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रविवार, 8 अगस्त 2010

आजाद की हत्या और सूत्रों की ‘राजनीति’-(jucs द्वारा जारी )

नोट- कुछ मानवीय और तकनीकी भूलों के चलते हम दैनिक जागरण में 13 जुलाई को छपी नीलू रंजन की खबर पर टिप्पड़ी नहीं कर पाए थे। जिसके लिए जेयूसीएस क्षमा प्रार्थी है। लेकिन आजाद की फर्जी मुठभेड़ के बाद केंद्र सरकार जिस तरह माओवादियों के खिलाफ अपने मिथ्या अभियान में लगी है उसे देखते हुए हमें लगता है कि नीलू रंजन की इस प्लांटेड स्टोरी की सच्चाई पर पत्रकारीय और वैचारिक दृष्टि कोण से बहस होनी चाहिए।


किसी आमफहम हो चुके तथ्य पर सफेद झूठ बोलने और गुमराह करने का आरोप लगने के भय से सरकारें अपनी बात खुद न कह कर किस तरह ‘अपने’ पत्रकारों के मुह से अपनी बात रखवाती है, 13 जुलाई 2010 के दैनिक जागरण में छपी नीलू रंजन की खबर ‘नक्सलियों ने ही कराया आजाद का एंकाउंटर’ इसका ताजा उदाहरण है।
खबर में इस आमफहम हो चुके तथ्य कि आजाद की हत्या कर सरकार खास कर गृहमंत्रालय ने माओवादियों से बात-चीत के किसी भी उम्मीद को खत्म कर दिया है के विपरीत बताया गया है कि ‘आजाद का एंकाउंटर खुद बात-चीत के विरोधी नक्सलियों ने पुलिस को सूचना देकर करवाई है।’ नीलू जी ने इस दावे को सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े कुछ अधिकारियों के हवाले से कही है। नीलू आगे लिखते हैं ‘आजाद को दरअसल बात-चीत की सरकार की पेशकश स्वीकार करने की कीमत चुकानी पडी है। उसने न सिर्फ चिदम्बरम की बात-चीत की पेशकश को स्वीकार किया था, बल्कि केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त वार्ताकार स्वामी अग्निवेश से मुलाकात कर बात-चीत की शर्त का पत्र भी लिया था।
खबर की इन पंक्तियों से कुछ बातें स्पष्ट हैं। अव्वल तो यह कि आजाद की हत्या जिनके साथ फ्रीलांस पत्रकार हेमचंद पाण्डे को भी माओवादी बताकर मार डाला गया, पर उठने वाले सवालों का जवाब सरकार नहीं दे पा रही है और अब सवालों को दूसरी दिशा में मोडना चाहती है। लेकिन चूंकि इस प्रयास में उसे पकड में आ जाने वाले झूठे तर्क देने होंगे जिससे उसकी और किरकिरी होगी इसलिए वो ये सब नीलू और उन जैसे अन्य ‘राजधर्म’ निभाने वाले पत्रकारों से करवा रही है। जिसमें तथ्य और तर्क पिछले 10-15 सालों से सरकारों को ऐसे ही ‘मुश्किल’ सवालों से उबारने के लिए पैदा किए गए कथित रक्षा विशेशज्ञ मुहैया करा रहे हैं। नीलू इन्हीं लोगों के तर्कों के बुनियाद पर एक जाहिर हो चुकी सच्चाई को छुपाने के लिए सरकारी दिवार खडी करना चाहते हैं।
दूसरी बात जो खबर स्थापित करना चाहती है वो ये कि माओवादी अनुशासित और संगठित संगठन नहीं हैं बल्कि डकैतों के गिरोह की तरह हैं जो अपने किसी बडे नेता को सिर्फ इसलिए मार देते हैं कि वो सरकार से बात-चीत करना चाहता है। दूसरे अर्थों में खबर सरकार के इस पुराने धिसे-पिटे तर्क को स्थापित करना चाहती है कि सरकार तो बात-चीत के लिए तैयार है, माओवादी ही ऐसे किसी प्रयास को नहीं सफल होने देना चाहते। यहां तक कि सरकार द्वारा मध्यस्थता के लिए ‘नियुक्त’ स्वामी अग्निवेश और अपने ही एक बडे नेता के इस दिशा में प्रयास को भी नाकाम कर रहे हैं।
यहां ध्यान देने वाली बात है कि नीलू ने स्वामी अग्निवेश को जो कुछ अन्य लोगों के साथ माओवादियों और सरकार के बीच बात-चीत का रास्ता निकालने की लम्बे समय से स्वतंत्र प्रयास में थे को सरकार द्वारा ‘नियुक्त’ लिखा है। जबकि अग्निवेश ऐसे किसी ‘नियुक्ति’ से इनकार किया है। उनके अनुसार सरकार सिर्फ उनसे सम्पर्क में थी। जिस पर बाद में सरकार की तरफ से असहयोगी रवैया अपनाया जाने लगा और दिल्ली में उनके द्वारा इस प्रयास के बाबत प्रेस कांफ्रेंस की योजना को अंतिम समय में टलवा दिया गया। दि हिंदु, इण्डियन एक्सप्रेस और जनसत्ता में छपे खबरों के मुताबिक अग्निवेश यह प्रेस कांफ्रेंस आजाद के कथित एंकाउंटर में मारे जाने से दो दिन पहले प्रस्तावित था। पत्रकार हेमचंद्र पाण्डे जिन्हें आजाद के साथ ही नकसली बताकर मारा गया का अपने कार्यालय के प्रांगण में आयोजित श्रद्धांजली कार्यक्रम में अग्निवेश ने सरकार पर खुलेआम आरोप लगाया कि आजाद की हत्या से सरकार ने अपनी फास्सिट मंशा जाहिर कर दी है कि वो किसी भी कीमत पर माओवादियों से वार्ता नहीं करना चाहती और इस प्रयास में लगे आजाद जैसे लोगों को वो किस तरह ठंडे दिमाग से मारती है।
