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सोमवार, 16 सितंबर 2019

भला नाना और नानी का भी...कोई नाम होता है? वह खुद ही अपने आप में नाम और पहचान होते हैं।

भला नाना और नानी का भी...कोई नाम होता है?
वह खुद ही अपने आप में नाम और पहचान होते हैं।
खुशियों का खजाना और हर तमन्ना साकार करना उन्हें आता है।
...भला नाना का भी कोई नाम होता है। 
...भला नानी का भी कोई नाम होता है।
अधिकांश लोग और मैं भी आज तक अपने नाना, नानी का नाम नहीं जान पाया और जरूरत भी नहीं पड़ी।
...क्योंकि नाना और नानी का नाम ही काफी था। 
उनका लाड़, प्यार, उनका हम सब पर सब कुछ लुटा देना।
....यही काफी था हमारे लिये।
बाजार जाने पर उनका घर आना मतलब साफ था। 
...कि बहुत कुछ आने वाला है, बहुत कुछ मिलने वाला है। 
घर आते ही हम सबकी नजरें झोले पर होती थीं।
...कि अब सिम सिम दरवाजा खुलने वाला है, बहुत कुछ मिलने वाला है। 
वह भी थोड़ा तड़फ़ाते थे और कहते थे सोचो क्या लाया हूं,  तुम्हारे लिये।,,,,,,,कोई बता सकता है।
हमारा अनुमान फल-फ्रूट, मिठाई तक ही सीमित रहता था।
,,,लेकिन वह तो खजाना थे। 
पैसे भले ही उनकी जेब में कम हों, लेकिन दिल बहुत बड़ा था। उधारी ही सही हमारी तमन्ना कभी मर नहीं पाती थी।
,,,क्योंकि नाना और नानी का भी कोई नाम होता है।
उनका नाम ही काफी होता है। 
उनके कच्चे मकान और थोड़ी गरीबी भले ही हो, लेकिन उनका घर हमारे सपनों का संसार रहता है।
हम सबके जीवन में नाना और नानी का बड़ा प्यार रहता है। 
बड़ा लाड़ रहता है। बड़ा दुलार रहता है। 
हर पल वह हमारी फ़िक्र करते थे।
कहीं ऊंचाई पर चढ़ गए या कहीं पेड़ पर चढ़ गए या कहीं खतरनाक जगह पहुंच गए तो उनकी जान निकल जाती थी।  तुरंत चिल्ला पड़ते थे। 
,,,,,,अरे वहां कैसे पहुंच गए। (तेज आवाज में)।
,,,तुरंत पीछे आओ, तुरंत वापस आओ, गिर जाओगे, 
लग जाएगी,,,चलो वापस आओ। 
तुरन्त आओ, तुम्हें कुछ दिलाता हूं।
कितनी फिक्र और कितनी चिंता रहती थी उनको।
सामने थोड़ा न दिखूं तो तुरंत पूछते थे नाम लेकर 
,,,,,फलां नहीं दिख रहा है। कहां गया है? 
कहाँ गायब है?,,,सो गया क्या?
जब तक जवाब नहीं मिल जाता। 
वह पूछते ही रहते थे।
कहीं बुखार आ गया तो नीम-हकीम, टोना-टोटका से,,,
लेकर अस्पताल तक भागते थे।
जब तक सही नहीं हुआ, तब तक चैन की सांस नहीं लेते थे।
अंगुली पकड़कर हर जगह ले जाना और जानकारी देना।
लोगों के पूछने पर बताना,कि यह फलां बेटी का फलां बेटा है।
कहानी सुनाना और फिर जोर से गुदगुदाना।
जी भर हंसाना और मिलकर खिलखिलाना।
रूठने पर हर जानवर की आवाज निकालना।
यहां तक कि जानवर बनकर भी दिखाना।
और जब तक हंस न जाएं,,,हर करतब दिखाना।
हमें सब याद है,,, नाना और नानी जी। 
,,,अब न नाना हैं और न नानी हैं,,,लेकिन जब भी
वो चेहरे याद आते हैं तो आंखों में आँसू आ जाते हैं।
उनका चेहरा झूलने लगता है। 
हम यादों के उसी पल में चले जाते हैं।
हमारे जीवन में नाना-नानी का ये रिश्ता कितना अनमोल होता है।
,,,,क्योंकि नाना और नानी का भी कोई नाम होता है क्या?।
(फ़ोटो में नाना नानी,,,ग्राम बरोदिया बीना म.प्र.)
उनके चरणों की धूल को नमन, वंदन।,,,,फूलशंकर।

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