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सोमवार, 30 अगस्त 2010

पत्रकारिता के नाम पर कलंक

पत्रकारिता के नाम पर कलंक

जब से पत्रकारिता का मीडिया के साथ अनुबंध हुआ है या यूँ कहें कि जबसे पत्रकारिता नें अपना नाम बदलकर मीडिया रख लिया है, तब से इसके भाव कुछ ज़्यादा ही चढ गये हैं। भाव तो इस कदर चढ गये हैं कि इसको अपनी आँख के अलावा मछली की आँख तक देखने की फुरसत नहीं है। अगर वास्तव में इसके सही पहलुओं पर विचार किया जाय तो निष्कर्श यह निकलता है कि पत्रकारिता और मीडिया शब्द वास्तव में कर भी क्या सकते हैं। जैसा कि हम जानते ही हैं कि शब्द इन्सानों द्वारा गढि़त या यूँ कहें कि प्रतिस्ठित, चतुर, चालाक, तिकड़मीं आदि आदि प्रकार के लोगों के दिमाग में उपजे गढंत हैं । जैसे कि इन्सान को भगवान नें बनाया फिर हम नें यानी इन्सानों नें रिस्ते-नाते, ऊँच-नीच, जाति, धर्म, वर्ग, समुदाय, आदि में बांट दिया। अभी बात चल रही थी पत्रकारिता की जहाँ पर सिद्ध हो गया कि कि यह इन्सान की उपज है, तो फिर क्यों ना इन्सान इसमें अपना बस चलानें की कोशिश करे। जब किसी चीज़ का कद और शक्ति बढती है तब उसकी तरफ पूरी क़ायनात का झुकाव लाजमी है। यानी जब मीडिया या पत्रकारिता भारतीय लोकतंत्र का चौथा खम्भा या पिलर बन ही गया है तो इसमें भी बदलाव आना ही चाहिये भले ही यह पिलर निर्जीव या चेतना हीन ही क्यों न हो। क्योंकि परिवर्तन ही संसार का नियम है। मीडिया का कद बढते ही इसमें रोटी ढूढने वालों की कतार भी बढने लगी। जब यह कतार बढी और इस क्षेत्र में काम करने वालों की मात्रा बढी तो मीडिया शब्द के साथ शोषण शब्द जुड़ गया। फिर शोषण कुछ इस कदर बढने लगा कि रोज़ खुल रहे मीडिया संस्थानों से निकले छात्रों को यानी भावी पत्रकारों को निजी समाचार चैनलों, समाचार पत्रों, प्रोडक्सन हाउस, और समचार से जुड़े सभी क्षेत्रों में बिना बेतन के फ्रेशर का ठप्पा लगाकर दो महीने चार महीने मुफ्त में काम कराने की प्रथा चल पडी। यह प्रथा और सभी क्षेत्रों में भी है ऐसा नही की यहीं बस है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं लगाया जा सकता कि इस दुनिया का अगर एक इन्सान अँधा है तो हम सारी दुनिया को ही अँधा कर दें। और इस प्रकार अपने घर का भी फूँक कर निजी संस्थानों को फायदा पहुँचाने का धंधा चल पड़ा। अब अगर कहें कि तो फिर लोग करते क्यूँ हैं, तो भाई कोई कितना भी पढ लिख कर, प्रशिक्षण लेकर तैयार हो जाय उसे पैसा न देना पड़े और उसकी सद्बुद्धि का सदुपयोग अपने चैनल को आगे बढाने में कैसे उपयोग किया जाय, इसका बखूबी इन्तजाम किया गया और वही फ्रेशर वाली शील सभी निजी संस्थानों नें बनवाकर रख ली और बच्चों पर दे मारी। यानी 4-6 महीने मुफ्त में काम करो तब जा कर बेतन लेने लायक हो पाओगे। नाटक की सीन यहीं खतम नही होती अगर किसी को नौकरी मिल भी गई तो बिना अप्वाइन्टमेन्ट लेटर के लेबर की तरह नियुक्त कर लिया जाता है। अब यहाँ शुरू होता है असली खेल। इसके बाद जो पुराने कर्मचारी और ऊँचे पोस्ट के लोग होत हैं वे अपने अधीनस्तों से पैसे से ज़्यादा और समय से ज़्यादा काम लेते हैं। इसकी इजाज़त मीडिया और पत्रकारिता नही देता, इसे तो सिर्फ बदनाम किया जाता है। यह काम तो इसके अंदर काम करने वाले कामचोर मीडिया मोहरों का है। यहा पर अधीनस्थ खुल कर और आवाज़ बुलंद कर के बोल भी नही सकते क्योंकि उनके पास तो कोई अथराइज्ड लेटर भी नही है , और दूसरा न बोलने का कारण उनके पीछे लगी हुई लम्बी कतार। इस नई पीढी (पत्रकारों) के मन में यह बात आना लाज़मी है कि जायें तो जायें कहाँ। इसलिये वरिष्ठ पत्रकार अपने अधीनस्थ को अपना भी काम सौप कर रफूचक्कर हो लेते हैं। अब अनुभवी पत्रकारों के तरफ से यह यह दलील आ जाती है कि इससे तो सीखने का मौका मिलता है शोषण कहाँ होता है, लेकिन सीनियर यह भूल जाते हैं कि जहाँ काम आवै सुई कहाँ करै तलबार। ऐसा नही कि यह पूरी बिरादरी ही एक तरह की है। यहाँ भी लोग ऐसे हैं जिनसे पत्रकारिता को गर्व होता है। लेकिन वो कुछ ऐसे जगहों में मिलते हैं, जिनको देख कर लोग हंसते हैं, कभी-कभी सफेद बाल के पीछे, टूटीफूटी मेज और कुर्सी के नीचे, चलिसमा (पाँवर का चश्मा) के पीछे, डण्डे के सहारे या किसी इन्सान के सहारे, लडखडाती जीभ और धोखा दे चुके दातों के सहारे, बेचारगी भरी पलकों के नीचे आदि आदि। यानी अनुमान लगाना आसान है कि कौन सी पीढी कहाँ है। इसके इतर भी लोग मिलते हैं लेकिन अब यह ब्यवसाय उनको अपने साथ टिकने और अपने पास फटकने का इजाज़त नही देता। यानी इस क्षेत्र में ताजा-ताजा जो पौधरोपड़ किया गया है उसमे फूल लगने, फल लगने, फल के मजबूत होने और पकने का बहुत ही नजदीक समय आ गया है। इसलिये पूरे बगीचे के पौधों को साथ में मिलकर निर्णय लेने और आपस में एक दूसरे से लिपट जाने का समय आ गया है जिससे कि कोई छति ना पहुचा सके बर्ना अगर किसी प्रकार से बाग को छति पहुचाने में कामयाबी मिली समझो समाज की प्राँण वायु आक्सीजन का उन्मूलन हो जायेगा, और जो मीडिया आज अपनी टी.आर.पी. बढाने के लिये झूठ की अफवाह फैलाती घूम रही है कि 2012 में प्रलय आ जायेगी। वह सिर्फ मीडिया के लिये आयेगी और किसी भी प्रकार की क्षति नही होगी इसका दावा है। एक बात और कि अगर मीडिया और पत्रकारिता की यह पौध भी अगर ना जागी तो समाज में विचार, सोच, आपसी समझ, आदि सभी उपजों में प्रलय ज़रूर आ जायेगी। और यह समाज बिना पानी की मछली की तरह हो जायेगा। यानी अब नई पीढी ठान ले और इस बात को भलीभाँति समझ ले कि अगर अधिकार मागने से न मिले तो छीनना भी धर्म है।
निराकार को आकर देता
मन को देता ठिठुरन
आब को आप से मिलाता
कर को मनचाहे मन से
करवाता ................
कहता सबको चल,
चढ़ पर्वत पर
गिरने का न डर तू पाल
पाला जो मन में ऐसा कुटिका
तो चल लेले सन्यास......
भाई बड़ा भाबंदर आपना पथ है
कलम की मिट गयी धार

सोमवार, 23 अगस्त 2010

Geelani threatens more protests if crackdowns are not stopped

Geelani threatens more protests if crackdowns are not stopped Syed Ali Shah Geelani, chairman Hurriyat Conference (G), today threatened to intensify the ongoing public protests if the crackdowns against the people were not put to an end immediately। In a statement, he strongly condemned the re-introduction of crackdown, identification parade, arrests of youth and humiliating behaviour with women by police and forces. Geelani also appealed the people to foil such tactics of the government. He asked the people to come out of their houses and not to allow the police and forces to conduct the crack down and other related actions. “I appeal the people to come out collectively out of their houses and protest and foil the attempts to arrest the youth,” Geelani said. He asked the men to remain on the forefront by forming a defence wall and by keeping the women behind so that forces personnel do not reach to them. “Those in the crackdown must beat tin and raise slogans. Those outside the crackdown must also raise slogans and move to the area under crackdown. Doing so has become inevitable to save the youth from arrests and protect the honour of women,” the Hurriyat (G) chairman said. He strongly assailed the snatching of dupatta of a woman by police men during a crackdown at Bemina. “Forces personnel have got frustrated. And some Kashmiri police officers are committing more atrocities on people than forces. For promotions they are at war against their own people. Such acts are highly condemnable,” Geelani said. The Hurriyat (G) chairman alleged that Indian rulers and their local agents have got frustrated due to strong pro-freedom sentiment in Kashmiri youth and now they have started a new but intense chapter of suppression,” he said. Geelani viewed that unjustified curfew and crackdown is part of the new suppressive policy of Indian and state governments. “The policy makers in New Delhi have not learnt anything from the past and are committing same mistakes again and again. Such mistakes have not yielded anything for them in the past nor would they do so in future also,” he said. The Hurriyat (G) chairman described as deceit the 50,000 jobs and involvement of MLAs into it and said providing jobs to Kashmiri youth in the state is not a favour. “Such a process is carried forward through service selection board and involving MLAs into it is part of deceitful politics,” he said. Geelani asked the people to remain vigilant against such tactics and said the government must also realise that people would not surrender their sacred movement for ordinary benefits and concessions. Meanwhile, Prof Jaswant Singh Mann, president All India Shiromani Akali Dal, heading a delegation of Sikhs, met Geelani at his Hyderpora residence. The Hurriyat (G) chairman assured them that Sikhs are an inseparable part of Kashmiri society. “We have centuries old tradition of communal brotherhood and this tradition would be protected at any cost and any situation,” he said. Geelani stated that threatening letters to Sikhs is the handiwork of Indian agencies and an attempt to divert the attention from the ongoing massacre in Kashmir.

today expressed deep concern over the an onymous threats letters to members of the Sikh community asking them to leave the Kashmir valley.In a handout issued here from Srinagar , the ANC president, Begum Khalida Shah, aunt of Chief minister Omar Abdullah and sister of New and Renowable Energy Minister Farooq Abdullah, had expressed her deep anguish and sorrow over the conspiracy being hatched to harm the traditional communal harmony in the state.She has expressed her dismay at the Sikh Community being threatened through posters. "In a similar ploy our Pandit brethren were made to leave the valley,'' she said, adding,'' Now similar plots were being hatched to scare our Sikh brethren and force them to leave the valley. Begum Shah has expressed her solidarity with the Sikh community and assured that ANC would not allow any such conspiracy to succeed.The ANC President has appealed to all the people not to allow any such nefarious designs to succeed and uphold the rich tradition of the Hindu-Muslim and Sikh unity at all costs and defeat all communal forces bent upon undermining the rich traditions of Kashmiriyat.

रविवार, 22 अगस्त 2010

कैव्स जय हो...हमसे बढकर कौन है....




दोस्तों देश की स्थिति नाजुक है,,,कश्मीर जल रहा है..हमको बहुत खल रहा है...गाँधी ख़ानदान का पिछलग्गू सरदार चुप है ...सोनिया और राहुल गाँधी के इशारे का इंतजार कर रहा है...राहुल और सोनिया सोच रहे है की थोडा और इंतजार करा लिया जाए...हिंदुस्तान के शायद कुछ मुसलमान खुस हो जाएँ और वोट बैंक पक्का हो जाए.....लेकिन सोनिया और राहुल को शायद नही मालूम की सच्चा हिन्दुस्तानी मुसलमान कभी भी कश्मीर में क्या पूरे हिंदुस्तान में कभी भेद भाव नही चाहेगा.....और गद्दारों की बात क्या की जाये ...वे  चाहें हिन्दू हो या मुसलमान उन्हें तो वतन का खाना है पाकिस्तान का गाना है......वैसे देश के गद्दारों.......सावधान ,,चाहें तुम सत्ता में हो या...आम जनता के रूप में.....कसम है भारत माता की भगत सिंह और आजाद की क़ुरबानी बर्बाद नहीं जाने देंगे....तुम्हे गोली मार दी जाएगी ...अगर संसद में हो तो संसद  में  घुसकर गोली  मारी  जाएगी.गद्दारों  को जो बचाएगा वो भी गद्दार कहलायेगा...वो भी मारा जायेगा ...ये मत सोचना की सांसद हो गए हो तो तुम्हे जनता का सेवक होने का तमगा मिल गया है......गद्दारों  के लिए हिंदुस्तान में कोई जगह नही है.....इन्कलाब जिंदाबाद......का नारा लगाने वाले शहीद क्या  इसी दिन के लिए अपनी जान  कुर्बान कर गये थे ......कहानी आगे भी है...लेकिन ज्यादा टाइम अभी नही है......सिर्फ राहुल गाँधी जी से आग्रह करूँगा कि आप कश्मीर समेत पुरे हिंदुस्तान में हिन्दू मुस्लिम में भेद भाव मिटाने  की  कोसिस करो...आप समर्थ हो....बाकि सब तो आपके दया दृष्टी पर सांसद,एमेले मंत्री--प्रधानमंत्री...बने हुए है..........................................एक बात और कहना चाहूँगा हिंदुस्तान के पहले पत्रकारिता  विश्वविद्यालय माखनलाल विश्वविद्यालय से  आजकल काफी दुखद समाचार आ रहा है.....तो ये भी बता दूँ....कि सब  दिन होत  न एक समान...कभी एमसीयु से एक साथ दर्जनों लोग जी न्यूज़ ज्वाइन किये थे ...कुछ लोग आगे भी करेंगे....लोकतान्त्रिक देश में सदा ही विकल्प खुले ...आज एच ओ डी..और कुलपति कोई और है....काल कोई और होगा हो सकता है कैव्स वालों हमारे आपके बीच  का ही कोई हो.....सो डरना मना है हमे जो नही मिला वो हम दूसरों को देंगे.....हम तो वो हिन्दुतानी हैं कि डिएम--सीएम--.और पीएम बनेंगे ...अच्छा करेंगे तो ठीक हैं वरना ........आगे आप लोग समझदार आदमी हो .....भविष्य की बातें.....अभी से क्या बताउं  . अपने वर्तमान केव्स एच ओ डी और कुलपति जी प्रणाम करते हुए ....अपनी बात को समाप्त करता हू...... कैव्स जय हो ...
वक्त की परछाइयों को ढूढियेगा मत
वरना आप भी बनजायेंगे साया मानलीजिये
बस इन्तहाँ की होड़ में भागियेगा मत
वरना हर कदम पर फिसल जायेंगे मानलीजिये
हर कदम पर मंज़िल से आँखमिचौली करिये मत
वरना रास्ते मुह मोड़ लेंगे मानलीजिये
कोई सफर में अपना पराया नही होता
सिर्फ सुनिये नही अब मानलीजिये
हौसलों की डोर टूटे जुड़ भी जाती है
मोहब्बत में खलल आये अगर फिर रोकलीजिये
साया आप भी हैं, हम भी हैं, दुनिया भी है लेकिन
मिसाल अब हमे बनना है ठानलीजिये

