हॉकी के जादूगर को नमन
देश आज हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्म राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मना रहा है। देश का यह कोहिनूर जब खेल के मैदान में उतरता था तो गेंद मानों हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। ऐसा देखने वाले और खिलाड़ी कहा करते थे। इस पर कई बार शक भी किया गया।
हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका के चलते तोड़ कर देखी गई। जापान में उनकी हॉकी स्टिक से गेंद चिपके रहने के कारण जांच की गयी। मगर यह खेल के प्रति उनकी अथक मेहनत का नतीजा ही था।
लास एंजिल्स (1932) में हुये ओलंपिक के एक निर्णायक मैच में भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया था। तब एक अमेरिका समाचार पत्र ने लिखा था कि
"भारतीय हॉकी टीम तो पूर्व से आया तूफान थी। उसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के ग्यारह खिलाड़ियों को कुचल दिया।" उस दिन हर अमेरिकी अखबार में भारतीय टीम छायी थी।
1928 एम्स्टर्डम, 1932 लास एंजिल्स, 1936 बर्लिन ओलंपिक में देश को स्वर्ण पदक दिलवाये और देश का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखवा दिया। क्रिकेट का बादशाह सर डॉन ब्रेडमैन, जर्मन तानाशाह हिटलर भी उनकी हॉकी का मुरीद हो गया।
सेना में सैनिक के पद से भर्ती हुआ यह कोहिनूर खेल के बल पर ही लांस नायक, नायक, सूबेदार, लेफ्टिनेंट, कैप्टन और मेजर बनाये गये।
देश का मान, सम्मान ऊँचाई के शिखर पर लाने वाले
इस लाल को पदम् भूषण, पदम् विभूषण पुस्कार तो मिले मगर वो भारत रत्न से भी बड़े सम्मान के हक़दार हैं। जो अब तक नहीं दिया गया।
3 दिसंबर 1979 उनका अवसान हो गया।
राष्ट्रीय खेल दिवस की बधाई।
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