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गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

....वह तोड़ता पत्थर

उत्तर प्रदेश का सबसे छोटा और पिछड़े जिला में शुमार,आल्हा ऊदल की नगरी के नाम से ख्याति प्राप्त,वीर भूमि वसुंधरा के नाम से उद्बोधित..पानों का नगर..महोबा अपने में कई ऐतिहासिक तथ्यों को अपने में लीन किये है...बुंदेलखंड क्षेत्र से सबसे ज्यादा मंत्री होने के बावजूद ये जिला अपने काया कल्प और विकास के लिए आज भी सरकारी बाट जोह रहा है...पता नहीं कब तस्वीर बदलेगी..इस क्षेत्र की..यहाँ के नुमाइंदों की...खैर आज राजनैतिक बातें नहीं...मुद्दे की बात..
जिसने लोगों की सेवा में लगा दिया अपना बचपन .. जिले से राज्य और फिर राष्ट्र स्तर के बटोरे ढेरों पुरस्कार....जिस पर राष्ट्रपति भी हो गए निहाल..और दिया राष्ट्रपति सम्मान..जो बना युवाओं का आदर्श...मगर अफ़सोस कि वो मुफलिसी से हार गया..पेट की भूंख और रिश्तों के निर्वहन के दायित्व ने उसे तोड़ कर रख दिया..विधवा मां की बीमारी और तंगहाली से जूझने की राह ढूंढने में नाकाम हो गया वो.. लेकिन अभी भी उसमे हौसला है..उसको है अपनी जिम्मेदारियों का एहसास...जिसके लिए वो गिट्टी तोड़ने में हाड़तोड़ मेहनत कर वह अपनी पढ़ाई भी करता है और बीमार मां व बहन की परवरिश भी... मां के इलाज व बहन की शादी के लिये पैसे से लाचार ये कर्मवीर अब इस उधेड़बुन में है कि किसी तरह बहन के हाथ पीले करे..
इस कर्म योद्धा की कहानी सुनकर मुझे एक गीत कि पंक्तियाँ याद आती हैं...
बचपन हर गम से बेगाना होता है...
मगर कबरई कस्बे के राजेंद्र नगर के निवासी 17 साल के श्यामबाबू को नहीं पता कि बचपन क्या होता है...इसके होश संभालने के पहले पिता का साया इसके ऊपर से उठ चुका था..जिस उम्र में इसे अपने हम उम्र साथियों के साथ खेलना चाहिए था..उस समय इसके हाथ अपने परिवार को पालने के लिए हथौड़ा चलाते लगे... जब इसको अपना जीवन संवारना चाहिए तो इसे अपनों की रुश्वाइयों का शिकार होना पड़ा....बड़े भाई ने बीमार मां व छोटे भाई बहनों को छोड़ अपनी अलग दुनिया बसा ली...न रहने को मकान था और न एक इंच जमीन, कोई रोजगार भी नहीं.. इन कठिन हालात में इस कर्मवीर ने कस्बे के पत्थर खदानों में हाड़तोड़ मेहनत कर स्वयं मां व छोटे भाई बहनों की रोटी तलाश की...समाजसेवा का जज्बा होने के कारण अध्ययन के दौरान विविध गतिविधियों में हिस्सा ले खुद को तपाया...स्काउट गाइड, रेडक्रास सोसायटी, राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम, राजीव गांधी अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम जैसे तमाम आयोजनों में इस मेधा को प्रशिस्त पत्र दे सम्मानित किया गया...सम्मान और पुरस्कारों का क्रम जिले से शुरू हो राज्य और राष्ट्र स्तर तक पहुंचा...12 साल की उम्र में राज्यपाल टीवी राजेश्वर और 14 जुलाई 10 को राष्ट्रपति ने स्काउट गाइड के रूप में बेहतर सेवा के लिये इसे सम्मानित किया.... राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित यह किशोर अभी भी पत्थर खदानों में मजदूरी कर रहा है... बीमार मां के इलाज और सयानी बहन की शादी कैसे हो यह सवाल उसे खाये जा रहा है...हर पल उसे चिंता की आग में जला रहा है... जिले का गौरव बढ़ाने वाले इस किशोर के पास रहने को झोपड़ी तक नहीं...अब तक नाना नानी के घर में शरणार्थी की तरह रहने वाले इस परिवार को अब वहां भी आश्रय नहीं मिल पा रहा है... जिले से राष्ट्रीय स्तर तक तमाम प्रतियोगिताएं जीत चुका यह किशोर असल जिंदगी की प्रतियोगिता का मुकाम हासिल नहीं कर पा रहा है.. शादी योग्य बहन के हाथ पीले न कर पाने की लाचारी में वह इसे देख निगाहें झुका लेने को मजबूर है..राज्य स्तर के ढेरों पुरस्कारों व स्काउट गाइड में राष्ट्रपति से सम्मानित श्यामबाबू को किसी सरकारी योजना में शामिल नहीं किया गया... इसके पास न रहने को घर है न एक इंच भूमि... परिवार में कोई कमाने वाला भी नहीं... हद यह कि इस परिवार को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन का कार्ड भी हासिल नहीं हुआ... प्रशासन चाहता तो कांशीराम आवास योजना के तहत इसे छत तो दे ही सकता था पर वह भी नसीब नहीं हुई... इंदिरा और महामाया आवास भी नहीं मिले... हालात से जाहिर है जिले में ऐसे जरूरतमंद उंगलियों में गिनने लायक ही होंगे.... लेकिन ऐसे इन्हीं लोगों को जब छत और रोजगार न मयस्सर हो तो फिर सरकारी योजनाओं का लाभ किसे दिया जा रहा है....अपने आप में एक बड़ा सवाल है....
प्रतिभा तोडती पत्थर या पत्थरों से टूटती प्रतिभा इसे क्या कहा जाए..आप खुद सोचिये..

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