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गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

....वह तोड़ता पत्थर

उत्तर प्रदेश का सबसे छोटा और पिछड़े जिला में शुमार,आल्हा ऊदल की नगरी के नाम से ख्याति प्राप्त,वीर भूमि वसुंधरा के नाम से उद्बोधित..पानों का नगर..महोबा अपने में कई ऐतिहासिक तथ्यों को अपने में लीन किये है...बुंदेलखंड क्षेत्र से सबसे ज्यादा मंत्री होने के बावजूद ये जिला अपने काया कल्प और विकास के लिए आज भी सरकारी बाट जोह रहा है...पता नहीं कब तस्वीर बदलेगी..इस क्षेत्र की..यहाँ के नुमाइंदों की...खैर आज राजनैतिक बातें नहीं...मुद्दे की बात..
जिसने लोगों की सेवा में लगा दिया अपना बचपन .. जिले से राज्य और फिर राष्ट्र स्तर के बटोरे ढेरों पुरस्कार....जिस पर राष्ट्रपति भी हो गए निहाल..और दिया राष्ट्रपति सम्मान..जो बना युवाओं का आदर्श...मगर अफ़सोस कि वो मुफलिसी से हार गया..पेट की भूंख और रिश्तों के निर्वहन के दायित्व ने उसे तोड़ कर रख दिया..विधवा मां की बीमारी और तंगहाली से जूझने की राह ढूंढने में नाकाम हो गया वो.. लेकिन अभी भी उसमे हौसला है..उसको है अपनी जिम्मेदारियों का एहसास...जिसके लिए वो गिट्टी तोड़ने में हाड़तोड़ मेहनत कर वह अपनी पढ़ाई भी करता है और बीमार मां व बहन की परवरिश भी... मां के इलाज व बहन की शादी के लिये पैसे से लाचार ये कर्मवीर अब इस उधेड़बुन में है कि किसी तरह बहन के हाथ पीले करे..
इस कर्म योद्धा की कहानी सुनकर मुझे एक गीत कि पंक्तियाँ याद आती हैं...
बचपन हर गम से बेगाना होता है...
मगर कबरई कस्बे के राजेंद्र नगर के निवासी 17 साल के श्यामबाबू को नहीं पता कि बचपन क्या होता है...इसके होश संभालने के पहले पिता का साया इसके ऊपर से उठ चुका था..जिस उम्र में इसे अपने हम उम्र साथियों के साथ खेलना चाहिए था..उस समय इसके हाथ अपने परिवार को पालने के लिए हथौड़ा चलाते लगे... जब इसको अपना जीवन संवारना चाहिए तो इसे अपनों की रुश्वाइयों का शिकार होना पड़ा....बड़े भाई ने बीमार मां व छोटे भाई बहनों को छोड़ अपनी अलग दुनिया बसा ली...न रहने को मकान था और न एक इंच जमीन, कोई रोजगार भी नहीं.. इन कठिन हालात में इस कर्मवीर ने कस्बे के पत्थर खदानों में हाड़तोड़ मेहनत कर स्वयं मां व छोटे भाई बहनों की रोटी तलाश की...समाजसेवा का जज्बा होने के कारण अध्ययन के दौरान विविध गतिविधियों में हिस्सा ले खुद को तपाया...स्काउट गाइड, रेडक्रास सोसायटी, राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम, राजीव गांधी अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम जैसे तमाम आयोजनों में इस मेधा को प्रशिस्त पत्र दे सम्मानित किया गया...सम्मान और पुरस्कारों का क्रम जिले से शुरू हो राज्य और राष्ट्र स्तर तक पहुंचा...12 साल की उम्र में राज्यपाल टीवी राजेश्वर और 14 जुलाई 10 को राष्ट्रपति ने स्काउट गाइड के रूप में बेहतर सेवा के लिये इसे सम्मानित किया.... राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित यह किशोर अभी भी पत्थर खदानों में मजदूरी कर रहा है... बीमार मां के इलाज और सयानी बहन की शादी कैसे हो यह सवाल उसे खाये जा रहा है...हर पल उसे चिंता की आग में जला रहा है... जिले का गौरव बढ़ाने वाले इस किशोर के पास रहने को झोपड़ी तक नहीं...अब तक नाना नानी के घर में शरणार्थी की तरह रहने वाले इस परिवार को अब वहां भी आश्रय नहीं मिल पा रहा है... जिले से राष्ट्रीय स्तर तक तमाम प्रतियोगिताएं जीत चुका यह किशोर असल जिंदगी की प्रतियोगिता का मुकाम हासिल नहीं कर पा रहा है.. शादी योग्य बहन के हाथ पीले न कर पाने की लाचारी में वह इसे देख निगाहें झुका लेने को मजबूर है..राज्य स्तर के ढेरों पुरस्कारों व स्काउट गाइड में राष्ट्रपति से सम्मानित श्यामबाबू को किसी सरकारी योजना में शामिल नहीं किया गया... इसके पास न रहने को घर है न एक इंच भूमि... परिवार में कोई कमाने वाला भी नहीं... हद यह कि इस परिवार को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन का कार्ड भी हासिल नहीं हुआ... प्रशासन चाहता तो कांशीराम आवास योजना के तहत इसे छत तो दे ही सकता था पर वह भी नसीब नहीं हुई... इंदिरा और महामाया आवास भी नहीं मिले... हालात से जाहिर है जिले में ऐसे जरूरतमंद उंगलियों में गिनने लायक ही होंगे.... लेकिन ऐसे इन्हीं लोगों को जब छत और रोजगार न मयस्सर हो तो फिर सरकारी योजनाओं का लाभ किसे दिया जा रहा है....अपने आप में एक बड़ा सवाल है....
प्रतिभा तोडती पत्थर या पत्थरों से टूटती प्रतिभा इसे क्या कहा जाए..आप खुद सोचिये..

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

कदम से कदम मिले...

कदम से कदम मिले

लो तैयार हो गया काफिला


जुल्म से जुल्म टकराये


लो आगाज़ हो गया क्रान्ति का...


घर घर में लगायी आग


लो दौर
शुरू हो गया विद्रोह का...

तितर बितर रक्त छिटकता रहा


लो उठा खड़ा हुआ सैलाब लाल का...


जगह-जगह लोग कहते हैं


कभी दौर हुआ करता था आजादी का...


तभी दस्तक दी भगत-सुखदेव-राजगुरू ने


लो फिर से आगाज हुआ इन्क़लाब का...


करवॅट पे करवॅट वक्त लेता है


सर्वाहारी पर हावी पूंजीपति रहता है


जन-जन से जन सैलाब तैयार हो गया


फिर से
शुद्धिकरण शुरू होगा समाज का...

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

कदम से कदम मिले...

कदम से कदम मिले
लो तैयार हो गया काफिला
जुल्म से जुल्म टकराये
लो आगाज़ हो गया क्रान्ति का...
घर घर में लगायी आग
लो दौर शुरू हो गया विद्रोह का...
तितर बितर रक्त छिटकता रहा
लो उठा खड़ा हुआ सैलाब लाल का...
जगह-जगह लोग कहते हैं
कभी दौर हुआ करता था आजादी का...
तभी दस्तक दी भगत सुखदेव राजगुरू ने
लो फिर से आगाज हुआ इन्क़लाब का...
करवॅट पे करवॅट वक्त लेता है
सर्वाहारी पर हावी पूंजीपति रहता है
जन-जन से जन सैलाब तैयार हो गया
फिर से शुद्धिकरण शुरू होगा समाज का...

मीडिया के पतन में आखिर दोषी कौन?