जाहिर है, सरकार एक स्वतंत्र और इमानदार प्रयास करने वाले व्यक्ति को अपने द्वारा ‘नियुक्त’ बताकर माओवादियों से बात-चीत करने मंे अपनी तरफ से जानबूझ कर की गयी शरारत को ढकना चाहती है और इस इमानदार प्रयास को अपना श्रेय देना चाहती है। जिसके लिये नीलू ने आजाद और हेमचंद्र पाण्डे की हत्या के ठीक बाद अग्निवेश द्वार जारी बयान जिसमें उन्होंने इस घटना को माओवादियों और सरकार के बीच बात-चीत के किसी भी सम्भावना को खत्म करने वाला बताया था, को उसके वास्तविक संदर्भों से काट कर अपनी स्टोरी के अंत में ‘पेस्ट’ कर दिया है। वे लिखते हैं ‘कट्टर नक्सली नेताओं ने आजाद को रास्ते से हटाने का फैसला किया और आंध्र प्रदेश पुलिस को आजाद की सूचना दे दी और वह पलिस का शिकार बन गया। स्वामी अग्निवेश का कहना है कि आजाद की मौत के साथ ही नक्सलियों से बात-चीत की तमाम सम्भावनाएं भी खत्म हो गयी हैं’। यानि, जो बयान अग्निवेश ने सरकार को निशाना बनाते हुए दिया था उसे नीलू ने अपनी कलाकारी से सरकार के पक्ष में ‘पेन्ट’ कर दिया।
इस खबर में अपने नाम से दिए गए बयान पर जब अग्निवेश से पूछा गया तो उन्होंने इसे तोडा-मरोडा और प्लान्टेड बताया।
बहरहाल, नीलू की कलाकारी का एक और नमूना देखें। वे लिखते हैं ‘सूत्रों' की मानें तो आजाद बातचीत की पेशकश से स्वामी अग्निवेश का पत्र लेकर जा रहा था, ताकि पोलित ब्यूरो में इस पर अंतिम फैसला लिया जा सके। यह माना जा रहा था कि आजाद नक्सलियों के र्स्वोच्च नेता गणपति से बातचीत के लिए राजी कर लेगा’। गौरतलब है कि आजाद द्वारा शांतिवार्ता हेतु पत्र लेकर पोलिट ब्यूरो के बीच बहस के लिए जाने और वहां गणपति से इस मद्दे पर बात करने की योजना वाला बयान, आजाद के वारगंल के जंगलों में कथित एंकाउंटर में मारे जाने के पुलिसिया दावे के बाद वरवर राव और किशन जी की तरफ से आया था। जिसमें उन्होंने पुलिस पर आजाद के हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हुए कहा था कि आजाद और हेमचंद्र को पुलिस ने नागपुर के पास पकडा था। जहां से उन्हें इस मुद्दे पर मीटिंग में जाना था। वरवर राव और किशन जी का यह बयान दैनिक जागरण समेत सभी अखबारों में छपा था। अब सवाल उठता है कि ये बयान हफ्ते भर बाद ही ‘सूत्रों' के हवाले से कैसे और क्यों छापी गयी।

- द्वारा जारी

अवनीश राय, शाह आलम, विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, देवाशीष प्रसून, अरूण उरांव, राजीव यादव, शाहनवाज़ आलम, चन्द्रिका, दिलीप, लक्ष्मण प्रसाद, उत्पल कान्त अनीस, अजय कुमार सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह, शिवदास, अलका सिंह, अंशुमाला सिंह, श्वेता सिंह, नवीन कुमार, प्रबुद्ध गौतम, अर्चना महतो, विवेक मिश्रा, रवि राव, राकेश, तारिक शफीक, मसिहुद्दीन संजारी, दीपक राव, करूणा, आकाश, नाजिया अन्य साथी
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस), नई दिल्ली इकाई द्वारा जारी.

2 टिप्‍पणियां:

  1. explaination of the view ofcously would be critisized but explaination of writing can never die so immediat draw your arrow and bow let it been finishsd. i am appriciating you vivek for poisionnative writing. do it, behand we have been trying to follow you since as long as stay in this way of plnet......

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  2. vivek bhai bhut hi achha vishleshn kiya hai. aapki jucs unit avshiye hi safal hoge. mere shubhkamnaye aap logo k sath hai

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