भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त का नाम आज भी राष्ट्रीयराजनीती में बड़े गर्व के साथ लिया जाता है... पन्त जी के अतुलनीय योगदान के कारण वह पूरे राष्ट्र के लिए युगपुरुष के समान थे जिसने अपने ओजस्वी विचारो के द्वारा राष्ट्रीय राजनीती में हलचल ला दी थी.... उनके व्यक्तित्व में समाज सेवा, त्याग, दूरदर्शिता का बेजोड़ सम्मिश्रण था... समस्त भारत में वे उनकी १२३ वी जयंती पर बीते दिनों याद किये गए...पन्त जी का जन्म १० सितम्बर १८८७ को उत्तराखंड के अल्मोड़ा से तीस किलोमीटर दूर हवालबाग विकासखंड के खूट नामक गाव में हुआ था... प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा अपने जिले में पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा पाने के लिए ये इलाहाबाद चले गए...जनमुद्दो की वकालत करने की तीव्र जिज्ञासा ने इनको इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एल एल बी की डिग्री लेने को विवश किया ... १९०५ में इस उपाधि के मिलने के बाद इन्होने अपना जीवन न्यायिक कार्यो में समर्पित कर दिया....पन्त जी के जीवन पर महात्मा गाँधी का विशेष प्रभाव पड़ा....गाँधी के कहने पर ये वकालत को छोड़कर राजनीती में चले आये.... उस समय समाज में दो तरह की विचार धाराएं थी... पहली विचारधारा में प्रगतिशील लोग हुआ करते थे, वही दूसरी विचार धारा में स्वदेश प्रेमी लोग थे... पन्त जी ने दोनों विचार धारा में समन्वय कायम कर उत्तराखंड के कुमाऊ में राष्ट्रीय चेतना फ़ैलाने में अपनी महत्त्व पूर्ण भूमिका निभाई....उन्होंने गरीबो के विरोध में आवाज उठाते हुए कुली बेगार के खिलाफ विशाल आन्दोलन चलाया ... १९१६ में अपने प्रयासों से कुमाऊ परिषद की स्थापना की और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गए.....१९१६ का वर्ष पन्त जी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण वर्ष साबित हुआ ... इस वर्ष पन्त जी अपने असाधारण कार्यो के कारण किसी के परिचय के मोहताज नही रहे...यही वह वर्ष था जब वे राष्ट्रीय राजनीती में धूमकेतु की तरह चमके... १९२० में गाँधी जी के सहयोग से असहयोग आन्दोलन में इन्होने अपना सक्रिय सहयोग दिया... १९२७ में सर्व सम्मति से कांग्रेस के अध्यक्ष चुन लिए गए... १९ नवम्बर १९२८ को लखनऊ में जब साईमन कमीशन आया तो नेहरु की साथ इन्होने भी उनका विरोध किया.... देश की आजादी में पन्त के योगदान को कभी नही भुलाया जा सकता है.... जंगे आजादी की दौर में हिमालय पुत्र की द्वारा प्रत्येक आन्दोलन चाहे वह सत्याग्रह हो या असहयोग आन्दोलन ,अपना पूरा योगदान दिया ... आजादी की दौर में अपनी सक्रिय भूमिकाओं की चलते पन्त जी को कई बार जेल की यात्राये भी करनी पड़ी...१५ अगस्त १९४७ को वह आज़ाद भारत में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाये गए ...इस पद पर वह १९५२ तक काम करते रहे... १९५२ में देश की संविधान बनाये जाने के बाद जब प्रथम आम चुनाव हुए तो उनका सञ्चालन पन्त जी की प्रयास से हुआ..इन चुनावो में कांग्रेस ने विजय पताका लहराई...१९५४ में जवाहर लाल नेहरु की आग्रह पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल में गृह मत्री का ताज पहना ... अपने कार्यकाल में पन्त जी ने विभिन्न कामो को पूरा करने का भरसक प्रयत्न किया....२६ जनवरी का दिन कुमाऊ के इतिहास में बड़ा महत्वपूर्ण रहा ...इस तिथि को भारत सरकार ने उन्हें "भारत रत्न" की उपाधि से विभूषित किया....७ मार्च १९६१ को पन्त जी की ह्रदय गति रुक जाने से मौत हो गई.... पन्त जी ने अपने प्रयासों से राष्ट्र हित के जितने काम किये उसके कारण भारतीय इतिहास में उनके योगदान को नही भुलाया जा सकता ...कुछ दिन पहले हमने उनकी १२३ वी जयंती मनाई .... पन्त जी को सच्ची श्रद्धांजलि तब मिले पाएगी जब हम उनके द्वारा कहे गए विचारो और सिद्धांतो पर चले .......
( लेखक युवा पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है..... आप बोलती कलम ब्लॉग पर जाकर समसामयिक विषयो पर इनके विचार पढ़ सकते है)
bahut ummda likha hai aapne apanee lekhnee ke madhyam se bharat ke ek sapoot ko yad karne ke liye aur hamsabko unke bare me batane ke liye dhanybad....
जवाब देंहटाएंprakash pande jinda bad....bhai govind ballabh pant ji ke bare me itni jankari dene ke liye dhanywad.......achha likha hai..
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