एक ही किताबी बात हमेशा से पत्रकारिता के छात्रों का बतायी जाती है कि पत्रकारिता एक मिशन है लेकिन मौजूदा हालात पर अगर नजर डालें तो शायद यह बात अब झूठी साबित होती नजर आ रही है। आजादी मिलने के बाद से ही पत्रकारिता के मायने में परिवर्तन होना शुरू हो गया था और ये परिवर्तन लाज़मी है क्योंकि परिस्थितियां भी करवॅट ले चुकी थी। आज बढ़ते मीडिया संस्थानों/स्कूलों से तो सिर्फ यही सन्देश आता है कि अब पत्रकारिता भी रोजगार का एक अच्छा माध्यम बन गया है। इसपर विभिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न विचार। कुछ कहते हैं कि पत्रकार बनाये नहीं जाते जन्मजात होते हैं। उनमें पत्रकारिता के गुण जन्म से ही होते हैं और कुछ कहते हैं कि पत्रकार तैयार किये जाते हैं। बहरहाल आधुनिक विचार का अब अनुपालन काफी तेजी हो रहा है। गत कुछ वर्षों से यह रोजगार और व्यापार दोनों के लिहाज से काफी सफल होती नजर आयी है। खुद समाज में जनजागृति फैलाने वाले समाचार पत्रों व इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने अपने-अपने मीडिया स्कूल खोलकर ये दिखा दिया कि पत्रकारिता अब रोजगार और व्यापार का एक नायाब तरीका बन गया है। पाइनियर, आज तक, एनडीटीवी, जी-न्यूज, दैनिक जागरण, साधना चैनल जैसे मीडिया घराने के ब्राण्ड दो-तीन लाख रूपये में छात्रों को मीडिया की डिग्री बांट रहे हैं।
कलम और कैमरे की ताकत से कायल युवा सिर्फ ग्लैमर, नाम-पहचान, रूपया से प्रभावित हो पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने कदम रख रहे हैं। इनकी तादात तो इतनी है कि हर साल हजारों युवा पत्रकारिता की डिग्री लेकर निकलते हैं लेकिन चौंकाने वाली बात तो यह है कि उसमें से करीब एक चौथाई युवा भी नामचीन समाचार पत्रों व चैनलों में नौकरी नहीं पा पा रहे हैं और पत्रकारिता का गुण रखने वाले जिन युवाओं को नौकरी मिल रही है उनमें से भी कुछ सिफारिशी टट्टू होते हैं। वैसे, जैसे-तैसे इन लोगों की नईय्या तो पार हो जाती है लेकिन इनमें से अधिकतर का जीवन गुमनामी के अन्धेरे में ही सिमटकर रह जाता है। मतलब अब जो पत्रकारों की फौज खड़ी हो रही है उनमें इतनी क्षमता नहीं रह गयी कि वे अपनी कलम-लेख से अपनी पहचान बरकरार रख सकें। रही बाकी लोगों की बात तो इनमें से कुछ पहले ही हार मानकर अपनी दिशा बदल लेते हैं और जिनमें लड़ने की क्षमता बाकी रहती हैं वे किसी क्षेत्रीय समाचार पत्र या चैनल में अपना जीवन झोंक देते हैं। इसलिए नहीं कि छोटे स्तर पर सीखने को ज्यादा मिलेगा बल्कि इसलिए कि भागते भूत की लंगोटी भली। चुंकि गरज इन भटकते युवाओं की है इसलिए खुद मीडिया संस्थान शुरुआत में इन्हें निःस्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए कहते हैं फिर एक आध साल के बाद इनकी कीमत एक हजार रूपये या बहुत ज्यादा पन्द्रह सौ रूपये लगाते हैं। ये कहानी सिर्फ क्षेत्रीय समाचार पत्रों की ही नहीं राष्ट्रीय समाचार पत्रों की भी और चैनलों में इन्हीं गरजुओं को तीन से चार हजार रूपया मिलता है। मतलब एक मजदूर की मेहनतहाना के लगभग बराबर। 3-3 लाख रूपये की डिग्री लेने के बाद युवा तीन हजार की नौकरी ख़ुशी-ख़ुशी कर हैं... सस्ती पत्रकारिता कर रहे हैं और असल में यही है मीडिया की वास्तविकता जो युवाओं को अनुभव देने के नाम पर उनका शोषण करते हैं जब तक खुद वो युवा संस्थान नहीं छोड़ देता। उसके संस्थान छोड़ते ही कोई दूसरा अनुभव के नाम पर शिकार हुआ युवा उसकी जगह ले लेता है। जिससे संस्थानों की अपनी दूकान तो चलती रहती है लेकिन पत्रकार बनने आये युवाओं के साथ सिर्फ खिलवाड़ होता रहता है।
सस्ती पत्रकारिता का साफ अर्थ है कि पत्रकारिता के चरित्र का पतन होना। इस पतन के लिए शायद दो कारण हो सकते हैं। पहला ये कि पत्रकारिता के लिए जो पठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है। उससे उन युवाओं का बौद्धिक और शाब्दिक ज्ञान का विकास शिथिल पड़ा रहता है। हां, तकनीकि ज्ञान एक आध मीडिया स्कूलों में जरूर दिया जा रहा है। ज्ञान के अभाव के कारण भाषा पर इनकी पकड़ कमजोर होती चली जा रही है। साथ ही इनमें बहुआयामी सोच का विकास नहीं हो पा रहा है और जब ऐसे युवा पत्रकार बनेंगे तो पत्रकारिता का स्वरूप बदलना लाज़मी ही है। दूसरा कारण यह है कि जब कोई युवा तीन लाख रूपये लगाने के बाद तीन हजार की नौकरी करता है तो स्वतः ही उसका नजरिया पत्रकारिता के लिए बदल जाता है। वह पत्रकारिता को एक ज़रिया समझकर उससे धनोत्पार्जन करने के दांव पेंच खेलना शुरू कर देता है। तो जब पत्रकार ही अपने पथ से भटक जाएगा तो पत्रकारिता का पथ भ्रष्ट होना तय है। यही कारण है कि अब मीडिया गम्भीर होने के बजाए अर्थहीन होती जा रही है। क्या कारण है कि इतना मंहगी पढ़ाई करने के बाद भी पत्रकारिता के क्षेत्र में जाने माने चेहरों में किसी युवा पत्रकार का चेहरा नहीं दिखई दे रहा है? हां अपवाद के तौर पर इने गिने चेहरे ही हर जगह दिखाई देते हैं। कोई और चेहरे क्यों नहीं सामने निकलकर आ पा रहे हैं? आखिर गलती कहां पर हो रही है और किससे हो रही है? वैसे प्रभाष जोशी, पुण्यप्रसून वायपेयी, आशुतोष, राहुल देव, प्रभू चावला जैसे पत्रकारिता के दिग्गज खिलाड़ी आज के उन मीडीया स्कूलों पर उंगली उठा रहे हैं जो पत्रकार बनने आये छात्रों से लाखों रूपये वसूल कर रहे हैं उसके बावजूद भी आज पत्रकारिता पथभ्रष्ट होती नजर आ रही है...

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

योजनाओ का सहारा




आगामी विधान सभा चुनावी सरगमी उत्तराखंड राज्य अपने पैर पसारती जा रही है . जैसे -२ चुनाव नजदीक आते जा रहे है ....वैसे -२ निशंक के चेहरे की भाव भंगिमाए दिनों दिन बढती जा रही है ...वोट पाने के लिए प्रदेश सरकार योजनाओ का सहारा ले रही है ...डा. निशंक नितीश और मोदी की रहा पर चलना चाह रहे है ..निशंक की तुलना अगर नितीश और मोदी से कर भी दी जाये ..... तो शायद हसी के पात्र भी बन सकते है... निशंक सरकार कों इन दोनों की राह पर चलने की लिए ,बहुत कुछ सीखना पड़ेगा तभी जाकर इनकी बराबरी कर पायेगे ....आगामी विधान सभा चुनावो की रणनीति कों लेकर सभी राजनीति दलों अपनी - २ गोटी फेलानी शुरू कर दी है...जहा एक और उत्तराखंड ने अपनी स्थापना का एक दशक पूरा किया ..वही दूसरी और राज्य अपने विकास के रोने रो रहा है ...उत्तराखंड ने अब तक प्रदेश कों पांच मुख्यमंत्री दिए ... लेकिन किसी ने अब तक इसके विकास के बारे में नहीं सोचा ....
राजधानी देहरादून में राष्टीय पत्रकार संघ उत्तराखंड जिला इकाई का आयोजन किया गया ...जिसके मुख्य अथिति गढ़वाल सांसद सतपाल महाराज रहे ..कार्यक्रम की अध्यक्षता मदन कोशिक (पर्यटन मंत्री) ने की ....इस कार्यक्रम का मकसद मीडिया के लिए नए-२ आयाम देना और पत्रकार बंधुओ के लिए विषम परिथितियो में प्रदेश सरकार सुविधाये मुहिया कराना ... आगामी ,चुनाव के मद्देनज़र मुख्यमंत्री घोषणाओ पर घोषनाए लगातार करते जा रहे है ...हाल ही में प्रदेश सरकार पत्रकारों की लिए आवासीय कालोनी और पत्रकार कल्याण कोष के लिए अब तक पाच करोड़ रूपये की घोषणा कर चुकी है ......प्रदेश सरकार के लिए ये अपने आप में एक अनूठी पहल भी कही जा सकती है
वर्जन ---"-जिस दोर में पत्रकारिता आज अपने उत्कर्ष शिखर पर पहुची है ऐसे दोर में भ्रष्ठचार और घोटाले का बाज़ार भी गर्म रहा है.....राज्य सरकार ने शासकीय पत्रकारों कों आवसीय कालोनी देनी की घोषणा वैचारिक रूप से की है...पत्रकारों कों आगे आकर संगठन के रूप में काम करना होगा" ......

