष्य कुछ जायदा खास नहीं है.भारतीय पुरुष और महिला कबड्डी खिलाडियों ने अपनी ताकत का लोहा मनवाकर यह साबित कर दिया की भारतीय कबड्डी टीम किसी से कम नहीं है. लुधियाना (पंजाब) के गुरुनानक स्टेडियम में पुरुष वर्ग और महिला वर्ग ने कबड्डी का वर्ल्डकप जीतकर एक नया इतिहास रच दिया. एक ओर पुरुष वर्ग ने कनाडा को 59 -25 से मात देकर वर्ल्डकप पर अपना कब्ज़ा किया तो वही दूसरी ओर महिला वर्ग के खिलाडियों ने अपनी ताकत दिखाते हुए इंग्लेंड को 44 -17 से पटखनी देकर कबड्डी वर्ल्डकप का ताज़ा अपने नाम कर लिया .
भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी भारतीय महिला टीम ने कबड्डी का वर्ल्डकप जीता हो। दर्शको से भरे खचाखच स्टेडियम में भारतीय टीम के नारों की गूंज चारो ओर से सुनाई पड़ रही थी. जिससे भारतीय खिलाडियों के हौसले बुलंद थे. भारतीय पुरुष टीम ने कनाडा कों हराकर एक स्वर्ण पदक और दो करोड़ रुपए जीते लेकिन उधर महिला खिलाडियों ने एक स्वर्ण पदक के साथ-साथ 25 लाख रुपए की नकद धनराशि जीती. कबड्डी वर्ल्डकप जीतने की ख़ुशी में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने दोनों वर्गो के खिलाडियों कों सरकारी नौकरी देने का वादा किया. लेकिन अब सवाल यही से पैदा होता है कि जिस भारतीय महिला टीम के खिलाडियों ने पहली बार कबड्डी वर्ल्डकप जीता, आखिर खिलाडियों को एयरपोर्ट तक पहुचाने के लिए एक भी गाड़ी उपलब्ध नहीं कराई जा सकी. सीएम भी अपना वादा निभा कर चलता बने, आख़िरकार इन खिलाडियों का क्या कसूर था ? जो कई घंटो तक अपना पच्चीस लाख रुपए का चेक और वर्ल्डकप ट्राफी लिए हुए सड़क पर एयरपोर्ट तक जाने के लिए ऑटो का इंतज़ार करते रहे, उनके साथ न तो कोई आला अधिकारी थे ओर न ही कोई सुरक्षाकर्मी. अब आप यही से अंदाज़ा लगा सकते है कि भारतीय खिलाडियों की इज्ज़त किस तरह से की जाती है यही कारण है कि भारतीय खिलाडी भारतीय खेलो कों छोड़कर विदेशी खेलो की ओर क्यों रुख कर रहे है? उपविजेता टीम को हमारी सुरक्षा और ट्रेवल्स एजेंसियों ने उनको एयरपोर्ट तक वातानुकूलित बस से पहुचाया. लेकिन कबड्डी विश्वविजेता टीम सड़क पर ही टहलती रही.
आखिर देश जा किधर रहा है जो उसे अपनी प्रतिभा की ज़रा भी कदर नहीं। ज़रा याद कीजिएगा इसी साल के अप्रैल महीने में जब भारतीय क्रिकेट टीम ने वर्ल्डकप जीता तो उनके मैदान से कमरे तक सुरक्षाकर्मी हर तरह से मुस्तेद थे कही हमारे खिलाडियों की सुरक्षा में कोई सेंध न लग जाए। क्रिकेट टीम लिए रात की डिनर पार्टी हो या फिर डांस पार्टी हर तरह की सुविधाए उनको मुहय्या कराई जाती है लेकिन कबड्डी विश्वकप विजेता टीम के खिलाडियों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं, सवाल तो यहाँ मीडिया पर भी खड़ा होता है। जब भी कोई भारतीय खिलाडी किसी विदेशी खेलो में अपना अच्छा प्रदर्शन करता है तो हमारा प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया उसको पूरा कवरेज देता है।
मुझे तो कभी - कभी यह देखकर बड़ा ताजुब होता है कि जब खिलाडियों के घर तक के पहुचने की खबर हम तक पहुचती है। लेकिन अगर कोई खिलाडी भारतीय खेलो में अच्छा प्रदर्शन करे तो वह हमारे मीडिया के लिए चर्चा का विषय ही नहीं होता। शायद इसीलिए हमारी कबड्डी वर्ल्डकप विजेता टीम मीडिया पर कुछ खासा असर नहीं छोड़ सकी. वर्ल्डकप विजेता भारतीय टीम देश के कुछ गिने चुने अखबारों की ही लीड खबर बनी या फिर वह खेल पेज तक ही सीमित रही. वर्ल्डकप जीतने के एक दिन बाद खिलाडियों कों मीडिया ने पूरी तरह से नदारद कर दिया. आखिर कबड्डी वर्ल्डकप विजेता खिलाडियों के साथ ही ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों? क्रिकेट वर्ल्डकप जीती भारतीय टीम का कवरेज मीडिया ने खिलाडियों के एयरपोर्ट से लेकर उनके घर तक पहुचने की खबर हमको लगातार पहुचाई इस कवरेज में दोनों मीडिया की भूमिका लगभग 50 - 50 फीसदी रही. समझ नहीं आता भारत की ये आदत कब सुधरेगी जो विदेशी खेलो कों बढ़ावा देकर उनको प्रोत्साहित करता है. जबकि हमारे ही देश में उपज रहे भारतीय खेलो को न जाने क्यों प्रोत्साहित नहीं करता ?
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