कुछ पाने के लिये कुछ खोना भी पड़ता है

कुछ पाने के लिये कुछ खोना भी पड़ता है

कुछ पाने के लिये कुछ खोना भी पड़ता है। यह कहावत बचपन से सुनता आया हूँ। सिर्फ सुनता ही नही था बल्कि अपनी डींग हांकने के लिये बाकायदा सबके सामने परोसा भी करता था जिससे कि समाज में अपना भी एक बर्चस्व बन सके। लेकिन इसका सही अर्थ आज मै अपनी ज़िंदगी के 25 वर्ष गुजारने के बाद समझ पाया, जब मै अपनी ज़िंदगी में पहलीबार बहन से राखी बधवाने अपने घर नही जा पा रहा हूँ क्योंकि आज मै इस शहर में रोटी की तलास में भटक रहा हूँ। इस बात का सबसे बड़ा ज्ञान तब हुआ जव मैं रक्षाबंधन के दिन सबके हाँथ में राखियाँ देखा। बहन का फो़न आया उसने रूँधे हुये स्वर में कहा धर नहीं आ सके तो मेंरी तरफ से राखी खरीद कर बाँध लेना। लेकिन यह बात उसे और मुझे भी भली भाँति पता है कि राखी का मतलब सिर्फ धागा नही बल्कि प्यार, सुरक्षा, समर्पण, त्याग, न टूटने वाला बंधन, ज़िंदगी भर की दुआयें जैसे अछुण्य धागों से बनी डोर का नाम राखी है और जब इसी राखी को बहन ने अपने भाई की कलाई में जिस दिन बाँध दिया वही रक्षाबंधन का त्योहार बन गया। अब मै बाजा़र से खरीद कर कैसे कोई भी धागा अपने हाँथ में बांध लूँ क्योकि कोई भी धागा चाहे कितना भी ज़्यादा मजबूत और कितना भी ज़्यादा महगा क्यों न हो लेकिन वह बहन की राखी से ज़्यादा मूल्यवान और उससे ज़्यादा मजबूत तो हो ही नहीं सकता। इस रक्षाबंधन ने सिर्फ यही नही बल्कि मुझे यह भी सिखाया कि जो शब्द मैं आजतक सबको सुनाता आ रहा था वह सिर्फ एक कोरा ज्ञान था इसके सिवा और कुछ भी नहीं। तब एक बात और भी समझ में आई की जब कोई अच्छे शब्द किसी महा पुरुष के मुह से बाहर तब आते हैं जब वे कठिन परिस्थितियों से गुजर चुके होते हैं। इस बंधन को एक औपचारिकता मात्र मानकर हांथ में राखी बाधवालेने मात्र से इसकी महत्ता सिद्ध नही होती। इसकी महत्ता वो और अच्छे से बता सकते हैं जिनको खुदा ने बहन जैसी अमूल्य चीज़ नही दी। उनका दिल इस रक्षाबंधन के दिन बडे अच्छे से गवाही दे सकता है कि बहन न होने का मतलब क्या होता है। इसके साथ एक बाकया जोड़ना बहुत ज़रूरी है जो इस विषय से इतर होते हुये भी इसका अभिन्न अंग है। जहां एक ओर लोग अपनी बहन ना होने पर तड़पते हैं वहीं कुछ लोग किसी की बहन को अपनी संतान और अपनी लड़की मानकर सिर्फ लड़के की चाहत में भ्रूण हत्या करने से बाज नहीं आते और किसी दूसरे को बहन के बिना ज़िंदगी भर तड़पने के लिये छोड़ देते हैं। आखिर इन लोगों को बोध कब होगा जिससे कि किसी की बहन की हत्या रोकी जा सके। और किसी को हो या न हो पर एक बात तो तय है कि जो आज एक बहन के लिये तड़प रहे हैं उनको तो ज़रूर होगी और आने वाली पीढ़ी किसी भी सूरत में दूसरे की बहन छीननें की कोशिश नहीं करेगी भले ही वह उसी की संतान क्यों न हो। आज यह बात मेंरे मन में टीस दे रही है कि जिसके हाँथ में सिर्फ एक रक्षाबंधन के दिन राखी नहीं बंधी उसका यह हाल है तो जिसके ज़िंदगी के सारे रक्षाबंधन इसी तरह बिना बहन से राखी बंधवाये गुजरते होंगे उनकी ज़िंदगी में किस प्रकार की उथल-पुथल होती होगी सोचकर ही दिल सिहर उठता है। अब चूँकि आज रक्षाबंधन का त्योहार है और बहन ने कहा भी है इसलिये मै खरीद कर खुद राखी बाँध रहा हूँ क्योंकि बहनें इसके लिये मुझे दुआयें भेजी हैं और इस राखी में उन्ही दुआओं की डोर मिलाकर बाँध रहा हूँ और इस पर्व पर सभी को राखी की मुबारक बाद भी देता हूँ। और समाज से यह बिनती भी करता हूँ कि रक्षाबंधन का त्योहार सभी पूरी रौनक और उत्साह से मना सकें इसके लिये समर्पित हो जायें।
रक्षाबंधन की सबको शुभकामनायें

रोहित सिंह चौहान
बघवारी, सीधी,(म.प्र.)

शनिवार, 21 अगस्त 2010

आखिर कहाँ है राजनीति की संवेदना

आखिर कहाँ है राजनीति की संवेदना

गैस त्रासदी को लेकर चल रही राजनीति और राजनीतिक दलों का आपसी जंग लड़नें का इसे सुसज्जित अखाड़ा बना लेने की प्रवृति जो इतने सालों से चली आ रही है उसे देखते हुये जनता के मन में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि आखिर कहाँ गई राजनीति की संवेदना ? जब आम आदमी और पीड़ितों की आवाज़ बुलंद होती है तो सारे राजनीतिक दल तो काँप ही जाते हैं साथ ही साथ तात्कालिक दोषियों की भी धड़कनें तेज़ हो जाती हैं और हड़बड़ाहट में कुछ की कुछ बयानवाजी कर बैठते हैं। वे सायद जानते हुये भी भुलानें की कोशिश कर रहे हैं कि यह जो दोषियों को बचाने की पटकथा, पटकथा लेखक से लिखवाई जा रही है वह हकी़क़त की ज़िन्दगी में काम नही आने वाली क्योंकि रील और रियल लाइफ में बहुत अंतर होता है। अब वह ज़माना गया जब जनता सिर्फ सिनेमा की स्क्रीन पर दिखने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियों को सबकुछ समझती थी। अब उसे भलीभाँति ख़बर हो चुकी है कि दिखने वाले मोहरे के अलावा और इसे सफल बनाने के पीछे उस कहानी की आइडिया दिमाग़ में आना शूटिंग की बजट और लोकेशन निर्धारित करना, कैमरा मैन, सहायक, भीड़ जुटाना, फि़ल्म जनता तक आसानी से पहुँच सके उसकी मार्केटिंग करवाना आदि-आदि। इन सबके बीच अभिनेता का चाँकलेटी चेहरा और कैमरे के सामने अपने आप को कहानी के हिसाब से प्रस्तुत कर सकने की क्षमता के कारण चेहरे में इस्नो-पाउडर लगा कर अभिनय करादिया जाता है। ऐसा नही की अगर फ़िल्म ग़लत बन रही है तो इसके लियें अभिनेता दोषी नही है क्योंकि अभिनय से पहले कहानी पढने और उसे भली भाँति समझनें का अधिकार अभिनेता के पास मौजूद है, तब भी ग़लती करे तो अभिनेता दोषी ज़रूर है। लेकिन इससे भी ज़्यादा गुनहगार तो वह है जिसके मन में इस प्रकार की सोच ने जन्म लिया और तो और हद तो तब हो गई जब उसने इस कहानी पर बाकायदा खेल रचाना शुरू कर दिया। उसने यह भी नही सोचा कि इसका असर उस पर क्या पड़ेगा जो इसका आखिरी लक्ष्य है। ठीक इसी प्रकार की आँख मिचौली भारतीय राजनीति में भोपाल गैस त्रासदी को लेकर चल रही है। कुछ तो इस प्रकार से चल रहा है कि पीड़ित जनता और उसके अंगभंग हुये शरीर को ऐसे उपयोग किया जा रहा जैसे फ़िल्म की किसी सीन को आकर्षक बनानें के तिये अभिनय कराया जाता है। जहाँ एक हिस्सा सुध ही नही लेना चाहता इसे सबकी नजरों से ओझल रखना चाहता है वही दूसरी और दूसरा हिस्सा इन्ही तस्वीरों की खासी बड़ी होर्ड़िंग बनवाकर बीच चौराहों में लगवादेता है और कोने में अपना निसान लगाना नही भूलता। जिससे जनता यह कह सके कि कम से कम किसी ने सुध तो ली। अगली वोटिंग तक यही सिलसिला चलता रहता है। लेकिन वोटिंग खत्म होने के बाद वहीं पर बेरोक टोक कोई दूसरी होर्ड़िंग लगजाती है और यहाँ पर यह कहावत चरितार्थ होती नजर आती है कि रात गई बात गई। लेकिन भोपाल की जनता उस रात और उस बात दोनों को कैसे जाने दे सकती है। अगर इसकी कोशिश भी करते हैं तो उनकी जमीर इसकी इजाज़त नही देती। जिस प्रकार एक ड़ाँक्टर अपने मरीज से यह जता देता है कि कोई मर्ज़ ज़्यादा बिकरार रूप ले इसके पहले परहेज करना और दबा लेना शुरू कर दे। बरना अगर संभव हुआ तो आँपरेशन से पीड़ा देकर मर्ज़ ठीक किया जायेगा। लेकिन मर्ज़ अगर ऐसा निकला जिसका आँपरेशन संभव न हो तो दबा के सहारे कुछ दिन ही जिन्दा रहा जा सकता है। इस राजनीतिक सेहत की जानकारी जनता के पास बखूबी विद्यमान है और वह अपने हितों की रक्षा के लिये इनका उपयोग करना भी जानती है।


रोहित सिंह चौहान
बघवारी,सीधी,(म.प्र.)

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

सभी ने टॉप किया....2

सभी ने टॉप किया शीर्षक लेख में कुनाल गिरी इलेक्ट्रोनिक मीडिया के छात्र जो की अंतिम वर्ष के छात्र थे उनका रिजल्ट घोषित हो गया है जिससे उन्होंने अनुरोध किया की अपडेट किया जाए सो अपडेट रिजल्ट के हिसाब से उनकी  कहानी  उन्ही  की  जुबानी - सभी  को  बताते  हुए  मुझे  हर्ष  हो  रहा  है  की  mera  टोटल  मार्क्स  1790/2300 है .. जिस -से   यह  बात  saaf  हो  जाती  है  ki  इस  bar  भी  मेने  hi  टॉप   किया   .. vivek ji kirpiya apna blog ko update kare...


kunal giri

बुधवार, 18 अगस्त 2010

टूटता दिख रहा कुठियाला का तिलिस्म

यह लेख माखनलाल पत्रकारिता विश्विद्यालय भोपाल में प्रसारण पत्रकारिता के छात्र "भूपेन्द्र पाण्डे " द्वारा लिखा गया है-