मीडिया सलहाकार समिति अध्यक्ष( उत्तराखंड)----देवेन्द्र भसीन


करीब डेढ़ माह पहले देहरादून में A 2 Z टीवी चेंनल. के एक पत्रकार की दुर्घटना में हुई मोत से राज्य के सभी पत्रकारों ने इस पर शोक व्यक्त किया लेकिन मुख्यमंत्री ने पत्रकार की मोत के प्रति कोई शोक सवेदना व्यक्त नहीं की.... मुख्यमंत्री के पास इतना समय ही नहीं है की वे किसी के लिए थोडा समय निकाल सके......... मुख्यमंत्री निशंक चुनावो की रणनीति के खाका बनाने में व्यस्त है....... राष्टीय पत्रकार संघ ने अपने स्तर इस पर कार्यवाई की तो निशंक ने पत्रकार संघ के दबाव के चलते मृतक पत्रकार कों दो लाख का चेक देने की घोषणा की ..
11 फरवरी 2011 कों देहरादून के गाँधी पार्क में मुख्यमंत्री ने अटल खाद्दान योजना का उद्घाटन किया...हजारो की तादाद में लोगो ने इस समारोह में शिरकत ली ...मुख्यमंत्री ने स्वम इस कार्यक्रम की अध्यक्षता भी की ....इस आयोजन के माध्यम के मुख्यमंत्री ने अनेको योजनाये जनता के समक्ष रखी जिसमे आईएएस अकादमी, आईआईटी, आईआईएम्.. देशी विदेशी छात्रो कों स्कोलरशिप देना, उत्तराखंड में गरीब परिवारों के बच्चो कों फ्री शिक्षा देना, कूड़ा बीनने वालो बच्चो कों मुफ्त शिक्षा देना, एमबीबीएस की पढाई मात्र पन्द्रह हज़ार रूपये में और बीपीएल परिवारों के बच्चो कों सीपीएमटी की तैयारी के लिए मुफ्त शिक्षा देना, मेरिट में आने वालो छात्रो कों इंजीनियर बनाना आदि -२ . .... प्रदेश सरकार ने चुनाव से पहले इतनी सारी घोषणाओ के तीर जानता के लिए छोड़ तो दिए ...... लेकिन ये तीर कहा जाकर गिरेगे और कोन-२ लोग इनका लाभ उठायेगे... ये तो आने वाला भविष्य ही तय करेगा .....
छत्तीसगढ़ की राह चलते हुए प्रदेश सरकार ने बीपीएल परिवार के लिए दो रूपये किलो गेहू ,तीन रूपये किलो चावल देने की घोषणा की मुख्यमंत्री ने एपीएल परिवारों के लिए आठ रूपये किलो गेहू ,दो रूपये किलो चावल देने की बात कही ...मुख्यमंत्री निशंक ने उत्तराखंड की जनता कों ये संकल्प दिया की प्रदेश में कोई भी व्यक्ति अब भूखा नहीं सोयेगा ....लेकिन मुख्यमंत्री कों कोई ये कोन बतायेगा की देश कों 80 फीसदी आबादी 9 रूपये से 20 रूपये पर गुजर बसर करती है....तो फिर किन लोगो कों भूखा न सोने की बात करते है ...
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्य तिथि पर अटल खाद्दान योजना का शुभारम्भ बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने किया...गडकरी ने ये भी बताया की जहा देश की 80 फीसीदी आबादी बीस रूपये पर गुजर बसर करती है, वही उत्तराखंड राज्य सरकार गरीबो की प्रति वचनबद्ध है ...राज्य लगातार प्रगति के शिखर पर पहुच रहा है ...राज्य की विकास दर जहा 9.41.% हुआ करती थी आज वही 41% पर जा पहुची ...तेजी से प्रगति करने वालो राज्य में उत्तराखंड कों प्रथम पुरस्कार उपराष्टपति के हाथो दिया गया ...गडकरी ने गरीबो के प्रति कल्याणकारी योजनाओ कों सफल बनाने की बात कही ...

चुनावी माहोल के इस दोर उत्तराखंड में एक बार राज्य सरकार योजनाओ का सहारा लेकर वोट पाने की राजनीति एक बार फिर से सर चढ़ कर बोलने लगी है ...चाहे सत्ता पक्ष या फिर विपक्षी दल या फिर अन्य दल हो चुनाव के नजदीक आते ही सभी कों गरीबो के प्रति चिंता सताने लगती है ...केंद्र सरकार जहा एक और मनेरगा के माध्यम से गरीबो कों अपनी और आकर्षित करती है ...वही राज्य सरकार गरीबो कों सस्ते दामो पर खाद्दय भोजन देकर जनता कों खुश करना चाहती है ...बात बराबर है सभी राजनितिक दल एक ही थाली के चट्टे बट्टे है .... कोई किसी से कम नहीं है...वैसे भी राज्य सरकार का सिंहासन इस बार खतरे में है.....
करीब चार साल से गहरी नींद में सोयी राज्य सरकार कों अब इन योजनाओ कों याद आ रही है .... वो भी तब जब चुनाव नजदीक है अब इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है की राज्य सरकार कों गरीबो की चिंता कम वोट पाने की चिंता सबसे ज्यादा है ...गरीबो की रोटी पर सवाल अब से पहले भी उठे है, और अभी भी उठते रहे है .....सरकार चाहे किसी की भी क्यों न हो बदलाव की उम्मीद किसी से नहीं की जा सकती .....

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

एक अपील केव्स टुडे संस्था के नाम..

नमस्कार साथियों, 
जो जहाँ भी है, कुछ पढ़ रहे हैं, कुछ काम कर रहे हैं, कुछ काम की तलाश कर रहे हैं, कुछ रणनीति तैयार कर रहे हैं,  और उन  सभी को भी जो इन दायरों से छूट गए.  
साथियों आप सभी  का काम महत्वपूर्ण है.  सबसे पहले आपके लिए,  फिर घर और फिर समाज के लिए.  लेकिन मुझे इतना यकीन ज़रूर है की आपके लक्ष्य से  समाज गायब नहीं है और न हो सकता है शायद आप की मजबूरी  हो मेरी तरह की आप न लिख पा रहे हो.  समय  न  दे पा रहे हो. अपने  मुख्य कार्य को छोड़ कर.   आपके जीवन में आपको अपने काम करने की  प्राथमिकता तय करने का पूरा अधिकार है.  इस अधिकार की रक्षा करना हमारा फ़र्ज़.  भूमिका के बाद मूल पर आता हूँ.  यह एक अपील है.  सबसे पहले मेरी खुद से फिर आप से.
हम एक संस्था हैं जिसका नाम केव्सटुडे है. ऐसा  मैं  मानता हूँ.  हो सकता है आप न माने.  आपकी असहमति आदरणीय है हमारे लिए.  इस मंच का निर्माण व्यक्तिवादी आधारशिला पर नहीं हुआ है.  यह एक विचार है.  आप इसका खंडन कर सकते हैं.  ढेर सारे तर्कों के साथ.  यह मंच जगह देगा.  हर संस्था से अलग करने की सोच और एक टीम भावना को जन्म देने के लिए इसका उदय हुआ है.  कुछ अलग और अच्छा इसने नहीं किया. यह कुछ लोग सोच सकते हैं.  यह भी उनका अधिकार है.  लेकिन कुछ  हुआ इससे इनकार नहीं कर सकते.  फिर भी आगाज़ होना  काफी नहीं है.  हमको- आपको इसे बढ़ाना होगा.   शुरुआत में इसके चलने न चलने को लेकर  भी सवाल  उठते रहे हैं.  लेकिन जिस टीम ने इसकी शुरुआत की उसने इस बात पर कभी जोर नहीं दिया.  बस  कुछ अच्छा  अपने और आने वाली पीढ़ी  के लिए करने का प्रयास किया है.  अभी बहुत सारी  कमियां है, जितना सोचा गया था उस लिहाज से. लेकिन जो सोचा गया  वह पूरा नहीं होगा. ऐसा नहीं हो सकता.  आलोचनात्मक रूप से अपने भावी पीढ़ी के लिए   यह मंच उतना नहीं कर पा रहा है जितना इसे करना चाहिए. इसकी गति धीमी हुई है. कारण  हमारी   अकर्मण्यता है.  बावजूद इसके नवोदित प्रतिभा  जुटी हैं. उन्हें प्रोत्साहन की ज़रुरत है. जो उन्हें नहीं मिल रहा. फिर भी जुटी है. संघर्षरत है. नवोदित प्रतिभा तुम यूँ ही बढ़ती रहो. .  लेकिन इसमें दो मत नहीं की यह आपके लिए प्रयास कर रहा है.   अपील है उस टीम से जिसने इसको  दिशा  दी आगे बढे.  नवोदित प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करे.  आप आर टी आई क़ानून के तहत  हमारी  टीम से सूचना ले सकते हैं   और सूचना के आधार पर आलोचना कर  सकते हैं.   फिलहाल एमपी, यूपी, बिहार, हैदराबाद, बंगाल  तक इसकी  धमक बढ़ रही है.  निश्चित रूप से जिसमे आपका  प्रयास सराहनीय है.   अधिक  से अधिक लोग अभिव्यक्ति  दे,   आज़ाद आवाज़  के साथ.   पिछले कुछ दिनों से हमारे कुछ साथियों ने अच्छा करने का लगातार प्रयास किया है.  कुछ नए साथी  भी जुड़े जो  और अच्छा प्रयास कर रहे हैं. उनका भी आभार.  पुराने साथियों बराबरी के इस मंच में नवोदितों को आगे आने दे. 
                                                                                                              विवेक  

