any content and photo without permission do not copy. moderator

Protected by Copyscape Original Content Checker

शनिवार, 14 मई 2011

ईद पर भी सवईयों में तेरी खुशबू नहीं होती


शकील जमशेदपुरी


तेरी तस्वीर भी मुझसे रू-ब-रू नहीं होती
भले मैं रो भी देता हूँ गुफ्तगू नहीं होती
तुझे मैं क्या बताऊँ जिंदगी में क्या नहीं होता 
ईद पर भी सवईयों में तेरी खुशबू नहीं होती

जिसे देखूं , जिसे चाहूं, वो मिलता है नहीं मुझको
हर एक सपना मेरा हर बार चकना-चूर होता है
ज़माने भर की सारी ऐब मुझको दी मेरे मौला 
मैं जिसके पास जाता हूँ, वो मुझसे दूर होता है.

दिल में हो अगर गम तो छलक जाती है ये आँखें 
ये दिल रोए, हँसे आँखे हमेशा यूं नहीं होता
ज़माने भर की सारी ऐब मुझको दी मेरे मौला
किसी पत्थर को भी छू दूं , वो मेरा क्योँ नहीं होता?

गीत में स्वर नहीं मेरे ग़ज़ल बिन ताल गाता हूँ
अगर सुर को मनाऊँगा, तराना रूठ जाएगा,,,
ये कैसी कशमकश उलझन मुझे दे दी मेरे मौला 
अगर तुमको मनाऊँगा, ज़माना रूठ जाएगा.

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. कोन कहता है ईद पर सिवाएंयो खुशबु नहीं होती ... खुशबु कों पहचाने वाला होना चहिये..मित्र फिर देखो जीवन में कैसे खुशबु फैलते है, में भी अपने मित्रो के यहा गया हू ईद पर, मुझे तो बहुत खुशबु आती थी, पाता नहीं आप कोन सी खुशबु कि बात कर रहे हो ....

    जवाब देंहटाएं