माखनलाल में रहना है तो हमसे मिलकर चलना है , कुठियाला मुर्दाबाद , कुठियाला के कार्यकाल की जाँच हो , कर्मचारी एकता जिंदाबाद , जो हमसे टकराएगा चूर चूर हो जायेगा हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है । ये नारे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में आज शिक्षक कर्मचारी और अधिकारी जोर जोर से चिल्लाकर लगा रहे थे और इन्ही नरो को तख्ती प़र लिख कुलपती के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे । विश्वविद्यालय के कुलपति बी० के० कुठियाला की नियुक्ति और पद सँभालने के कुछ दिन बाद से ही उन पर अनके आरोप लगाये जारहे थे कुछ लोग तो तो इनकी नियुक्ति पर भी सवालिया निशान लगाते हुए कहते है की इसके पीछे बहुत बड़ी राजनीति है और इसमें इनका संघी होना बहुत काम आया है इनने भी यहाँ पहुचते ही सबसे पहले विश्वविद्यालय के लैटर पैड का रंग बदल कर भगवा रंग दे दिया तभी से लोग कयास लगा रहे थे की अब पत्रकारिता विश्वविद्यालय का भगवाकरण होने वाला है ।
तब से आज तक कुलपति जी के सारी नीतियों को चुप चाप मानता चला आ रहा प्रशासन और कर्मचारियों के सब्र का बांध आज टूट ही गया हड़ताल और प्रदर्शन का कारण पता करने पर कर्मचारी संघ के अध्यक्ष अर्जुन लाल गोहरे ने बताया की विश्वविद्यालय तेलंगा के कार्यालय में १०० से अधिक कर्मचारी टास्क पर नियुक्त है इन को न तो परमानेंट किया जा रहा न इनके वेतन में कोई वृद्धी की जा रही है , खाली पड़े पदों के भर्ती का आदेश होने के बाद भी इसे भरा नहीं जा रहा है इन्होने मांग की है की पिछले लगभग १० वर्षो से संस्था को ३ से ४ हज़ार रुपयों में अपनी सेवा दे रहे कर्मचारियों को एक सरल प्रक्रिया के तहत नियमित किया जाये कुलपति पर आरोप लगते हुए इन्होने कहा कि ये बिना किसी को कोई जानकारी दिए गुपचुप तरीके से शासन को पत्र लिखकर रजिस्ट्रार और परिक्षानियांत्रक के पद पर आपने आदमियों को बैठना चाहते है जबकि वर्तमान में इन पदों को देख रहे डा० श्रीकांत सिंह और राजेश पाठक बढ़िया काम कर रहे है । कर्मचारियों की मांग है डा० श्रीकांत सिंह रजिस्ट्रार के पद की योग्यता रखते है और इन्हें ही इस पद पर रखा जाये क्योकि ये लम्बे समय से हमारे बीच में है और हमारी समस्यायों को भलीभांति समझ सकते है । वर्तमान में आप प्रसारण पत्रकरिता विभाग के एच० ओ० डी० के पद पर रहते हुए भी अपनी जिम्मेदारी को बहुत अच्छे ढंग से निभा रहे है । इनका कहना है श्री कुठियाला के आने के बाद यहाँ भ्रस्टाचार फैल गया है यू० टी० डी० सेंटर के संचालको की ओर से शिकायत आ रही है की कुलपति द्वार बनाई तीन सदस्यीय टीम घूस लेकर सेंटर को मान्यता दे रही है । कर्मचारियों ने कहा की अभी कुछ दिन पहले विश्वविद्यालय के काम से जा रहे 3 कर्मचारी की रात में दुर्घटना से दर्दनाक मौत हो गयी लेकिन उनके परिवार को कोई विशेष आर्थिक सहायता नही दी गयी , इन्हें जल्द सहयता दिया जाये और इनके परिवार से एक एक सदस्य की अनुकम्पा पर नियुक्ति की जाये । सब ने एक सुर में कुलपति के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए कहा की यदि जल्दी हमारी मांगे पूरी नहीं हुयी तो हम गांधवादी ढंग से हड़ताल करेंगे और लम्बी लडाई लड़ेंगे । यह था आज के तजा घटनाक्रम का हल कुछ दिन पीछे चले तो पता चलता है की कुलपति जी आते ही केवल सत्ता आपने हाथ में लेना चाहते थे इसके लिए आप अपने मन से कानून पर कानून बनाते रहे और लोग आँख बंद कर मानते रहे चाहे वाह शुराक्षकर्मियो की संख्या घटना हो या कुछ ओर परिवर्तन की बयार कुछ ऐसे चली की विश्वविद्यालय के पानी के सहारे जीने वाले लडको को १० बजे के बाद विश्वबिद्यालय में घुसना मना कर दिया गया यहाँ पढने वाले लड़के अपने घर से ज्यादा समय यहाँ बिताते थे यहाँ पर विभिन्न विषयों पर रात में घंटो बहस होती रहती थी पर अब नहीं । अभी हद नहीं हुयी इस छोटे से विश्वविद्यालय में १४ नए कोर्स शुरू किये गए जबकी पहले से चल रहे कोर्सो के लडको का भविष्य अभी तक अँधेरे में है इनके प्लेसमेंट की कोई ब्यवस्था नहीं है इस वर्ष निकले बड़ी संख्या में छात्र बेरोजगार घूम रहे है । कुलपति के सामने छात्रो ने गुहार लगाई थी पर कोई सुनवाई नहीं हुयी इन छात्रो में कई ऐसे है जिन्होंने अपना कोर्स लोन लेकर किया है।
आपने विश्वविद्यालय में प्रवेश की परम्परागत प्रेवश परीक्षा को समाप्त कर मेरिट सिस्टम लागू किया जिसका परिणाम यह रहा की ४ लिस्ट निकलने के बाद भी कई विभागों की सीटे खाली पढी है। जो नए कोर्स शुरू किये गए उनमे कुछ में तो कोई आवेदन ही नहीं आया ओर कुछ में २य ३ छात्रो का प्रवेश हुआ इसके आलावा पढ़ाने के लिए शिक्षक नदारद है । कुल मिलकर यहाँ छात्रो के भविष्य के साथ गन्दा मजाक करने की कोशिश की जा रही है पर अब तक सब चुप थे अब जब बात आपने पर आयी तो लोगो ने चिल्लाना शुरू किया खैर आवाज बुलंद है ओर लगता है कि आब कुलपति का तिलिस्म टूट रहा है वैसे अभी तक यह विश्वविद्यालय राम भरोसे चल रहा है कदम कदम पर भ्रस्टाचार है देखना यह होगा कि कुछ बदल पता है या सबके मुह ,बंद कर दिए जायेंगे ।

स्कूल और कॉलेज, विश्विधालियो कों कामर्शियल न करे ........




इस कामर्शियल के बढ़ते दोर में आज हर कॉलेज और स्कूल अपने कों डोरे कॉलेज की अपेक्षा अपने कों अपग्रेड करने में लगे है ............ अगर बात की जाये उस दोर की जब कॉलेज और विश्विधालीय में पढने वाले बच्चोके पास भविष्य में आगे बढ़ने के लिए मात्र दो ही विकल्प होते थे। एक डोक्टरर दूसरा एक अच्छा अभियंता बनने का ,कयोंकि उस समय स्कूल और कॉलेज कामर्शियल नहीं थे । उनका भविष्य एकदम साफ होता था। न ही वो दोर वैश्वीकरण का था । लेकिन आज कुकरमुत्ते की तरह गली मोहल्ले में खुले ये निजी संस्थान और स्कूल इन लोगो के लिए एक कमाई का धंधा बन गए है । जिसके चलते आ हर स्कूल और कॉलेज के चेयरमेन आज इन्हे फाइव स्टार में तब्दील करने की सोच रहे है ......जंहा की केन्टीन और क्लास रूम कों एकदम चका- चक बनाने में लगे है ....क्लास में डिजिटल बोर्ड हो, कमरे फुल्ली वातानुकूलित हो ,इत्यादी .........कॉलेज प्रशासन भी स्कूल का विज्ञापन करने के लिए मीडिया का सहारा लेते है ये प्रचार करने के लिए फीस कहा से आती है ....ये सब बच्चो से वसूली की जाती है ....कमाई का धंधा बन चुके ये संस्थान १०० फीसदी नोकरी देनी के बात करते है। जिस कारन बच्चो के माता -पिता कों प्रवेश दिला देने में मजबूर कर देते है ... मात पिता सोचते है की हमारा बच्चा ये कोर्स करके तुरंत जॉब पा जायेगा .... लेकिन जब बच्चो का प्रवेश हो जाता है । फिर उनसे मनचाही फ़ीस वसूलते है जोकी बहुत ही गलत है.......
कुछ सालो पहिले जब में अपने कसबे से निकल कर मेरठ शहर पढने जाता था ....तो मेरठ - हस्तिनापुर मार्ग पर मात्र दो पब्लिक स्कूल ट्रांस्लम और जे० पी० एकेडमी हुआ करते थे , जो बहुत ही फेमस थे ...जहा पर पढाई का इस्तर एकदम अव्वल था ....लेकिन आज ये स्कूल पूर्ण रूप से फाइव स्टार बन चुके है ......आज न जाने कितने कोर्स यहाँ पर चलाये जाते है ,कोई गिनती नहीं है। आज के डोर में ये स्कूल पूर्ण रूप से कामर्शियल बन चुके है .....अगर कोई यहाँ पर एल के जी से प्रवेश लेता है तो समझो वो यहाँ से मास्टर डिग्री ही लेकर निकलेगा ......
ऐसे ही जब में अपने मित्र कों एम् बीऐ प्रवेश दिलाने के लिए देहरादून के डी.आई .टी। कॉलेज मे गया था .........यहाँ का कॉलेज बीटेक के मामले मे शहर मे दुसरे नंबर पर आता है ......लेकिन साथ ही साथ अब यह एम् बीऐ , एम् सीऐ, बीबीऐ की डिग्री भी देता है.... ये ही कॉलेज ही नहीं देश के तमाम कॉलेज भी ऐसा कर रहे है..जो बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते है, जो बिलकुल भी भी ठीक नहीं ...... जब मेरा मित्र पंजीकरण फार्म लेने के लिए काउंटर की तरफ चला ,तो एक हज़ार का नोट पाहिले लिया और बाद मे फ़ार्म दिया ......मानो ऐसा लगता है की ये लोगकॉलेज ही नहीं कोई प्रोविजन स्टोर चला रहे हो .....ये हालत है आज के निजी कालिजो की .......
ऐसा ही कुछ इस बार मेरे विश्विधालय माखनलाल में हो रहा है ....जहा पर इस बार १८ नए कोर्स चलाये जा रहे है जबकि हमारा विश्विधालीय एक पत्रकारिता का है। और अब यहाँ पर पढाई प्रबंधन ,एनिमेशन , एम् सी ऐ से सम्बंधित करायी जा रही है .....यह सोचने वाली बात है ............ज़माना वेश्वीकरण है या फिर रिटेल मेनिज्मेंट का है ....शायद् इसलिए ही विश्विधालीय कों कामर्शियल बनाने जा रहे है ...... तो ये to आने वाला वक्त ही बतायेगा .....
खेर कुछ भी हो स्कूल या कॉलेज कों ५ स्टार बनाने से कुछ नहीं होगा ....या फिर अपग्रेड करने कुछ नहीं होगा बल्कि हमें आने विचारो कों अपग्रेड करने से होगा .....

सोमवार, 16 अगस्त 2010

कम होते कपडे , बढ़ते दर्शक









आज देखा जाये तो बोलीवुड भी होलीवुड की राह पर चल पड़ा है। हालीवुड की फिल्मो कों भारतयी दर्शको दुवरा इसलिए ज्यादा पसंद किया जाता है कयोंकि ये हीरोइने कम कपडे जो पहनती है । इसलिए । आज बालीवुड की ज्यादातर हीरोइने कम कपड़ो में दिखाई देती है। क्योंकि उनको एक दम टोपलेस होना है......... फिल्म खुवाइश में १६ बार चुमबन देकर और मर्डर में अंगप्रदर्शन कर चुकी हुस्नो की मल्लिका...... मल्लिका शेरावत अपने जिस्म का प्रदर्शन करके देश के साथ- साथ विदेशो में भी अपनी लोकप्रियता बटोर रही है। टीवी चैनल पर आते तमाम विज्ञापन जिसमे अशिश्लता का नंगा नाच देखने कों मिलता । जिससे दर्शक भी उस ब्रांड कों खरीदने में जरा भी देरी नहीं लगाते ....क्योंकि उस विज्ञापन कों बिपाशा ने जो दिखाया है......
ठीक उसी प्रकार से फिल्मो में भी अर्ध नगन का प्रदेअर्शन करके हीरोइने दर्शको कों अपनी और आकर्षित कर रही है । जिस कारण ये रातो रात सुर्खेयो में आ जाती है ... हाल ही रिलीज होने वाली फिल्म " हिस्स" में मल्लिका ने जो न्यूड सीन दिये है ..... जो इस फिल्म में आपको एक नागिन की भूमिका में नज़र आएगी ..... और छाती कों बालो से ढका है । मल्लिका कों सिर्फ इस चीज़ का फायदा होगा की अब उनको देखने वाले दर्शको की तादात और बढ़ जाएगी ....फिल्म हिस्स कों देखने वालो की तादात और ज्यादा बढेगी शायद फिल्म सुपरहिट भी हो जाये . फिल्म कों मीडिया में जगह मिलेगी सो अलग .......... हाल ही में ज़र्मन के एक वैज्ञानिक ने अपने सर्वे में पाया की महिलाओ की ब्रेस्ट कों घूरने से इन्सान की आयु बढती है .....जिससे आज कल की सभी अभिनेत्रिया अपनी ब्रेस्ट कों देखने से जारी भी नहीं कतराती है मैल्लिका भी उनमे से एक है ...... जो इस बात कों सुनकर काफी खुश देखाए पड़ती है ......... बात चाहे यहाँ पर मल्लिका कों हो रही हो या फिर नेहा धूपिया की , या फिर तनु श्री दत्ता की, सेलिना जेटली की या बिपाशा बसु की , ज्यादातर ये अभिनेत्री मीडिया में बने रह ने के लिए अपने अंग प्रदर्शन कों लेकर हमेशा से सुर्खियों का हिसा बनी रहती है .......... देखा जाये तो जिन हीरोइने की न तो मीडिया में चर्चा होती है और न ही उनकी फिल्मे चलती है ॥ क्योंकि वे न तो इस तरह की कोई हरकते जो नहीं करती ....इस लिए वो हमेशा मीडिया से दूर रहती है ...
इस तरह की शरारते कर चुकी शर्लिन चोपड़ा, जिन्होंने टीवटर पर अपनी नगन फोटो लगा कर एक दम से सुर्खियों में आ गयी .हालाकी शर्लिन इतनी सफल अभिनेत्री तो नहीं है .लेकिन फिर भी मीडिया में बने रहने के लिए चर्चा का विषय रहती है.... इसी प्रकार से कपूर खानदान की बेटी करीना भी अछूती नहीं है । बड़ी बहन ने शायद अपने करियर की उचाई कों इतनी जल्दी न छुआ हो। लेकिन छोटी बहन ने मात्र एक दशक में , बोलीवुड में अपनी नयी पहचान "बेबो " नाम से बनायीं ......जिसे आज सारा बोलीवुड बेबो के नाम से जानता है ......कुर्बान फिल्म में करीना टोपलेस इसलिए हुई की उन्होंने अपनी नगन पीठ जो दिखाई ...... फिल्म ने दर्शको इस लिए अपनी और आकर्षित किया .........तनु श्री दत्ता भी टोपलेस होने के चक्कर में "आशिक बनाया आपने "में जो गाना फिल्माया ही उसी ने दर्शको कों अपनी और आकर्षित किया ...६०-७० का दशक में जो हीरोइने टोपलेस हुई उनमे से रेखा , शबाना आज़मी , ज़ीनत अमान , मंदाकनी , इत्यादी .... एसा ही कुछ देहरादून में मुझे देखने कों मिला जहा पर लड़के लडकियों का पहनावा एकदम अलग है । यहाँ के पहनावे ने भोपाल , दिल्ली जैसी बड़ी सिटी कों पीछे धेकेल सा दिया है .......लडकिया अपने माता पिता के साथ मिनी इस्कर्ट में घुमती फिरती है जो अपने आप में बड़ी शर्म की बात है .... खेर पहने भी क्यों न ज़माना ग्लोब्लएजेसन का जो है ........

kul milakar ऐसे दिराशियो और फिल्मो कों देखकर यही कहा जा सकता है....की सिर्फ मीडिया में बने रहने का ये सबसे अच्छा तरीका है ..इससे दर्शक तो आकर्षित होते ही है ..... साथ ही साथ यह सफल होने का एक अच्छा तरीका है ...