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

हम उपभोक्ता नहीं निर्माता हैं...

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना,गिरकर चड़ना न अखरता है
.......
हरिवंशराय बच्चन की ये पंक्तियाँ बरबस ही याद आ गई...
राजधानी भोपाल के पास एक ग्राम पंचायत कुकरीपुरा का गाँव त्रिवेणी...जिसमे लोगों की मदद और सरकारी योजना के चलते बिजली से जगमग हो गया...एक ओर जहाँ राज्य सरकार केंद्र सरकार पर कोयला न देने का आरोप लगा रही है...और बिजली की कमी का रोना रो रही है....तो दूसरी ओर ग्रामीणों का सकारात्मक प्रयास से गाँव बिजली से रोशन हो गया...वहीँ त्रिवेणी के आसपास के गाँव अँधेरे में डूबे रहते है....करीब छह सौ की आबादी वाला ये गाँव जिसमे आधे से ज्यादा घरों के शौचालयों के टैंक सीवर लाइन से जोड़े गए...और फिर केंद्र सरकार की ग्रामीण स्वच्छता योजना के तहत इस मल से बायो गैस के ज़रिये बिजली उत्पादन किया जा रहा है...करीब ५ मेगावाट बिजली उत्पादित हो रही है इस गाँव में...गाँव के लोग अब बिजली के लिए अँधेरे में एक दूसरे का मुंह नहीं तकते हैं...बल्कि इस बिजली से गलियों में ट्यूब लाईट जलाई जाती है...किसी की शादी विवाह में भी रोशनी के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है...सामुदायिक भवन भी रोशन हो रहा है...गाँव वालों का कहना है कि अभी जब पूरे घरों के सीवर टैंक इससे जुड़ जायेगे तो उत्पादन और बढ़ जायेगा..अब ग्रामीण न केवल टेलीवीजन चलाते हैं बल्कि एफ.एम. का आनंद भी लेते है....खैर...मेहनत तो रंग लाती ही है...बस जरूरी होता है ज़ज्बा..जोश..जूनून...और काम के प्रति लगन...
आप मेरी तकदीर क्या लिखेगें दादू?वो मेरी तकदीर है..जिसका नाम है विधाता....संजय दत्त का ये डायलोग विधाता फिल्म का याद आ गया....इस गाँव को देख कर क्या कहू...समझ नहीं आ रहा है...इतना खुश हूँ कि गाँव में रहने वाले दीन हीन लोग भी अब अपनी तरक्की के लिए आगे आ रहे हैं...और अपने विकास की इबारत भी खुद ही लिख रहे हैं....बस यही ज़ज्बा सब में आ जाये तो हिंदुस्तान को विकसित राष्ट्र बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा....

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

हर्ष ने दिया दुःख

दुश्मनों ने तो ज़ख्म देने ही थे, ये उनकी फितरत थी,

दोस्तों ने भी जब दगा की, यह हमारी किस्मत थी!

कल शाम जब मेरे एक मित्र का सन्देश मेरे मोबाइल पर आया...तब अनायास ही ये शब्द लिख कर भेजे थे मैंने उसे...अचानक ही निकला था मेरे मन से ये शेर...नहीं जानता था कि आज मेरे अपने ही मुझे जुदाई का गम देने वाले हैं....समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस साल कि शुरुवात में हमसे क्या गलती हुई...कि ये नीली चादर वाला भी मेरे हांथो की मजबूती जो मेरे मिरता हैं..एक एक कर छीनता जा रहा है...जनवरी के महीने में मनेन्द्र....और अब मेरे जीवन से यमराज हर्ष भी छीन कर ले गया...बड़ा प्यारा था वो...एक दम गोल मटोल गोलू की तरह...सम्मान में झुकता तो ऐसे था लगता था अगर हाथ नहीं रखा तो वही स्थिति बना कर रखेगा...मेरी चौथी पीढ़ी का सदस्य था वो....ज्यादा तो मुलाकात नहीं हुई...मगर जितनी भी बार हुई...दिल जीत लिया था उसने...मगर ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था....

पीपुल्स पत्रकारिता शिक्षण संस्थान का बी.एस.सी प्रथम वर्ष के दो छात्र हर्ष शर्मा और प्रकाश पांडे...जो भोपाल में अयोध्या बाय पास रोड से कॉलेज की ओर आ रहे थे...अचानक एक ट्रक से हुई टक्कर से हर्ष की जिंदगी की रफ़्तार मौके पर ही रुक गई...जबकि प्रकाश अभी भी जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है...दुर्घटना इतनी भयावह थी कि प्रकाश के शरीर से मांस के लोथड़े निकल गए..कल कि ही बात है एक सोशल साईट पर मेरे पास मित्रता के लिए अर्जी भेजी थी....शाम को जब हर्ष के पिता उसे देखने आये...तो बेटे का चेहरा देखने की ताक़त उनमे नहीं थी...आँख से आंसू का एक भी कतरा नहीं गिरा...पर दिल बहुत रोया....पता नहीं मेरे मित्रों को किसकी नज़र लग गई...सवाल कॉलेज पर उठता है कि जब कॉलेज का समय १० बजे से शाम ५ तक है...तो ३.३० बजे ये छात्र बाहर कैसे निकले....खैर होनी को कौन टाल सकता है...मौत कोई न कोई बहाना लेकर आती है...कल जब हर्ष से मेरे मित्रों ने कहा कि बाइक के ब्रेक ठीक करा लेना...तो जानते हो क्या जवाब था उसका...भैया मौत ही तो होगी...इससे ज्यादा क्या...और सच कर दिया उसकी बात को ईश्वर ने...लोगों ने डांटा भी...ऐसा नहीं कहते...लेकिन गर्म खून कब शांत होता है...और पत्रकारिता जगत का एक और नाविक बिना नाव को खेये चला गया...मैं अब भी इस घटना पर विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ...लेकिन सच का घूँट तो पीना पड़ेगा...स्वीकार तो करना पड़ेगा...भीगी पलकों और रुंधे गले से एक गुजारिश अपने नव युवक साथियों से जरूर करूँगा..कि जब भी बाइक चलाये धीमी गति से चलाये...पूरी सावधानी से चले...अपने जीवन के लिए...अपने परिवार के लिए...और दोस्तों अपने इस नाचीज मित्र के लिए...मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरा अब कोई अंग क्षतिग्रस्त हो...जिंदगी के इस पथ पर मुझे आपके सहयोग की जरूरत है...इस पत्रकारिता के उत्थान के लिए....इस भारत महान के लिए..दोस्त इस गुजारिश पर गौर कीजिये...

वैलेंटाइन डे के बहाने .............


हर जगह विदेशी संस्कृति पूत की भांति पाव पसारती जा रही है ..... हमारे युवाओ को लगा वैलेंटाइन का चस्का भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है... विदेशी संस्कृति की गिरफ्त में आज हम पूरी तरह से नजर आते है ... तभी तो शहरों से लेकर कस्बो तक वैलेंटाइन का जलवा देखते ही बनता है...आज आलम यह है यह त्यौहार भारतीयों में तेजी से अपनी पकड़ बना रहा है... वैलेंटाइन के चकाचौंध पर अगर दृष्टी डाले तो इस सम्बन्ध में कई किस्से प्रचलित है...


