केवल नौ दिन की मैया....???
अदबी और इल्मी माहौल का शहर कहा जाने वाला कोलकता अपने एक और चीज के लिए पूरे हिदुस्तान में शुमार हैं. खैर आप इसमें इतिहास को टटोलेंगे तो भी मुझे गुरेज नहीं होगा, क्योंकि आप अपने तरीके से इस शहर के बारे में जानते हो और मैं जरूर आप से कुछ ज्यादा जानता मालुमात रखा हूंगा क्योंकि भाई मेरी पैदाइस ही यहां कि है.लेकिन जिस विषय को मैं केंद्रित कर रहा हूं मेरा दावा है कि आप उससे सौ फीसदी रू-ब-रू होंगे. कोलकाता शहर का ब्रिटेन स्ट्रीट, कुछ कदम यहां से आगे ब‹ढेंगे तो उसी राह से होती हुई दाहिने मु‹डाव से एक और स‹डक दिखेगी, जिसे लोग बी के पाल के नाम से जानते हैं इसका दूसरा नाम नूतन बाजार भी यहां पीतल की बर्तनों एवं मूर्तियों का बाजार लगता है और इन दुकानों के चबुतरों पर ख‹डे होकरजरा बाये ओर नजरे दौ‹डाएंगे तो दिखेगी, केवल सकरी-सकरी कइयों गलियां और जब इन गलियों में प्रवेश करेंगे तो कोलकाता का लाजवाब पान आप का इंतजार कर रहा होगा. दो रुपए दीजिए पान चबाइए और फिर इसी राह से आगे ब‹ढजाइएं. यही असल काम की मंजिल और अदबी रूह जो आपके रूह तक उतरने को व्याकुल दिखेंगी, और मेरा विश्वास है कि आप भी बिना दिमागी कसरत किए आगे की प्रक्रिया में खुद ब खुद मसरूफ हो जाएंगे. खमा चाई..... लेकिन हुजूर कोई परहेज नहीं करता है. जो भी आते है, बडे इत्मेनान से कार्य का संपादन करते है. जैसे किसी अखबार का आखरी अंक जाने वाला हो.अब तक सारा दृश्य अपके दिमागी धरातल पर साफ उतर गया होगा. मगर आप जो भी समझे होंगे चीजे लगभग वहीं होगी पर सोच जरा सकारात्मक और सृजनात्मक हो तो उसमें भी हर रिश्ते नजर आएंगे. लेकिन सुअरबारे की नजर से नहीं इंसान की नजर से और वह भी इमान को पाक रखकर, भाई मेरा यकीन मानों दुर्गा का स्वरुप यहां भी दिखता और वह भी मां जैसी.यकिन मानिएगा कुछ चीजे ऐसे ही लोगबाग समझते हैं.दुर्गा पूजा बंगाल का एक ऐसा पर्व हैं जो पूरे बंगाल को इस समय मम-मय अर्थात माँ के लिए समर्पित कर देता हैं. चारो ओर बंगाली बा‹िडयों से लेकर भव्य पंडालों की तैयारियां महिनों से चलती हैं. माँ की मूर्तियां कुंभारटोली से लेकर नदियां और नदियां से लेकर हाव‹डा के गपतल्ला गली तक मूर्तियों का निर्माण कार्य चलता हैं. लेकिन पूजा मंडप के लेप हेतूं मिट्टी और शुद्ध जल या फिर मां की मूर्ति को आखरी रूप अर्थात चोख (आंख) बनाने के लिए भी शुद्ध मिटटी और शुद्ध जल की आवश्यकता प‹डती है. जो आखिरकार उस वैश्यालय से प्राप्त होता है जिसे हमारे तहजीबी लोग गलत कहते है, जी ह मैं सोनागाछी के वैश्याई चौखट की बात कर रहा हूं बंगाल की मान्यता रही है कि बिना इसके पूजा अधूरी रहेगी. केवल उन्हें चंद दिनों के लिए माँ स्वीकार करना समझ में नहीं आता मेरा मानना है कि वह सर्वथा से माँ रही है. उनके भीतर झांक कर देखीए, हर रिश्ते नजर आएंगे. चीजों को परोसने को लेकर आप जरूर अटपटा अनुभव किए होंगे......खैर (खमा चाई) (फितरते इंसान से वकिफ हूं मैं इसलिए सोचा ऐतमात के साथ समझा ले जाऊंगा. )गुनजाइश हो तो लिखिए.....आपका ही सभी का फैज है कि लिख रहा हूं....
प्रकाश पाण्डेय लोकमत समाचार महाराष्ट्र औरंगाबाद.....
bahut shandar badhiya likha hai aapne likhte rahiye..
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