शकील जमशेदपुरी
तेरी तस्वीर भी मुझसे रू-ब-रू नहीं होती
भले मैं रो भी देता हूँ गुफ्तगू नहीं होती
तुझे मैं क्या बताऊँ जिंदगी में क्या नहीं होता
ईद पर भी सवईयों में तेरी खुशबू नहीं होती
जिसे देखूं , जिसे चाहूं, वो मिलता है नहीं मुझको
हर एक सपना मेरा हर बार चकना-चूर होता है
ज़माने भर की सारी ऐब मुझको दी मेरे मौला
मैं जिसके पास जाता हूँ, वो मुझसे दूर होता है.
दिल में हो अगर गम तो छलक जाती है ये आँखें
ये दिल रोए, हँसे आँखे हमेशा यूं नहीं होता
ज़माने भर की सारी ऐब मुझको दी मेरे मौला
किसी पत्थर को भी छू दूं , वो मेरा क्योँ नहीं होता?
गीत में स्वर नहीं मेरे ग़ज़ल बिन ताल गाता हूँ
अगर सुर को मनाऊँगा, तराना रूठ जाएगा,,,
ये कैसी कशमकश उलझन मुझे दे दी मेरे मौला
अगर तुमको मनाऊँगा, ज़माना रूठ जाएगा.
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जवाब देंहटाएंकोन कहता है ईद पर सिवाएंयो खुशबु नहीं होती ... खुशबु कों पहचाने वाला होना चहिये..मित्र फिर देखो जीवन में कैसे खुशबु फैलते है, में भी अपने मित्रो के यहा गया हू ईद पर, मुझे तो बहुत खुशबु आती थी, पाता नहीं आप कोन सी खुशबु कि बात कर रहे हो ....
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