रविवार, 28 मार्च 2010
चाहते...
समय के ठहराव पर ही हम क्यों रूक जाते हैं .चाहते तो कुछ हैं पर मजबूरन करना कुछ पड़ता हैं। आखिर क्यों हम आपनी चाहतो को दिन प्रतिदिन मारते जा रहे हैं ,चाहतो को माकूल बनाना हमारे ही बस में हैं ,फिर भी हम असमर्थ क्यों होजाते हैं अब खुलकर सोचिये....
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