रोमन कैथोलिक चर्च की माने तो यह "वैलेंटाइन "अथवा "वलेंतिनस " नाम के तीन लोगो को मान्यता देता है ....जिसमे से दो के सम्बन्ध वैलेंटाइन डे से जोड़े जाते है....लेकिन बताया जाता है इन दो में से भी संत " वैलेंटाइन " खास चर्चा में रहे ...कहा जाता है संत वैलेंटाइन प्राचीन रोम में एक धर्म गुरू थे .... उन दिनों वहाँपर "कलाउ डीयस" दो का शासन था .... उसका मानना था अविवाहित युवक बेहतर सेनिक हो सकते है क्युकियुद्ध के मैदान में उन्हें अपनी पत्नी या बच्चों की चिंता नही सताती ...


अपनी इस मान्यता के कारण उसने तत्कालीन रोम में युवको के विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया... किन्दवंतियो की माने तो संत वैलेंटाइन के क्लाऊ दियस के इस फेसले का विरोध करने का फेसला किया ... बताया जाता वैलेंटाइन ने इस दौरान कई युवक युवतियों का प्रेम विवाह करा दिया... यह बात जब राजा को पता चली तो उसने संत वैलेंटाइन को १४ फरवरी को फासी की सजा दे दी....कहा जाता है की संत के इस त्याग के कारण हर साल १४ फरवरी को उनकी याद में युवा "वैलेंटाइन डे " मनाते है... कैथोलिक चर्च की एक अन्य मान्यता के अनुसार एक दूसरे संत वैलेंटाइन की मौत प्राचीन रोम में ईसाईयों पर हो रहे अत्याचारों से उन्हें बचाने के दरमियान हो गई ....


यहाँ इस पर नई मान्यता यह है की ईसाईयों के प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले इस संत की याद में ही वैलेंटाइन डे मनाया जाता है...एक अन्य किंदवंती के अनुसार वैलेंटाइन नाम के एक शख्स ने अपनी मौत से पहले अपनी प्रेमिका को पहला वैलेंटाइन संदेश भेजा जो एक प्रेम पत्र था .... उसकी प्रेमिका उसी जेल के जेलर की पुत्री थी जहाँ उसको बंद किया गया था...उस वैलेंटाइन नाम के शख्स ने प्रेम पत्र के अन्त में लिखा" फ्रॉम युअर वैलेंटाइन" .... आज भी यह वैलेंटाइन पर लिखे जाने वाले हर पत्र के नीचे लिखा रहता है ...

यही नही वैलेंटाइन के बारे में कुछ अन्य किन्दवंतिया भी है ... इसके अनुसार तर्क यह दिए जाते है प्राचीन रोम के प्रसिद्व पर्व "ल्युपर केलिया " के ईसाईकरण की याद में मनाया जाता है ....यह पर्व रोमन साम्राज्य के संस्थापक रोम्योलुयास और रीमस की याद में मनाया जाता है ... इस आयोजन पर रोमन धर्मगुरु उस गुफा में एकत्रित होते थे जहाँ एक मादा भेडिये ने रोम्योलुयास और रीमस को पाला था इस भेडिये को ल्युपा कहते थे... और इसी के नाम पर उस त्यौहार का नाम ल्युपर केलिया पड़ गया...


इस अवसर पर वहां बड़ा आयोजन होता था ॥ लोग अपने घरो की सफाई करते थे साथ ही अच्छी फसल की कामना के लिए बकरी की बलि देते थे.... कहा जाता है प्राचीन समय में यह परम्परा खासी लोक प्रिय हो गई... एक अन्य किंदवंती यह कहती है १४ फरवरी को फ्रांस में चिडियों के प्रजनन की शुरूवात मानी जाती थी.... जिस कारण खुशी में यह त्यौहार वहा प्रेम पर्व के रूप में मनाया जाने लगा ....प्रेम के तार रोम से सीधे जुड़े नजर आते है ... वहा पर क्यूपिड को प्रेम की देवी के रूप में पूजा जाने लगा ...
जबकि यूनान में इसको इरोशके नाम से जाना जाता था... प्राचीन वैलेंटाइन संदेश के बारे में भी एक नजर नही आता ॥ कुछ ने माना है यह इंग्लैंड के राजा ड्यूक के लिखा जो आज भी वहां के म्यूजियम में रखा हुआ है.... ब्रिटेन की यह आग आज भारत में भी लग चुकी है... अपने दर्शन शास्त्र में भी कहा गया है " जहाँ जहाँ धुआ होगा वहा आग तो होगी ही " सो अपना भारत भी इससे अछूता कैसे रह सकता है...? युवाओ में वैलेंटाइन की खुमारी सर चदकर बोल रही है... ... इस दिन के लिए सभी पलके बिछाये बैठे है... प्रेम का इजहार जो करना है ?.......वैलेन्टाइन प्रेमी वह इसको प्यार का इजहार करने का दिन बताते है... यूँ तो प्यार करना कोई गुनाह नही है लेकिन जब प्यार किया ही है तो इजहार करने मे देर नही होनी चाहिए... लेकिन अभी का समय ऐसा है जहाँ युवक युवतिया प्यार की सही परिभाषा नही जान पाये है... वह इस बात को नही समझ पा रहे है की प्यार को आप एक दिन के लिए नही बाध सकते... वह प्यार को हसी मजाक का खेल समझ रहे है....

सच्चे प्रेमी के लिए तो पूरा साल प्रेम का प्रतीक बना रहता है ... लेकिन आज के समय में प्यार की परिभाषा बदल चुकी है ... इसका प्रभाव यह है आज १४ फरवरी को प्रेम दिवस का रूप दे दिया गया है... इस कारण संसार भर के "कपल "प्यार का इजहार करने को उत्सुक रहते है... आज १४ फरवरी का कितना महत्त्व बढ गया है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है इस अवसार पर बाजारों में खासी रोनक छा जाती है ....
गिफ्ट सेंटर में उमड़ने वाला सैलाब , चहल पहल इस बात को बताने के लिए काफी है यह किस प्रकार आम आदमी के दिलो में एक बड़े पर्व की भांति अपनी पहचान बनने में कामयाब हुआ है...

इस अवसर पर प्रेमी होटलों , रेस्ताराओ में देखे जा सकते है... प्रेम मनाने का यह चलन भारतीय संस्कृति को चोट पहुचाने का काम कर रहा है... यूं तो हमारी संस्कृति में प्रेम को परमात्मा का दूसरा रूप बताया गया है ॥ अतः प्रेम करना गुनाह और प्रेम का विरोधी होना सही नही होगा लेकिन वैलेंटाइन के नाम पर जिस तरह का भोड़ापन , पश्चिमी परस्त विस्तार हो रहा है वह विरोध करने लायक ही है ....वैसे भी यह प्रेम की स्टाइल भारतीय जीवन मूल्यों से किसी तरह मेल नही खाती.....

आज का वैलेंटाइन डे भारतीय काव्य शास्र में बताये गए मदनोत्सव का पश्चिमी संस्करण प्रतीत होता है... लेकिन बड़ा सवाल जेहन में हमारे यह आ रहा है क्या आप प्रेम जैसे चीज को एक दिन के लिए बाध सकते है? शायद नही... पर हमारे अपने देश में वैलेंटाइन के नाम का दुरूपयोग किया जा रहा है ...


वैलेंटाइन के फेर में आने वाले प्रेमी भटकाव की राह में अग्रसर हो रहे है.... एक समय ऐसा था जब राधा कृष्ण , मीरा वाला प्रेम हुआ करता था जो आज के वैलेंटाइन प्रेमियों का जैसा नही होता था... आज लोग प्यार के चक्कर में बरबाद हो रहे है... हीर_रांझा, लैला_ मजनू के प्रसंगों का हवाला देने वाले हमारे आज के प्रेमी यह भूल जाते है मीरा वाला प्रेम सच्ची आत्मा से सम्बन्ध रखता था ... आज प्यार बाहरी आकर्षण की चीज बनती जा रही है.... प्यार को गिफ्ट में तोला जाने लगा है... वैलेंटाइन के प्रेम में फसने वाले कुछ युवा सफल तो कुछ असफल साबित होते है .... जो असफल हो गए तो समझ लो बरबाद हो गए... क्युकि यह प्रेम रुपी "बग" बड़ा खतरनाक है .... एक बार अगर इसकी जकड में आप आ गए तो यह फिर भविष्य में भी पीछा नही छोडेगा....
असफल लोगो के तबाह होने के कारण यह वैलेंटाइन डे घातक बन जाता है... वैलेंटाइन के नाम पर जिस तरह की उद्दंडता हो रही है वह चिंतनीय ही है... अश्लील हरकते भी कई बार देखी जा सकती है...संपन्न तबके साथ आज का मध्यम वर्ग और अब निम्न तबका भी इसके मकड़ जाल में फसकर अपना पैसा और समय दोनों ख़राब करते जा रहे है...

