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बुधवार, 18 मई 2011

एक तुम्हारे सिवा कुछ भी दिखता नहीं.

शकील जमशेदपुरी
फोटो गूगल से साभार


कैसी तुझसे लगी है दिल की लगन, एक तुम्हारे सिवा कुछ भी दिखता नहीं.  
कितने फूलों ने भँवरे को निमंत्रण दिया, एक तुम्हारे सिवा कोई जंचता नहीं.
खुशबूओं से रचा है बदन ये तेरा, 
तू रहती है फूलों की हर डाल में .
मुस्कुरा के  पलटकर जो देखोगी तुम, 
कैसे दिल चुप रहेगा इस हाल में.

तुम संभालोगे फिर भी न संभलेगा दिल, जोर इसपर किसी का भी चलता नहीं.
कैसी तुझसे लगी है दिल की लगन, एक तुम्हारे सिवा कुछ भी दिखता नहीं. 
तुमने छू ली है जबसे ऊँगली मेरी, 
मैं तब से नशे में हूँ डूबा हुआ.  
चाँद सूरज कभी मिल सकते नहीं, 
हम तुम मिले यह अजूबा हुआ.

वो दिल नहीं कोई पत्थर ही होगा, सुन के ये बात दिल गर धड़कता नहीं.
कैसी तुझसे लगी है दिल की लगन, एक तुम्हारे सिवा कुछ भी दिखता नहीं. 
तुझसी मीठी नहीं है ज़माने की बोली,
तंज़ होता है  इसके हर बात में.
कौन देता है ज़ख्मों को मरहम यहाँ?
लोग बैठे हैं लेकर नमक हाथ में.

दिल के ज़ख्मों को तुम न दिखाओ कभी, कौन होगा जो इस पर हँसता नहीं.
कैसी तुझसे लगी है दिल की लगन, एक तुम्हारे सिवा कुछ भी दिखता नहीं 
प्यार जब भी करो डूब कर के करो,
कुछ कमी इसमें फिर रहने न पाए.
तुमने पलकें भिगोई दिल को दुखाया 
कोई तुमसे ये फिर कहने न पाए.

सागर से साहिल का तुम इश्क देखो, है लहरों में डूबे  पर दम घुटता नहीं .
कैसी तुझसे लगी है दिल की लगन, एक तुम्हारे सिवा कुछ भी दिखता नहीं.


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