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रविवार, 22 अगस्त 2010

कुछ पाने के लिये कुछ खोना भी पड़ता है

कुछ पाने के लिये कुछ खोना भी पड़ता है

कुछ पाने के लिये कुछ खोना भी पड़ता है। यह कहावत बचपन से सुनता आया हूँ। सिर्फ सुनता ही नही था बल्कि अपनी डींग हांकने के लिये बाकायदा सबके सामने परोसा भी करता था जिससे कि समाज में अपना भी एक बर्चस्व बन सके। लेकिन इसका सही अर्थ आज मै अपनी ज़िंदगी के 25 वर्ष गुजारने के बाद समझ पाया, जब मै अपनी ज़िंदगी में पहलीबार बहन से राखी बधवाने अपने घर नही जा पा रहा हूँ क्योंकि आज मै इस शहर में रोटी की तलास में भटक रहा हूँ। इस बात का सबसे बड़ा ज्ञान तब हुआ जव मैं रक्षाबंधन के दिन सबके हाँथ में राखियाँ देखा। बहन का फो़न आया उसने रूँधे हुये स्वर में कहा धर नहीं आ सके तो मेंरी तरफ से राखी खरीद कर बाँध लेना। लेकिन यह बात उसे और मुझे भी भली भाँति पता है कि राखी का मतलब सिर्फ धागा नही बल्कि प्यार, सुरक्षा, समर्पण, त्याग, न टूटने वाला बंधन, ज़िंदगी भर की दुआयें जैसे अछुण्य धागों से बनी डोर का नाम राखी है और जब इसी राखी को बहन ने अपने भाई की कलाई में जिस दिन बाँध दिया वही रक्षाबंधन का त्योहार बन गया। अब मै बाजा़र से खरीद कर कैसे कोई भी धागा अपने हाँथ में बांध लूँ क्योकि कोई भी धागा चाहे कितना भी ज़्यादा मजबूत और कितना भी ज़्यादा महगा क्यों न हो लेकिन वह बहन की राखी से ज़्यादा मूल्यवान और उससे ज़्यादा मजबूत तो हो ही नहीं सकता। इस रक्षाबंधन ने सिर्फ यही नही बल्कि मुझे यह भी सिखाया कि जो शब्द मैं आजतक सबको सुनाता आ रहा था वह सिर्फ एक कोरा ज्ञान था इसके सिवा और कुछ भी नहीं। तब एक बात और भी समझ में आई की जब कोई अच्छे शब्द किसी महा पुरुष के मुह से बाहर तब आते हैं जब वे कठिन परिस्थितियों से गुजर चुके होते हैं। इस बंधन को एक औपचारिकता मात्र मानकर हांथ में राखी बाधवालेने मात्र से इसकी महत्ता सिद्ध नही होती। इसकी महत्ता वो और अच्छे से बता सकते हैं जिनको खुदा ने बहन जैसी अमूल्य चीज़ नही दी। उनका दिल इस रक्षाबंधन के दिन बडे अच्छे से गवाही दे सकता है कि बहन न होने का मतलब क्या होता है। इसके साथ एक बाकया जोड़ना बहुत ज़रूरी है जो इस विषय से इतर होते हुये भी इसका अभिन्न अंग है। जहां एक ओर लोग अपनी बहन ना होने पर तड़पते हैं वहीं कुछ लोग किसी की बहन को अपनी संतान और अपनी लड़की मानकर सिर्फ लड़के की चाहत में भ्रूण हत्या करने से बाज नहीं आते और किसी दूसरे को बहन के बिना ज़िंदगी भर तड़पने के लिये छोड़ देते हैं। आखिर इन लोगों को बोध कब होगा जिससे कि किसी की बहन की हत्या रोकी जा सके। और किसी को हो या न हो पर एक बात तो तय है कि जो आज एक बहन के लिये तड़प रहे हैं उनको तो ज़रूर होगी और आने वाली पीढ़ी किसी भी सूरत में दूसरे की बहन छीननें की कोशिश नहीं करेगी भले ही वह उसी की संतान क्यों न हो। आज यह बात मेंरे मन में टीस दे रही है कि जिसके हाँथ में सिर्फ एक रक्षाबंधन के दिन राखी नहीं बंधी उसका यह हाल है तो जिसके ज़िंदगी के सारे रक्षाबंधन इसी तरह बिना बहन से राखी बंधवाये गुजरते होंगे उनकी ज़िंदगी में किस प्रकार की उथल-पुथल होती होगी सोचकर ही दिल सिहर उठता है। अब चूँकि आज रक्षाबंधन का त्योहार है और बहन ने कहा भी है इसलिये मै खरीद कर खुद राखी बाँध रहा हूँ क्योंकि बहनें इसके लिये मुझे दुआयें भेजी हैं और इस राखी में उन्ही दुआओं की डोर मिलाकर बाँध रहा हूँ और इस पर्व पर सभी को राखी की मुबारक बाद भी देता हूँ। और समाज से यह बिनती भी करता हूँ कि रक्षाबंधन का त्योहार सभी पूरी रौनक और उत्साह से मना सकें इसके लिये समर्पित हो जायें।
रक्षाबंधन की सबको शुभकामनायें

रोहित सिंह चौहान
बघवारी, सीधी,(म.प्र.)

2 टिप्‍पणियां:

  1. रोहित अच्‍छा लिखा है और तुम्‍हारा जज्‍बा भी अच्‍छा लगा। भाई और बहन का प्रेम होता ही ऐसा है। तुम वर्ड वेर‍िफिकेशन हटा दो, पोस्‍ट करने में कठिनाई होती है, यही टिप्‍पणी दुबारा लिखनी पड़ी।

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  2. रोहित अच्‍छा लिखा है और तुम्‍हारा जज्‍बा भी अच्‍छा लगा। भाई और बहन का प्रेम होता ही ऐसा है। तुम वर्ड वेर‍िफिकेशन हटा दो, पोस्‍ट करने में कठिनाई होती है, यही टिप्‍पणी दुबारा लिखनी पड़ी।

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