वैलेंटाइन की स्टाइल बदल गई है ... गुलाब गिफ्ट दिए ,पार्टी में थिरके बिना काम नही चलता .... यह मनाने के लिए आपकी जेब गर्म होनी चाहिए... यह भी कोई बात हुई क्या जहाँ प्यार को अभिव्यक्त करने के लिए जेब की बोली लगानी पड़ती है....? कभी कभार तो अपने साथी के साथ घर से दूर जाकर इसको मनाने की नौबत आ जाती है... डी जे की थाप पर थिरकते रात बीत जाती है... प्यार की खुमारी में शाम ढलने का पता भी नही चलता .... आज के समय में वैलेंटाइन प्रेमियों की तादात बढ रही है .... साल दर साल ...
इस बार भी प्रेम का सेंसेक्स पहले से ही कुलाचे मार रहा है.... वैलेंटाइन ने एक बड़े उत्सव का रूप ले लिया है... मॉल , गिफ्ट, आर्चीस , डिस्को थेक, मक डोनाल्ड का आज इससे चोली दामन का साथ बन गया है... अगर आप में यह सब कर सकने की सामर्थ्य नही है तो आपका प्रेमी नाराज

आज प्यार की परिभाषा बदल गई है .... वैलेंटाइन का चस्का हमारे युवाओ में तो सर चदकर बोल रहा है , लेकिन उनका प्रेम आज आत्मिक नही होकर छणिक बन गया है... उनका प्यार पैसो में तोला जाने लगा है .... आज की युवा पीड़ी को न तो प्रेम की गहराई का अहसास है न ही वह सच्चे प्रेम को परिभाषित कर सकती है... उनके लिए प्यार मौज मस्ती का खेल बन गया है .......

(लेखक युवा पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है ... आप समसामयिक विषयो पर इनके विचार बोलती कलम ब्लॉग पर जाकर पढ़ सकते है ......)

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

अल्हड़ता,अक्खड़ता की अनोखी अदा

मध्य प्रदेश का एक अदना सा जिला..नया नवेली सल्तनत..लेकिन अपने आपमें ऐतिहासिक तथ्यों को समेटे अपनी समृद्धता और सम्पन्नता को बढाता है...अलीराजपुर का एक छोटा सा क़स्बा भाभरा...जिसकी सुन्दरता के बारे में जितना कहा जाये कम है...भाभरा के बारे में बता दे..ये वही क़स्बा है..जहाँ कभी न झुकने वाले चंद्रशेखर आज़ाद ने जन्म लिया था...अपने बचपन के १४ साल बिताये...बीच कसबे में दूसरे मकानों के बीच बनी एक छोटी सी कुटिया...जिसके बाहर आज़ाद के तराने लिखे गए हैं....मगर अफ़सोस कि चंद्रशेखर आज़ाद की इस नगरी का नाम बदलकर भाभरा से आज़ाद नगर नहीं किया गया...जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इसकी घोषणा भी कर चुके हैं...खैर..राजनैतिक मामला..लेकिन इसी कसबे का एक शख्स ऐसा दिखा जो आज़ाद के प्रति पूर्णतया समर्पित है....आज़ाद की कुटिया के ५ओ कदम आगे जाने पर एक दरजी की दुकान पड़ती है...उसका बोर्ड पढने पर पता चला..ये आज़ाद नगर है...केवल यही एक बंदा है जो अपनी दुकान के पते में आज़ाद नगर का ज़िक्र कर रहा है....यानि इस नगरी के नाम परिवर्तन के लिए मौन आन्दोलन चला रहा है....आगे जाकर जब यहाँ के लोगों से मिलने का मौका मिला...तो सब में आज़ाद प्रवृत्ति का समावेश पाया...यहाँ की आवो-हवा को जब अपनी साँसों में खिंचा तो खुद एक जोश और जूनून से लबरेज़ पाया..यहाँ का पानी इस आस से पिया कि आज़ाद की रगों में खून बनकर दौड़ने वाला यहाँ का पानी मुझे भी बेफिक्री में जीना सिखा दे...मुझमे भी वो अक्खडपन,अल्हड़ता आ जाये..जिसके दम पर आज़ाद मरते दम तक आज़ाद रहा...यदि आज़ाद मरते दम तक आज़ाद रहे..यदि उनमे स्वाधीनता का भाव आया तो मै इसका श्रेय उनको नहीं देता..बल्कि इसके लिए उनकी जन्मभूमि का ज्यादा योगदान रहा...यहाँ के हर शख्स को मैंने अजीब सी बेफिक्री,अक्खड़ता में जीते देखा...अगर आज़ाद में अपने आत्म सम्मान के प्रति भाव था...तो इसमें उनका स्वाभाव नहीं..बल्कि यहाँ की मिट्टी की सौंधी और स्वभिमानिता की खुशबू का असर था...जिसका अन्न आज़ाद की नस नस में दौड़ रहा था...बड़ा गौरवान्वित महसूस कर रहा था...इस परम पुनीत नगरी में आकर...मन ही मन इस पवित्र नगरी को प्रणाम किया...और आशा की..कि यहाँ का पानी भी मेरी रगों में आज़ाद प्रवृत्ति और फक्कडपन लाएगी...अल्हड़ता और अक्खड़ता जिससे देश सेवा का मार्ग प्रशस्त हो सके...और मरते दम तक आज़ाद रह सकूँ...साथ ही भीम और हिडिम्बा जिस स्थान पर मिले थे उस स्थान को देखने का मौका भी मिला...जब उस स्थान को देखा तो महाभारत की एक एक याद ताज़ी हो गई....बाते ढेर सारी हैं..बस अब भी बार बार आज़ाद कि नगरी को प्रणाम करने को मन करता है...भगवान मुझे भी आज़ाद प्रवृत्ति प्रदान करे...यही दुआ बार बार करता हूँ...

शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

जहाँ दूल्हे पहनते है गुटखों की मालाएं

शादी में दुल्हे के गले में फूलों की माला नहीं..बल्कि राजश्री और विमल जैसे पान मसालों क़ी माला होती है...बड़ा अजीब लगा देखकर...एक तरफ तो लोग दूल्हे के जीवन की दूसरी पारी शुरू करने की शुभकामनाये देते है...तो दूसरी ओर उनके गले में मौत का सामान लटकाकर शगुन की रस्म अदायगी की जाती है...बड़ी विडंवना है....कैंसर जैसी भयावह बीमारियों को जन्म देने वाल्व पान मसालों को गले मे लटकाकर दूल्हे दुल्हन को विदा करने जाते है....ऐसे में अब दुल्हन के सुहाग के जीवित रहने की गारंटी कौन ले... की तस्वीर देखी तो पाया क़ी भाले उस घर में खाने को दो जून की रोटी न हो लेकिन हर घर में मोबाइल और पान मसालों के पाउच जरूर मिल जायेगे...मतलब खाने से ज्यादा जरूरत लोगों को मोबाइल क़ी...सूचना क्रांति की ऐसी बयार अन्यत्र कहीं नहीं देखी....ना पान मसालों के प्रति दीवानगी...
भारत गाँवों का देश कहा जाता है...किसानों को ग्राम देवता के नाम से नवाजा गया है.. भारत की आत्मा गाँवों में बसती है...एहसास तब हुआ जब आदिवासी इलाकों के गाँव-गाँव जाकर सच से रु ब रु हुआ...सवाल विकास का था..मुद्दा विकास कार्यों के क्रियान्वयन का था...सो रतलाम,झाबुआ,अलीराजपुर के ग्राम देवताओं से मिलने पहुच गए..स्वर्ग सी सुन्दरता की चादर ओढ़े गाँवों में...वहां कि खूबसूरती के क्या कहने...लेकिन एक बात मुझे अब तक समझ नहीं आई कि रतलाम के गाँवों के बच्चे गाड़ी के रुकते ही उलटे पैर भागना क्यों शुरू कर देते थे...काफी उधेड़बुन के बाद शायद सोच पाया हूँ..कि जब बचपन में बच्चा शैतानी करता है..तो मां कहती है बेटा बाबा पकड़ लेगा या आ जायेगा...और शायद वे बच्चे हम लोगों को बाबा का ही रूप मान लेते थे...खैर..डर भयानक होता है...गाँव के विकास की तस्वीर जब हम लोगों ने देखी तो लगा कि सरकार विकास की गंगा बहाने में लगी हुई है...कहीं पर तालाब निर्माण किया गया तो कहीं नादाँ फलोद्यान दिया गया...यानी किसानो के पलायन रोकने और उनके विकास करने को लेकर सरकार कटिबद्ध है.
मगर अफ़सोस भी हुआ कि यदि पूरा पैसा इस विकास में लग पाता तो शायद तस्वीर कुछ और होती...क्यों कि केवल बारिश कि फसल लेने वाले किसान अब साल में तीन फसल लेने लगे है...सामाजिक कार्यों में रूचि लेना भी शुरू कर दिया है...इसमें अधिलारियों का बहुत बढ़ा योगदान है...बिना आला अधिकारीयों कि पहल के कुछ भी संभव नहीं था...गाँव पहुंचकर जब लोगों का व्यवहार देखा तो समझ में आया..कि मेरे देश में मेहमानों क़ी कैसी आवभगत होती है...
मेरे देश में मेहमानों को भगवान कहा जाता है
वो यहीं का हो जाता है,जो कहीं से भी आता है
शायद यही वजह थी..क़ी मेरा भी मन उस आदिवासी इलाके में रमने लगा...वहां की संस्कृति..परम्पराओं से परिचित होने का मौका मिला...अद्भुत अनुभव रहा...शादी का माहौल आदिवासियों का देखा...उनके गाने और महिलाओं के शराब पीकर नाचने का अंदाज बहुत पसंद आया...चलते चलते आदिवासी लड़कियां लाल रंग क़ी चुनरी ओढ़े दिख जाती थी...पूंछने पर बताया गया..क़ी ये कुवांरी लड़कियों का संकेत है...वहां की औरतो की वेशभूषा देखी..तो एहसास हुआ क़ी हम लोग कपडे पहनना सिख गए..और अब कपडे काम भी कर दिए लेकिन वो महिलाये अभी तक पूरे कपडे पहनना नहीं सीखी....
एक गाँव में सरपंच के घर पर स्वागत ऐसे किया गया जैसे लड़की क़ी गोद भराई क़ी रस्म पूरी करने वाले आये हों...मक्के के भुट्टों से स्वागत किया गया..लाजवाब था...इतना प्यार और दुलार देखा तो समझ में आया क़ी हिंदुस्तान का दिल आजादी के ६४ साल बाद भी क्यों गाँव में बसता है...जबकि शहर में किसी को अपने पडोसी के बारे में भी खबर नहीं होती...गाँव का प्यार और दुलार हमेशा अविस्मरनीय रहेगा....ग्राम देवताओं को प्रणाम...
कृष्ण कुमार द्विवेदी
(छात्र मा.रा.प.वि.वि,भोपाल)

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

मायावी दौरा नौकरशाह चुस्त

श्रावस्ती, मुख्यमंत्री के प्रस्तावित दौरे के मद्देनजर बुधवार को मंडलायुक्त डॉ. गुरुदीप सिंह ने कलेक्ट्रेट सभा कक्ष में अंबेडकर गांवों के विकास कार्र्यो की समीक्षा की तथा जिला मुख्यालय पर स्थित सीएचसी भिनगा, कांशीराम शहरी आवास, कोतवाली, तहसील तथा ईदगाह तिराहे पर चल रहे इंटरलांकिग के निर्माण कार्यो का निरीक्षण किया। इस दौरान मिली खामियों पर मंडलायुक्त ने संबंधित अफसरों को कड़ी फटकार लगाते हुए मुख्यमंत्री के निरीक्षण के पहले कार्यो को पूरा करने तथा सुधार लाने के निर्देश दिए।
मुख्यमंत्री मायावती का 11 फरवरी को श्रावस्ती में निरीक्षण प्रस्तावित है। इसी के मद्देनजर जिले का प्रशासनिक अमला अंबेडकर गांवों को चमकाने के लिए दिन रात जुटा हुआ है। विकास कार्यो तथा प्रशासनिक व्यवस्था की समीक्षा के लिए बुधवार को मंडलायुक्त श्री सिंह जिला मुख्यालय भिनगा पहुंचे और अधिकारियों की कलेक्ट्रेट सभागार में बैठक कर अंबेडकर गांवों की समीक्षा की। सीएचसी भिनगा में निरीक्षण के दौरान मंडलायुक्त को तमाम खामियां मिली। जिसपर उन्होंने जिलाधिकारी अजय कुमार सिंह व सीएमओ एसके महराज को तत्काल अव्यवस्थाओं को सुधारने के निर्देश दिए। सीएमओ को उन्होंने फटकार लगाई। इसके बाद मंडलायुक्त ने तहसील तथा कोतवाली की स्थिति का भी जायजा लिया। नगर में सफाई व्यवस्था को लेकर मंडलायुक्त ने अधिशाषी अधिकारी को भी फटकारा। कांशीराम शहरी आवासों की स्थिति बदहाल पाई गई। जिसके लिए डीएम को सुधारने के निर्देश दिए। ईदगाह तिराहे को समय से इंटरलाकिंग पूरा कराने का निर्देश दिया। इस दौरान जिलाधिकारी अजय कुमार सिंह, पुलिस अधीक्षक डॉ. वीबी सिंह, अपर जिलाधिकारी राम नेवास, सीडीओ रघुनाथ शरण समेत सभी जिलास्तरीय अधिकारी मौजूद थे।

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

किसानों के सपने शिखर पर, संसाधन सिफर

श्रावस्ती, श्रावस्ती मुख्यमंत्री मायावती केड्रीम प्रोजेक्ट में है, लेकिन प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट में मंडी नदारद है। जिससे जिले के किसानों के खेतों से बाजार दूर होता जा रहा है। यहां के किसानों के पसीने का मोल नहीं है। फिर भी किसान बिना संसाधन के रिकार्ड तोड़ आलू का उत्पादन कर कीर्तिमान बना रहे हैं। भले ही उनके सपने फलीभूत न हो पा रहे हों।
भारत-नेपाल सीमा पर स्थित श्रावस्ती की अंतराष्ट्रीय महत्ता को देखते हुए मुख्यमंत्री मायावती ने वर्ष 1997 की 22 तारीख को जिले का गठन कर इसका मुख्यालय भिनगा बनाया। श्रावस्ती के विकास के लिए पुल, सड़कों का जाल बिछाने के लिए भिनगा के विधायक दद्दन मिश्र को राज्य मंत्री बनाया। किन्तु यहां के किसानों कोई पुरसाहाल नहीं है। जिले में संसाधन न होने के बाद भी आलू का उत्पादन साल दर साल बढ़ता जा रहा है। लेकिन यहां न तो मंडी है न ही कोल्ड स्टोरेज बनाया गया है। न ही इसकी कोई ऐसी योजना भी बनी है। लिहाजा तराई के आलू किसानों को दूसरे जिले पर निर्भर रहना पड़ता है। मंडी और कोल्ड स्टोरेज के अभाव में किसानों को आलू औने-पौने दामों पर बेचने को विवश होना पड़ता है। जिससे उनके पसीने की गाढ़ी कमाई माटी के मोल बिक जाता है। इस वर्ष जिले में 1810 हेक्टेअर क्षेत्रफल में आलू बोया गया है। 200 कुंतल प्रति हेक्टेअर के हिसाब से 36 हजार कुंतल आलू उत्पादन की संभावना जताई जा रही है। जबकि पिछले वर्ष 1775 हेक्टेअर क्षेत्रफल में आलू की फसल बोई गई थी। लगभग 33 हजार कुंतल आलू का उत्पादन हुआ था। परेवपुर के किसान अरुणेश प्रताप सिंह कहते हैं कि किसानों का हौसला तो है लेकिन संसाधन के अभाव में उनके सपने टूट रहे हैं। आलू पैदा करने के बाद किसान बेचने के लिए दर-दर भटकते रहते हैं। पूरे खैरी के किसान राम सूरत यादव ने बताया कि मंडी न होने से हांड़ तोड़ मेहनत करके पैदा की जाने वाली आलू को औने-पौने भाव में सब्जी मंडियों पर बेंच दिया जाता है। जिससे लागत भी नहीं निकल पाता है। इसी गांव की महिला किसान शांती देवी बताती है कि इस वर्ष तो पाला और कोहरा के कारण आलू का उत्पादन कुछ प्रभावित हुआ है। जिसे भी बेचने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। केवलपुर के श्याम यादव कहते हैं कि जब किसानों का आलू पैदा होता है तो तीन सौ रुपये कुंतल बिकता है और जब उनकी जरुरत होती है तो 12 रुपये किलो खरीदना पड़ता है।
जिला उद्यान अधिकारी हरिहर प्रसाद कहते हैं कि मंडी और कोल्ड स्टोरेज न होने से आलू के किसानों को दिक्कतें उठानी पड़ती है। उनके उत्पादन पर असर पड़ता है। संसाधन न होने के कारण यहां आलू की खेती कराने के लिए कोई लक्ष्य भी विभाग की ओर से निर्धारित नहीं किया जाता है। फिर भी लक्ष्य के सापेक्ष आलू की बुआई अधिक क्षेत्रफल में की जाती है।