रविवार, 15 अगस्त 2010

सभी ने टॉप किया.....

बहुत बेसब्री से अपने प्रोफशनल डिग्री का इंतज़ार कर रहे युवा पत्रकारों को परीक्षाफल घोषित हुआ इस बार कैव्स के चौथे सेमेस्टर के छात्रों में जन्हा इलेक्ट्रोनिक मीडिया कोर्से  में रंगोली शुक्ला ने बाजी मारी इनको २३०० में 1763 अंक प्राप्त हुए जो  की कैव्स डिपार्टमेंट के चौथे सेमेस्टर का सबसे हाई स्कोर रहा लेकिन इन्ही के प्रतिद्वंदी कुनाल गिरी का रिजल्ट इस बार किन्ही कारणों से रुक गया है,फिलहाल दूसरे नंबर पर नलिन नयन प्रकाश (इलेक्ट्रोनिक मीडिया ) ने 2300 में 1693 अंक प्राप्त कर दूसरा स्थान प्राप्त किया है,वन्ही तीसरे स्थान पर तुनीर ने 1687 अंक  कुल प्राप्त किए हैं.इसके अलावा इलेक्ट्रोनिक मीडिया में सभी ने टॉप किया मतलब सब ने फर्स्ट डीविजन प्राप्त किया है,शोकाकुल बात यह है की इन्ही के बीच हरफनमौला आशुप्रज्ञा मिश्र फेल हो गए...
ये तो बात थी इलेक्ट्रोनिक मीडिया की अब चौथे सेमेस्टर के प्रसारण पत्रकारिता पर भी नज़र डाल ले - इस बार चौथे सेमेस्टर में प्रसारण पत्रकारिता में सुनील कुमार वर्मा ने 1724 अंक  ग्रहण  कर बाजी मारी वंही दुसरे नंबर पर उमा सिंह यादव ने 1688 अंक प्राप्त किया,तीसरे स्थान पर झरना बनर्जी ने 1650 अंक प्राप्त कर झंडा बुलंद किया..वन्ही पुराने छात्र फिर एक बार चूरन साबित हुए ..........और साथ में यंहा भी सभी ने टॉप किया अर्थात फर्स्ट डीविजन की झड़ी लगी रही..
और इन सबके अलावा जिन्हें परीक्षाफल को  लेकर डर था उनकी भी नय्या  पार हो गयी आप सभी लोग इशारा समझ गए होंगे....
इन सबके बाद हमारे अनुजो द्वीतीय सेमेस्टर में कैव्स डिपार्टमेंट में मुदिता त्रिपाठी (इलेक्ट्रोनिक मीडिया )ने 600 में 482 अंक पाकर टॉप किया ही साथ ही विश्विद्यालय भी टॉप किया है.. वंही दुसरे स्थान पर 445 अंक पाकर अनूप मिश्र ने अपना स्थान तय किया...तीसरे स्थान पर आशीष मंगल सोनी ने ४४३ अंक प्राप्त किया...बाकी इलेक्ट्रोनिक मीडिया के चार  छात्रों को निराशा हाथ लगी.
प्रसारण पत्रकारिता में द्वीतीय सेमेस्टर के छात्रों में इस बार लड़कियों ने बाजी मारी ..पहले स्थान पर सुरुचि  अग्रवाल ने 456 अंक प्राप्त किये,दुसरे स्थान पर निधि मोदी ने 451 अंक प्राप्त किये तीसरे स्थान पर दीपा सिंह ने 446 अंक खींचे...इसके आलावा दो छात्रों ने परीक्षा नहीं दी जिससे उनका परिणाम नकारात्मक रहा .......
निर्देश -इस लिंक को क्लिक करने पर जो पेज खुलेगा वंहा आपको  
media exams का विकल्प मिलेगा उसे क्लिक करे ,क्लिक करने के बाद अपना कोर्से सुनिश्चित करे ,तत्पश्चात सेण्टर कोड के विकल्प में 999 डाले आपका परीक्षाफल मिल जाएगा ....

15 अगस्त , रहे मस्त

कैव्स परिवार की ओर से ६४वी स्वतंत्रता वर्षगाँठ पर सभी को ढेर सारी शुभकामनाएँ-
जहा गलत देखेंगे हम, आवाज़ हमारी ज़रूर उठेगी
कसम खाते हैं ये एकता कैव्स में भी  दिखेगी
कैव्स टुडे है मंच हमारा
भारत देश है हमको प्यारा
लोकतंत्र की हम रक्षा करेंगे
अपनी कलम से हम शिक्षा करेंगे
हिंसा  को अहिंसा से हम करेंगे परास्त
हम न जाने -माने कोई जात- पात
कैव्स टुडे का ये सपना है
हर किसी को साथ रखना है
सामान सबको मिले अधिकार
कैव्स टुडे का यही कार- भार

शनिवार, 14 अगस्त 2010

चोला माटी के नत्था राम ...ये मेरे साथी सोनू उपाध्य का लेख हैं ....जो लोकमत में मेरे साथ कार्यरत है
भट सूअर की धुक-धुकी के धुएं का रैला उठा और जो घूमा कि खाट पर लेटी दोहरी हुई अम्मा ने खखियार के बलगम ओटले पर दे मारी... फिर चिल्लाई.. पिपली... पिपली ... पिपली... का भवो ऐसो जेसो लाइव रामलीला के लाने मेलो भर गयो. का भवो जो नत्था...कहां गयो री कुल्टा..चिल्लात जात है अम्मा बीडी पर बीडी फूंकती है.. नासमिटी, कुल्टा निकली राजनीति कि नत्था के जत्था के जत्था गांव का गांव छोड दियो. जो पिपली में लाइव फिल्म का का रंग भवो कि कैमरे की आंख घूमी भर है कि बाबू के फटे रजिस्टर में नत्था के मरने की तारीख दर्जी की थी और सांय-सांय आवाज गूंजत है.. देस मेरा रंग रेज रे बाबू.. देस मेरा रंग रेज रे बाबू..

पिपली लाइव में भवो जे कि आखिरी में कुदाली के साथ गांव से भाग गयो नत्था और बीबी रह गई तपती दोपहरी में जनगी भर बर्तन की राख के साथ मोरी में भेने के लाने.. जे का बोले पिपली की पूरा देस भयो जे.. पिपली के खुदखुसी के मेले के रेले में बंधे झूलों के नट-नटीया में जहां-तहां बिखर जात है.. तनिक गोर करों हों तो टीवी मीडिया की गाडियों की धूलेरी में बचे-खुचे चाय के गिलास दुअन्नी में बेचे-बेचे फिरो हों गन सारे नत्थों के बेटे.. बाप की मौत के लाने मुआवजा भवो है.. अधमरा भवो किसान कि खिखियाकर परसाई जी परसाई जी तो कभी हरिशंकर-हरिशंकर चिल्लात-चिल्लात रूलाई फूट पडती है. तमाशा भवो रे तमाशा.. मौत भई तमाशा.. मुआवजे के लाने तमाशा..

कछु कहत न जात जो काम अच्छो कि फिल्मी अंखियों से टिपर-टिपर देस के करनधार की ठठरी पर जे राजनीति की पिपली बाइट देत है.. दूर से कैमरो घूमत है कि पानी निकालत-निकालत पानी निकल भयो किसान को कि नत्था से मुंह ही न फेरों हों तनिक भी कि मती मारी गई कि नासमिटा हरामखोर, नत्था की टट्टी की टीआरपी में लाइव लाइव भई है पिपली..दरोगा कने का बोलत रहो कि सबके सब दो ही मिनिट में टोला बनाए के मिनिटों में मैला आंचल कर दियो.. किसान की जदगी का..

का भवो अब जे कि योजना-फोजना मिली भगत का रैला है..मंहगाई डायन मार जात है..ओ पर नत्था का का.. कि फिरकी-फिकरी घन चक्कर भयो मौत के लाने मुआवजा तो दूर की बात दीमक-दीमक-चर..चर चाटत है का भवो रे नत्था कछु एक या दो नहीं हो कुल्टा नासमिटी पूरे देस में कुर्सी घर-घर पैदा करो हों.. का भवो हों..रोंए कि हंसे कि होरी मरो थो गोदान में कि होरी-मोहतो मरो है गड्ढे में तनिक भी खैर नाहीं है..का हों रोवें कि हंसे.. हो देस मेरा रंग..रेज रे बाबू..हो देस मेरा रंग..रेज रे बाबू..

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

भूमण्डलीकरण की कृषि...

यह लेख माखनलाल पत्रकारिता विश्विद्यालय भोपाल में प्रसारण पत्रकारिता के छात्र "आशुतोष  शुक्ला" द्वारा लिखा गया है-

भारत एक कृषि प्रधान देश है। केवल इतना कहने भर से ही भारत कृषि में हालत सुधरने वाली नहीं है। भारतीय कृषि की हालत दिन पर दिन भयावह होती जा रही है। कुछ लोगो का मानना है की इस दुर्दशा के लिए भारतीय किसान खुद जिम्मेदार है। ऐसे हे लोगो के मुखार्विन्दों से अक्सर यह सुनने को मिलता है की भारतीय किसानो को भूमण्डलीकरण के इस दौर में यदि टिके रहना है तो उन्हें प्रतिस्पर्धी होना होगा , पैदावार मे उसमे वृद्धी ही इस पर्तिस्पर्धा में बने रहने का एक मात्र रास्ता है। आज कल के सम्मेलनों में आप वैज्ञानिको से या अर्थशास्त्रियों से यह अक्सर सुनते पाएंगे की किस तरह उत्पादकता ही कृषि समुदाय के अस्तित्व को कायम रखने में निर्णायक साबित होती है। जो किसान अपनी उत्पादकता नहीं बढ़ा सकते वह न सिर्फ हाशिये पर चले जायेंगे बल्कि भीरे धीरे उनका अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा या वे कृषि जगत से ही बाहर हो जायेंगे। कम उत्पादकता के लिए भारतीय किसानो के ऊपर अक्षम होने का लेबल चिपका दिया जाता है , और यह लेबल कृषि व्यापर उद्योग को सरकारी मदद दिलाने वाली नीतियों में बदलाव को जायज़ ठहराने के लिए काफी है। हालाँकि यह बहस भ्रामक है की भारतीय किसान अक्षम है। सच तो है की भारतीय किसान विश्व के सबसे सक्षम किसानों में से एक है। वास्तव में, भारतीय किसान किस तरह अपनी उत्पादकता को बढ़ा सकता है जबकि उसके पास महज़ दो और तीन एकड़ भूमि हो , तब वह साल दर साल उपज बढ़ाएगा या अपने परिवार का भरण - पोषण करेगा। क्या यह चुकाने वाला तथ्य नहीं है की औसत भारतीय किसान १।४ हेक्टयर कृषि योग्य भूमि पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर रहता है वहीं अमेरिका में एक किसान के पास केवल अपनी गाय का पेट भरने के लिए लग्भाक १० हेक्टेयर की जमीन प्राप्त है। किसी उन्नत किसान से यदि आप १।४ हेक्टेयर भूमि पर खेती करने को कहेंगे तो वह आपके ऊपर हंसेगा। वास्तविकता में विकसित देशों में किसान जमीन के छोटे- छोटे टुकड़ों पर खेती करने की बात सोच भी नहीं सकता।
सरकार का यदि यही रवैया रहा तो देश के न जाने कितने और जिले विदर्भ और बुंदेलखंड बन जायेंगे। इसे एक विरोधाभास ही कहा जायेगा की जिस सरकार ने कभी जमींदारी उन्मूलन जैसा कदम उठाया था आज वही सरकार गाँव में फिर से महाजनी व्यवस्था को लागु करने की बात सूच रही है। विदर्भ या बुंदेलखंड या देश के किसी भी कोने में हो रही किसानो की आत्महत्याओं ने ही ग्रामीद इलाकों में क़र्ज़ मिलने के सवाल को प्रमुखता से उभरा है। इसी के फलस्वरूप रिजर्व बैंक ने जोहल कार्य समीति का गठन किया था जिसमे बैंक मुश्किल में जी रहे किसानो की परेशानियों का अध्ययन किया जाना तय है। ज़रा सोचिये कमेटियां बनाकर किसानो का भला किस प्रकार किया जा सकता है ?
रहत पैकेज देकर कितनो दिनों तक किसानो पर एहसान किया जायेगा ? श्री लाल शुक्ल द्वारा लिखे राग दरबारी की एक लाइन है की "सूखा और अकाल सरकारी अफसरों के भाग्य से आता है ।" अधिकारीयों के पास पैकेज के प्रस्ताव बनाने का काम राहत पहुँचाने से बड़ा काम हो गया है।
कुछ बरस पहले तक बुंदेलखंड के बारे में एक शब्द भी ना बोलने वाले आज वह दिन रात रैलियाँ कर रहे है । पैकेज दिलाने की होड़ मची हुई है। लेकिन उसके बाद भी यहाँ की मूल समस्या की जड़ में जाने की ज़रुरत किसी को महसूस नहीं हो रही है । सच तो ये है की हमें खासकर किसानो को राज नेताओं से कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए । क्यूंकि अपने रानीतिक स्वार्थ के मेल में सभी पार्टियां एक है । सरकार किसानो की सब्सिडी के बारे में सोचना भी नहीं चाहती है। विकसित देशों के किसान दक्ष इसलिए है क्यूंकि वहा पर उन्हें साल दर साल भारी सब्सिडी मिल जाती है। कपास उत्पादन को ही ले लीजिये अमेरिका में करीब बीस हजार कपास उत्पादक किसान है , जिनके द्वारा हर साल लगभग चार अरब डालर मूल्य का कपास पैदा किया जाता है। ये किसान कपास का उत्पादन बंद ना करे इस लिए अमेरिकी सरकार अपने राजकोष से लगभग साढ़े चार अरब डालर से अधिक सब्सिडी बांटती है। जिसके फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कपास का मूल्य ४५% तक गिर जाता है , नतीजतन विदर्भ के किसानों को आत्महत्या करनी पड़ती है । भारत के लिए तात्कालिक कदम यही होना चाहिए की आने वाले विश्व व्यापार संगठन के सम्मलेन में विकास संबंधी समझौते के अंतिम रूप लेने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की ओ ई सी डी के देश अपने यहाँ दी जाने वाली सब्सिडी को पूरी तरह ख़तम करें ।
यदि हमारे राजनेता इतना भी करने में कामयाब नही हो पाते है तो इसे किसानों का और देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा , और हमारे पास केवल राजनैतिक आरोप - प्रत्यारोप के अलावा और कुछ भी नहीं बचेगा । फिर हमारे पास केवल यही कहने को बचेगा -

