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शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

भारतीय राजनीती में गहराता परिवारवाद .........

हमारे देश की राजनीती में परिवारवाद तेजी से गहराता जा रहा है.....जिस तेजी से परिवारवाद यहाँ पैर पसार रहा है उसके हिसाब से वह दिन दूर नहीं जब देश में कोई भी ऐसा नेता मिलना मुश्किल हो जायेगा जिसका कोई करीबी रिश्तेदार राजनीती में नहीं हो ..... राजनीतिक परिवारों के लिये भारतीय राजनीती से ज्यादा उर्वरक जमीन पूरे विश्व में कही नहीं है.....आज का समय ऐसा हो गया है राजनीती का कारोबार सभी को पसंद आने लगा है ॥ तभी सभी अपने नाते रिश्तेदारों को राजनीती में लाने लगे है....ऐसे हालातो में वो लोग" साइड लाइन" होने लगे है जिन्होंने किसी दौर में पार्टी के लिये पूरे मनोयोग से काम किया था...


आज के समय में नेताओ का पुत्र होने लाभ का सौदा है .... अगर आप किसी नेता के पुत्र है तो सारा प्रशासनिक अमला आपके साथ रहेगा ........यहाँ तक की मीडिया भी आपकी ही चरण वंदना करेगा ....अगर खुशकिस्मती से आप अपने रिश्तेदारों की वजह से टिकट पा गए तो समझ लीजिये आपको कुछ करने की जरुरत नही है ..... चूँकि आपके रिश्तेदार किसी पार्टी से जुड़े है इसलिए उनके साथ कार्यकर्ताओ की जो फ़ौज खड़ी है वो खुद आपके साथ चली आएगी...... इन सब बातो के मद्देनजर वो कार्यकर्ता अपने को ठगा महसूस करता है जिसने अपना पूरा जीवन पार्टी की सेवा में लगा दिया...


धीरे धीरे भारतीय राजनीती अब इसी दिशा में आगे बढ़ रही है ..... राजनीती में गहराते जा रहे इस वंशवाद को अगर नहीं रोका गया तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे लोकतंत्र का जनाजा ये परिवारवाद निकाल देगा .......भारतीय राजनीती आज जिस मुकाम पर है अगर उस पर नजर डाले तो हम पाएंगे आज राष्ट्रीय दल से लेकर प्रादेशिक दल भी इसे अपने आगोश में ले चुके है..... कांग्रेस पर राजनीतिक परिवारवादी के बीजो को रोपने का आरोप शुरू से लगता रहा है लेकिन आज आलम यह है कल तक परिवारवाद को कोसने वाले नेता भी आज अपने बच्चो को परिवारवाद के गर्त में धकेलते जा रहे है..... देश की विपक्षी पार्टी भाजपा में भी आज यही हाल है ... उसके अधिकांश नेता आज परिवारवाद की वकालत कर रहे है....."हमाम में सभी नंगे है" कमोवेश यही हालात देश के अन्य राजनीतिक दलों में भी है........ भारतीय राजनीती में इस वंशवाद को बढाने में हमारा भी एक बढ़ा योगदान है.....



संसदीय लोकतंत्र में सत्ता की चाबी वैसे तो जनता के हाथ रहती है लेकिन हमारी सोच भी परिवारवाद के इर्द गिर्द ही घुमा करती है .... वह सम्बन्धित व्यक्ति के नाते रिश्तेदार को देखकर वोट दिया करती है....जबकि सच्चाई ये है , चुनाव में राजनीतिक परिवारवाद से कदम बढ़ने वाले अधिकाश लोगो के पास देश दुनिया और आम आदमी की समस्याओ से कोई वास्ता ओर सरोकार नहीं होता ......वो तो शुक्र है ये लोग अपने पारिवारिक बैक ग्राउंड के चलते राजनीती में अपनी साख जमा लेते है ...... ऐसे लोगो ने भारतीय राजनीती को पुश्तैनी व्यवसाय बना दिया है .......जहाँ पर उनकी नजरे केवल मुनाफे पर आ टिकी है.....इसी के चलते आज वे किसी भी आम आदमी को आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहते......


वंशवाद अगर इसी तरह से अगर आगे बढ़ता रहा तो आम आदमी का राजनीती में प्रवेश करने का सपना सपना बनकर रह जायेगा ........परिवारवाद को बढाने वाले कुछ लोगो ने राजनीती को अपनी बपोती बना कर रख दिया है......यही लोग है जिनके चलते आज "जन लोकपाल " बिल पारित नहीं हो पा रहा है.... अन्ना सरीखे लोगो ने आज इन्ही की बादशाहत को खुली चुनोती दे दी है ......जिसके चलते खुद को सत्ता का मठाधीश समझने वाले इन नेताओ को आज उनका सिंहासन खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है.........

हर्ष ....

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