"जाऊँगा खाली हाथ मगर, यह दर्द साथ ही जायेगा;जाने किस दिन हिन्दोस्तान, आजाद वतन कहलायेगा"।
अशफ़ाक़ उल्ला खां को नमन, वंदन।
स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी, जिन्होंने काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रामप्रसाद बिस्मिल के साथ अशफ़ाक़ उर्दू के बेहतरीन शायर थे। दोनों की दोस्ती मज़हब से ऊपर थी। दोनों एक दूसरे का सम्मान करते थे। पीठ पीछे भी कोई बुराई वे सुन नहीं सकते थे। उनमें देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी। वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। ब्रितानी हुक़ूमत ने 19 दिसम्बर 1927 को फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका दिया।
जन्म 22 अक्टूबर 1900 शाहजहांपुर
देश के सपूत को जन्मदिन पर उनको नमन, वंदन।
उनकी शायरी-
"जाऊँगा खाली हाथ मगर, यह दर्द साथ ही जायेगा;जाने किस दिन हिन्दोस्तान, आजाद वतन कहलायेगा।
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं, फिर आऊँगा-फिर आऊँगा; ले नया जन्म ऐ भारत माँ! तुझको आजाद कराऊँगा।।
जी करता है मैं भी कह दूँ, पर मजहब से बँध जाता हूँ; मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कह पाता हूँ।
हाँ, खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूँगा; औ' जन्नत के बदले उससे, यक नया जन्म ही माँगूँगा।।"
अशफ़ाक़ उल्ला खां को नमन, वंदन।
स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी, जिन्होंने काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रामप्रसाद बिस्मिल के साथ अशफ़ाक़ उर्दू के बेहतरीन शायर थे। दोनों की दोस्ती मज़हब से ऊपर थी। दोनों एक दूसरे का सम्मान करते थे। पीठ पीछे भी कोई बुराई वे सुन नहीं सकते थे। उनमें देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी। वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। ब्रितानी हुक़ूमत ने 19 दिसम्बर 1927 को फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका दिया।
जन्म 22 अक्टूबर 1900 शाहजहांपुर
देश के सपूत को जन्मदिन पर उनको नमन, वंदन।
उनकी शायरी-
"जाऊँगा खाली हाथ मगर, यह दर्द साथ ही जायेगा;जाने किस दिन हिन्दोस्तान, आजाद वतन कहलायेगा।
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं, फिर आऊँगा-फिर आऊँगा; ले नया जन्म ऐ भारत माँ! तुझको आजाद कराऊँगा।।
जी करता है मैं भी कह दूँ, पर मजहब से बँध जाता हूँ; मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कह पाता हूँ।
हाँ, खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूँगा; औ' जन्नत के बदले उससे, यक नया जन्म ही माँगूँगा।।"
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