" सख्त मिटटी को नरम बनाते -बनाते ,
जिन हाथों में आज पड़ गई है गाँठ
हवा में हिल रहे है उनके हाथ
गेहूं की बालियों की तरह । "

छात्रसंघ चुनाव पर लगी रोक |

लेखक युवा पत्रकार हैं,वर्तमान समय में  दैनिक हिदी समाचार पत्र "लोकमत" औरंगाबाद में कार्यरत हैं,इनके विचार www.aakrosh4media.blogspot.com पर  पढ़े  जा सकते  हैं-
छात्रसंघ चुनाव पर लगी रोक


हाईकोर्ट ने छात्रसंघ चुनाव एवं उसकी प्रक्रिया शुरू करने पर रोक लगा cदी और सुनवाई 17 अगस्त तक टालते हुए राज्य सरकार एवं प्रमुख उच्च शिक्षा सचिव से जवाब देने को कहा है। न्यायाधीश महेशचन्द्र शर्मा ने राज। विवि के चार छात्रों की याचिकाओं पर गुरूवार को यह अंतरिम आदेश दिया। याचिकाओं में छात्रसंघ चुनाव में उम्मीदवारों की पात्रता से सम्बन्घित चार अलग-अलग मुद्दे उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं ने छात्रसंघ चुनाव के मामले में हाईकोर्ट की जोधपुर स्थित प्रधानपीठ के दो अगस्त के उस आदेश का हवाला दिया। जिसमें स्नातकोत्तर में निर्घारित आयु पार छात्र को चुनाव लडने की अनुमति दी है। लेकिन विश्वविद्यालय ने कहा कि प्रधान पीठ का उक्त आदेश केरल विश्वविद्यालय के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप नहीं है। न्यायालय ने विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद सुनवाई 17 अगस्त तक टालते हुए छात्रसंघ चुनाव की प्रक्रिया एवं चुनावों पर रोक लगा दी। असर विवि तक ही दोनो पक्षों के अघिवक्ताओं के अनुसार मामला राजस्थान विश्वविद्यालय से सम्बन्घित होने से रोक भी इसी विश्वविद्यालय तक सडबल बैंच में जाना चाहिएविश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप ही किए जा रहे हैं। मैंने इस संदर्भ में कुलपति को सलाह दी है कि हाईकोर्ट के स्थगन आदेश के खिलाफ हमें तुरंत ही डबल बैंच में जाना चाहिए। प्रो.रमेश दाधीच, मुख्य चुनाव अघिकारी, राजस्थान विवि छात्रासंघ चुनाव

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

हरिशंकर परसाई का महत्वपूर्ण योगदान

हिंदी साहित्य में व्यंग्य को केंद्र में लाने और व्यापकता प्रदान करने में हरिशंकर परसाई का महत्वपूर्ण योगदान है। उनकी पुण्यतिथि 11 अगस्त पर श्रद्धांजलि स्वरूप उनके दो व्यंग्य- मुण्डन और प्रेमियों की वापसी

सुब्रत राय सहारा की मार्मिक अपील पर उन्हे एक खुला खत...jucs india (हरेराम मिश्र)

प्रिय सुब्रत राय साहब, सप्रेम नमस्कार।
आपके द्वारा समाचार पत्रों मे कामन वेल्थ गेम 2010 के लिए आम जनता के नाम की गयी मार्मिक अपील हमने पढी है। आपकी यह मार्मिक अपील उस समय समाचार पत्रों मे प्रकाशित हुई है जब चारों ओर से कामन वेल्थ गेम आयोजन समिति पर भ्र्रष्टाचार और बेइमानी के सीधे आरोप लगे है। आपको और हमको यह नही भूलना चाहिए कि भ्रष्टाचार के आरेाप प्रथम दष्ृटया ही ऐसे है कि जिसे कोई नजरंदाज नही कर सकता। कृपया ध्यान दें कामन वेल्थ गेम के नाम पर आमआदमी के पैसे की बंदरबांट पिछले 2006 से ही आरंभ हो गयी थी। यह बात अलग है कि उस समय कई सामाजिक कार्यकर्ताओं की बात नजरंदाज करते हुए कलमाडी एण्ड कंपनी ने लगातार मनमानी की। आपने अपनी मार्मिक अपील में लिखा है िक इस खेल का आयोजन इस देश के लिए गर्व की बात है ं। आप यह बताएं कि इस खेल आयोजन से भारत की कौन सी समस्या हल होती देख रहे है ं। जिस समय आम जनता भारी मंहगाई मे पिस रही हो और जिस 76 प्रतिशत जनता के लिए दोनो जून रोटी का भरोसा तक ना हो, वह देस पर और उसके इस आयोजन पर कैसे गर्व कर सकती है ।
अपनी मार्मिक अपील मे आपने यह लिखा है कि हजारों आयोजक और 23000 स्वयं सेवी चौतरफा आलोचना से गहरी निराशा मे जा रहे है। आप यह बताएं कि आम आदमी का पैसा मनमानी खर्च करके वेा हिसाब देने की जिम्मेदारियों से क्यो बच रहे है । अगर आयोजन समिति इतनी ही पाक साफ है तो वह यह सिद्ध कयों नही करती कि कही किसी किस्म का कोई घपला नही हुआ है। इसमे निराशा मे जाने जैसा क्या है । अगर वो पाक साफ है तो आम जनता को खर्च का पूरा हिसाब तत्काल दें दे ।ं
आपकी अपील मे लिखा है कि अगर किसी तरह की अनियमितता हुई हो तो इस खेल के आयोजन के बाद हर कार्यवाही अवश्य हो । क्या आपको अभी भी अनियमितता होने के बारे मे संदेह है । जबकि जांच एजेंसियां इस आयोजन मे प्रथम दृष्टया ही भारी अनियमितता मान चुकी है । दरअसल कई सामान्य बाते ही आयोजन समिति को गंभीर सवालों के कटघरे मे खडा कर देती है । जिस समय कलमाडी चौतरफा से घिर गये है और जिस तरह से आप की मार्मिक अपील कलमाडी की काली करतूतों के साथ खडी है, उसे हम बखूबी समझ सकते है ।
दर असल आपकी इस मार्मिक अपील मे भी आपकी मुनाफे की गंध छुपी है आप भी इस खेल के खेल मे भागीदार होकर प्रसारण अधिकार लेकर मलाई खाना चाह रहे है। और यह काम केवल हां हुजूरी से ही हो सकता है। क्योंकि अभी तक सारे टेंडर केवल उसके परिचितों को ही मिले थे । आपको लगता है िक इस तरह उसके साथ खडे होने से आप भी कुछ लाभ कमा सकते है ।
जहां तक खेल होने के बाद कार्यवाही की बात है, ठीक नही है तब तक मामला ही ठंडा हो जाएगा। कार्यवाही तत्काल हो । उन्हे आयोजन समिति से बाहर कर के तत्काल उन पर एफआइआर दर्ज हो । जहां तक मीडिया की अति का सवाल है यह एक अलग और गंभीर विचार का विषय है । और मीडिया ने इस खेल को उजागर कर कुछ भी गलत नही किया है
।उसने तो वही कहा है जो उसने देखा है । और इसमे बदनामी जैसा क्या है ।
मै आपको एक सलाह दूंगा अगर आप भी किसी किस्म का टेडर चाहते है तो आप भी कलमाडी साहब को घूस दीजिए ब्यक्तिगत रिस्ते कायम कीजिए, लेकिन देश को बरगलाने की घटिया कोशिश न कीजिए क्योंकि गुलामी के इस प्रतीक का आयोजन देस को विश्वास मे लेकर नही किया जा रहा है ।



आपका

हरेराम मिश्र

identity

Second, unlike earlier, there is an intellectual push to the current demand for Gorkhaland. One of the impetus for a separate state of Gorkhas would be securing of their identity as Indians. Indian Gorkhas have long been misidentified as being citizens of Nepal and they feel that a state of their own will root them to India. The Gorkhaland of their imagination, therefore, does not only secure the economic development of the Darjeeling area but also the political identity of the over one crore Indian Gorkhas across the country.
• So are the Indian Gorkhas migrants from Nepal or where have they come from?
Indian Gorkhas have been residents of India for centuries. Under the Treaty of Sugauli in 1815, Nepal ceded an area of 18,000 sq km to the British. This territory constitutes what are today parts of Himachal Pradesh, Uttarakhand, Sikkim and Darjeeling district. A treaty with Bhutan in 1860 brought the current Dooars areas in Bengal and Assam into British possession. The Gorkha population resident in these territories became part of British India then. The Gorkhas participated in the Freedom Movement with Gandhiji and also joined the Azad Hind Fauj in big numbers. The tune of India’s national anthem Jana Gana Mana was taken from an original composition by Captain Ram Singh Thakur, a Gorkha in the INA. Two Gorkhas, Damber Singh Gurung and Ari Bahadur Gurung were members of the Constituent Assembly. Ari Bahadur Gurung was a member of the drafting committee. He is a signatory to the first Constitution of India.
Joel Rai

बुधवार, 11 अगस्त 2010

Give peace a chance: An all-party meeting of J&K political parties convened by the Prime Minister Dr. Manmohan Singh on the request of chief minister Omar Abdullah here ended inconclusively, with an assurance from the Central government that all suggestions would be examined and put on board while taking any decision to break the unrest in Kashmir Valley. It was also learnt that Dr. Singh will separately consult the main opposition Peoples Democratic Party (PDP). Union Minister and National Conference president Dr. Farooq Abdullah pleaded for restoration of autonomy, but he left the door open for an alternative proposal acceptable to all groups. Almost all the parties baring Bharatiya Janata Party (BJP) called for immediate resumption of peace process by initiating a dialogue internally with separatists and externally with Pakistan to assuage frustration amongst youth. Chief Minister Omar Abdulah, who left to his father to articulate his party’s stand had a tiff with Pathers’ Party chief Prof. Bhim Sigh, when the latter raised the issue of ‘miss-governance’ and virtual non-existent communication between the people and government. Omar intervened and said he has been reaching out to people, referring to his recent visit to Soura hospital. Bhim Singh and the BSP representative Tulsi Ram Langeh demanded removal of Abdullah government and imposition of Governor’s rule. Communsit Party of India –Maxist leader Mohamamd Yusuf Tarigami and PCC chief Prof. Saifuddin Soz called for sending an all-party parliamentary delegation to Kashmir to assess ground situation. In his concluding remarks, Prime Minister told the leaders that his government was sensitive to problems and crises in Kashmir. He said the presence of his senior cabinet colleagues in the meeting indicates the seriousness and the exercise was also aimed to apprise them the gravity of situation. Almost entire Cabinet Committee on Security (CCS) was present at the four-hour long meeting, held at the official Race Course residence of Prime Minister.Earlier, in his inaugural remarks, Dr Manmohan Singh also hinted at amendments in the Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) that is seen as draconian by the Kashmiris and also talked of the dialogue with Pakistan resulting in "a permanent and just settlement of all outstanding issues that protects the honour and self-respect of all sections of the people of the State," but admitted that the complex problem that has defied resolution for 63 years cannot be solved easily or quickly. Sensing desperation of the Kashmiri youths who grew up in 20 years of militancy with no employment opportunities, Prime Minister Manmohan Singh also held out a carrot of jobs in both public and private sectors to stop them from pelting stones on the security forces as the only way to register their anguish."I can feel the pain and understand the anger and frustration that is bringing young people out on to the streets of Kashmir. Many of them have seen nothing but violence and conflict in their lives and have been scarred by suffering, he said.The youths will, however, have to wait for at least three months for any job opportunities as that is the deadline set by the PM for a 6-member expert group headed by former Reserve Bank of India governor and his economic adviser Dr C Rangarajan to formulate a job plan that increases employability in the state. Members of the group are Infosys founder N R Narayana Murthy, Tarun Das, the Chief Mentor of the Confederation of Indian Industry (CII), Syed Shakil Qalander, president of Federation Chamber of Industries Kashmir, economist P Nanda Kumar and an official of the J&K government.Announcing the constitution of the group at a meeting of the leaders of all political parties in the state at his residence, the Prime Minister appealed to the youth "to go back to their schools and colleges and allow classes to resume" and asked parents: "What future is there for Kashmir if your children are not educated?""I am convinced that the only way forward in Jammu and Kashmir is along the path of dialogue and reconciliation. The events in Kashmir over the past few weeks have caused me great pain. I share the grief, the sorrow and the sense of loss of every mother, every father, every family and every child in Kashmir," he said.Dr Manmohan Singh also hinted amendments in the Armed Forces Special Powers Act that is seen as draconian by the Kashmiris and human right activists, saying the J&K police who have to eventually take on the burden of normal law do not require special powers to discharge their duties.Those attending the meeting also saw a hint of withdrawal of the central security forces and Army from the civilian area in his remark that the Centre will accelerate the process of strengthening and expanding the J&K Police so that they can function independently and effectively within the "shortest possible time." He said the state is only now emerging from the shadow of more than two decades of a deadly insurgency, which brought only death and devastation and two lost decades in the history of Jammu & Kashmir’s development. "Our Government, more than any other government in the past, has invested heavily in the peace process in Kashmir. The brave rejection of militancy by the people opened the door for us to pursue an unprecedented and intensive internal and external dialogue on the issues that have bedeviled Jammu and Kashmir for six decades," he underlined. Urging the people to give peace a chance to rebuild the state and its institutions, promote economic activity that creates job opportunities, Dr Manmohan Singh frankly admitted that the key to the problem is a political solution that addresses the alienation and emotional needs of the people. "This can only be achieved through a sustained internal and external dialogue. We are ready for this. We are willing to discuss all issues within the bounds of our democratic processes and framework. But this process can gather momentum and yield results only if there is a prolonged peace," he said.He also extended the Centre's full support to Chief Minister Omar Abdullah making efforts to renew contacts with the people and asked the assembled leaders of various political parties in the state also to reach out the people and reinvigorate peaceful political activities on the ground that are lacking today. "The youth wings of your parties should be activated. In a democracy, leaders have to listen to the voice of the people and gain their trust and confidence," he said."Every possible effort should be made to reach out to the youth in Jammu and Kashmir. We must respond in a sincere and substantive manner to their genuine aspirations for freedom from fear and for freedom to build for themselves a life of dignity, security and well- being," he said while promising the youth that their genuine empowerment will be accorded the highest priority in his government's J&K policy.The Prime Minister also stressed that the local body elections should be held early to increase peoples’ participation in democratic governance and to ensure political empowerment at the grassroot level.

