छुप छुप के पिया हम अंधेरो में मिलते रहे
सामने आये तो शर्मागाये
खैर जाओ तुम भी भूल जाओ
और चलो हम भी भूल जाते
पर याद रखना अबकी कुछ किये तो
मास खसोट लूँगा
जीते जी जावा हसरतो पर माघ भर देसी लाल पारी डालुगी।
ये ही है नजराए हिंदुस्तान का फलसफा .......राजनीती की निति बिस्तर से शुरू होती.....
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
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