कहीं लोकतंत्र की मार तो कहीं लोकतंत्र के लिए मार

सिर्फ 20वीं शताब्दी की शुरूआत से ही बात करें तो उस समय गुलाम भारत देश को आजाद कराने के लिए लोग संगठित हो रहे थे और उधर यूरोप में क्रांतिकारी सत्तापरिवर्तन में लगे हुए थे। 20 के दशक में भारत में कुछ उसी तरह की क्रांती ने जन्म लिया। ये क्रांती यूरोप से ही प्रेरित थी। यूरोप में जिस परिस्थिती में क्रांती तख्तापलट कर रही थी ठीक वैसी ही परिस्थितियां भारत में उस समय तक पनप चुकी थीं। भगतसिंह के बाद से आयी क्रांतिकारियों की पीढ़ी यूरोपीय क्रांतिकारियों व वहां की क्रांती से काफी प्रभावित थे और उन्हीं के आदर्शों व घटनाओं का उदाहरण लेकर भारत में क्रांती का विस्तार कर रहे थे।नरम दल के समर्थक अंग्रेजों से मुक्त होना ही देश की स्वतंत्रता मान रहे थे। जबकि गरम दल व क्रांतिकारियों की नजर में स्वतंत्रता की संज्ञा-शक्ति के स्थानान्तरण से न होकर जनता की स्वतंत्रता से था। दोनों की दलों का देश की स्वतंत्रता में काफी योगदान था. इसलिए एकतरफ देश को स्वतंत्र बनाकर गरम दल का मुंह बन्द करने की कोशिश की गयी और शक्ति का हस्तान्तरण कर नरम दल ने अपनी मनमानी भी कर ली और शक्ति का स्थानान्तरण कर जिस प्रकार की व्यवस्था स्थापित की गयी थी आज उसके परिणाम किसी से भी नहीं छुपे हैं।2-जी स्पैक्ट्रम घोटाला, पामोलीन घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला, पीजे थॉमस की नियुक्ति, बोर्फोस घोटाला, शेयर घोटला, शीतल पेय मामला, गोधरा कांड, बाबरी मस्जिद विधवंस, नक्सलवाद का जन्म, काले धन का भूत, न जाने कितने भूमि घोटाले, मालेगांव धमाका, मंहगाई का बढ़ता कद, गरीबों की न घटती जनसंख्या, भुखमरी, कुपोषण, कृषि का घटता दायरा, बढ़ती बेरोजगारी, पुरानी पद्धति पर आधारित शिक्षा, शासन में भाई-भतीजावाद, किसानों की बद से बदत्तर होती स्थिति, लोगों की बीच असन्तुलित आर्थिक स्थिति, भ्रष्टाचार, अपराध, महिला शोषण, मानवाधिकारों व मौलिक अधिकारों का हर आये दिन होता तिरस्कार, मानव भावनाओं का राजनीति के दांव पेंच में बेहिचक इस्तेमाल, राज्यों का जल विवाद, राज्यों में बढ़ती बंटवारे की मांग आदि न जाने कितनी उपलब्धियां हमने सिर्फ 63 वर्षों में प्राप्त कर ली हैं। इन तमाम उपलब्धियों से हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि देश की जनता कितने सुकून में होगी। शायद यही कारण है कि इस सुकून की पहली प्रतिक्रिया जनता और सामाजिक संगठनों ने अभी हल ही में 30 जनवरी गांधी जी की पुण्य तिथि पर विरोध रैली के तौर पर व्यक्त की और प्रतिक्रिया एक नहीं, दो नहीं 60 शहरो में व्यक्ति की गयी लेकिन गांधीवादी तरीके मतलब अहिंसात्मक तरीके से।इत्तेफाक भी कितना सटी है कि ठीक ऐसी ही परिस्थितियां अरब देशों में हैं। इसी समय अरब देशों में भी जनता सड़कों पर उतर आयी है। सत्ता के शासन और वही कारण जिनसे भारत भी त्रस्त है, से तंग आकर उन्होंने भी विरोध शुरू कर दिया है लेकिन हिंसात्मक तरीके से। इनका इस तरह से हिंसात्मक रूप में विद्रोह करने के दो कारण हो सकते हैं। पहला कि इन्हें गांधी जी जैसे राष्ट्रपिता नहीं मिले और दूसरा कि अगर मिले हैं तो बापू जैसे व्यक्तित्व वाले उन व्यक्तियों के विचार उनकी पीड़ा के सामने खोखले साबित हो गये। भारत भी अपने विरोध का तरीका हिंसात्मक चुन सकता था लेकिन शायद सरकार ने अभी अपनी अप्रत्यक्ष क्रूरता की लक्ष्मण रेखा नहीं लांघी है। वैसे सरकार अगर जनता द्वारा शान्ति तरीके से किये गये विरोध से सबक नहीं लेती है या उनके विरोध को अनसुना कर देती है तो उसे एक बात हमेशा अपने संज्ञान में रखना होगा कि भारत देश सिर्फ गांधी जी का देश ही नहीं, भगतसिंह का भी है। ‘‘आज भी बहरों को सुनाने के लिए हजारों भगत सिंह देश में मौजूद हैं।’’सत्तासम्भाल रहे देश के शासकों की तानाशाही से तंग लोगों द्वारा ट्यूनीशिया से उठायी गयी, मिश्र, यमन, लेबनान, जॉर्डन और शनैः-शनैः पूरे अरब राष्ट्र पर काबिज होने वाली ये चिंगारी लोकतंत्र की मांग कर रही है।वहीं भारत की आन्तरिक परिस्थितियां भी कुछ शुभ संकेत नहीं दे रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि या तो अगले कुछ वर्षों में भारत गृह युद्ध से ग्रसित हो जाएगा फिर भारत को चलाने वाले ठेकेदारों/सरमायेदारों को, मिश्र की तरह पूरे देश में उठे, जनता के आक्रोश का सामना करना होगा। भारत की स्थिति में अगर जल्द ही सकारात्मक परिवर्तन नहीं लाये गये तो यहां की जनता भी एक अलग तंत्र की मांग करेगी।आज अरस्तु द्वारा दिया गया एक तर्क चरितार्थ हो रहा है। अरस्तु ने शासन प्रणाली का वर्गीकरण कर कहा था कि अभिजात तंत्र ( समाज से कुछ खास चुने गये लोगों द्वारा चलाया जा रहा तंत्र) जब भ्रष्ट हो गुटतंत्र में परिवर्तित होगा तब जनता त्रस्त होकर सत्ता के परिवर्तन की मांग कर वर्तमान तंत्र का उखड़ा फेंक, बहुतंत्र (लोकतंत्र का सामन्य रूप) को स्थापित करेगी और जब लोकतंत्र भ्रष्ट होकर अपनी निधार्रित सीमा को लांघ जाएगा तब जनसैलाब विरोध कर उस शासन का नष्ट कर अपने बीच किसी एक व्यक्ति को तंत्र सौंप कर उसे शासनसंचालित करेगा जिसे राजतंत्र कहते हैं और इसी तरह ये चक्र चलता रहेगा।यही मिश्र समेत अरब के कई देशों में हो रहा है। जनता लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए आमादा हो गयी है और इधर अव्यवस्थाओं के दौर से गुजर रहे भारत देश की सरकार ने अगर देश की स्थिति सुदृढ़ नहीं की तो उस दिन के आने में वक्त नहीं लगेगा जब भारत भी लोकतंत्र के बिगड़े रूप को खत्म करने की मांग उठा एक बार फिर अरस्तू के तर्क को यथार्थ रूप दे देगा।