अमर हरिशंकर परसाई जी की पुण्यतिथि पर ......

इस महान व्यंग्य पुरोधा का जन्म १९२४ में जमानी (इटारसी) के पास हुआ,अपने समय से आगे कालजयी सार्थक रचना का प्रयास बहुत ही कम उम्र से ,नौकरी को एक साइड फेंक लिखने को ही पेशा बना लिया,जीवनचर्या जो चलानी थी,जबलपुर से "वसुधा" नाम की साहित्यिक पत्रिका को घाटे के बावजूद निकालते रहे,सिस्टम ने पत्रिका तो नहीं चलने दी लेकिन आप की कलम निरंतर पैनी होकर समाज के सुलझे- अनसुलझे मुद्दों,पूर्वाग्रहों.ढर्रो.कुरीतियों,आडम्बर,आदि पर बराबर चलती रही,सबसे खास नई दुनिया  में "सुनो भाई साधो" में कई स्तम्भ लिखते रहे जो काफी लोकप्रियता को प्राप्त हुआ,साहित्य की परिभाषा के अनुकूल सबका हित चाहते हुए इनकी लेखनी ने जो कुछ दिया है वः दिनों दिन और भी सार्थक होता दिख रहा है,लेकिन परसाई जी शायद ऐसा नहीं चाहते थे,इनका देहवसान तो ज़रूर १० अगस्त  १९९५ में हो गया लेकिन आज भी और आगे भी ये हममे आपमें जिंदा रहेंगे,अमर रहेंगे ,आप चाहते थे बदलाव हो तो अब हम नई पीढ़ी को उनकी कलम को संभालना होगा,और तब तक लिखते रहना पड़ेगा जब सर्व समाज के अनुकूल बदलाव नहीं होता,एक बार फिर हम सभी केव्स टुडे के छात्र आपको शत शत नमन करते हैं.....
प्रमुख रचना - कहानी संग्रह-हँसते हैं रोते हैं,  जैसे उनके दिन फिरे,
 उपन्यास--रानी नागफनी की कहानी,तट की खोज .
निबंध- तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे,वैष्णव की फिसलन पगडंडियों का ज़माना,सदाचार की ताबीज विकलांग श्रद्धा के दौर,बैमानी की परत आदि
इसके अलावा कई निबंध भी आप के द्वारा लिखा गया है...केव्स टुडे के युवा पत्रकारों ज़रूर पढो....  

नक्सलियों तुम दिल्ली आओ --- निर्दोष लोगों को मत मारो........

नक्सलियों तुम दिल्ली क्यों नही आते-----
---तुम जंगलों में घूमते फिरते हो और बेचारे  निर्दोष ग्रामीणों और सी आर पी ऍफ़ और पुलिस के जवानों को मारते रहते हो....
देखो लोकतंत्र में हथियारों के लिए कोई जगह नहीं है....सम्विधान  में इसे सिर्फ पुलिस और सेना जैसी संस्थाओं के जवानों के द्वारा  प्रयोग करने के लिए परमिशन  दिया गया है......इसलिए तुम लोग  मुख्य धारा में आकर संघर्ष करो...चुनाव लड़ो...लोकसभा में जाओ---राज्य सभा में जाओ---अच्छी-अच्छी नीतिया बनाओ-----इस तरह कायरों कि तरह गोली बारी करके बिलों में मत छुपो----वरना किसी न किसी दिन हिंदुस्तान  में कोई  सरदार पटेल प्रधान मंत्री कि कुर्सी पर बैठेगा और तुम्हे बिल में से निकाल कर धुंए में उड़ा देगा-------------
                                -----------एक बात और पूछना चाहता हूँ कि नक्सलीओं क्या तुमने खून खराबा करने कि कसम खा ली है क्या--- अगर हाँ,  तो कसम तोड़ दो ये गलत है-----अगर कसम नही तोड़ोगे तो फिर निर्दोष जनता को और पुलिस के जवानों को मत मारो ---------मारना है तो----दिल्ली आओ----ये नेताओं के भेष में कुछ राक्षस लोक सभा और राज्य सभा  में घुस गये हैं.... कुछ तो विभिन्न राज्यों कि विधान सभाओं में  भी विराजमान हैं-----दिन रात भ्रस्ताचार   करते रहते हैं---- करोडो रूपये निगल चुके हैं और करोडो रूपये ये अब सीबीआई या अन्य जाँच में बर्बाद करेंगे......अभी कुछ महीने पहले मधु कोड़ा कि कहानी तो तुमने देखि थी------जाने कितने कोड़ा अभी लोक सभा और  राज्यसभा में---विधानसभा में मौजूद है....सिर्फ परिवार वाद --  धनबल--जनबल--और बाहुबल के दम पर ----मारो ----मारो--
---मारना है तो इन दरिंदो को मारो----जो जनता का  पैसा डकार रहे हैं और कहते हैं कि हम जन सेवा कर रहे हैं.......मारना तो मै भी इन दरिंदो को चाहता था...क्योंकि मुझे भी पहले कलम से ज्यादा गोली में विश्वाश था....लेकिन अब मै बड़ा हो गया हूँ मुझे लगता है कि कलम में भी ताकत होती है बशर्ते कलम बिकाऊ न हो.........मै तुमसे फिरसे कहता हु कुछ न मिले तो कलम थाम लो...पढो....और अगर अब भी बात नहीं समझ में आ रही है तो ......मारो---दिल्ली में आकर मारो----और भगत सिंह----और चंद्रशेखर आज़ाद कि तरह मरो------राजगुरु---और बिस्मिल्लाह खान कि तरह मरो-----जो भी करो ऐसा करो कि जनता कि भलाई में हो.....कोई तुम्हारी लाश पे न  थूके-----तुम्हारी लाश पर लोगों को नाज़ हो----मै बार बार कहता हू दिल्ली आओ--------------------------------------शहीदों का वो गीत याद करो----कर चले हम फ़िदा जानो तन साथियों
                           अब   तुम्हारे  हवाले  वतन  साथियों-----



कायर मत बनो और हो सके तो कानून अपने हाथ में मत लो...............

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

‘Present phase will prove to be a turning point’Geelani: No differences amongseparatists on Kashmir

‘Present phase will prove to be a turning point’Geelani: No differences amongseparatists on Kashmir out any different among separatists on Kashmir cause, Syed Ali Shah Geelani, chairman Hurriyat Conference today said the ongoing phase will prove to be a turning point in Kashmir movement.he stated that his optimism is based on the unity of the people and the way they are unitedly implementing the ongoing programme.Geelani strongly condemned the continuous arrest of Mirwaiz Umar Farooq, Mohammad Yasin Malik, Mohammad Ashraf Sehrai, Mian Abdul Qayoom, Gen Moosa and all other detainees and demanded their immediate release.The Hurriyat chairman stated that even if he softened his stand all people would stop their support to him also. “I am very hopeful about the Kashmir issue reaching its logical conclusion and that Kashmiris achieving their goal. But the need of the hour is that we remain consistent and do not lose patience,” he said.Asked about him becoming a central figure right now, Geelani said he did not undergone change of stand on Kashmir in the past nor would he do so in future. “I want to make it very clear that even if Geelani changes his stand he too will lose the public support. We are representing the aspirations and blood of people and we should ensure that we stick to our stand,” he said.About unity, Geelani observed that the people are united and following a cause. This is the real proof of unity. He asked why there are several parties in India and why are not they being asked to unite. This is because when there is any issue pertaining to their country’s security their voice automatically becomes one. Likewise today Kashmiri separatists are one and united. “There is no difference among us about the Kashmir cause and this is the symbol of unity. As I said the present movement can prove a turning point in Kashmir cause,” the Hurriyat chairman said.He said the people should strictly follow the protest programme and youth need not violate it besides they should not pay attention to rumours. “Nobody is in touch with me through Track-II and such types of reports are all rumours and those should not be taken notice of,” Geelani said.About Syed Sallah-u-Din, chairman United Jehad Council (UJC), the Hurriyat chairman said he has offered lot of sacrifices for the movement which should not be forgotten. “Whenever a statement comes from him it is surely in the interest of the movement and not against it. I have no contact with Sallah-u-Din sahib since long and I come to know about the perspective after reading his statements,” he said.Geelani said Kashmiris are not afraid of arrests and this type of thinking is not going to help India. He asked the government of India to read the writing on the wall.The Hurriyat chairman asked the people to remain vigilant against the elements with vested interests, who are trying to defame the movement. He in this connection referred to the role of some National Conference workers and Ikhwanis. He urged youth to be courageous, patient and disciplined.About talks with centre that it is his known stand that such talks are futile. “Even Mirwaiz Umar Farooq’s Hurriyat held several rounds of talks but nothing has yielded,” he said.

'नाग मुकुट' कैदियों द्वारा तैयार बाबा वैद्यनाथ धाम में

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक झारखण्ड के देवघर के बाबा वैद्यनाथ धाम में स्थित शिवलिंग पर सजने वाला 'नाग मुकुट' यहां की जेल में तैयार होता है।
कामना लिंग के नाम से विश्वप्रसिद्घ बाबा नागेश्वर के सिर पर श्रृंगार पूजा के समय प्रतिदिन फूलों और बेलपत्र से तैयार किया हुआ 'नाग मुकुट' पहनाया जाता है। यह नाग मुकुट देवघर की जेल में कैदियों द्वारा तैयार किया जाता है। इस पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी किया जा रहा है।
बाबा वैद्यनाथ धाम के पुरोहित पंडित सूर्यकांत परिहस्त ने बताया कि यह पुरानी परंपरा है। कहा जाता है कि वर्षो पहले एक अंग्रेज जेलर था जिसके पुत्र की अचानक तबियत बहुत खराब हो गई। उसकी स्थिति बिगड़ते देख लोगों ने जेलर को बाबा के मंदिर में 'नाग मुकुट' चढ़ाने की सलाह दी। जेलर ने लोगों के कहे अनुसार ऐसा ही किया और उनका पुत्र ठीक हो गया। तभी से यहां यह परंपरा बन गई।
इसके लिए जेल में भी पूरी शुद्घता और स्वच्छता से व्यवस्था की जाती है। जेल के अंदर इस मुकुट को तैयार करने के एक विशेष कक्ष है जिसे लोग 'बाबा कक्ष' कहते हैं। यहां पर एक शिवालय भी है। जेलर चंद्रेश्वर प्रसाद सुमन बताते हैं कि यहां मुकुट बनाने के लिए कैदियों की दिलचस्पी देखते बनती है। इस कारण मुकुट बनाने के लिए कैदियों को समूहों में बांट दिया जाता है।
प्रतिदिन कैदियों को बाहर से फूल और बेलपत्र उपलब्ध करा दिया जाता है। कैदी उपवास रखकर बाबा कक्ष में नाग मुकुट का निर्माण करते हैं और वहां स्थित शिवालय में रख पूजा-अर्चना की जाती है। शाम को यह मुकुट जेल से बाहर निकाला जाता है और फिर जेल के बाहर बने शिवालय में मुकुट की पूजा होती है। इसके बाद कोई जेलकर्मी इस नाग मुकुट को कंधे पर उठाकर बम भोले, बम भोले बोलता हुआ इसे बाबा के मंदिर तक पहुंचाता है।
उधर, कैदी भी इस कार्य को कर खुश होते हैं। कैदियों का कहना है कि बाबा की इसी बहाने वह सेवा करते हैं जिससे उन्हें काफी सुकून मिलता है। पंडित परिहस्त बताते हैं कि शिवरात्रि को छोड़कर वर्ष के सभी दिन श्रृंगार पूजा के समय नाग मुकुट सजाया जाता है। शिवरात्रि के दिन भोले बाबा का विवाह होता है इस कारण यह मुकुट बाबा बासुकी नाथ मंदिर भेज दिया जाता है।

सोमवार, 9 अगस्त 2010

कवारो की फोज़ तयार (कुंवारे और कुंवारी) 'मोस्ट एलिजिबल बैचलर्स'

जरा जानिए की संसद के 'मोस्ट एलिजिबल बैचलर्स' का हाल चल क्या हैं ....
ऐसा नहीं है कि सिर्फ क्रिकेट और फिल्मी दुनिया में ही 'मोस्ट एलिजिबल बैचलर्स' (कुंवारे और कुंवारी) हैं। देश की संसद में भी ऐसे युवाओं-युवतियों की कमी नहीं हैं। वर्तमान लोकसभा में लगभग आधे दर्जन से अधिक सांसद ऐसे हैं जिनके सिर पर या तो अभी तक सेहरा नहीं बंधा है या जिनके हाथ अभी तक पीले नहीं हुए हैं। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सचिव वरुण गांधी से लेकर केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री अगाथा संगमा भी इनमें शुमार हैं।
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने हाल ही में शादी रचाकर अपने चाहने वाली हजारों युवतियों का दिल तोड़ा। गाहे बगाहे बॉलीवुड के सर्वाधिक चर्चित कुंवारे सलमान खान की शादी की चर्चा भी सुर्खियां बटोरती रहती हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर यूं तो तलाकशुदा हैं लेकिन जल्द ही वह अपनी महिला मित्र सुनंदा पुष्कर से विवाह रचाने वाले हैं। उनकी शादी की चर्चा सुर्खियों में है।
हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और वहां की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की बेटी चेल्सी की शादी भी खूब चर्चा में रही। कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कैबिनेट के सदस्य व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने शादी की है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे गनी खान चौधरी के खानदान से ताल्लुक रखने वाली मौसम नूर ने सांसद बनने के चंद महीनों के भीतर ही अपने बचपन के दोस्त मिर्जा काएश बेग से निकाह कर लिया था।
इन शादियों व शादी की चर्चाओं के बीच यह चर्चा भी इन दिनों है कि राहुल और वरुण जैसे संसद के चर्चित कुवारों के घर कब शाहनाई बजेगी या कुवांरियों के हाथ कब पीले होंगे। राहुल गांधी देश के युवा नेताओं की फौज में मोस्ट एलिजिबल बैचलर हैं, इसमें कोई शक नहीं। उनके बारे में लंबे समय से यह चर्चा आम है कि वह अपनी एक स्पेनिश गर्लफ्रेंड से शादी करना चाहते हैं। बहरहाल, देश को उनकी शादी का इंतजार है।
हाल ही में वरुण के बारे में ऐसी खबरें आई कि वह जल्द ही विवाह करने वाले हैं और उनकी मां मेनका गांधी ने उनके लिए एक लड़की भी ढूंढ ली है। राहुल और वरुण के अलावा सुवेंदु अधिकारी, प्रदीप मांझी, मीनाक्षी नटराजन, अगाथा संगमा, हमदुल्लाह सईद और योगी आदित्यनाथ ऐसे युवा सांसद हैं जिनके सिर पर अभी तक सेहरा नहीं बंधा या जिनके हाथ अभी तक पीले नहीं हुए हैं।
आम युवाओं की तरह ये सांसद भी अपनी शादी के बारे में बात करने से हिचकिचाते हैं। लक्षद्वीप से कांग्रेस के सांसद हमदुल्लाह सईद ने बातचीत में कहा कि अभी तक शादी के बारे में कुछ सोचा नहीं है, जब भी होगी तो आप लोगों को जरूर निमंत्रण दूंगा। सईद वर्तमान लोकसभा के सबसे युवा सदस्य हैं। वह महज 28 साल के हैं।
पश्चिम बंगाल के तामलुक से तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुवेंदु अधिकारी से जब उनकी शादी की योजना के बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि मेरी तो शादी हो गई है। मैंने जनता से शादी कर ली है। उल्लेखनीय है कि तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी अभी तक शादी नहीं की है। उन्होंने तो शादी न करने की घोषणा ही कर दी है।
शादी की योजना के बारे में इसी प्रकार अन्य कुवांरे/कुंवारी सांसदों से भी बात की गई लेकिन अधिकांश ने इसे बेहद निजी मामला बताते हुए कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।

not a london brize just a yamuna brize....


