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गुरुवार, 4 अगस्त 2011

राम-राज का बिहार

 बिहार.दस करोड़ से ज्यादा की आबादी.  अतीत और भविष्य के द्वन्द में. वर्तमान की कोई व्याख्या नहीं. पत्रकार, बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, वैज्ञानिक किसी के पास नहीं. सभी के पास केवल अतीत का ज्ञान. भविष्य का ताना-बाना. वर्तमान की व्याख्या कोई कर रहा है तो केवल सरकार.  बोलकर और कागजो के ढेरो पर. जिसे प्रचारित करने की ज़िम्मेदारी वफादारी के साथ मीडिया निभा रही है.  अपराध पर लगाम कसा.   खुल गए दो- चार सिने-हाल. नेता-अभिनेता आने लगे राजधानी. चमकने लगे हैं बाज़ार. अब निकल सकते हैं  देर रात . धकाधक चल रहे मंहगे होटल. आये दिन लगते शासन - प्रशासन के दरबार. राम-राज लौटा. विकसित हो रहा पटना.  विकास का मानक बन रहा पटना. अगर केवल देख कर लौटेंगे तो धोखा खा सकते हैं.  एक साल में ये बदलाव हुए हैं. जिन्हें आप महसूस करके लौटेंगे.   हम भी कही- कही जाकर खांचे में फिट हो जाते हैं. हमे भी  इन्ही चीजों में विकास महसूस होता है. हो सकता है किसी के लिए यही विकास हो.  
ये जो आज बिहार में विकास के मानक नहीं है -  
शिक्षा - प्रारम्भिक शिक्षा प्रणाली, हाई क्लास शिक्षा प्रणाली के साथ चरमरा रही है. बात करने वाला कोई नहीं. हज़ारो स्कूल. केवल नाम के. स्थिति - शिक्षक है, बच्चे नहीं हैं. बच्चे हैं तो शिक्षक नहीं है. दोनों हैं, तो बैठने के लिए स्कूल नहीं है. मिड डे मील - मिड डे माल बना है.  अच्छा अन्न शिक्षक के घर गोदाम में. बुरा अन्न स्कूली  बच्चे के पेट में.   सरकार डकार लेती है. जिनका दाखिला नहीं वे प्लेट धोने की पढ़ाई - कैटरिंग प्रशिक्षण किसी ठेले पर ले रहे हैं.  जो बचे हैं वे किसी अपराध में शामिल होने की तयारी कर रहे हैं. सरकार का विज्ञापन है हर बच्चा पढ़ेगा, ये उसका हक है. आर टी ई क़ानून लागू है.

स्वास्थ्य- हाल में बिहार में स्वास्थ्य मेला चला. मेडिकल प्रोटेकसन एक्ट लागू हुआ. काफी काम हुआ. हेल्थ कार्ड बटा.  अब बस कुछ नहीं हो रहा तो इलाज़. सरकार ने कान बंद कर लिए हैं. बयानों के तीर छोड़ने शुरू कर दिए हैं. हकीकत यंहा के सबसे बड़े मेडिकल महाविद्यालय पीऍमसीएच में देखने को मिलती है,. रोज़ एक बड़े गरीब तबके का इलाज़ पैसे के अभाव में नहीं हो पाता.

आगे तथ्यों के साथ पेश होगी रिपोर्ट.....इंतज़ार कीजिये

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