नलिन नयन प्रकाश द्वारा -
टिप्स-  बेहतरीन नज़र और सही समय के इंतज़ार से हम भी भारत को रंग - बिरंगा देख सकते है...
यह तस्वीर भी नलिन नयन प्रकाश द्वारा कैमरे में बंद  की गई है,तस्वीर देखिये और लगा लीजिये इनकी फोटोग्राफी का अन्दाज़ा....
इनकी और तस्वीरे जो इन्होने कैमरे में कैद की है उसे आप http://nalinimagetalk.blogspot.com/ पर  देख  सकते हैं....

रविवार, 8 अगस्त 2010

आजाद की हत्या और सूत्रों की ‘राजनीति’-(jucs द्वारा जारी )

नोट- कुछ मानवीय और तकनीकी भूलों के चलते हम दैनिक जागरण में 13 जुलाई को छपी नीलू रंजन की खबर पर टिप्पड़ी नहीं कर पाए थे। जिसके लिए जेयूसीएस क्षमा प्रार्थी है। लेकिन आजाद की फर्जी मुठभेड़ के बाद केंद्र सरकार जिस तरह माओवादियों के खिलाफ अपने मिथ्या अभियान में लगी है उसे देखते हुए हमें लगता है कि नीलू रंजन की इस प्लांटेड स्टोरी की सच्चाई पर पत्रकारीय और वैचारिक दृष्टि कोण से बहस होनी चाहिए।


किसी आमफहम हो चुके तथ्य पर सफेद झूठ बोलने और गुमराह करने का आरोप लगने के भय से सरकारें अपनी बात खुद न कह कर किस तरह ‘अपने’ पत्रकारों के मुह से अपनी बात रखवाती है, 13 जुलाई 2010 के दैनिक जागरण में छपी नीलू रंजन की खबर ‘नक्सलियों ने ही कराया आजाद का एंकाउंटर’ इसका ताजा उदाहरण है।
खबर में इस आमफहम हो चुके तथ्य कि आजाद की हत्या कर सरकार खास कर गृहमंत्रालय ने माओवादियों से बात-चीत के किसी भी उम्मीद को खत्म कर दिया है के विपरीत बताया गया है कि ‘आजाद का एंकाउंटर खुद बात-चीत के विरोधी नक्सलियों ने पुलिस को सूचना देकर करवाई है।’ नीलू जी ने इस दावे को सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े कुछ अधिकारियों के हवाले से कही है। नीलू आगे लिखते हैं ‘आजाद को दरअसल बात-चीत की सरकार की पेशकश स्वीकार करने की कीमत चुकानी पडी है। उसने न सिर्फ चिदम्बरम की बात-चीत की पेशकश को स्वीकार किया था, बल्कि केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त वार्ताकार स्वामी अग्निवेश से मुलाकात कर बात-चीत की शर्त का पत्र भी लिया था।
खबर की इन पंक्तियों से कुछ बातें स्पष्ट हैं। अव्वल तो यह कि आजाद की हत्या जिनके साथ फ्रीलांस पत्रकार हेमचंद पाण्डे को भी माओवादी बताकर मार डाला गया, पर उठने वाले सवालों का जवाब सरकार नहीं दे पा रही है और अब सवालों को दूसरी दिशा में मोडना चाहती है। लेकिन चूंकि इस प्रयास में उसे पकड में आ जाने वाले झूठे तर्क देने होंगे जिससे उसकी और किरकिरी होगी इसलिए वो ये सब नीलू और उन जैसे अन्य ‘राजधर्म’ निभाने वाले पत्रकारों से करवा रही है। जिसमें तथ्य और तर्क पिछले 10-15 सालों से सरकारों को ऐसे ही ‘मुश्किल’ सवालों से उबारने के लिए पैदा किए गए कथित रक्षा विशेशज्ञ मुहैया करा रहे हैं। नीलू इन्हीं लोगों के तर्कों के बुनियाद पर एक जाहिर हो चुकी सच्चाई को छुपाने के लिए सरकारी दिवार खडी करना चाहते हैं।
दूसरी बात जो खबर स्थापित करना चाहती है वो ये कि माओवादी अनुशासित और संगठित संगठन नहीं हैं बल्कि डकैतों के गिरोह की तरह हैं जो अपने किसी बडे नेता को सिर्फ इसलिए मार देते हैं कि वो सरकार से बात-चीत करना चाहता है। दूसरे अर्थों में खबर सरकार के इस पुराने धिसे-पिटे तर्क को स्थापित करना चाहती है कि सरकार तो बात-चीत के लिए तैयार है, माओवादी ही ऐसे किसी प्रयास को नहीं सफल होने देना चाहते। यहां तक कि सरकार द्वारा मध्यस्थता के लिए ‘नियुक्त’ स्वामी अग्निवेश और अपने ही एक बडे नेता के इस दिशा में प्रयास को भी नाकाम कर रहे हैं।
यहां ध्यान देने वाली बात है कि नीलू ने स्वामी अग्निवेश को जो कुछ अन्य लोगों के साथ माओवादियों और सरकार के बीच बात-चीत का रास्ता निकालने की लम्बे समय से स्वतंत्र प्रयास में थे को सरकार द्वारा ‘नियुक्त’ लिखा है। जबकि अग्निवेश ऐसे किसी ‘नियुक्ति’ से इनकार किया है। उनके अनुसार सरकार सिर्फ उनसे सम्पर्क में थी। जिस पर बाद में सरकार की तरफ से असहयोगी रवैया अपनाया जाने लगा और दिल्ली में उनके द्वारा इस प्रयास के बाबत प्रेस कांफ्रेंस की योजना को अंतिम समय में टलवा दिया गया। दि हिंदु, इण्डियन एक्सप्रेस और जनसत्ता में छपे खबरों के मुताबिक अग्निवेश यह प्रेस कांफ्रेंस आजाद के कथित एंकाउंटर में मारे जाने से दो दिन पहले प्रस्तावित था। पत्रकार हेमचंद्र पाण्डे जिन्हें आजाद के साथ ही नकसली बताकर मारा गया का अपने कार्यालय के प्रांगण में आयोजित श्रद्धांजली कार्यक्रम में अग्निवेश ने सरकार पर खुलेआम आरोप लगाया कि आजाद की हत्या से सरकार ने अपनी फास्सिट मंशा जाहिर कर दी है कि वो किसी भी कीमत पर माओवादियों से वार्ता नहीं करना चाहती और इस प्रयास में लगे आजाद जैसे लोगों को वो किस तरह ठंडे दिमाग से मारती है।
जाहिर है, सरकार एक स्वतंत्र और इमानदार प्रयास करने वाले व्यक्ति को अपने द्वारा ‘नियुक्त’ बताकर माओवादियों से बात-चीत करने मंे अपनी तरफ से जानबूझ कर की गयी शरारत को ढकना चाहती है और इस इमानदार प्रयास को अपना श्रेय देना चाहती है। जिसके लिये नीलू ने आजाद और हेमचंद्र पाण्डे की हत्या के ठीक बाद अग्निवेश द्वार जारी बयान जिसमें उन्होंने इस घटना को माओवादियों और सरकार के बीच बात-चीत के किसी भी सम्भावना को खत्म करने वाला बताया था, को उसके वास्तविक संदर्भों से काट कर अपनी स्टोरी के अंत में ‘पेस्ट’ कर दिया है। वे लिखते हैं ‘कट्टर नक्सली नेताओं ने आजाद को रास्ते से हटाने का फैसला किया और आंध्र प्रदेश पुलिस को आजाद की सूचना दे दी और वह पलिस का शिकार बन गया। स्वामी अग्निवेश का कहना है कि आजाद की मौत के साथ ही नक्सलियों से बात-चीत की तमाम सम्भावनाएं भी खत्म हो गयी हैं’। यानि, जो बयान अग्निवेश ने सरकार को निशाना बनाते हुए दिया था उसे नीलू ने अपनी कलाकारी से सरकार के पक्ष में ‘पेन्ट’ कर दिया।
इस खबर में अपने नाम से दिए गए बयान पर जब अग्निवेश से पूछा गया तो उन्होंने इसे तोडा-मरोडा और प्लान्टेड बताया।
बहरहाल, नीलू की कलाकारी का एक और नमूना देखें। वे लिखते हैं ‘सूत्रों' की मानें तो आजाद बातचीत की पेशकश से स्वामी अग्निवेश का पत्र लेकर जा रहा था, ताकि पोलित ब्यूरो में इस पर अंतिम फैसला लिया जा सके। यह माना जा रहा था कि आजाद नक्सलियों के र्स्वोच्च नेता गणपति से बातचीत के लिए राजी कर लेगा’। गौरतलब है कि आजाद द्वारा शांतिवार्ता हेतु पत्र लेकर पोलिट ब्यूरो के बीच बहस के लिए जाने और वहां गणपति से इस मद्दे पर बात करने की योजना वाला बयान, आजाद के वारगंल के जंगलों में कथित एंकाउंटर में मारे जाने के पुलिसिया दावे के बाद वरवर राव और किशन जी की तरफ से आया था। जिसमें उन्होंने पुलिस पर आजाद के हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हुए कहा था कि आजाद और हेमचंद्र को पुलिस ने नागपुर के पास पकडा था। जहां से उन्हें इस मुद्दे पर मीटिंग में जाना था। वरवर राव और किशन जी का यह बयान दैनिक जागरण समेत सभी अखबारों में छपा था। अब सवाल उठता है कि ये बयान हफ्ते भर बाद ही ‘सूत्रों' के हवाले से कैसे और क्यों छापी गयी।

- द्वारा जारी

अवनीश राय, शाह आलम, विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, देवाशीष प्रसून, अरूण उरांव, राजीव यादव, शाहनवाज़ आलम, चन्द्रिका, दिलीप, लक्ष्मण प्रसाद, उत्पल कान्त अनीस, अजय कुमार सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह, शिवदास, अलका सिंह, अंशुमाला सिंह, श्वेता सिंह, नवीन कुमार, प्रबुद्ध गौतम, अर्चना महतो, विवेक मिश्रा, रवि राव, राकेश, तारिक शफीक, मसिहुद्दीन संजारी, दीपक राव, करूणा, आकाश, नाजिया अन्य साथी
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस), नई दिल्ली इकाई द्वारा जारी.

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

TIME SOME TIME SAY OUT

TIME SOME TIME SAY OUT


dear respected which i would like to put in your mind that's every important but nobody follow it and i hope that am never going to wrong within my life around. it is a great amazing that makes us laugh against another view . two days ago mr kalmadi said '' nothing wrong done by me. i consider myself lucky because whenever i think to make any decision about any topic then first of all called my core member but right now my dearest one blamed on me ..........what you know very well there is no need of narration making as far as am making out..... ''. for your information kalmadi is not only a m.p from pune maharastra, he has also a authorized person by central government for RASTRAMANDAL kHEL. I have a idiom ,i was learned in class five or six am not exactly says .but sorry soulfully , i saw any where ''time some time say out'' mr kalmadi is a person who dedicated themselves for growing congress root from long periodical way in ,he had been no destiny no prediction but something is extra that congress loved him although why hutted by lead and saying scared always avoid the true zone.

While the delhi government and the commonwealth game 2010 organizing committee have been dismissing the central vigilance commissions reports of alleged irregularities in 16 cwg projects, the cvc is preparing to hand over the reports of central bureau of investigation for further investigation. However the exercise will be carried out after the game . highly placed sources in cvc said the commission will submit the details to the cbi for further investigation by the first week of November .cvc is also in the process of checking more has been compromised or been resorted to while completing the projects. cvc officials have found financial irregularities and other modern of corruption in at list 16 case pertaining to the cwg. the commission added that according to their findings,.........sorry swim deeply yourselves and your decision format what should need be about all ?

By prakash pandey a journalist

सूर्य द्वारा संगम तट को छूने की एक कोशिश....संगम सनसेट इन इलाहबाद

  यह तस्वीर नलिन नयन प्रकाश द्वारा कैमरे में कैद की गई है,जो एक उभरते हुए प्रोफसनल कैमरामैंन और स्टिल फोटोग्राफी के महारथी है इनकी और तस्वीरे जो इन्होने कैमरे में कैद की है उसे आप http://nalinimagetalk.blogspot.com/ पर  देख  सकते हैंऔर इसी तरह इनकी तस्वीरे cavs today पर  आती  रहेंगी ...

"शिव" को मिले "फ्री हैण्ड" के बाद सारे सूरमा धराशायी.....

मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की भाजपा में वापसी को लेकर उठे तूफान और मध्य प्रदेश के दागी मंत्रियो के मसले पर गरमाई आग को शिवराज सिंह चौहान ने एक झटके में शांत कर दिया है॥ वे सारे मंत्री और नेता शिवराज के बयानों के बाद अपनी मांदो में दुबक गए है... इस घटनाक्रम के बाद एक बार फिर ये साफ़ हो गया है शिवराज की दिल्ली के दरबार में पकड़ कितनी मजबूत है....?
उमा भारती की भाजपा में वापसी के बदल शिवराज के बयानों के बाद छटगए है .... उमा की पार्टी में वापसी पर प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की राय को महत्त्व दिएजाने के आलाकमान के ब्यान के बाद ये बात भी साफ़ हो गयी है कि बिना शिव की हरी झंडी मिले बिना उमा का अभी पार्टी में लौटना मुश्किल है... इधर मंत्रिमंडल से निष्कासित किये गए स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्राजो शिवराज सरकारको अस्थिर करने में जुटे थे उन्हें भी इस कार्य में असफलता हाथ लगी है....
कुछ दिन पहले अनूप मिश्रा की स्वास्थ्य मंत्री के पद से छुट्टी के बाद मध्य प्रदेश भाजपा मेंकोहराम मचा हुआ है... पार्टी के कई आला नेताओ से इस प्रकरण के बाद मेरी खुद बात भी हुई ... सबका कहना था कि अनूप मंत्रिमंडल से हटने के बाद शिवराज के खिलाफ अपना मोर्चा खोल सकते है.... जिनमे प्रदेश के मंत्रिमंडल के नम्बर २ माने जाने वाले एक कद्दावर नेता के साथ शिवराज की दागी "टीम" का लगभग पूरा कुनबा शामिल था लेकिन शिवराज ने शिवपुरी में एक सभा में भू माफियो को ललकार कर अपने सटीक तीर से उनके विरोधियो को चारो खाने चित्त कर दिया... शिवराज ने शिवपुरी में प्रदेश के भीतर भू माफिया उनको गद्दी से हटाने की साजिश रच रहे है ये बयान देकर अप्रत्यक्ष रूप से उमा से निकटता पाए एक कद्दावर नेता को निशाने पर ला गया है.... मुख्यमंत्री द्वारा ये बयान दागी मंत्रियो से ध्यान हटाने की मुहीम का एक हिस्सा था जिसमे शिवराज ने एक बार फिर ये दिखया दिया भाजपा में मोदी के बाद क्यों अब उनका गुणगान किया जाने लगा है.... इन बयानों के बाद उमा भारती की पार्टी में वापसी की सम्भावनाये तो फिलहाल समाप्त ही हो गयी है... उनकी वापसी की अटकले लम्बे समय से भाजपा में चल रही है॥
दरअसल , जसवंत की पार्टी में वापसी के बाद उमा की भाजपा में वापसी को बल मिलने लगा था... लेकिन शिव, प्रभात और सुषमा की "तिकड़ी" उमा की वापसी के पक्ष में कतई नही थी... लेकिन उमा की पिछले कुछ समय से आडवानी के साथ बड़ी निकटता ने पार्टी के एक बड़े तबके को उनके पक्ष में लामबंद करना शुरू कर दिया था जिनमे प्रदेश की राजनीती से जुड़े कैलाश विजयवर्गीय से लेकर सुमित्रा महाजन तो बाबूलाल गौर से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी तक शामिल थे... इसके बाद एक बैठक में उमा के मसले पर पार्टी के नेताओ में काफी नोक झोक भी हुई जिसमे बाबूलाल गौर ने इस्तीफे की पेशकश कर डाली... रिपोर्टिंग के दौरान मेरी आँखे भी इसकी गवाह बनी थी जिसके बाद चौहत्तर बंगले के आवास में कई नेताओ की आवाजाही शुरू हो गयी... डेमेज कंट्रोल के तहत शिवराज को आलाकमान ने तुरंत दिल्ली बुला लिया...और उमा के मसले पर उनकी राय जाननी चाही जहाँ पर शिवराज ने साफ़ लफ्जो में कह डाला अगर उमा की पार्टी में वापसी हो गयी तो वह मध्य प्रदेश का मोह कैसे छोड़ पाएंगी?
भूमाफिया शिवराज को हटाना चाहते है बयान दिए जाने के बाद शिवराज को हटाने की मुहीम में लगे नेताओ की दाल नही गल रही है....अब आलाकमान द्वारा शिवराज को "फ्री हैण्ड" दिए जाने के बाद भाजपा के मंत्रियो की प्रदेश में मुसीबत बद गयी है....क्युकि मुख्यमत्री ने सभी को अपने अधिकारचेत्रो में रहने की नसीहते दे डाली है....इन बयानों के बाद सूबे में उमा की वापसी की पैरवी करने वालो के स्वर धीमे हो गए है....ऐसे में अब पार्टी में उमा भारती की वापसी की दूर दूर तक कोई सम्भावनाये नही दिखाई देती...............

बुधवार, 4 अगस्त 2010

मेरा गोरखपुर शहर.........

योगी आदित्यनाथ 

मनोज तिवारी
विश्व प्रसिद्द  गोरखनाथ मंदिर
गोरखपुर विश्वविद्यालय
 
जहाँ  बाबा राघव   मेडिकल कॉलेज    है
जहाँ      दीनदयाल    विश्वविद्यालय    है
जहाँ   गोरख   बाबा     का     मंदिर    है
जहाँ  योगी  सबके  दिलों  के  अंदर    है 
जो    कबीर     प्रेम     कि     धरती     है 
जहाँ        बुढ़िया      माई      रहती    है
जहाँ      जनता    बाबा   कि   पुजारी है
जहाँ  से   हारा    मनोज     तिवारी    है 
जहाँ    योगी    बाबा     का     राज़    है
जिन  पर  सदा  ही  मुझको   नाज़   है   
जहाँ हिंदुत्व और विकास  की लहर  है 
वहीँ      मेरा     गोरखपुर      शहर    है

चित्र क्रमश-
१- योगी आदित्यनाथ
2- manoj tiwari
3- गोरखनाथ मंदिर
4-गोरखपुर विश्वविद्यालय
5-गोरखपुर रेलवे स्टेशन
6-कबीरदास ( मगहर )
7-गीता प्रेस कि पुस्तक
प्रस्तुतकर्ता-
आदित्य कुमार मिश्रा
राम जानकी नगर गोरखपुर







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मंगलवार, 3 अगस्त 2010

जुगाड़ से बड़ी कोई प्रतिभा नही होती..........

जिन्दगी ने ढाहें है ढेरों सितम -
अनिल धीरू भाई अम्बानी  के चौकीदार कि कसम..............................
                                                                              जी हाँ ऊपर जो हेड लाइन आपने  पढ़ा सैधांतिक रूप से वो गलत है लेकिन मीडिया में आकर मैंने देखा कि वो एक अटल सत्य है....माखनलाल विश्वविद्यालय में  HI    देख लिया था कि  जुगाड़ क्या चीज़ है......खैर जुगाड़ के हम भी धनी आदमी है...लेकिन जुगाड़ से  अपनी क्षमता से बहुत ज्यादा पाने कि कोसिस  नही करनी क्योंकि जुगाड़ से एकाएक सफलता पाया जा सकता है लेकिन  .सफलता पर टिका नही रहा जा सकता ......मगर भाई भूखो मरने से अच्छा है कि हर आदमी को  थोडा बहुत जुगाड़  रखना ही चाहिए....
                                                 अब तक आपने अमिताभ  साहब और उनके लाडले अभिषेक बच्चन कि तस्वीर भी देख ही ली होगी ......ये भी जुगाड़ का ही नमूना है...भले ही यहाँ बाप-बेटे का रिश्ता  है....लेकिन अगर हमारे आपके माँ -बाप  अमिताभ के  कद के होते तो क्या हम भी आज रिज्यूम लेकर आज तक--इंडिया न्यूज- इंडिया टीवी -यू एन आई --आई बी एन 7 --और तमाम फलाना -ढिमका के चक्कर काटते क्या ...शायद नहीं......अभिषेक को फिल्मो में चांस भी मिला होगा तो अमिताभ कि वजह से ----तमाम फ्लाप फिल्मो के बावजूद लगातार फिल्मे मिलती रही तो अमिताभ कि वजह से ......यहाँ तक कि ऐश्वर्या जैसी हुस्न कि मल्लिका भी मिली तो उसमे भी अमिताभ का कद बहुत माइने रखता है........... 
अब आपके सामने मुल्ला मुलायम सिंह और उनके साहब जादे अखिलेश  यादव की तस्वीर भी मौजूद है......अगर मुलायम सिंह इतने ऊँचे कद के न होते ( पैसे और सोहरत की बात कर रहा हूँ सम्मान की नही) तो अखिलेश यादव के वश की बात तकी की एक साथ २-२ लोकसभा सीटें जित जातें...शायद कभी नही.......कुल मिलाकर.....बाप--बेटे का रिश्ता ही सही मगर अखिलेश आज जो कुछ भी हैं जुगाड़ पे ही हैं........अब बात हो जाये मीडिया फिल्ड  की ........वैसे मुझे मालूम है की इस ब्लॉग को मदिया के सुरवीर लोग ही पढ़ते हैं........और मीडिया में जुगाड़ का महत्व तो जानते ही होंगे....लेकिन माफ़ कीजियेगा .....मै अपनी व्यथा को अकेले झेल नही पा रहा हूँ.....कुछ आप भी झेल जाइये मेरी दुआ लगेगी......तो बात ये है कि मै भी अपना रेज्यूम लेकर अन्सुमन भाई के साथ मार्च-अप्रैल २०१० में नोएडा में  इंडिया न्यूज --आजाद न्यूज---महुआ चैनल--जैसे कई चंनेलो के चक्कर काट  चूका हु... ....अपने प्रिय सांसद योगी आदित्यनाथ के पास तक भी इसी इरादे से गया था लेकिन उनसे कुछ कहा नही ....सोचा कि किस मुह से ये कहूँ  कि मुझे नौकरी दिलादिजिये....मगर गया तो जुगाड़ के ही इरादे से था....सब बात छोडिये मै आई बी एन में इन्टर्न के समय पूरे एक महिना GEST CO-ORDINATION में बिता दिया कि रोज नेताओं के घर जाने को मिलेगा ...किसी दिन मौका निकाल कर अपनी सेटिंग करा लूँगा ..और मौका  मिला भी था....एक बार नहीं कई बार....बीजेपी प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद --कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी---बीजेपी के चन्दन मित्रा ---एन सी पि के  महासचिव डी पि  त्रिपाठी , अभी गुजरात के पूर्व मंत्री अमित शाह का मुकदमा जो लड़ रहे हैं हैं ....के टी एस  तुलसी ..देवरिया  के पूर्व सांसद मोहन सिंह ....जैसे लोगो के घर गया...उनके कालर में माइक लगाया .....ये सब मै अपनी गुणगान नही कर रहा हूँ...बता रहा हु कि जुगाड़ लगाने के लिए कितना तलवा चाटने जैसा काम करना पड़ता है....हलाकि वो मेरा तात्कालिक काम थालेकिन सब कुछ के बाद कैसे कहा जाए कि साहब मुझे नौकरी दिलादो......मै तो किसी से  नही कह पाया  अपने दोस्तों से भले मजाक में या सही--सही कह दू मगर ऐसे लोगों से मै नही कह पाउँगा.........हाँ राजनीति मेरा प्रिय क्षेत्र है मै उसमे अभी या कभी भी थोडा बहुत समझौता कर सकता हूँ........भोपाल में मैंने एक गुरु ढूंढने का प्रयास किया ....क्योंकि चेला मै बहुत अच्छा हूँ....गुरु मिला नही....मेरा मकान मलिक पप्पू विलास थोडा गुरु टैप का लगा मगर वो भी पार्षद का चुनाव हर गया ...मेरा जुगाड़/गुरु ...वाला काम तमाम हो गया.....फिर माखनलाल में एक पावरफुल और जिम्मेदार गुरु से मेरी मुलाकात हो गई...घुमा फिरा कर मैंने जुगाड़ लगाया.....गुरु ने वैल्यू भी दिया मगर गुरु मुझे पहचान भी गया....बोला राजनीति में जाना चाहते हो तो जाओ अपनी एक अलग पहचान बनाओ....निचे से उपर जाने कि कोसिस करो....सीधे उपर मत जाओ क्योकि वहाँ से गिरोगे तो उठ नही पाओगे.......यहाँ शब्द मेरे हैं भाव गुरुदेव के ही हैं.......तो मै निचे से ऊपर कि रह पर चल पड़ा हूँ.......आगे मेरी मेहनत और  आप लोगो कि दुआदोनों  मिले तो आदित्य मिश्रा लोकसभा का सदस्य बनकर रहेगा...............लेकिन शुरू में मैंने जो बात खी कि जुगाड़ से बड़ी कोई योग्यता नही होती ,,,,,,बहुत ज्यादा गलत नही है.......अगर आप को कोई गुरु न मिला हो तो जुगाड़ से बड़ा कोई गुरु नही है........जुगाड़ से बड़ी कोई प्रतिभा शुरुआत दिलाने के लिए मिडिया  में है ही नही........जुगाड़ से ही केव्स के २०१० बैच के जो दो चार बंदे कही  टिक पाए हैं.....तो हो अगर कोई जुगाड़ तो मत चुको   चौहान......

सोमवार, 2 अगस्त 2010

यायावर



आशुतोष शुक्ला के द्वारा ये कविता लिखी गयी है ....
दृश्य श्रव्य अध्यन केंद्र में प्रसारण पत्रकारिता के तृतीय समेस्टर के छात्र हैं .......
मेरे द्वारा लिखी हुई ये कविता किसी साहित्यिक योगदान के लिए हीं है , अपितु केवल एक भावना ैदा करती हैउस व्यक्ति में जो    माम तरह की बुराइयों में फंस कर अपने मूल लक्ष्य से भटक गया हो और एक आवाज़ चाहता होजो उसे नींद से जगा दे ...........

'
ये कविता एक आवाज़ है'.............

यायावर था मै कभी ,

ठहर गया हूँ अभी अभी

जैसे बाँध के सामने रुक जाती है कोई नदी ,

कुछ क्लेश था मन में बचा अभी

क्यों बंध सीमा में गया अभी

सत्यान्वेषण की राह में बाधाएं आती है कितनी

यह ज्ञात हुआ है मुझे अभी

मुझको दिखता है सत्यांश उस बंधन के कोने से कही

मुझमे दृढ़ता मुझमे भुजबल मुझ में नवयौवन का प्रवाह ,

मै भरा हुआ उत्साह से था उस बंधन ने जाना अभी

यह बंधन कुटिल बेड़ियों का लालच की जिसमे गाँठ पड़ी

जब मैंने वहां प्रहार किया बंधन टूटे गांठे जा उडी

फिर चल पड़ा मै उधर

जिसको लक्ष्य बनाया था कभी

तोड़ के साड़ी सीमओं को निकल पड़ा हूँ अभी अभी

यायावर हूँ मै अभी .....................

यायावर हूँ मै अभी ...............................